बुढ़ापा माँ बाप का नौजवानों के लिए अल्लाह की तरफ से इम्तेहान है |

वृद्धावस्था भी मनुष्य के जीवन की परिपूर्णता का एक चरण है और इसमें एवं जवानी में अंतर यह है कि बाल्यकाल और जवानी इंसान के अंदर ऊर्जा स...



वृद्धावस्था भी मनुष्य के जीवन की परिपूर्णता का एक चरण है और इसमें एवं जवानी में अंतर यह है कि बाल्यकाल और जवानी इंसान के अंदर ऊर्जा से समृद्ध होती है परंतु वृद्धावस्था में ऊर्जा कम हो चुकी होती है और दिन- प्रतिदिन कम ही होती जाती है। बाल्याकाल और जवानी का समय बीत जाने के बाद इंसान वृद्धावस्था में क़दम रखता है। इंसान जब वृद्ध हो जाता है तो वह बहुत सारे अनुभव प्राप्त कर चुका होता है। दूसरे शब्दों में वृद्ध अनुभवों का अनमोल खजाना होता है। वृद्धावस्था बहुत ही संवेदनशील होती है और इस पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्कता होती है। वृद्धावस्था में स्वयं वृद्धों को और उनके निकटवर्ती लोगों को उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
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वृद्धावस्था वह काल है जिसमें पहुंचकर माता- पिता कमज़ोर बल्कि शक्तिहीन हो जाते हैं और उस समय उन्हें अपने बच्चों की अधिक आवश्यकता होती है। बहुत से माता- पिता ऐसे होते हैं जो अपने जीवन में और इसी प्रकार वृद्धावस्था में उन्हें अपने बच्चों की आर्थिक सहायता की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि उन्हें जिस चीज़ की आवश्यकता है वह बच्चों की ओर से हाल -चाल पूछना है। हर माता- पिता को आशा होती है कि उनके बच्चे उनके साथ अच्छा व्यहार करेंगे। वृद्धावस्था में बहुत से लोग किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त होते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें अपने बच्चों की अधिक आवश्यकता होती है। यह एक वास्तविकता है कि इंसान वृद्धावस्था में कमज़ोर हो जाता है। यही नहीं उसके शरीर के कुछ अंग काम करना थी छोड़ देते हैं।

इंसान वृद्धावस्था के कारण बहुत सी चीज़ें भूल जाता है जिसके कारण उसके परिजनों को नाना प्रकार की समस्याओं का सामना होता है। इस आधार पर वृद्धावस्था के समय की और वृद्धों की आवश्यकताओं की सही पहचान से उनके साथ अच्छा व्यवहार करने में संतान को सहायता मिलती है। कभी ऐसा भी होता है कि कुछ जवान अनुभव और हौसला कम होने, या घमंड एवं समय न होने के कारण अपने वृद्ध मां- बाप के साथ वह व्यवहार नहीं करते जिसके वे पात्र होते हैं। कभी- कभी ऐसा भी होता है कि वे अपने माता- पिता के समक्ष इतराते एवं गर्व करते हैं परंतु इस बात को नहीं भूलना चाहिये कि मां –बाप के सामने घमंड करना महान ईश्वर की नेअमतों को नकारना है। पवित्र कुरआन इंसानों को माता- पिता के साथ बुरे व्यवहार से मना करता है और उनसे विनम्रता से अच्छी तरह बात करने के लिए कहता है। पवित्र कुरआन के सूरे इसरा की २३वीं एवं २४वीं आयत में महान ईश्वर कहता है” जब भी माता- पिता या उन दोनों में से कोई एक बूढ़ा हो जाये तो लेशमात्र भी उनका अपमान नहीं करना, उन पर चीखो- चिल्लाओ नहीं, नर्म अंदाज़ में उनसे बात करो और उनके साथ प्रेम एवं विन्रमता से बात करो”

इस्लामी इतिहास में आया है कि माता- पिता के प्रति यह सम्मान है कि उनका नाम लेकर न बुलाया जाये, उनके सम्मान में खड़े हो जाना चाहिये, उनके आगे नहीं  चलना चाहिए , उनसे ऊंची आवाज़ में बात नहीं करना चाहिये, उनकी आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिये और वृद्धावस्था में उनका ध्यान रखना चाहिये।

इस्लामी संस्कृति में वृद्धों को विशेष स्थान प्राप्त है। पूरे परिवार के सदस्य अपने वृद्धों का सम्मान करते हैं।  कार्यों में उनसे विचार -विमर्श करते हैं और विवाद व झगड़े के समय उनके फैसले का सम्मान करते हैं। कभी वृद्धों की एक बात से लड़ाई- झगड़े समाप्त हो जाते हैं और झगड़ा कर रहे लोग एक दूसरे से मिल जाते हैं। वृद्ध जब तक जीवित हैं उनके जीवित होने की नेअमत ज्ञात नहीं होती है। ऐसा बहुत होता है कि घर के बड़े- बूढे के निधन के बाद परिवार में विवाद शुरू हो जाते हैं। इसी कारण पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” स्थाई व टिकाऊ विभूति तुम्हारे वृद्धों के साथ है” इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम एक अन्य स्थान पर फरमाते हैं” वृद्ध अपने परिवार के बीच वैसा है जैसे पैग़म्बर अपने अनुयाइयों व क़ौम के मध्य होता है।“

यह उस केन्द्रीय व महत्वपूर्ण भूमिका की ओर संकेत है जो वृद्ध के अस्तित्व में निहित है। तो अगर वृद्ध परिवार में संपर्क, एकता एवं समरसता के चेराग़ हैं तो उनके स्थान की रक्षा की जानी चाहिये। बच्चों और संतान की ओर से वृद्धों के स्थान पर ध्यान दिये जाने से स्वयं उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। इसी कारण इस्लाम ने इस मामले व समस्या पर विशेष ध्यान दिया है।

संतान की ओर से वृद्धों पर ध्यान दिया जाना इस बात का कारण बनता है कि वह परिवार के भीतर स्वयं को अलग- थलग महसूस नहीं करता । दूसरी ओर घर के दूसरे सदस्य और जवान उनके मूल्यवान अनुभवों से लाभ उठाते हैं। चूंकि वृद्ध, परिवार में समरसता का चेराग़ होते हैं इसलिए उनके स्थान का सम्मान किया जाना चाहिये। उनसे प्रेम किया जाना चाहिये। उन्हें दुःखी नहीं किया जाना चाहिये और उनकी नसीहतों एवं अनुभवों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये। बड़ों का आदर करना और छोटों पर दया करना इस्लाम धर्म के नैतिक आदेशों में से है और यह वह चीज़ है जो परिवार के वातावरण को बेहतर, स्नेहिल और मधुर बनाती है।

इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम इस संबंध में फरमाते हैं” वह हमसे नहीं है जो बड़ों का आदर और छोटों पर दया न करे।“

हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी फरमाते हैं” विद्वान का उसके ज्ञान के कारण और बड़े का उसकी आयु के कारण आदर करना चाहिये।“ अगर जवान बूढ़ों के मूल्य को न पहचानें और उनका आदर- सम्मान न करें तो मानवीय व भावनात्मक संबंध समाप्त हो जायेंगे और जवान बूढ़ों के मूल्यवान अनुभवों से भी वंचित हो जायेंगे।


वृद्धों के आदर- सम्मान का एक लाभ यह है कि इस संस्कृति को भावी पीढ़ी में स्थानांतरित किया जाता है। एक संस्कृति को भावी पीढ़ी तक स्थानांतरित करने का बेहतरीन तरीक़ा, माता-पिता और शिक्षक व प्रशिक्षक का व्यवहार है। जब बच्चे बड़ों के व्यवहार को देखते हैं तो उसे वे आदर्श बना लेते हैं। अगर बड़ों का आदर व सम्मान हमारे व्यवहार से ज़ाहिर हो जाये यानी हम बड़ों का सम्मान करने लगें तो हमारे बच्चे भी हमसे बड़ों का सम्मान करना सीख जायेंगे। जिस व्यक्ति को यह अपेक्षा हो कि उसके बच्चे शिष्टाचार सीखें उसे चाहिये कि वह अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करे और उनका मान -सम्मान करे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” अपने बड़ों का आदर- सम्मान करो ताकि तुम्हारे छोटे भी तुम्हारा सम्मान करें।“

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम भी फरमाते हैं” अपने पिता के साथ भलाई करो ताकि तुम्हारी संताने भी तुम्हारे साथ भलाई करें।“

इसमें महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इस बात की शिक्षा अमल के माध्यम से देने की बात कही गयी है। बच्चे वे छात्र हैं जो अमल के माध्यम से चीज़ों को तेज़ी से सीखते हैं। अगर हम वृद्धों का आदर- सम्मान नहीं करते हैं तो हमें अपने बच्चों से भविष्य में अपने आदर- सम्मान की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये।


दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि वृद्ध लोगों का आत्मिक व मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह वह विषय है जिस पर विशेषकर स्वयं वृद्धों की ओर से ध्यान दिया जाना चाहिये। ईरानी मनोवैज्ञानिक अहमद बेह पजूह की एक टिप्पणी से आज के कार्यक्रम को समाप्त कर रहे हैं। वह कहते हैं वृद्ध लोगों को प्रयास करना चाहिये कि वे अपने जीवन को सकारात्मक अर्थ प्रदान करें। ख़ाली समय का सही प्रयोग करें और सामाजिक एवं स्वेच्छा से किये जाने वाले कार्यों में भाग लें। दूसरों के साथ संबंध स्थापित करके और सामाजिक गुटों में सदस्यता ग्रहण करके वृद्धों की सहायता कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर वे ग़ैर सरकारी संगठनों या धार्मिक संस्थाओं में भाग लेकर अच्छे कार्य कर सकते हैं। एक अच्छे कार्य के चयन या किसी कार्य की ज़िम्मेदारी स्वीकार करने से उनकी आत्मिक क्षमता में वृद्धि हो सकती है। कला या लिखने के कार्यों में भाग लेना या मित्रों व परिवार के साथ यात्रा पर जाना वृद्धों के लिए लाभदायक हो सकता है।


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