इज्ज़त और ज़िल्लत का फर्क समझना होगा

आज से १३९२ साल पहले सन ६१ हिजरी मैं  एक ज़ालिम बादशाह यजीद  ज़ुल्म ,दौलत और ताक़त के ज़ोर पे मुसलमानों का खलीफा बन बैठा. यही काम यजीद (ल) के ब...

आज से १३९२ साल पहले सन ६१ हिजरी मैं  एक ज़ालिम बादशाह यजीद  ज़ुल्म ,दौलत और ताक़त के ज़ोर पे मुसलमानों का खलीफा बन बैठा. यही काम यजीद (ल) के बाप मुआविया ने भी किया था लेकिन मरते वक़्त यह कुबूल किया कि खिलाफत तो असल मैं हक इ हुसैन (अ.स) है.


यजीद ने एलान इ खिलाफत के बाद इमाम हुसैन (अ.स) जो रसूल इ खुदा (स.अ.व) के नवासे भी थे ,पे अपनी बैय्यत के लिए ज़ोर डालना शुरू कर दिया.  बैयत का मतलब होता है खुद कि नफ्स को  किसी के हाथ बेच देना या कह लें उनके कहने पे चलने लगना .


karbala_imageइमाम हुसैन (अ.स) ने यजीद (ल) से कहा ज़ुल्म का इस्लाम से कोई रिश्ता नहीं और ज़ालिम मुसलमान भी नहीं हो सकता ऐसे मैं तुम्हारे हाथ पे बैय्यत संभव नहीं. बस इस इनकार के बाद से ही हक और बातिल कि जंग शुरू हो गयी.
इमाम हुसैन (अ.स) को मजबूर किया गया कि वो मदीना छोड़ दें. और इमाम हुसैन (अ.स) का यह सफ़र २८ रजब ६० हिजरी को शुरू हुआ. इस सफ़र मैं उनके साथ उनके दोस्त और रिश्तेदार थे. मक्का मैं कुछ महीने रहने के बाद जब इमाम हुसैन (अ.स) को एहसास हुआ कि मक्का कि ज़मीन पे भी यजीद (ल) के भेजे लोग उनका खून बहा सकते हैं तो उन्होंने ने हज  को उमरे मैं तब्दील कर के कूफ़ा का रुख  किया ,जहां उन्होंने वहाँ के लोगों के बुलावे पे अपने भाई मुस्लिम को भेजा था.


रास्ते मैं इमाम हुसैन (अ.स) को खबर मिली कि जिन १८००० कूफ़ा वालों ने उन्हें ख़त लिख कर बुलाया था उनको डरा धमका कर और दौलत  कि लालच दे के चुप करवा दिया गया और सभी ने जनाब इ मुस्लिम का साथ छोड़ दिया. जनाब ए मुस्लिम तनहा शहीद हो गए और उनके बच्चे कैदी बना लिए गए.


रस्ते हैं हुर्र मिला जो लश्कर ए यजीद का सिपहसलार  था ,उसने इमाम हुसैन (अ.स) को कूफ़ा जाने से रोका. इमाम हुसैन (अ.स) ने उसकी बदतमीजी और ज़बरदस्ती के बाद भी उसके काफिले को पानी पिलाया और पूछा क्यों ऐसा कर रहे हो? लेकिन हुर्र हुक्म ए यज़ीद (ल) बजा लाया  और  और उनके काफिले को कर्बला ले गया.


२ मुहर्रम ६१ हिजरी मैं यह काफिला जिसमें तकरीबन ७२ या ७४ लोग थे कर्बला की सर ज़मीन पे पहुंचा. ७ मुहर्रम से इस काफिले को दरिया ए फुरात के किनारे से हटा दिया गया और उनपे पानी के सभी रास्ते बंद कर दिए  गए.इमाम हुसैन (अ.स) के रिश्तेदार ,दोस्त और बच्चे सभी प्यास से बेहाल होने लगे.


९ मुहर्रम कि शब् इमाम हुसैन (अस.) ने सभी को एक मैदान मैं जमा किया और कहा ऐ लोगों यजीद (ल) को सिर्फ मुझ से दुश्मनी है तुम लोग चाहो तो मेरा साथ छोड़ के जा सकते हो , वो तुम्हें ख़ुशी ख़ुशी जाने देगा और इमाम (अ) ने सभी रौशनी  बंद कर दी के जो चाहे रात के अँधेरे मैं चला जाए.


कुछ देर बाद जब रौशनी कि तो पाया कि एक भी साथी वहाँ से नहीं गया और सभी इमाम हुसैन (अ.स) के साथ कुर्बान होने को तैयार थे.


१० मुहर्रम की सुबह लश्कर ए यजीद(ल) ने नमाज़ ए सुबह पढ़ते हुई इमाम हुसैन (अ) के साथियों पे हमला किया और ३० लोगों को शहीद कर दिया. उसके बाद एक एक करके दोस्त , रिश्तेदार जाते रहे और शहीद होते रहे. यहाँ तक कि दुश्मनों ने ६ महीने के प्यासे इमाम हुसैन (अ.स) के बेटे अली असग़र को भी शहीद कर दिया और वक़्त ए जुहर नमाज़ पढ़ते हुई सजदे की हालत मैं रसूल ए खुदा (स.अ.व) ने नवासे इमाम हुसैन (अ.स) को शहीद कर दिया उनके घरों को लूट लिया गया औरतों और बच्चों को कैसे बना के बेहिजाब १६०० किलो मीटर उपके ज़ुल्म करते हुए दरबार ए यज़ीद (शाम) ले जाया गया.


ज़ुल्म कि यह कहानी आज तक मुसलमानों को याद है जिसने हक और बातिल को एक दुसरे से अलग कर के दुनिया हो हक कि राह दिखाई.


जब यह काफिला दरबार ए यजीद (ल) पहुंचा तो  वहाँ यजीद (ल) ने मुसलमानों के खलीफा हजरत अली (अ.स) कि बेटी जनाब ए जैनब से उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहा  वह जिसे चाहता है, इज्ज़त देता है और जिसे चाहता है ज़िल्लत देता है। देखो मैं बादशाह के तख़्त पे बैठा हूं और तुम कैदी बने खड़े हो. जनाब ए जैनब उस वक़्त एक खुतबा दिया और कहा लगता है यजीद तूने कुरान मैं नहीं पढ़ा वरना ऐसा ना कहता .

देख मुझे अल्लाह ने अपने रसूल (स.अ.व) कि बेटी के घर मैं पैदा किया और यही वो घर है है जिसकी पाकीजगी और तहारत कि गवाही अल्लाह खुद कुरान मैं दे रहा है.

इज्ज़त दार वो होता है जो अपने जैसे इंसानों पे ज़ुल्म नहीं करता, सब्र करता है, दुनिया के मसायल अदालत और इन्साफ से हल करता है.

इज्ज़त अल्लाह हमेशा उसी को देता है जो अल्लाह कि कुर्बत कि नज़र से काम करे. तुझे क्या लगता है कि अल्लाह के रसूल (स.अ.व) के नवासे को क़त्ल कर के तू अल्लाह कि राजा पा सकेगा? अगर हाँ तो बस कुछ दिन और जी ले फिर तुझे एहसास होगा कि मजलूम कि आह और इंसानों पे ज़ुल्म का मज़ा कैसा होता है.


ज़ालिम दुनिया मैं वक्ती तौर पे यह समझता है कि वो जीत गया और अक्सर तेरी तरह ग़लतफ़हमी का शिकार हो जाता है कि अल्लाह ने उसे यह इज्ज़त दी है जबकि यह अल्लाह की दी हुई  कुछ वक़्त के लिए छूट है .
जनाब ए जैनब ने यह खुतबा दिया था १३७२ साल पहले जब वो ज़ाहिरी तौर पे कैदी थीं और यजीद (ल) बादशाह.
आज देखो यही नाम  ए जैनब है, यही नाम  ए हुसैन (अ,.स ) आज दुनिया मैं करोडो लोग इनको मानते हैं, इनको याद करते हैं और इनके जैसा किरदार बना लेने कि ख्वाहिश रखते हैं.
और वही उस वक़्त का बादशाह यजीद(ल) है जिसके नाम पे आज कोई मुसलमान नाम भी रखना पसंद नहीं करता.

जहां इमाम हुसैन (अ.स) और जनाब ए जैनब कि कब्र है वहाँ हर वक़्त पूरे साल हजारों लो मजूद अल्लाह कि इबादत किया करते हैं , हमद ओ दुरूद और अज़ान कि आवाजें बुलंद होती रहती हैं.
और यह यज़ीद (ल) , मुआव्विया कि कब्रें देख लो आज कोई नहीं जाता वहाँ , ना ही कोई वहाँ नेकी करता है बदहाल लावारिस कि तरह एक खंडहर बन के पडी हैं जब कि उस दरबार को आज भी वैसा ही बरक़रार रखा गया है.


सच है ना कि अल्लाह जिसे चाहता है इज्ज़त देता है और जिसे चाहता है ज़िल्लत. फर्क इतना है कि हम ही नहीं पहचान पाते कि इज्ज़त किसी कहते हैं और ज़िल्लत किसे कहते हैं.


हलाल की  कमाई से खाया एक वक़्त का खाना इज्ज़त कि वजह बनता है और हराम की कमाई से खाया बढ़िया खाना ज़िल्लत कि वजह बना करता हैं. आज ज़रुरत है इस पैग़ाम ए जैनब को समझने की , कर्बला मैं शहीद हो के इमाम हुसैन (अ.स) ने इस्लाम को बचाया .

 

आज भी कुछ ज़ालिम ज़ुल्म को इस्लाम का नाम देने की यजीदी साजिश कर रहे हैं यह हमारा काम है कि इमाम हुसैन (अ.स) ,अह्लुल्बय्त के बताये रास्ते पे चलते हुए हक को सामने लायें और बता दें दुनिया को इस्लाम अमन का पैग़ाम है ना कि नफरत और ज़ुल्म कि सौदागरी का नाम है.

आज हुसैन (अ.स) का नाम  मुसलमान ही नहीं हिन्दू भी इज्ज़त से लेते हैं. किसी शायर ने क्या खूब कहा है.


हिंद  में  काश  हुसैन  इब्न  अली  आ  जाते
चूमते  उन  के  क़दम  पलकें  बिछाते  हिन्दू
आंच  अहमद  के  नवासे  पे  ना  आने  देते
वक़्त  पड़ता  जो  कोई  सर  भी  कटते  हिन्दू
भुवनेश  चन्द्र  शर्मा  “भुवन ” अमरोही


आज वक़्त ने फैसला  किया देखिये ज़रा जनाब इ जैनब के रौज़े और इमाम हुसैन (अ.स) के रौज़े कि रौनक और उनके चाहने वालों का मजमा और उसके बाद  यजीद और मुआव्विया कि बदहाल कब्रें. यह ना भूलें कि यह दोनों बादशाह हुआ करते थे और मुसलमानों के ज़ुल्म और दौलत कि ताक़त पे बने खलीफा हुआ करते थे.

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Shiites Gather Ashura Festival Karbala VtQTrkcJcpml

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moawwiyayazeedl

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  1. descriptive and informative post .

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  2. हकीक़त यह कि दीने इस्लाम तमाम दूसरे दीन व मज़हब से बढ़ कर इंसानी ज़िन्दगी की भलाई और ख़ुशहाली की गारंटी देता है, हकीक़त का क़ुरआने मजीद के ज़रिये ही मुसलमानों तक पहुचा है। इसी तरह इस्लाम के दीनी उसूल जो ईमानी, ऐतेक़ादी, अख़लाक़ी और अमली क़वानीन की कड़ियाँ है, उन सब की बुनियाद भी क़ुरआने मजीद ही है।
    अल्लाह तआला फ़रमाता है: इसमें शक नहीं है कि यह क़ुरआने मजीद उस राह की हिदायत करता है जो सबसे ज़्यादा सीधी है। (सूरह बनी इसराईल आयत 9)
    और फिर फ़रमाता है: और हमने तुम पर किताब (क़ुरआने मजीद) नाज़िल की हर चीज़ को वाजे़ह तौर पर बयान करती है और उस पर रौशनी डालती है। (सूरह नहल आयत 89)

    ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ में।
    आप सादर आमंत्रित हैं।

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