हज़रत फातिमा ज़हरा (स) जीवनी

पैग़म्बरे ए इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स.ए.व) (स0) की पूत्री हज़रत फातिमा ज़हरा (स0) की विलादत बीस जमादिउस सानी को हुई. हज़रत फातिमा ज़हरा (स0) ...

पैग़म्बरे ए इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स.ए.व) (स0) की पूत्री हज़रत फातिमा ज़हरा (स0) की विलादत
बीस जमादिउस सानी को हुई. हज़रत फातिमा ज़हरा (स0) की माँ का नाम बानोये ईस्लाम हज़रत ख़दीजा (उम्मुल मोमेंनीन ) है।
विशेषताऐं
नाम व अलक़ाब (उपाधियां)
आप का नाम फ़ातिमा व आपकी उपाधियां ज़हरा ,सिद्दीक़ा, ताहिरा, ज़ाकिरा, राज़िया, मरज़िया,मुहद्देसा व बतूल हैं।
माता पिता
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के पिता पैगम्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा व आपकीमाता हज़रत ख़दीजातुल कुबरा पुत्री श्री ख़ोलद हैं। हज़रत ख़दीजा वह स्त्रीहैं,जिन्होने सर्व- प्रथम इस्लाम को स्वीकार किया। आप अरब की एक धनी महिला थीं तथाआप का व्यापार पूरे अरब मे फैला हुआ था। आपने विवाह उपरान्त अपनी समस्त सम्पत्तिइस्लाम प्रचार हेतू पैगम्बर को दे दी थी। तथा स्वंय साधारण जीवन व्यतीत करतीथीं।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
अधिकाँश इतिहासकारों ने उल्लेख किया है कि हज़रत फातिमा ज़हरा का जन्म मक्कानामक शहर मे जमादियुस्सानी (अरबी वर्ष का छटा मास) मास की 20 वी तारीख को बेसत केपांचवे वर्ष हुआ। कुछ इतिहास कारों ने आपके जन्म को बेसत के दूसरे व तीसरे वर्ष मेभी लिखा है।एक सुन्नी इतिहासकार ने आपके जन्म को बेसत के पहले वर्ष मे लिखा है।
पालन पोषन
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का पालन पोषन स्वंय पैगम्बर की देख रेख मे घर मेही हुआ। आप का पालन पोषन उस गरिमा मय घर मे हुआ जहाँ पर अल्लाह का संदेश आता था।जहाँ पर कुऑन उतरा जहाँ पर सर्वप्रथम एक समुदाय ने एकईश्वरवाद मे अपना विश्वासप्रकट किया तथा मरते समय तक अपनी आस्था मे दृढ रहे। जहाँ से अल्लाहो अकबर (अर्थातअल्लाह महान है) की अवाज़ उठ कर पूरे संसार मे फैल गई। केवल हज़रत फ़ातिमासलामुल्लाह अलैहा वह बालिका थीं जिन्होंने एकईश्वरवाद के उद्दघोष के उत्साह को इतनेसमीप से देखा था। पैगम्बर ने हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा को इस प्रकारप्रशिक्षित किया कि उनके अन्दर मानवता के समस्त गुण विकसित हो गये। तथा आगे चलकर वहएक आदर्श नारी बनीं।
विवाह
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का विवाह 9 वर्ष की आयु मे हज़रत अलीअलैहिस्सलाम के साथ हुआ। वह विवाह उपरान्त 9 वर्षों तक जीवित रहीं। उन्होने चारबच्चों को जन्म दिया जिनमे दो लड़के तथा दो लड़कियां थीं। जिन के नाम क्रमशः इसप्रकार हैं। पुत्रगण (1) हज़रत इमाम हसन (अ0) (2) हज़रत इमाम हुसैन (अ0)। पुत्रीयां(3) हज़रत ज़ैनब (4) हज़रत उम्मे कुलसूम। आपकी पाँचवी सन्तान गर्भावस्था मे हीस्वर्गवासी हो गयी थी। वह एक पुत्र थे तथा उनका नाम मुहसिन रखा गया था।
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का ज्ञान
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के ज्ञान का स्रोत वही ज्ञान व मर्म है, जो आपके पिता को अल्लाह से प्राप्त हुआ था। हज़रत पैगम्बर अपनी पुत्री फ़तिमा के लिए उससमस्त ज्ञान का व्याख्यान करते थे। हज़रत अली उन व्याख्यानों को लिखते व हज़रतफ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा उन सब लेखों को एकत्रित करती रहती थीं। इन एकत्रित लेखोंने बाद मे एक पुस्तक का रूप धारण कर लिया। आगे चलकर यह पुस्तक मुसहफ़े फ़ातिमा केनाम से प्रसिद्ध हुई।
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का शिक्षण कार्य
हज़रत फ़तिमा स्त्रीयों को कुऑन व धार्मिक निर्देशों की शिक्षा देती व उनको उनकेकर्तव्यों के प्रति सजग करती रहती थीं। आप की मुख्यः शिष्या का नाम फ़िज़्ज़ा था जोगृह कार्यों मे आप की साहयता भी करती थी। वह कुऑन के ज्ञान मे इतनी निःपुण हो गयीथी कि उसको जो बात भी करनी होती वह कुऑन की आयतों के द्वारा करती थी। हज़रत फ़ातिमासलामुल्लाह अलैहा दूसरों को शिक्षा देने से कभी नही थकती थीं तथा सदैव अपनीशिष्याओं का धैर्य बंधाती रहती थी।
एक दिन की घटना है कि एक स्त्री ने आपकी सेवा मे उपस्थित हो कर कहा कि मेरी माताबहुत बूढी है और उसकी नमाज़ सही नही है। उसने मुझे आपके पास भेजा है कि मैं आप सेइस बारे मे प्रश्न करू ताकि उसकी नमाज़ सही हो जाये। आपने उसके प्रश्नो का उत्तरदिया और वह लौट गई। वह फिर आई तथा फिर अपने प्रश्नों का उत्तर लेकर लौट गई। इसीप्रकार उस को दस बार आना पड़ा और आपने दस की दस बार उसके प्रश्नों का उत्तर दिया।वह स्त्री बार बार आने जाने से बहुत लज्जित हुई तथा कहा कि मैं अब आप को अधिक कष्टनही दूँगी।
आप ने कहा कि तुम बार बार आओ व अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करो । मैं अधिकप्रश्न पूछने से क्रोधित नही होती हूँ। क्योंकि मैंने अपनेपिता से सुना है कि"कियामत के दिन हमारा अनुसरण करने वाले ज्ञानी लोगों को उनके ज्ञान के अनुरूपमूल्यवान वस्त्र दिये जायेंगे। तथा उनका बदला (प्रतिकार) मनुष्यों को अल्लाह की ओरबुलाने के लिए किये गये प्रयासों के अनुसार होगा।"
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा की इबादत
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा रात्री के एक पूरे चरण मे इबादत मे लीन रहतीथीं। वह खड़े होकर इतनी नमाज़ें पढ़ती थीं कि उनके पैरों पर सूजन आजाती थी। सन् 110 हिजरी मे मृत्यु पाने वाला हसन बसरी नामक एक इतिहासकार उल्लेख करता है कि" पूरेमुस्लिम समाज मे हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा से बढ़कर कोई ज़ाहिद, (इन्द्रिनिग्रेह) संयमी व तपस्वी नही है।" पैगम्बर की पुत्री संसार की समस्त स्त्रीयों केलिए एक आदर्श है। जब वह गृह कार्यों को समाप्त कर लेती थीं तो इबादत मे लीन हो जातीथीं।
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम अपने पूर्वज इमाम हसन जो कि हज़रत फ़ातिमासलामुल्लाह अलैहा के बड़े पुत्र हैं उनके इस कथन का उल्लेख करते हैं कि "हमारी माताहज़रत फ़ातिमा ज़हरा बृहस्पतिवार व शुक्रवार के मध्य की रात्री को प्रथम चरण सेलेकर अन्तिम चरण तक इबादत करती थीं। तथा जब दुआ के लिए हाथों को उठाती तो समस्तआस्तिक नर नारियों के लिए अल्लाह से दया की प्रार्थना करतीं परन्तु अपने लिए कोईदुआ नही करती थीं। एक बार मैंने कहा कि माता जी आप दूसरों के लिए अल्लाह से दुआकरती हैं अपने लिए दुआ क्यों नही करती?  उन्होंने उत्तरदिया कि प्रियः पुत्र सदैव अपने पड़ोसियों को अपने ऊपर वरीयता देनी चाहिये।"
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा एक जाप किया करती थीं जिसमे (34) बार अल्लाहुअकबर (33) बार अलहम्दो लिल्लाह तथा (33) बार सुबहानल्लाह कहती थीं। आपका यह जापइस्लामिक समुदाय मे हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा की तस्बीह के नाम से प्रसिद्धहै। तथा शिया व सुन्नी दोनो समुदायों के व्यक्ति इस तस्बीह को नमाज़ के बाद पढ़तेहैं।
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का धर्म युद्धों मे योगदान
इतिहास ने हज़रत पैगम्बर के दस वर्षीय शासन के अन्तर्गत आपके 28 धर्म युद्धोंतथा 35 से लेकर 90 तक की संख्या मे सरिय्यों का उल्लेख किया है। (पैगम्बर के जीवनमे सरिय्या उन युद्धों को कहा जाता था जिन मे पैगम्बर स्वंय सम्मिलित नही होते थे।)जब इस्लामी सेना किसी युद्ध पर जाती तो हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा इस्लामीसेनानियों के परिवार की साहयता के लिए जाती व उनका धैर्य बंधाती थीं। वह कभी कभीस्त्रीयों को इस कार्य के लिए उत्साहित करती कि युद्ध भूमी मे जाकर घायलों की मरहमपट्टि करें। परन्तु केवल उन सैनिकों की जो उनके महरम हों। महरम अर्थात वह व्यक्तिजिनसे विवाह करना हराम हो।
ओहद नामक युद्ध मे हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अन्य स्त्रीयों के साथ युद्धभूमि मे गईं इस युद्ध मे आपके पिता व पति दोनो बहुत घायल होगये थे। हज़रत फ़ातिमासलामुल्लाह अलैहा ने अपने पिता के चेहरे से खून धोया। तथा जब यह देखा कि खून बंदनही हो रहा है तो हरीर(रेशम) के एक टुकड़े को जला कर उस की राख को घाव पर डाला ताकिखून बंद हो जाये। उस दिन हज़रत अली ने अपनी तलवार धोने के लिए हज़रत फ़ातिमासलामुल्लाह अलैहा को दी। इस युद्ध मे हज़रत पैगम्बर के चचा श्री हमज़ा शहीद हो गयेथे। युद्ध के बाद श्री हमज़ा की बहन हज़रत सफ़िहा हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहाके साथ अपने भाई की क्षत विक्षत लाश पर आईं तथा रोने लगीं। हज़रत फ़ातिमासलामुल्लाह अलैहा भी रोईं तथा पैगम्बर भी रोयें।और अपने चचा के पार्थिव शरीर से कहाकि अभी तक आप की मृत्यु के समान कोई मुसीबत मुझ पर नही पड़ी। इसके बाद हज़रत फ़तिमाव सफ़िहा से कहा कि अभी अभी मुझे अल्लाह का संदेश मिला है कि सातों आकाशों मे हमज़ाशेरे खुदा व शेरे रसूले खुदा है। इस युद्ध के बाद हज़रत फातिमा जब तक जीवित रहीं हरदूसरे या तीसरे दिन ओहद मे शहीद होने वाले सैनिकों की समाधि पर अवश्य जाया करतीथीं।
ख़न्दक नामक युद्ध मे हज़रत फ़तिमा अपने पिता के लिए रोटियां बनाकर ले गयीं जबपैगम्बर ने प्रश्न किया कि यह क्या है? तो आपने उत्तर दिया कि आपके न होने के कारणदिल बहुत चिंतित था अतः यह रोटियां लेकर आपकी सेवा मे आगई। पैगम्बर ने कहा कि तीनदिन के बाद मैं यह पहला भोजन अपने मुख मे रख रहा हूँ।
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा एक आदर्श पुत्री,पत्नि, व माता के रूप मे
आदर्श पुत्री
नौ वर्ष की आयु तक हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अपने पिता के घर पर रहीं।जबतक उनकी माता हज़रत ख़दीजा जीवित रहीं वह गृह कार्यों मे पूर्ण रूप से उनकी साहयताकरती थीं। तथा अपने माता पिता की अज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करती थीं। अपनी माताके स्वर्गवास के बाद उन्होने अपने पिता की इस प्रकार सेवा की कि पैगम्बर आपको उम्मेअबीहा कहने लगे। अर्थात माता के समान व्यवहार करने वाली। पैगम्बर आपका बहुत सत्कारकरते थे। जब आप पैगम्बर के पास आती थीं तो पैगमबर आपके आदर मे खड़े हो जाते थे, तथाआदर पूर्वक अपने पास बैठाते थे। जब तक वह अपने पिता के साथ रही उन्होने पैगमबर कीहर आवश्यकता का ध्यान रखा। वर्तमान समय मे समस्त लड़कियों को चाहिए कि वह हज़रतफ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का अनुसरण करते हुए अपने माता पिता की सेवा करें।
आदर्श पत्नि
हज़रत फ़तिमा संसार मे एक आदर्श पत्नि के रूप मे प्रसिद्ध हैं। उनके पति हज़रतअली ने विवाह उपरान्त का अधिकाँश जीवन रण भूमी या इस्लाम प्रचार मे व्यतीत किया।उनकी अनुपस्थिति मे गृह कार्यों व बच्चों के प्रशिक्षण का उत्तरदायित्व वह स्वंयअपने कांधों पर संभालती व इन कार्यों को उचित रूप से करती थीं। ताकि उनके पति आरामपूर्वक धर्मयुद्ध व इस्लाम प्रचार के उत्तर दायित्व को निभा सकें। उन्होने कभी भीअपने पति से किसी वस्तु की फ़रमाइश नही की। वह घर के सब कार्यों को स्वंय करती थीं।वह अपने हाथों से चक्की चलाकर जौं पीसती तथा रोटियां बनाती थीं। वह पूर्ण रूप सेसमस्त कार्यों मे अपने पति का सहयोग करती थीं। पैगम्बर के स्वर्गवास के बाद जोविपत्तियां उनके पति पर पड़ीं उन्होने उन विपत्तियों मे हज़रत अली अलैहिस्सलाम केसहयोग मे मुख्य भूमिका निभाई। तथा अपने पति की साहयतार्थ अपने प्राणो की आहूति देदी। जब हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का स्वर्गवास हो गया तो हज़रत अली ने कहा किआज मैने अपने सबसे बड़े समर्थक को खो दिया।
आदर्श माता
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने एक आदर्श माता की भूमिका निभाई उनहोनें अपनीचारों संतानों को इस प्रकार प्रशिक्षत किया कि आगे चलकर वह महान् व्यक्तियों के रूपमे विश्वविख्यात हुए। उनहोनें अपनी समस्त संतानों को सत्यता, पवित्रता, सदाचारिता, वीरता, अत्याचार विरोध, इस्लाम प्रचार, समाज सुधार, तथा इस्लाम रक्षा की शिक्षा दी।वह अपने बच्चों के वस्त्र स्वंय धोती थीं व उनको स्वंय भोजन बनाकर खिलाती थीं। वहकभी भी अपने बच्चों के बिना भोजन नही करती थीं। तथा सदैव प्रेम पूर्वक व्यवहार करतीथीं। उन्होंने अपनी मृत्यु के दिन रोगी होने की अवस्था मे भी अपने बच्चों केवस्त्रों को धोया, तथा उनके लिए भोजन बनाकर रखा। संसार की समस्त माताओं को चाहिए किवह हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का अनुसरण करे तथा अपनी संतान को उच्च प्रशिक्षणद्वारा सुशोभित करें।
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा व पैगम्बर के जीवन के अन्तिम क्षण
क्योंकि हज़रत पैगम्बर(स.) का रोग उनके जीवन के अन्तिम चरण मे अत्याधिक बढ़ गयाथा।अतः हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा हर समय अपने पिता की सेवा मे रहती थीं। उनकीशय्या की बराबर मे बैठी उनके तेजस्वी चेहरे को निहारती रहती व ज्वर के कारण आयेपसीने को साफ़ करती रहती थीं। जब हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अपने पिता को इसअवस्था मे देखती तो रोने लगती थीं। पैगम्बर से यह सहन नही हुआ। उन्होंने हज़रतफ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा को संकेत दिया कि मुझ से अधिक समीप हो जाओ। जब हज़रतफ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा निकट हुईं तो पैगम्बर उनके कान मे कुछ कहा जिसे सुन करहज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा मुस्कुराने लगीं। इस अवसर पर हज़रत फ़ातिमासलामुल्लाह अलैहा का मुस्कुराना आश्चर्य जनक था। अतः आप से प्रश्न किया गया कि आपकेपिता ने आप से क्या कहा? आपने उत्तर दिया कि मैं इस रहस्य को अपने पिता के जीवन मेकिसी से नही बताऊँगी। पैगम्बर के स्वर्गवास के बाद आपने इस रहस्य को प्रकट किया।औरकहा कि मेरे पिता ने मुझ से कहा था कि ऐ फ़ातिमा आप मेरे परिवार मे से सबसे पहलेमुझ से भेंट करोगी। और मैं इसी कारण हर्षित हुई थी।
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के गले की माला
एक दिन हज़रत पैगम्बर(स.) अपने मित्रों के साथ मस्जिद मे बैठे हुए थे । उसी समयएक व्यक्ति वहाँ पर आया जिसके कपड़े फ़टे हुए थे तथा उस के चेहरे से दरिद्रता प्रकटथी। वृद्धावस्था के कारण उसके शरीर की शक्ति क्षीण हो चुकी थी। पैगम्बर उस के समीपगये तथा उससे उसके बारे मे प्रश्न किया उसने कहा कि मैं एक दुखिःत भिखारी हूँ। मैंभूखा हूँ मुझे भोजन कराओ, मैं वस्त्रहीन हूँ मुझे पहनने के लिए वस्त्र दो,मैं कंगालहूँ मेरी आर्थिक साहयता करो। पैगम्बर ने कहा कि इस समय मेरे पास कुछ नही है परन्तुचूंकि किसी को अच्छे कार्य के लिए रास्ता बताना भी अच्छा कार्य करने के समान है। इसलिए पैगम्बर ने उसको हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के घर का पता बता दिया। क्योकिउनका घर मस्जिद से मिला हुआ था अतः वह शीघ्रता से उनके द्वार पर आया व साहयता कीगुहार की। हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने कहा कि इस समय मेरे पास कुछ नही है जोमैं तुझे दे सकूँ। परन्तु मेरे पास एक माला है तू इसे बेंच कर अपनी आवश्य़क्ताओं कीपूर्ति कर सकता है। यह कहकर अपने गले से माला उतार कर उस को देदी। य़ह माला हज़रतपैगम्बर के चचा श्री हमज़ा ने हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा को उपहार स्वरूप दीथी। वह इस माला को लेकर पैगम्बर के पास आया तथा कहा कि फ़ातिमा ने यह माला दी है।तथा कहा है कि मैं इसको बेंच कर अपनी अवश्यक्ताओं की पूर्ति करूँ।.
पैगम्बर इस माला को देख कर रोने लगे । अम्मारे यासिर नामक आपके एक मित्र आपकेपास बैठे हुए थे। उन्होंने कहा कि मुझे अनुमति दीजिये कि मैं इस माला को खरीद लूँपैगम्बर ने कहा कि जो इस माला को खरीदेगा अल्लाह उस पर अज़ाब नही करेगा। अम्मार नेउस दरिद्र से पूछा कि तुम इस माला को कितने मे बेंचना चाहते हो? उसने उत्तर दिया किमैं इसको इतने मूल्य पर बेंच दूंगा जितने मे मुझे पहनने के लिए वस्त्र खाने के लिएरोटी गोश्त मिल जाये तथा एक दीनार मरे पास बच जाये जिससे मैं अपने घर जासकूँ।अम्मार यासिर ने कहा कि मैं इसको भोजन वस्त्र सवारी व बीस दीनार के बदले खरीदताहूँ। वह दरिद्र शीघ्रता पूर्वक तैयार हो गया। इस प्रकार अम्मारे यासिर ने इस मालाको खरीद कर सुगन्धित किया। तथा अपने दास को देकर कहा कि यह माला पैगम्बर को भेंट करव मैंने तुझे भी पैगम्बर की भेंट किया। पैगम्बर ने भी वह माला तथा दास हज़रतफ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा की भेंट कर दिया । हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा नेमाला को ले लिया तथा दास से कहा कि मैंने तुझे अल्लाह के लिए स्वतन्त्र किया। दासयह सुनकर हंसने लगा। हज़रत फ़तिमा ने हगंसने का कारण पूछा तो उसने कहा कि मुझे इसमाला ने हंसाया क्यों कि इस ने एक भूखे को भोजन कराया, एक वस्त्रहीन को वस्त्रपहनाये एक पैदल चलने वाले को सवारी प्रदान की एक दरिद्र को मालदार बनाया एक दास कोस्वतन्त्र कराया और अन्त मे स्वंय अपने मालिक के पास आगई।
शहादत(स्वर्गवास)
आप अपने पिता के बाद केवल 90 दिन जीवित रहीं। हज़रतपैगम्बर के स्वर्गवास के बाद जो अत्याचार आप पर हुए आप उनको सहन न कर सकीं तथास्वर्गवासी हो गईं। इतिहासकारों ने उल्लेख किया है कि जब आप के घर को आग लगायी गई, उस समय आप द्वार के पीछे खड़ी हुई थीं। जब किवाड़ों को धक्का देकर शत्रुओं ने घर मेप्रवेश किया तो उस समय आप दर व दीवार के मध्य भिच गयीं। जिस कारण आपके सीने कीपसलियां टूट गयीं, व आपका वह बेटा भी स्वर्गवासी हो गया जो अभी जन्म भी नही ले पायाथा। जिनका नाम गर्भावस्था मे ही मोहसिन रख दिया गया था।
समाधि
चूँकि जिस समय आपकी शहादत हुई उस समय आपका परिवार बहुत ही भयंकर स्थिति से गुज़ररहा था। चारों ओर शत्रुता व्याप्त थी तथा आपने स्वंय भी वसीयत की थी कि मुझे रात्रीके समय दफ़्न करना तथा कुछ विशेष व्यक्तियों को मेरे जनाज़े मे सम्मिलित न करना।अतः हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने वसीयतानुसार आपको चुप चाप रात्री के समय दफ़्न करदिया।अतः आपके जनाज़े (अर्थी) मे केवल आपके परिवार के सदस्य व हज़रत अली केविश्वसनीय मित्र ही सम्मिलित हो पाये थे। और दफ़्न के बाद कई स्थानो पर आपकी कीकब्र के निशान बनाये गये थे। इस लिए विश्वसनीय नही कहा जासकता कि आपकी समाधि कहाँपर है। परन्तु कुछ सुत्रों से ज्ञात होता है कि आपको जन्नातुल बक़ी नामकक़ब्रिस्तान मे दफ़्नाया गया था।

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