ईद के चाँद पे क्यूँ होता है बवाल ?
बुशरा अलवी चाँद का देखा जाना इस्लामी फ़िक़्ह का बहुत ही अहम मसअला है जिसके बारे में हमारे मराजे और विद्वानों ने बहुत सी किताबें लि...
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बुशरा अलवी
चाँद का देखा जाना इस्लामी फ़िक़्ह का बहुत ही अहम मसअला है जिसके बारे में हमारे मराजे और विद्वानों ने बहुत सी किताबें लिखी हैं, और इस्लामी शरीअत के बहुत से काम जैसे रमज़ान के रोज़े, हज, ईद, बक़्रईद शबे क़द्र जैसी चीज़ें चाँद से ही साबित होती हैं, और इस्लाम का विभिन्न समुदायों में बल्कि मराजे तक़लीद के बीच भी इस विषय पर विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण होने के कारण मुसलमानों के बीच रमज़ान, ईद बक़्रईद जैसे मसअलों पर इख़्तेलाफ़ पैदा होता रहता है और कभी कभी यह विरोध और इख़्तेलाफ़ इतना ज़्यादा बढ़ जाता है कि लोगों की आवाज़ें बुलंद हो जाती हैं और हर तरफ़ से विरोध के स्वर उठने लगते हैं।
अगरचे इस्लामी इतिहास में यह कोई नई चीज़ नहीं है शेख़ तूसी अपनी किताब तहज़ीबुल अहकाम में लिखते हैं कि अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अस) की हुकूमत के दिनों में लोगों ने रमज़ान की 28 तारीख़ को चाँद देख लिया (और उसी के हिसाब से ईद कर ली) इमाम ने आदेश दिया कि रमजान 29 दिन का है और सब को एक दिन के रोज़े की क़ज़ा करनी होगी।
बहर हाल चाँद के बारे में इख़्तेलाफ़ होता रहता है और आगे भी होता रहेगा क्योंकि इसके कारण कई प्रकार के हैं जैसे कुछ मराजे चाँद के साबित होने में क्षितिज के एक होने को शर्त मानते हैं और कहते हैं कि अगर एक जगह पर चाँद साबित हो गया तो हर जगह पर साबित हो जाता है और कुछ लोग इसको शर्त नहीं मानते हैं।
हम अपने इस लेख में हिन्दुस्तान में हुई ईद और उस पर मचे बवाल के बाद आयतुल्लाह सीस्तानी की नज़र में ईद के बारे में पाए जाने वाले सवालात और चाँद के साबित होने का विश्लेषण करेंगे
आयतुल्लाह सीस्तानी की नज़र में चाँद साबित होने के कई माध्यम हैं जिनमें से हम तीन को यहां पर लिख रहे हैं जो कि आज के हिन्दुस्तानी समाज के लिहाज़ से साबित भी हो चुके हैं
1. इंसान ख़ुद चाँद देखे।
2. दो आदिल (सच्चे) गवाही दें कि उन्होंने चाँद देखा है।
3. इतने लोग कहें कि जिससे यक़ीन या इत्मीनान हो जाए कि चाँद देखा जा चुका है
इस बार की ईद पर होने वाले कुछ एतेराज़ात
1. आयतुल्लाह सीस्तानी इराक़ में हैं वह हिन्दुस्तान की ईद के बारे में फ़तवा कैसे दे सकते हैं, क्या अब ईद फ़तवों के हिसाब से मनाई जाएगी?
2. कैसे एकदम से रात को यह ऐलान कर दिया जाता है कि कल ईद है इस तरह से ग़रीब लोग ईद की तैयारियां एकदम से कैसे कर पाएंगे?
3. अलग अलग ईद होना मुसलमानों के बीच इख़्तेलाफ़ का सबब बनता है?
जवाब
कम से कम इस बार हम सभी जानते हैं कि हिन्दुस्तान की सरहदों के अंदर ही कश्मीर और केलर जैसी जगहें थी जहां पर शिया और सुन्नी दोनों ने एक साथ ईद मनाई, यानी ऐसा नहीं था कि हर जगह सिर्फ शियों ने ही ईद मनाई हो, जिससे यह पता चलता है कि कम से कम दो जगहों पर चाँद साबित हो जाने के बारे में कोई इख़्तेलाफ़ नहीं था, जो जब दो जगहों पर साबित हो जाता है तो उसको पूरे हिन्दुस्तान में शामिल करने में क्या मुश्किल है आयतुल्लाह सीस्तानी के चाँद साबित होने के कारणों के हिसाब से क्या केरल और कश्मीर में दो आदिल नहीं है जो चाँद साबित होने की गवाही नहीं दे सकते? क्या केरल और कश्मीर के मुसलमान मुसलमान नहीं हैं जिनकी गवाही नहीं मानी जाएगी? क्या केरल और कश्मीर में चाँद के देखे जाने का मशहूर होना चाँद को साबित नहीं करेंगा? अब आप इसको इस हिसाब से लें कि अगर केरल और कश्मीर से कुछ लोगों का फोन आयतुल्लाह सीस्तानी के दफ़्तर में जाता है और यह लोग कहते हैं कि यहां पर चाँद देखा जा चुका है तो क्या उनकी गवाही पर पूरे हिन्दुस्तान पर चाँद साबित नहीं होता है (जबकि क्षितिज एक ही है) ?
तो अगर इन सब चीज़ों को देखते हुए रात के तीन बजे क्या अगर सुबह आठ बजे भी ईद का एलान किया जाता है तो इतना बवाल क्यों, हम यह क्यों सोचते हैं कि हमारी बात ही सही है, हमारे मुक़ाबले में भी मुसलमानों की एक बड़ी संख्या है जो कह रह हैं कि चाँद साबित हो चुका है
अब दूसरा सवाल कि जिसमें कहा जाता है कि अगर एकदम से यह एलान कर दिया जाए कि कल ईद है तो ग़रीब लोग ईद की तैयारियां कैसे कर पाएंगे
यह सवाब बहुत अच्छा है और इसी के लिये इस्लाम ने कहा है कि हम को ग़रीबों की देखभाल करने के लिये ईद और बक़्रईद जैसे त्याहारों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिये बल्कि पूरे साल उनकी देखभाल करनी चाहिए और अगर ऐसा होता तो यह प्रश्न ही पैदा न होता, और दूसरी बात यह है कि इस्लामी विचारधारा में (जो हिन्दू समाज से प्रेरित नहीं है) ईद का मतलब सिर्फ़ नए कपड़े पहनना और गले मिलना नहीं है बल्कि ईद नाम है अल्लाह की तरफ़ पलट कर आने का, अपने आप को अल्लाह को और क़रीब करने का ईद नाम है पूरे रमज़ान रोज़ा रखने के बाद अल्लाह से मोमिन का सार्टिफिकेट लेने का, ईद नाम है अपने इस्लाम के ख़ालिस होने की मोहर लगवाने का.....तो ईद के सिर्फ़, नए कपड़ों, गले मिलने, सिवइयां बनाने..... तक सीमित न करें
यह सवाब बहुत अच्छा है और इसी के लिये इस्लाम ने कहा है कि हम को ग़रीबों की देखभाल करने के लिये ईद और बक़्रईद जैसे त्याहारों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिये बल्कि पूरे साल उनकी देखभाल करनी चाहिए और अगर ऐसा होता तो यह प्रश्न ही पैदा न होता, और दूसरी बात यह है कि इस्लामी विचारधारा में (जो हिन्दू समाज से प्रेरित नहीं है) ईद का मतलब सिर्फ़ नए कपड़े पहनना और गले मिलना नहीं है बल्कि ईद नाम है अल्लाह की तरफ़ पलट कर आने का, अपने आप को अल्लाह को और क़रीब करने का ईद नाम है पूरे रमज़ान रोज़ा रखने के बाद अल्लाह से मोमिन का सार्टिफिकेट लेने का, ईद नाम है अपने इस्लाम के ख़ालिस होने की मोहर लगवाने का.....तो ईद के सिर्फ़, नए कपड़ों, गले मिलने, सिवइयां बनाने..... तक सीमित न करें
अब तीसरा और सबसे अहम सवाल कि इस प्रकार एकदम से एक समुदाय द्वारा ईद का ऐलान कर दिये जाने से शिया सुन्नी एकता की कोशिशों को धचका लगता है इससे शिया और सुन्नियों के बीच एख़्तेलाफ़ पैदा होता है
शिया और सुन्नी के बीच इत्तेहाद होना चाहिये और यह आज के दौर में मुसलमानों की बहुत बड़ी ज़रूरत है लेकिन सवाल यह है कि यह इत्तेहाद किस बेस पर और कहां तक, क्या यह इत्तेहाद यह कहता है कि हम हलाल और हराम को छोड़ दें? और यह कौन सा इत्तेहाद है जो सिर्फ एक त्योहार के अलग हो जाने पर ख़त्म हुआ जा रहा है? क्या हमारे इत्तेहाद और उसके लिये की जाने वाली कोशिशों की डोर इतनी कमज़ोर है कि वह एक ईद के मसले पर ही टूटी जा रही है? बल्कि हम को तो दो अलग अलग ईद को एक अवसर की तरह लेना चाहिये पहले जब एक दिन ईद हुआ करती थी तो समय की कमी के कारण शिया लोग सिर्फ़ शियों के यहां और सुन्नी सिर्फ़ सुन्नियों के यहां ही मिलने जा पाया करते थे लेकिन अब ईद दो हो जाने के बाद सब के पास पूरा समय है एक दूसरे के यहां जाने के लिये।
शिया और सुन्नी के बीच इत्तेहाद होना चाहिये और यह आज के दौर में मुसलमानों की बहुत बड़ी ज़रूरत है लेकिन सवाल यह है कि यह इत्तेहाद किस बेस पर और कहां तक, क्या यह इत्तेहाद यह कहता है कि हम हलाल और हराम को छोड़ दें? और यह कौन सा इत्तेहाद है जो सिर्फ एक त्योहार के अलग हो जाने पर ख़त्म हुआ जा रहा है? क्या हमारे इत्तेहाद और उसके लिये की जाने वाली कोशिशों की डोर इतनी कमज़ोर है कि वह एक ईद के मसले पर ही टूटी जा रही है? बल्कि हम को तो दो अलग अलग ईद को एक अवसर की तरह लेना चाहिये पहले जब एक दिन ईद हुआ करती थी तो समय की कमी के कारण शिया लोग सिर्फ़ शियों के यहां और सुन्नी सिर्फ़ सुन्नियों के यहां ही मिलने जा पाया करते थे लेकिन अब ईद दो हो जाने के बाद सब के पास पूरा समय है एक दूसरे के यहां जाने के लिये।
सबसे बड़ी बात जो इस बार की ईद में हुई है वह यह है कि इस ईद ने एक बहुत ही बड़े सवाल और लोगों के बीच बढ़ती उस सोंच का जवाब दे दिया है जिसमें कहा जा रहा था कि अब शिया समुदाय जो कि कभी अपने मराजे के फ़तवे और हुक्म पर अपनी जान क़ुरबान करने के लिये तैयार रहता था अब वैसा नहीं रहा बल्कि अब वह भी अपने मराजे से जुदा हो चुका है।
यह वह सोच थी जो शियों को अपने मराजे से दूर कर रही थी लेकिन इस अलग ईद के हुक्म के बाद तमाम शिया का (अलग अलग सोच होने के बावजूद) एक प्लेटफार्म पर जमा हो कर ईद मनाना दिखाता है कि शियों ने दुश्मनों की तरफ़ से रची जाने वाली साज़िशों को एक बार फिर नाकाम कर दिया है वह कल भी अपने मराजे के साथ थे और आज भी हैं और कल भी रहेंगे, अख़बारियत का नारा लगाने वालों को न तो कल शियों का साथ मिला था और न ही कभी मिलेगा
*कर रही थी सवाल यह दुनिया*
*क्या हक़ीक़त है सीस्तानी की*
*आज की ईद ने किया साबित*
*क्यों ज़रूरत है सीस्तानी की*
*क्या हक़ीक़त है सीस्तानी की*
*आज की ईद ने किया साबित*
*क्यों ज़रूरत है सीस्तानी की*