हमें ज़िन्दगी कैसे गुज़ारनी है यह नमाज़ के दो जुम्लों से तय होती है।

हमें ज़िन्दगी कैसे गुज़ारनी है यह  नमाज़ के दो जुम्लों  से तय होती है। पहला ग़ैरिल मग़ज़ूबि अलैहिम वलज़्ज़ालीन (न उनका जिनपर ग़ज़ब (प्...

हमें ज़िन्दगी कैसे गुज़ारनी है यह  नमाज़ के दो जुम्लों  से तय होती है।

पहला ग़ैरिल मग़ज़ूबि अलैहिम वलज़्ज़ालीन (न उनका जिनपर ग़ज़ब (प्रकोप) हुआ और न बहके हुओं का) जिसका मतलब की हमें उन गुमराह लोगों में शुमार न करना और उस गलत राह से दूर रखना | 

और

अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्लाहिस्सालिहीन।(हम पर सलाम हो और अल्लाह के तमाम नेक बंदों पर सलाम हो।) 


अल्लाह के नेक बंदों पर सलाम हो। हर मुसलमान चाहे वह ज़मीन के किसी भी हिस्से पर रहता हो उसे चाहिए कि दिन मे पाँच बार अपने हम फ़िक्र अफ़राद को सलाम करे। जैसे कि नमाज़ मे है अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्लाहिस्सालिहीन।(हम पर सलाम हो और अल्लाह के तमाम नेक बंदों पर सलाम हो।)  

यहाँ पर मालदारों को सलाम करने की तालीम नही दी गयी।यहाँ पर हाकिमों और ताक़तवरों को सलाम करने की तालीम नही दी गयी।यहाँ पर रिश्तेदारों को सलाम करने की तालीम नही दी गयी। यहाँ पर हम ज़बान हम क़ौम हम वतन लोगों को सलाम करने की तालीम नही दी गयी।

बल्कि यहाँ पर है अल्लाह के नेक बंदों को सलाम करने की तालीम दी जा रही है। यहाँ पर मकतबे हक़ के तरफ़दारो को सलाम करने की तालीम दी जा रही है।

जो इंसान दिन मे पाँच बार अल्लाह के बंदो को सलाम करता हो वह कभी भी न उनको धोका दे सकता है और न ही उनके साथ मक्कारी कर सकता है। 

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