इस्लाम और मुसलमान नदी के दो किनारे क्यों ? ....कता-ऐ-रहमी

वैसे तो हर धर्म में अब यह बात खुले रूप से सामने आने लगी हैं की धार्मिक उपदेश , आदेश कुछ और होते हैं और हमारा किरदार कुछ और. में दूसरे मज़हब क...

901449980_mवैसे तो हर धर्म में अब यह बात खुले रूप से सामने आने लगी हैं की धार्मिक उपदेश , आदेश कुछ और होते हैं और हमारा किरदार कुछ और. में दूसरे मज़हब के मानने वालों की बात करने से बेहतर इस्लाम और उस को मानने वाले मुसलमान की बात करूँगा. 

इस्लाम धर्म के कानून की किताब कुरान हैं और मुहम्मद(स.अ.व) ने हम तक इस्लाम को मुकम्मल तौर पे पहुँचाया इसी लिए उनको पैग़म्बर ए इस्लाम कहा जाता है.

जो शख्स इस्लाम के बताए कानून पे चलता है उसे मुसलमान कहते हैं और जो इस कानून पे नहीं चलता लेकिन खुद को मुसलमान कहता है उसे मुनाफ़िक़ ( दो चेहरे वाला ) कहते हैं.

ऐसे लोग लोग जो इस्लाम को मानते भी हैं और उसके कानून पे चलने की कोशिश भी करते हैं.  मुसलमान कहलाते  है और ऐसे लोग  जब भी कोई काम नफ्स की कमजोरियों के कारण इस्लाम के कानून के खिलाफ क्र जाते  हैं तो उन्हें  इस बात की शर्मिंदगी अल्लाह से रहती हैं की वो  ग़लती कर गए हैं और  अपनी ग़लतियों को मानते हुए यह लोग तौबा किया करते हैं और इन्ही के लिए अल्लाह ने माफी का वादा भी किया है.

ऐसा शख्स जो खुद को मुसलमान तो कहता है लेकिन अपने खुद के बनाये हुई कानून पे चलता है उसी अपनी ग़लती का एहसास भी नहीं होता क्यों की वो खुद की अक्ल और दलीलों को अल्लाह और उसके रसूल (स.अ.व) से अफज़ल समझता है. इनसे ना तो कभी सही राह पे आने की उम्मीद होती है और ना ही माफी की.

आज से लगातार कुछ लेख़ में  में ऐसे ही कुछ गुनाहों का ज़िक्र करूँगा जिनकी माफी ना होने पे जहन्नम का वादा किया है अल्लाह ने फिर भी  खुद को मुसलमान कहने वाले इंसान उसपे चलने की कोशिश भी नहीं करते.

इस्लाम में इंसानों के आपसी रिश्तों की बहुत अहमियत है. जिसमें सबसे ज्यादा अहम् है रिश्तेदारों से मुहब्बत और एक दूसरे की मदद.  आज के दौर में सबसे ज्यादा अगर रिश्ते खराब नज़र आते हैं तो वो हैं रिश्तेदारों के आपसी रिश्ते. इर्ष्या, नफरत , आपस में एक दूसरे के हक़ को मार देना, रिश्ते तुडवा देना, गीबत इत्यादि जैसे गुनाह बहुत आम हो गए  हैं.


अब यह देखिये की इन गुनाहों के बारे में अल्लाह , उसके रसूल (स.अ.व) और हमको राह दिखाने वाले इमाम (अ.स) ने इसके बारे में क्या कहा है.

१) इमाम जाफ़र ए सादिक (अ.स) ने फ़रमाया  अपने रिश्तेदारों से मिला करो क्यों कि इस से उम्र लम्बी होती है और  ग़रीबी नहीं आती. बिहार अल अनवार वोल ७४:पेज ५८ 
२) इमाम मूसा ए काजिम (अ.,स) ने फ़रमाया अगर तुम्हारा कोई रिश्तेदार तुमसे रिश्ता तोड़ ले फिर भी तुम उस से रिश्ता ना तोडना. मुस्तदरक १५:पेज २५३
३) हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने फ़रमाया उन तीन तरह के लोगों को जन्नत की राह नहीं मिलेगी जो शराबी हो,जादू टोने करता हो और जिसने अपने रिश्तेदारों से ताल्लुकात ख़त्म कर रखे हों. बिहार अल अनवार
३) हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने फ़रमाया सबसे बड़ी उदारता यह है कि तुम उस रिश्तेदार से भी मिलो जो तुमने दुश्मनी करता है. सफिनातुल बिहार
५) इमाम सज्जाद (अ.स) ने फ़रमाया ऐसे शख्स से ना मिलो जो अपने रिश्तेदारों से तालुकात नहीं रखता क्यों कि अल्लाह ने कुरान में ऐसों पे तीन बार लानत भेजी है. तोह्फकुल उकूल
६) मौला अली (अ.स) ने कहा जो शख्स अपने रिश्तेदारों से मिलता है वो मशहूर होता है और दुश्मन को हमेशा शिकस्त देता है.
७) हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने फ़रमाया जो शख्स अपने रिश्तेदारों की पैसे से  मदद करता है अल्लाह उसे १००० शहीदों के बराबर सवाब देता है. सफीना तो बिहार


अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया है, " शबे जुमा अजमत वाली रात है, जुमे का दिन रोज़े रोशन व नूरानी है.  अगर किसी शख्स का शबे जुमा इन्तिकाल हों जाए, वोह फिशार ए कब्र से निजात पायेगा, अगर कोई जुमे के रोज़ फौत हों जाए और इस दिन की हिफाज़त जानता हों  तो खुदा वन्दे आलम उसे जहन्नम की आग से आज़ाद कर देगा."  
आप (खुदा का आप पर दुरूद ओ सलाम हों ) ही ने फरमाया, " जुमे के दिन खुदा से बहुत ज्यादा सवाल करो और कसरत से दुआ मांगो, क्योंकि इस दिन के लम्हात ऐसे हैं कि जब दुआ मुस्तजाब होती है, बशर्ते कि यह दुआ 'कता-ऐ-रहमी' , 'गुनाह की आरज़ू'  या 'वालेदैन की ना-फ़रमानी' पर मबनी ना हों."

सिर्फ इतना ही नहीं कुरान में तीन जगह इस बात का ज़िक्र अल्लाह ने किया है कि जो अपने  रिश्तेदारों से दूरी रखेगा वो अल्लाह कि रहमत से महरूम रहेगा. हवाला है सूरा ए बकरह आयात २१, सूरा ए राद आयात २५,सूरा ए मुहम्मद आयात २२-२३

इस से ज्यादा सख्त हिदायत और क्या हो सकती है लेकिन यह खुद को मुसलमान , मोमिन, मौलाई, कहने वाले   आज सब से ज्यादा इसी गुनाह में मुब्तिला है. यहाँ तक कि बड़े बड़े नमाज़ी और हाजी भी इस गुनाह से नहीं बच पा रहे हैं.

एक बार इमाम जाफ़र ए सादिक (अ.स) के पास एक लड़का आया और उसने कहा या इमाम मेरा चाचा मुझसे नफरत करता है यहाँ तक कि जब में सलाम करता हूँ तो मुझे गालियाँ देता है. मेरा दिल करता है कि में उसे मार दूं. इमाम (अ.स) ने कहा सब्र करो और मुस्करा के सलाम करते रहो क्यों कि जब अल्लाह के यहाँ हिसाब होगा तो तुम्हारे अमाल नामे में लिखा होगा सब्र और उसके अमाल नामे में लिखा होगा गुनाह ए कबीरा.

अल्लाह आदिल है और सजा से तुम्हारा चाचा बच नहीं सकेगा. तुम उसे मार के या गाली  दे के अपने अमाल नामे में गुनाह क्यों लिखना चाहते हो.

इतनी बेहतेरीन हिदायत के बावजूद हम कुछ समझने को तैयार नहीं क्यों कि शायद हमें आखिरत और अल्लाह के फैसले पे यकीन नहीं तभी तो अपने सारे हिसाब किताब इस दुनिया में खुद ही बराबर कर लेना चाहने कि कोशिश में बुरा बर्ताव करने वाले रिश्तेदार के साथ उस से भी बढ़ के बुरा करके जवाब देने कि फ़िक्र में लगे रहते हैं.

इंसान जब भी अपनी कमियों को पहचान ले और खुद को बदल ले वो दिन उसका ईद या सबसे ज्यादा ख़ुशी का हुआ करता है. क्यों ना हम खुद को बदल  लें और कता-ऐ-रहमी के गुनाह से खुद को बचा लें.
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  1. आपके इस आलेख से मुझे नई जानकारी मिली. आभार.

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  2. islaam aur atank vakai me behad juda hai. Par samujh me yeh nahi aata ki muslim samuday ke log aage aakar ye kyon nahi kahte ki duniya ke jitane bhi antanki hai, unhe kisi masjid me namaaj ada nahi karne di jaayegi, kyonki har atankvaadi hamle me kam se kam ek kuran jalti hai, uske parkhachche udate hai. Osama ke maare jaane par, kai muslimo ne kaha ki muslim riti se dafan nahi kiya gaya, yeh kyon nahi kaha gaya ki jo america ki fauj ne kiya usse hamaraa koi lena dena nahi, kyonki 9/11 ke hamle me ek nahi balki saikado kurane jali thi. har muslim ke ghar(aur kai baar to jaibo me bhi), kam se kam ek kuran hoti hai, to socho jo log kashmir ghati me aur pakistaan me roj dhamaaka karate hai voh kitane muslim hai? kyon koi yeh nahi kahta ki Kasab aur Afjal Guru sirf atanki hai, muslim nahi? Bada vakya to tab hua tha jab pichle saal ek Australia ke sirphire ne kuraan jalane ki baat ki, aur uske virodh me kashmir me ek convent ko jala diya gaya, us convent ko jiski library me hajaaro kuraan ki pratiyaan rakhi hui thi!Sirfire ko aakhri samay akal aa gayi par jo pahle hi jal gai un pratiyon ka kya? Kyon un dangaaiyo ko yeh nahi kaha gaya ki aaj se unme se koi muslim kahlaane le laaayak nahi hai?

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