अमल में ख़ुलूस ज़रूरी है |

इंसान अपनी ज़िंदगी में अल्लाह से क़रीब होने के लिए बहुत से अमल अंजाम देता है लेकिन कभी कभी महसूस करता है कि इतने सारे आमाल के बावजूद...



इंसान अपनी ज़िंदगी में अल्लाह से क़रीब होने के लिए बहुत से अमल अंजाम देता है लेकिन कभी कभी महसूस करता है कि इतने सारे आमाल के बावजूद वह ख़ुद को अल्लाह से क़रीब नहीं पा रहा है, आख़िर क्या वजह है कि इतने सारे आमाल के बाद भी वह ख़ुद को अल्लाह से क़रीब नहीं पा रहा है? तो सबसे पहले इस सवाल का जवाब जो उलमा ने आयतों और हदीसों की रौशनी में दिया है वह यह कि ऐसे शख़्स के अमल में ख़ुलूस नहीं पाया जाता। 
अब यहां एक और सवाल पैदा होता है वह यह कि आख़िर अपने अमल में ख़ुलूस कैसे पैदा करें जिससे अल्लाह के क़रीब हो सकें? कैसे अपने अमल को पाक करें जिससे अल्लाह की बारगाह में ख़ुद को उसके क़रीब महसूस कर सकें? पहले इस सवाल का जवाब हम संक्षेप में पेश करेंगे फिर विस्तार से बयान करेंगे.... 
 https://www.youtube.com/payameamnख़ुलूस का मतलब अमल का पाक करना, अमल में ख़ुलूस का मतलब अमल को अंजाम देते समय हमारे ध्यान में केवल अल्लाह की मर्ज़ी और और उसकी बंदगी होनी चाहिए, किसी और का थोड़ा भी ध्यान अमल के अंजाम देते समय नहीं होना चाहिए, साथ ही वह सारी चीज़ें जो ख़ुलूस के लिए रुकावट हैं उनसे ख़ुद को दूर रखना चाहिए जैसे दुनियावी दिखावा, दुनिया की चकाचौंध से मोहब्बत और शैतानी ख़्यालात वग़ैरह, और इसी तरह ईमान की मज़बूती, अल्लाह की मारेफ़त और अल्लाह की बंदगी में अपनी कमियों पर ध्यान देना इंसान के ख़ुलूस को और बढ़ा देता है। इस सवाल का विस्तार से जवाब कुछ इस तरह है कि.... 
ख़ुलूस का मतलब ऊपर बयान किया गया है यहां पर हम आयतों और हदीसों की मदद से अपने अंदर ख़ुलूस पैदा किए जाने वाले रास्तों को बयान करेंगे... 
1- ईमान की मज़बूती और ख़ुदा की मारेफ़त को बढ़ाना: अल्लाह पर ईमान ख़ास कर उसके उन सिफ़ात पर जिनसे यह ज़ाहिर होता है कि तारीफ़ और इबादत केवल अल्लाह के लिए होना चाहिए, शिर्क, कुफ़्र, नेफ़ाक़ और उनसे जुड़ी किसी तरह की कोई क़िस्म भी दिल में नहीं होनी चाहिए, अल्लाह और उसके सारे सिफ़ात की मारेफ़त इंसान के वुजूद में विनम्रता पैदा करती है और उसके दिल में सवाब की उम्मीद और अज़ाब का ख़ौफ़ दोनों ही बराबर से हमेशा साथ साथ बनाए रखती है ताकि कहीं ऐसा न हो कि इंसान केवल सवाब की उम्मीद लगाए बैठा रहे और अल्लाह के अज़ाब से ग़ाफ़िल हो जाए और नतीजे में क़यामत में अल्लाह के दीदार से महरूम हो जाए, यही वजह है कि जितना इंसान का ध्यान अल्लाह और उसके सिफ़ात में बढ़ता जाता है उतना ही लोगों से घटता जाता है। 
2- अमल में ख़ुलूस की अहमियत को समझना: अमल में ख़ुलूस अल्लाह का ऐसा हुक्म है जो सभी शरीयत में पाया जाता है, यह एक अल्लाह की नेमत है जो वह अपने पसंदीदा बंदों को देता है और यही वजह बनता है कि क़यामत में बंदा अल्लाह का दीदार कर सके और क़यामत के हिसाब किताब से ख़ुद को आज़ाद करा सके और आख़ेरत में ज़्यादा से ज़्यादा सवाब अपने नाम कर सके, और यही शैतान को अपने ऊपर हावी न होने देने का सबसे अहम कारण है। 
3- ख़ुलूस न होने के नुक़सान को ध्यान में रखना: दिखावा और रियाकारी करने के सिलसिले में जो हदीसें नक़्ल हुई हैं उनमें से बहुत सी हदीसों ने ख़ुलूस के न होने और दिखावा करने के नुक़सान बयान किए हैं जैसाकि नक़्ल हुआ है कि दिखावा और रियाकारी एक तरह का कुफ़्र, शिर्क, नेफ़ाक़, अल्लाह से धोखा, अल्लाह की नाराज़गी का कारण और आमाल, शफ़ाअत और दुआ के क़ुबूल न होने का कारण है। 
4- सबके सामने और छिप कर की जाने वाली इबादत एक जैसी हो: हमारी इबादत चाहे सबके सामने हो या तंहाई में दोनों में समानता होनी चाहिए और यह समानता केवल नमाज़ ही नहीं बल्कि हर इबादत में होनी चाहिए चाहे सदक़ा देना ही क्यों न हो। 
5- मुकम्मल बंदगी: अल्लाह की बंदगी सभी वाजिब मुस्तहब को अंजाम दे कर और हराम और मकरूह को छोड़ कर के उसकी बंदगी की जाए यहां तक कि मुबाह कामों को अंजाम दे कर भी उसकी बंदगी का सबूत देना चाहिए, ऐसा न हो कि नमाज़ पढ़ कर वाजिब को अदा किया जाए और साथ ही ईर्ष्या (हसद), ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई) वग़ैरह भी हो, इसी तरह और दूसरे सारे अक़ीदती और दीनी मामलात में भी ऐसे ही होना चाहिए। 
6- हमेशा बंदगी में कमी का एहसास: इंसान की कोशिश हमेशा यह होनी चाहिए कि बंदगी का हक़ पूरे ख़ुलूस से अदा करने की पूरी कोशिश के साथ साथ अपने आमाल को अल्लाह की दी हुई नेमतों के सामने कम समझे और ख़ुद को हमेशा उसकी इबादतों में कमी करने वाला समझे ताकि बंदगी और ख़ुलूस का हक़ अदा करने की कोशिश हमेशा बाक़ी रहे, आप नबियों और इमामों की ज़िंदगी को देखिए वह सभी ख़ुलूस की आख़िरी मंज़िल पर थे लेकिन अल्लाह से मुनाजात के समय ख़ुद को हमेशा इबादत में कमी करने वाला ही कहते थे, पैग़म्बर स.अ. हमेशा फ़रमाते थे कि ख़ुदाया मैं तेरी बंदगी का हक़ अदा न कर सका। 
7- दुआ: दुआ दीन और दुनिया दोनों ही की मुश्किल के हल करने का बेहतरीन रास्ता है, कुछ इंसान की बुनियादी ज़रूरतें बंदगी और दुआ के बिना पूरी नहीं हो सकती और ज़ाहिर है बंदगी में ख़ुलूस से ज़्यादा ज़रूरत किस चीज़ की हो सकती है... यही वजह है कि इमाम सज्जाद अ.स. पूरी विनम्रता के साथ अल्लाह से अपनी बंदगी में ख़ुलूस की दुआ करते थे और आप दुआ करते थे कि ख़ुदाया हमारे आमाल को रियाकारी और दिखावे से पाक कर दे ताकि तू और तेरी मर्ज़ी के अलावा मेरे अमल में कोई शामिल न हो सके।source 



Related

editorial 1575368115120952476

Post a Comment

emo-but-icon

Follow Us

Hot in week

Recent

Comments

इधर उधर से

Comment

Recent

Featured Post

नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है ...

Admin

item