नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा 26-27-28

ख़ुत्बा-26 अल्लाह तबारका व तआला ने मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को तमाम जहानों को (उनकी बद आमालियों से) मुतनब्बेह करने वाला और अ...

ख़ुत्बा-26

अल्लाह तबारका व तआला ने मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को तमाम जहानों को (उनकी बद आमालियों से) मुतनब्बेह करने वाला और अपनी वह्ई का अमीन बना कर भेजा। ऐ गुरोहे अरब ! उस वक्त तुम बद तरीन दीन पर और बद तरीन घरों में थे। खुरदुरे पत्थरों और ज़हरीले सांपों में तुम बूदो बाश रखते थे। बुत तुम्हारे दरमियान गड़े हुए थे और गुनाह तुम से चिमटे हुए थे।

[ इसी ख़ुत्बे का एक हिस्सा यह है ]

मैंने निगाह उठा कर देखा, तो मुझे अपने अहले बैत के अलावा कोई अपना मुईनो मददगार नज़र न आया। मैं ने उन्हें मौत के मुंह में देने से बुखूल (कंजूसी) किया। आंखों में खसो ख़ाशाक (कूड़ा कर्कट) था मगर मैंने चश्म पोशी की, हल्क़ में फंदे थे मगर मैंने ग़मो ग़ुस्सा के घूंट पी लिये और गुलू गिरफ़्तगी के बावजूद हनज़ल (इंदरायन के फल) से ज़ियादा तल्ख (कड़वे) हालात पर सब्र किया।

[ इसी खुत्बे का एक जु़ज (अंश) यह है ]

उस ने उस वक्त तक मुआविया की बैअत नहीं की जब तक यह शर्त उस से मनवा न ली कि वह इस बैअत की क़ीमत अदा करे। इस बैअत करने वाले के हाथों को फ़त्हो फ़ीरोज़मन्दी नसीब न हो और ख़रीदने वाले के मुआहिदे को ज़िल्लतों रुसवाई हासिल हो (लो अब वक्त आ गया कि तुम) जंग के लिये तैयार हो जाओ और उस के लिये साज़ो सामान मुहैया कर लो। उस के शोले भड़क उठे और लपटें बलन्द हो रही हैं। और जामए सब्र पहन लो, कि इस से नुसरतो कामरानी हासिल होने का ज़ियादा इमकान है।

हज़रत ने नह्रवान की तरफ़ मुतवज्जह होने से क़ब्ल एक खुत्बा इर्शाद फ़रमाया था जिस के तीन टुकड़े यह हैं। पहले टुकड़े में बेसत से क़ब्ल (पूर्व) जो अरब की हालत थी उस का तज़्किरा फ़रमाया है। और दूसरे हिस्से में रसूल (स.) की रहेल्त (देहान्त) के बाद जिन हालात ने आप को गोशए उज़्लत में बैठने पर मज्बूर कर दिया था, उन की तरफ़ इशारा है। और तीसरे हिस्से में मुआविया और अम्र इब्ने आस के दरमियान जो क़ौलो क़रार हुआ था उस का ज़िक्र किया है।इस बाहमी मुआहदे की सूरत यह थी कि जब अमीरुल मोमिनीन ने जरीर इब्ने अब्दुल्लाहे बजल्ली को बैअत लेने के लिये मुआविया के पास रवाना किया तो उस ने जरीर को जवाब देने के बहाने रोक लिया और इस दौरान में अहले शाम को टटोलना शुरुउ किया कि वह कहां तक उसका साथ दे सकते हैं। चुनांचे जब उन्हें खूने उस्मान के इन्तिक़ाल पर उभार कर अपना हमनवा बना लिया तो अपने भाई अत्बा इब्ने अबी सुफ़्यान से मशविरा किया, उस ने राय दी कि अगर इस काम में अम्र इब्ने आस को साथ मिला लिया जाय तो वह अपनी सूझ बूझ से बहुत सी मुश्किलों को आसान कर सकता है। लेकिन वह यूंही तुम्हारे इक़तिदार (सत्ता) की बुनियाद मुस्तहकम (दृढ़) करने के लिये आमादा नहीं होगा जब कर कि उस की मुह मांगी क़ीमत हासिल न करेगा। अगर तुम इस के लिये तैयार हो तो वह तुम्हारे लिये बेहतरीन मुशीर व मुआविन साबित होगा। मुआविया ने इस मशविरे को पसन्द किया और अम्र इब्ने आस को बुला कर उस से गुफ्तुगू की और आखिर यह तय पाया कि वह हुकूमते मिस्त्र के बदले मों अमीरुल मोमिनीन को मौरिदे इलज़ाम ठहरा कर क़ल्ले उसमान का इनतिक़ाम लेगा और जिस तरह बन पड़ेगा मुआविया के शामी इक़्तिदार को मुतज़लज़ल न होने देगा। चुनांचे उन दोनों ने मुआहदे की पाबन्दी की और अपने क़ौलों क़रार को पूरी तरह निबाहा

ख़ुत्बा-27

जिहाद जन्नत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है। जिसे अल्लाह ने अपने खास बन्दों (दोस्तों) के लिये खोला है। यह पर्हेज़गारी का लिबास अल्लाह की मोह्कम ज़िरह और मज़बूत सिपर (ढ़ाल) है। जो उस से पहलू बचाते हुए उसे छोड़ देता है, ख़ुदा उसे ज़िल्लतो ख्वारी का लिबास पहना और मुसीबत व इब्तला की रिदा (चादर) उढ़ा देता है। और मदहोशी व ग़फ़लत का पर्दा उस के दिल पर छा जाता है। और जिहाद को ज़ाए व बर्बाद करने से हक़ उस के हाथ से ले लिया जाता है। ज़िल्लत उसे सहना पड़ती है। और इन्साफ़ उस से रोक लिया जाता है। मैंने इस क़ौम से लड़ने के लिये रात भी और दिन भी, अलानिया भी और पोशीदा भी तुम्हें पकारा, और ललकारा और तुम से कहा कि क़ब्ल इस के कि वह जंग के लिये बढ़ें तुम उन पर धावा बोल दो। ख़दा की क़सम ! जिन अफ़रादे क़ौम पर उन के घरों के हुदूद के अन्दर ही हमला हो जाता है वह ज़लीलो ख्वार होते हैं। लेकिन तुम ने जिहाद को दूसरों पर टाल दिया और एक दसरे की मदद से पहलू बचाने लगे। यहां तक कि तुम पर ग़ारत गरियां हुई और तुम्हारे शहरों पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा कर लिया गया। इसी बनी ग़ामिद के आदमी (सुफ़्यान इब्ने औफ़) ही को देख लो। कि उस की फ़ौज के सवार (शहरे) अंबार के अन्दर पहुंच गए, और हस्सान इब्ने हस्साने बिक्री को क़त्ल कर दिया, और तुम्हारे मुहाफ़िज़ सवारों को सर्हदों से हटा दिया गया, और मुझे तो यह इत्तिलाआत भी मिली हैं कि इस जमाअत का एक आदमी मुसलमान और ज़म्मी औरतों के घर में घुस जाता था और उनके पैरों से कड़े (हाथों से) कंगन और गुलूबन्द और गोशवारे उतार लेता था, और उन के पास उस से हिफ़ाज़त का कोई ज़रिआ नज़र न आता था। सिवा इस के कि इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन कहते हुए सब्र से काम लें, या ख़ुशामदे कर के उस से रहम की इलतिजा करें। वह लदे फंदे हुए पलट गए, न किसी के ज़ख्म लगा न किसी के खून बहा। अब अगर कोई मुसलमान इन सानिहात के बाद रंजो मलाल से मर जाए तो उसे मलामत नहीं की जा सकती बल्कि मेरे नज़दीक ऐसा ही होना चाहिये। अल अजब सुम्मा अल अजब !ख़ुदा की क़सम उन लोगों का बातिल (अधर्म) पर ऐका कर लेना और तुम्हारी जमईअत का मुन्तशिर हो जाना, दिल को मुर्दा कर देता है, और रंजो अन्दोह बढ़ा देता है। तुम्हारा बुरा हो, तुम ग़मो हुज़्न में मुब्तला रहो। तुम तो तीरों का अज़ख़ुद निशाना बने हुए हो, तुम्हें हलाक व ताराज किया जा रहा है मगर तुम्हारे क़दम हमले के लिये नहीं उठते। वह तुम से लड़ भिड़ रहे हैं और तुम जंग से जी चुराते हो। अल्लाह की ना फ़र्मानियां हो रही हैं और तुम राज़ी हो रहे हो। अगर गर्मियों में तुम्हें उन की तरफ़ बढ़ने के लिये कहता हूं तो तुम यह कहते हो कि इस इन्तिहाई शिद्दत की गर्मी का ज़माना है। इतनी मोहलत दीजिये कि गर्मी का ज़ोर टूट जाए, और अगर सर्दीयों में चलने के लिये कहता हूं तो तुम यह कहते हो कि कड़ाके के जाड़ा पड़ रहा है, इतना ठहर जाइये कि सर्दी का मौसम गुज़र जाए। यह सब सर्दी व गर्मी से बचने के लिये बातें है, जब तुम सर्दी और गर्मी से इस तरह भागते हो, तो फिर ख़ुदा की क़सम ! तुम तलवारों को देख कर उस से कहीं ज़ियादा भागोगे। ऐ मर्दों की शक्लो सूरत वाले नामर्दों ! तुम्हारी अक़्लें बच्चों की सी हैं, मैं तो यह ही चाहता था कि न तुम को देखता, न तुम से जान पहचान होती, ऐसी शनासाई (परिचय) जो निदामत (लज्जा) का सबब (कारण) और रंजो अन्दोह का बाइस बनी है। अल्लाह तुम्हें मारे ! तुम ने मेरे दिल को पीप से भर दिया है और मेरे सीने को ग़ैज़ो ग़ज़ब से छलका दिया है। तुम ने मुझे ग़मो हुज़्न (दुख व शोक) के जुरए (घूंट) पय दर पय पिलाए, ना फ़रमानी (अवज्ञा) कर के मेरी तदबीर (उपाय) व राय को तबाह (नष्ट) कर दिया। यहां तक कि क़ुरैश कहने लगे कि अली है तो मर्दे शुजाअ लेकिन जंग के तौर तरीक़ों से वाक़िफ़ नहीं।

अल्लाह उन का भला करे, क्या उन में से कोई है, जो मुझ से ज़ियादा जंग की मुज़ाविलत रखने वाला और मैदाने वग़ा में मेरे पहले से कारे नुमायां किये हुए हो। मैं तो अभी बीस बरस का भी न था कि हर्बो ज़र्ब के लिये उठ खड़ा हुआ और, अब तो साठ से भी ऊपर हो गया हूं, लेकिन उस की राय ही क्या जिस की बात न मानी जाए।

जंगे सिफ्फ़ीन के बाद मुआविया ने हर तरफ़ कुश्तो खून का बाज़ार गर्म कर रखा था और अमीरुल मोमिनीन के मक़बूज़ा शहरों पर जारेहाना इक़दामात शुरुउ कर दिये थे। चुनांचे इस सिलसिले में हीत, अंबार, और मदाइन पर हमला करने के लिये सुफ़्यान इब्ने औफ़े ग़ामिदी को छ : हज़ार की जम्ईयत के साथ रवाना किया। वह पहले तो हीत पहुंचा, मगर उसे खाली पा कर अंबार की तरफ़ बढ़ निकला। यहां पर अमीरुल मोमिनीन की तरफ़ से पांच सो सिपाहियों का एक दस्ता हिफ़ाज़त के लिये मुक़र्रर था। मगर वह मुआविया के उस लश्करे जर्रार को देख कर जम न सका। सिर्फ़ सौ आदमी अपने मक़ाम पर जमे रहे और उन्होंने, जहां तक मुम्किन था, डट कर मुक़ाबिला भी किया, मगर दुशमन की फ़ौज ने ऐसा मिल कर सख्त हमला किया कि उन के भी क़दम उखड़ गए और रईसे लश्कर हस्सान इब्ने हस्साने बिक्री तीस आदमीयों के साथ शहीद कर दिये गए। जब मैदाने जंग खाली हो गया तो दुश्मनों ने पूरी आज़ादी के साथ अंबार को लूटा और शहर को तबाहो बर्बाद कर के रख दिया। अमीरुल मोमिनीन को जब इस हमले की इत्तिलाअ मिली, तो आप मिंबर पर तशरीफ़ ले गए और लोगों को सरकोबी के लिये उभारा, और जिहाद की तअवत दी मगर किसी तरफ़ से सदाए, ''लब्बैक'' बलन्द न हुई तो आप पेचो ताब खाते हुए मिंबर से निचे उतर आए, और उसी हालत में पियादा पा दुश्मन की तरफ़ चल खड़े हुये। जब लोगोंने यह देखा तो उन की ग़ैरतो हम्मीयत भी जोश में आई और वह भी पीछे पीछे हो लिये। जब वालिये नुखैला में हज़रत ने मनज़िल की, तो उन लोगों ने आप के गिर्द घेरा डाल लिया और ब इस्रार कहने लगे या अमीरुल मोमिनीन आप पलट जायें। हम फ़ौजे दुश्मन से निपट ने के लिये काफ़ी हैं। जब उन लोगों का इस्रार हद से बढ़ा तो आप पलटने के लिये आमादा हो गए और सईद इब्ने क़ैस आठ हज़ार की जम्ईयत के साथ उधर रवाना हो गए। मगर सुफ़्यान इब्ने औफ़ का लश्कर जा चुका था और सईद इब्ने क़ैस बे लड़े वापस आए। जब सईस कूफ़े पहुंचे, तो इब्ने अबिल हदीद की रिवायत के मुताबिक़ हज़रत रंजो अन्दोह के आलम में बाबुससिद्दह पर आकर बैठ गए और नासाज़िए तबीअत की वजह से यह ख़ुत्बा लिख कर अपने ग़ुलाम को दिया कि वह पढ़कर सुना दे। मगर मुबर्रद इब्ने आइशा से यह रिवायत किया है कि हज़रत ने यह खुत्बा मक़ामे नुखैला में एक बलन्दी पर खड़े हो कर इर्शाद फ़रमाया, और इब्ने सीसम ने इसी क़ौल को तर्जीह दी है।

ख़ुत्बा-28

दुनिया ने पीठ फिरा कर अपने रुखूसत (विदा) होने का एलान (घोषणा) और मन्ज़िले उक़बा (आख़िरत) ने सामने आकर अपनी आमद से आगाह कर दिया है। आज का दिन तैयारी का है, और कल दौड़ का होगा। जिस तरफ़ आगे बढ़ना है, वह तो जन्नत है और जहां कुछ अशख़ास (व्यक्ति) अपने अअमाल की बदौलत बे इखूतियार पहुंच जायेंगे वह दोज़ख़ (नर्क) है। क्य मौत से पहले अपने गुनाहों (पापों) से तौबा (प्रायश्चित) करने वाला कोई नहीं, और क्या उस रोज़े मुसीबत के आने से पहले अमले (ख़ैर) करने वाला एक भी नहीं। तुम, उम्मीदों के दौर में हो जिस के पीछे मौत का हंगाम है। तो जो शख्स इन उम्मीदों (आशाओं) के दिनों में अमल कर लेता है, तो यह अमल (कर्म) उस के लिये सूद मन्द (लाभ प्रद) साबित (सिद्ध) होता है और मौत (मृत्यु) उस का कुछ बिगाड़ नहीं सकती। और जो शख्स मौत के क़ब्ल (मृत्यु से पूर्व) ज़मानए उम्मीद व आरज़ू (आशाओं एंव आकांछाओं की अवस्था) में कोताहियां (अर्मानुसान) नुक़्सान रसीदा रहता है (क्षति भोगता है) और मौत (मृत्यु) उस के लिये पैग़ामे ज़रर (हानि का संदेश) ले कर आती है। लिहाज़ा (अत: ) जिस तरह उस वक्त जब नागवार हालत (अप्रिय परिस्थितियों) का अंदेशा हो नेक अमल (पुण्य कार्यों) में मुन्हमिक (व्यस्त) होते हो, वैसा ही उस वक्त भी नेक अअमाल (शुभ कार्य) करो जब कि मुस्तक़बिल के आसार (भविष्य के लक्षण) मसर्रत अफ़्ज़ा (हर्ष वर्धक) महसूस हो रहो हों। मुझे जन्नत (स्वर्ग) ही ऐसी चीज़ नज़रत आती है जिल का तलबगार (चाहने वाला, इच्छुक) सोया पड़ा हो और जहन्नम (नर्क) ही ऐसी शय (वस्तु) दिखाई देती है जिससे दूर भागने वाला ख्वाबे ग़फ़लत (अचेत निद्रा) में महव (लीन) हो। जो हक़ (धर्म) से फ़ाइदा (लाभ) नहीं उठाता उसे बातिल (अधर्म) का नुक़सान व ज़रर (हानि व क्षति) उठाना पड़ेगा। जिस को हिदायत (मार्ग दर्शन) साबित क़दम (स्थिर) न रखे उसे गुमराही (पथभ्रषटता) हलाकत (मरण) की तरफ़ खींच ले जायेगी। तुम्हें कूच (प्रस्थान) का हुक्म (आदेश) मिल चुका है और ज़ादे राह (मार्ग व्यय) का पता दिया जा चुका है। मुझे तुम्हारे मुतअल्लिक (संबंध में) सब से ज़ियादा दो ही चीज़ों का ख़तरा है, एक ख़्वाहिशों की पैरवी (इच्छाओं का अनुसरण) और दूसरे उम्मीदों का फैलाव (आशाओं का विस्तार) इस दुनिया (संसार) में रहते हुए इस से इतना ज़ाद (आश्रय) ले लो, जिस से कल अपने नफ़्सों (प्राणों) को बचा सको।

सैयिद रज़ी कहते हैं कि अगर कोई कलाम गर्दन पकड़ कर ज़ुह्दे दुनियवी (सांसारिक त्याग) की तरफ़ लाने वाला और अमले उख्रवी (मरणोपरान्त जीवन हेतु कर्म) के लिये मज्बूर व मुज़्तर (विवश एंव विचलित) कर देने वाला हो सकता है तो वह यह कलाम है जो उम्मीदों के बंधनों को तोड़ने और अज़ व सरज़निश (उपदेश एंव प्रताड़ना) से असर पज़ीरी (प्रभावित होने) के जज़्बात (भावनाओं) को मुश्तइल (उत्तेजित) करने के लिये काफ़ी व वाफ़ी (पूर्णरुपेण पर्याप्त) है। इस ख़ुत्बे में यह जुमला, '' अला व इन्नल यौमल मिज़मारो व ग़दन अस्सिबाक़ो, वस सब्क़तुल जन्नतो वल ग़ायतुन नारो '' तो बहुत ही अजीबो ग़रीब है। इस में लफ़्ज़ों की जलालत मअनी की बलन्दी सच्ची तमसील और सहीह तश्बीह के साथ अजीब असरार और बारीक नुकात मिलते हैं। हज़रत ने अपने '' अस्सब्क़तुल जन्नतो वल ग़ायतुत्रारों '' में ब मअनीए मक़सूद के अलग अलग होने की वजह से दो जुदागाना लफ़ज़ें '' अस्सबक़ते '' व '' अलग़ायतो '' इस्तेमांल की है। जन्नत के लिये लफ़्ज़े सब्क़तो (बढ़ना) फ़रमाई है और और जहन्नम के लिये यह लफ़्ज़ इस्तेमाल नहीं की क्यों कि सबक़त उस चीज़ की तरफ़ की जाती है जो मतलूबो मर्ग़ूब हो और यह बिहिश्त की ही शान है और दोज़ख में मत्लूबियत व मर्ग़ूबियत कहां कि उस की तलाशो जुस्तुजू में बढ़ा जाय (नऊज़ो बिल्लाहे मिन्हा) चूंकि अस्सबक़तुन्नारो कहना सहीहो दुरुस्त नहीं हो सकता था इसी लिये वल ग़ायतुन्नारो फ़रमाया और ग़ायत सिर्फ़ मन्ज़िले मुन्तहा को कहते हैं उस तक पहुंचने वाले को ख़्वाह रंजो कोफ्त हो या शादमानी व मसर्रत। यह इन दोनों मअनों की अदायगी की सलाहीयत रखता है। बहर सूरत उसे 'मसीरो मआल' बाज़गश्त के मअनी में समझना चाहिये। और इर्शादे क़ुरआनी है, '' कहो कि तुम दुनिया से अच्छी तरह हज़ उठा लो, आखिर तो तुम्हारी बाज़गश्त जहन्नम की तरफ़ है'' यहां मसीरुकुम की जगह सब्क़ते कुम कहना किसी तरह सहीह व दुरुस्त नहीं समझा जा सकता। इस में ग़ोरो फ़िक्र करो और देखो कि इस का बातिन कितना अजीब और इस का गहराव लताफ़तों को लिये हुये कितनी दूर तक चला गया है और हज़रत का बिशतर कलाम इसी अन्दाज़ पर होता है और बअज़ रिवायतों में '' अस्सबक़तो बज़मे सीन भी आया है और सुबक़त उस मालो मताअ को कहते हैं जो आगे निकल जाने वाले के लिये बतौरे इनआम रखा जाता है। बहर सूरत दोनों के मअनी क़रीब क़रीब यकसां हैं इस लिये कि मुआवज़ा व इन्आम किसी क़बीले मज़्ज़त फ़ेल पर नहीं होता बल्कि किसी अच्छे और लाइक़े सताइश कारनामे के बदले ही में होता है।

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