मुसलमान ने मुसलमान का हक नहीं दिया तो विलायत के बहार | इमाम जाफ़र ऐ सादिक (अ.स)

मोअल्लाह बिन ख़ुनैस इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत करते हैं कि मैं ने इमाम से पूछा कि एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान पर क्या हक़ है? आपने फ...



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मोअल्लाह बिन ख़ुनैस इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत करते हैं कि मैं ने इमाम से पूछा कि एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान पर क्या हक़ है? आपने फ़रमायाः (एक मुसलमान पर दूसरे मुसलमान के) सात वाजिब हक़ हैं कि अगर उनमें से किसी एक को भी छोड़ दिया जाए तो वह हमारी विलायत से निकल गया|

पहला हक़ :-जो अपने लिये पसंद करो उसके लिये भी पसंद करो|
सबसे आसान हक़ यह है कि जो कुछ भी अपने लिये पसंद करो अपने मोमिन भाई के लिये भी उसको पसंद करो और जो अपने लिये पसंद न करो उसके लिये भी पसंद न करो।
अगर हमको यह अच्छा नहीं लगता है कि कोई पीठ पीछे हमारी बुराई करे, और अगर हम किसी से सुनते हैं कि कोई हमारी बुराई कर रहा था तो हम को बुरा लगता है तो हम भी किसी दूसरे की बुराई न करें और उसको दूसरों की नज़रों में नीचा करें।

दूसरा हक़:- उसको नाराज़ न करो|

कोई ऐसा काम न करो कि वह नाराज़ और क्रोधित हो जाए बल्कि ऐसा कार्य करो कि वह प्रसन्न हो और राज़ी रहे।

तीसरा हक़:- जितना हो सके उसकी मदद करो|

उसकी मदद करो, पैसे से, जान से माल से ज़बान से हाथ पैरे से, यानी अपने पूरे वजूद से उसकी मदद करो, अगर पैसे से मदद कर सको तो पैसा दो, अगर जबान से मदद कर सको तो ज़बान से करो, अगर उसके हक़ में बोल सको तो चुप न रहो बल्कि बोलो, दूसरों को उसके विरुद्ध बोल कर उसको अपमानित न करने दो।

चौथा हक़:- उसके लिये मार्गदर्शक और आईना बनो|

अगर तुम देखों कि तुम्हारा भाई किसी खाई में गिर रहा है तो उसकी आँख बन जाओ, जब देखों कि मोमिन भाई किसी बुराई की तरफ़ जा रहा है और उस चीज़ की जानकारी उस मोमिन को बचाने के लिये देना ज़रूरी है तो उसको बताओ, अगर कोई उसको विरुद्ध साज़िश रच रहा है तो उसको सावधान करो, अगर कोई उसको मारने, उसके सम्मान को ठेस पहुँचाने या.... की कोशिश कर रहा है तो तुम अपने मोमिन भाई के लिए आँख, कान बन जाओ उसके लिये मार्गदर्शक का रोल अदा करो।

पाँचवा हक़:-उसको भूखा या प्यासा न रहने दो|

एक मोमिन का दूसरे मोमिन पर पाँचवां हक़ यह है कि ऐसा न हो कि तुम्हारा पेट भरा हो और वह भूखा रहे, तुम तृप्त हो लेकिन वह प्यासा हो, तुम्हारे पास बेहतरीन कपड़ा हो लेकिन उसके पास पहनने को कपड़े न हो।

छटा हक़:-कार्यों को अंजाम देने में उसकी सहायता करो|

अगर तुम्हारे पास काम करने के लिये लोग हैं लेकिन उसके काम रुका हुआ है तो अपने नौकरों को भेजो ताकि वह कार्यों में उसकी सहायता करें।

सातवाँ हक़ :-कहने से पहले उसकी ज़रूरतों को पूरा कर दो।

उसकी क़सम पर विश्वास करो उसके निमंत्रण को स्वीकार करे और उसके अंतिम संस्कार में जाओ, बीमारी में उसकी मुलाक़ात को जाओ, उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अपने शरीर को कष्ट दो और उसको इस बात को मोहताज न करो कि वह तुमसे मांगे तब तुम उसकी ज़रूरत को पूरा करो

अगर तुम ने यह हक़ अदा कर दिये तो तुम ने अपनी विलायत को उसकी विलायत से और उसकी विलायत को ख़ुदा की विलायत से मिला दिया है ।
(यह लेख थोड़े बदलाव के साथ आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी की तक़रीर का अनुवाद है)

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उसूले काफ़ी जिल्द 3, पेज 246, हदीस 2




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