रौज़ ए इमाम हुसैन (अ) की अज़मत सैयद हुसैन हैदर ज़ैदी

रौज़ ए इमाम हुसैन (अ) की अज़मत   सैयद हुसैन हैदर ज़ैदी इमाम हुसैन अलैहिस सलाम की हक़ीक़ी कब्र तो मोमिनीन के दिल और क़ुलूब में होती है जो...


रौज़ ए इमाम हुसैन (अ) की अज़मत सैयद हुसैन हैदर ज़ैदी

इमाम हुसैन अलैहिस सलाम की हक़ीक़ी कब्र तो मोमिनीन के दिल और क़ुलूब में होती है जो बचपने ही से शियों और आप के आशिक़ों के दिल में बन जाती है। जिस की अज़मत हर वक़्त उन आशिक़ों के दिलों में रहती है लेकिन आप के मरक़दे शरीफ़ में हमेशा ही से मुतअद्दिद अज़मतें और बरकतें पाई जाती हैं।

इमाम हुसैन अलैहिस सलाम का हरमे मुतह्हर और ज़रीहे मुक़द्दस आप की और आप के वफ़ादार साथियों की जानेसारी और फ़िदाकारी की एक यादगार है और यह एक ऐसा हरम है जिस में हमेशा लोग आते रहेगें और ज़ियारत करते रहेगें या दूसरे लफ़्ज़ों में यह कहा जाये कि जब तक हज़रत आदम (अ) की औलाद और ज़ुर्रियत इस दुनिया में बाक़ी है तब तक यह हरम उन के लिये ज़ियारतगाह बना रहेगा और ऐसी बारगाह के लिये भी सज़ावार भी है कि वह इस दुनिया के लोगों के लिये हमेशा ज़ियारतगाह रहे और इंसानों को फ़िदाकारी व इश्क़ का दर्स इस हरम में सोने वालों से लेना चाहिये।

इमाम हुसैन अलैहिस सलाम का हरम दिलों का काबा है और यह काबा ज़ायेरीन का तवाफ़गाह, उम्मीद व आस लगाने वालों क़िबला, दर्दमंदों के लिये दारुश शिफ़ा और गुनाह व तौबा करने वालों के लिये पनाहगाह है।

इमाम हुसैन (अ) के रौज़े और करबला की शराफ़त व फ़ज़ीलत ऐसी है कि इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया कि इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र जब से आप वहाँ दफ़्न हुए, बहिश्त के बाग़ों में से एक बाग़ है। (सीर ए इमामान, तरजुम ए आयानुश शिया पेज220)

इमाम हुसैन (अ) की ज़रीह बिल्कुल बीच में वाक़े है और वह ख़ालिस सोने की बनाई गई है और उस के ऊपर सोने से ख़त्ते नस्ख़ में लिखा हुआ है व ला तहसबन्नल लज़ीना क़ोतेलू फ़ी सबीलिल्लाहि अमवात, और बाला ए सर आय ए नूर लिखी हुई है।

इमाम हुसैन (अ) के मरक़दे मुतह्हर की अज़मत मुनदरेजा ज़ैल है:

1. मरक़दे हुसैनी ताक़त अता करता है

इमाम हुसैन (अ) के रौज़े का मुशाहिदा करने और उस वक़्त के जा गुदाज़ मसायब के बारे में सोचने से इंसान की हालत ख़राब हो जाती है और उस की इस्तेक़ामत जवाब दे जाती है कि किस तरह से इस क़लील तादाद ने इतनी बड़ी फ़ौज का मुक़ाबला किया जिन के पास तरह तरह के हथियार थे और अपने ईमान व अक़ीदे पर साबित क़दमी से खड़े रहे और अपने ख़ून के आख़िरी कतरे तक जाफ़शानी के साथ जंग करते रहे।

2. अल्लाह के फ़रिश्तों के नाज़िल होने की जगह

इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते है कि इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र से लेकर आसमान तक फ़रिश्तों के आने जाने की जगह है।

(मुनतख़ब कामिलुज़ ज़ियारात पेज 195)

इस के अलावा आप फ़रमाते है कि इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र तूल व अर्ज़ में 20 ज़ेराअ है, वह बहिश्त के बाग़ों में से एक बाग़ है और वह फ़रिश्तों के आसमान पर जाने की जगह है कोई मुक़र्रब फ़रिश्ता या पैग़म्बर ऐसा नही है जो ख़ुदा वंदे आलम से इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को आने के लिये ख्वाहिश न करता हो। लिहाज़ा वहाँ पर एक गिरोह आसमान से नीचे आता है तो दूसरो गिरोह आसमान की तरफ़ वापस जाता है।

3. वहाँ पर नमाज़ क़बूल होती है।

अगर एक ज़ायर इमाम (अ) के हक़ और आप की विलायत की मारेफ़त रखते हुए आप की क़ब्रे मुतह्हर के पास नमाज़ पढ़े तो वह नमाज़ जरुर क़बूल होती है जैसा कि इमाम सादिक़ (अ) ने उस शख्स के बारे में फ़रमाया जो आप की ज़ियारत से मुशर्रफ़ हो कर वहाँ पर नमाज़ पढ़ता है, ख़ुदा वंदे आलम उस की नमाज़ का अज्र यह देता है कि उस को क़बूल कर लेता है।

(वसायलुश शिया जिल्द 10 पेज 549)

4. आप के क़ुब्बे के नीचे नमाज़ पूरी होती है

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया कि नमाज़ 4 जगहों पर पूरी पढ़ी जाये। (यानी अगर चे सफ़र शरई हद से ज़्यादा ही क्यो न हो।) 1. मस्जिदुल हराम (मक्का) 2. मस्जिदे नबवी (मदीना) 3. मस्जिदे कूफ़ा 4. हरमे इमाम हुसैन (अ)।

(कामिलुज़ ज़ियारात पेज 248)

इस के अलावा एक और रिवायत में बयान हुआ है कि इब्ने शबल ने इमाम सादिक़ (अ) से पूछा कि क्या मैं कब्रे इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत करूँ? आप ने फ़रमाया कि पाक और अच्छी तरह ज़ियारत करो, अपनी नमाज़ को उन के हरम में पूरी पढ़ों। उस ने पूछा कि क्या नमाज़ को पूरी पढ़ूँ? फ़रमाया पूरी। फिर उस ने अर्ज़ किया कि कुछ असहाब और शिया वहाँ पर कस्र नमाज़ पढ़ते हैं तो आपने फ़रमाया कि वह दोने तरह स अमल कर सकते हैं।

(कामिलुज़ जियारात पेज 248)

लिहाज़ा तौज़ीहुल मसायल में भी बयान हुआ है कि इमाम हुसैन (अ) के हरम में नमाज़ को कस्र भी पढ़ सकते हैं और इमाम हूसैन (अ) की बरकत से पूरी भी पढ़ सकते हैं।

5. दुआ और हाजत पूरी होती है।

ख़ुदा वंदे आलम ने इमाम हुसैन (अ) को ईसार व फ़िदाकारी और इस्लाम को महफूज़ करने के लिये हर तरह के ग़म व अंदोह को बरदाश्त करने के बदले में आप के रौज़े के कुछ अज़मतें और बरकतें अता की हैं उन में से एक अज़मत यह है कि आप के गुबंद के नीचे दुआएँ कबूल होती हैं और मन्नत व मुरादें पूरी होती हैं जैसा कि इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया कि जो भी दो रकअत नमाज़ इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र के नज़दीक पढ़े तो वह जो चीज़ भी ख़ुदा वंदे आलम से माँगेगा ख़ुदा वंदे आलम उस को ज़रुर अता करेगा।

(अमाली ए शेख तूसी पेज 317)

और आप ने फ़रमाया कि ख़ुदा वंदे आलम ने इमाम हुसैन (अ) के क़त्ल के बदले में आप की नस्ल में इमामत को क़रार दिया और शिफ़ा को आप की तुरबत, क़बूली ए दुआ को आप की क़ब्र मुक़द्दस में क़रार दिया और ज़ियारत करने वालों के उन दिनों को जिन में वह ज़ियारत के लिये जाता है उस की उम्र में हिसाब नही किया जाता।

(अमाली ए शेख़ तूसी पेज 319)

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