हमारे अनुयाइ उस समय तक सुरक्षित रहेंगे जब तक वे अम्र बिलमारूफ और नही अनिलमुन्कर करते रहेंगे ..पैग़म्बरे इस्लाम
नमाज़, रोज़ा, हज, और जेहाद की भांति अम्र बिलमारूफ को भी धार्मिक आदेशों में समझा जाता है और उनके मध्य इसे विशेष स्थान प्राप्त है। हज़...
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नमाज़, रोज़ा, हज, और जेहाद की भांति अम्र बिलमारूफ को भी धार्मिक आदेशों में समझा जाता है और उनके मध्य इसे विशेष स्थान प्राप्त है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार अम्र बिलमारूफ और नही अनिलमुन्कर का दायेरा विस्तृत है और इसमें सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र सभी शामिल हैं।
हर वह कार्य जिसे धर्म और बुद्धि अच्छा समझते हैं उसे मारूफ कहते हैं जैसे महान ईश्वर की उपासना, माता पिता के साथ भलाई, निकट संबंधियों के साथ उपकार, दीन दुखियों की सहायता, निर्धन व दरिद्रों की मदद, वादे को पूरा करना और अत्याचार व अन्याय से संघर्ष आदि।
हर वह कार्य जिसे बुद्धि और धर्म पसंद नहीं करते हैं उसे मुन्कर कहते हैं। जैसे अनेकेश्वरवाद, बलात्कार, गाली गलौज, चोरी, सूद, अनाथों का माल खाना, घमंड, और दुर्व्यवहार आदि। पवित्र कुरआन की संस्कृति में अम्र बिलमारूफ और नही अनिल मुन्कर अनिवार्य दायित्वों में से है जो समाज के सुधार का कारण बनता है। पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान की १०४ वीं आयत में आया है” तुममे से कुछ लोगों को अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने वाला होना चाहिये और वही मुक्ति पाने वाले हैं”
पैग़म्बरे इस्लाम अम्र बिल मारूफ और नही अनिलमुन्कर के बारे में फरमाते हैं” हमारे अनुयाइ उस समय तक सुरक्षित रहेंगे जब तक वे अम्र बिलमारूफ और नही अनिलमुन्कर करते रहेंगे और भलाई तथा तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय में एक दूसरे की सहायता करेंगे और जब उसे छोड़ देगें तो बरकत उन्हें छोड़कर चली जायेगी” हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी फरमाते हैं” अम्र बिलमारूफ अर्थात अच्छाई का आदेश देना ईश्वर की सृष्टि का सर्वोत्तम कार्य है” एक अन्य स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अम्र बिलमारूफ को धर्म का अंतिम उद्देश्य बताया है। वे फरमाते हैं धर्म का उद्देश्य अच्छाई का आदेश देना, बुराई से रोकना और सीमा निर्धारित करना है” हज़रत अली अलैहिस्सलाम सत्ता को इसी दृष्टि से देखते हैं और इसी दृष्टि से वे सरकार को स्वीकार करते हैं ताकि व समाज के मामलों का सुधार करें और समाज से बुराई का अंत करें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने शासन के अंतिम दिनों में एक भाषण में इस वास्तविकता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं” हे ईश्वर! तू जानता है कि जो चीज़ हमसे चली गयी वह सत्ता में हमारी रूचि के कारण नहीं थी और न तुच्छ दुनिया से अधिक चाहत के कारण बल्कि मैंने चाहा कि धर्म के चिन्हों को उसके स्थान पर करार दूं और तेरे शहरों में सुधार करूं ताकि तेरे अत्याचारग्रस्त बंदों के लिए सुरक्षा उपलब्ध हो सके और तेरी बर्बाद हुई सीमा लागू हो जाये”
इस्लामी सरकार का एक दायित्व समस्त नागरिकों की सुरक्षा की आपूर्ति है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार इस्लामी सरकार का एक दायित्व यह है कि हर पात्र व हक़दार को उसका अधिकार मिले । इसी कारण अम्र बिलमारूफ और नही अनिल मुन्कर के उद्देश्यों में से है कि शासक, लोगों के अधिकारों के बारे में ढिलाई से काम न लें और उनके अधिकारों की रक्षा करें।
भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना इस्लाम के सार्वजनिक कार्यक्रमों में से एक है और हर मुसलमान का दायित्व है कि वह इस दिशा में प्रयास करे। यह वह कार्य है जो किसी एक व्यक्ति से विशेष नहीं है और इसे समाज के हर व्यक्ति को यहां तक कि शासकों को भी अंजाम देना चाहिये। यानी समाज के समस्त लोगों को चाहिये कि वे समाज के प्रबंधकों एवं अधिकारियों के कार्यों पर दृष्टि रखें और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करें और गलत व बुरे कार्यों से रोकें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मिस्र में अपने गवर्नर मालिके अश्तर को सिफारिश करते हुए फरमाते हैं” उन लोगों का चयन करो जो सत्य कहने में सबसे प्रखर हों।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम न केवल अपने गवर्नरों को सिफारिश करते हैं कि वे टीका -टिप्पणी व आलोचना करने वालों की बात सुनें बल्कि इस दिशा में स्वयं अग्रणी थे और लोगों का आह्वान करते थे कि वे हक कहने या न्याय के बारे में परामर्श करने से परहेज़ न करें।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का मानना है कि जो भी सत्ता के सिंहासन पर बैठे उसे इस बात की आवश्यकता है कि दूसरे उसकी रचनात्मक आलोचना करके भलाई की ओर उसका मार्गदर्शन करें क्योंकि गुमराही का आरंभिक बिन्दु उस समय शुरू होता है जब समाज के शक्तिशाली व सत्ताधारी लोग स्वयं को गलती से सुरक्षित और भलाई की ओर मार्गदर्शन की आवश्यकता न समझें और इस बात की अनुमति न दें कि दूसरे उनके क्रिया- कलापों पर टीका- टिप्पणी करें। इस आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम मालिके अश्तर से सिफारिश करते हैं” यह न कहो कि हमने सत्ता प्राप्त कर ली है तो मैं आदेश दूंगा और लोगों को चाहिये कि वे मेरा आदेशापालन करें कि यह कार्य दिल के काला होने, धर्म के तबाह व बर्बाद होने और अनुकंपा के हाथ से चले जाने का कारण बनेगा।
भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने के कार्यक्रम को सही तरह से लागू करने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले भलाई और बुराई को सही तरह से पहचाना जाये पंरतु कुछ अवसरों पर एसा होता है कि इंसान भलाई और बुराई को अच्छी तरह से नहीं जानता है इसलिए वह ग़लती कर बैठता है। कभी कभी एसा भी होता है कि इंसान भलाई को बुराई और बुराई को अच्छाई समझने लगता है। हां यह चीज़ उस समय होती है जब इंसान पवित्र कुरआन और धार्मिक शिक्षाओं की पहचान के बिना अपने व्यक्तिगत निष्कर्षों पर अमल करना आरंभ कर देता है और अपने दृष्टिकोणों को सही समझ बैठता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज्ञान का स्रोत वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश था और वे सत्य व असत्य को भली भांति समझते थे फिर भी वे दूसरों पर अपने दृष्टिकोणों को नहीं थोपते थे और अपने अधीनस्थ लोगों के हाथ को खुला रखते थे। हां जहां इस कार्य से समाज को हानि होने वाली होती थी वहां आवश्यकता के अनुसार लोगों पर कड़ाई और उन्हें नियंत्रित करते थे। सिफ्फीन नामक युद्ध को उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को भलिभांति ज्ञात था कि मोआविया पूरी तरह धर्मभ्रष्ठ है और समस्त मुसलमानों का दायित्व है कि वे उसका मुकाबला करें परंतु जब कुछ मुसलमान मोआविया के विरुद्ध युद्ध करने में संदेह व असमंजस का शिकार हो गये और तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें वास्तविकता को समझने का अवसर दिया और कहा कि वे अपने दृष्टिकोणों को बयान करें। रबीअ बिन खैसम इस प्रकार के व्यक्तियों में से एक था। वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम और मोआविया के मध्य होने वाले युद्ध के बारे में असमंजस में था। वह अपने कुछ साथियों के साथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास आया और कहा हे अमीरूल मोमिनीन हम आपकी श्रेष्ठता को जानते हैं फिर भी इस युद्ध के बारे में मुझे संदेह हो गया है। हम एसे लोगों के अस्तित्व से आवश्यकतामुक्त नहीं हैं जो बाहरी शत्रुओं से लड़ें। तो हमें सीमाओं पर तैनात कर दें ताकि मैं वहां रहूं और वहां के लोगों की रक्षा के लिए लड़ूं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी सच्चाई पर आग्रह करने के बजाये उसकी बात स्वीकार कर ली और उसे बड़े ही अच्छे अंदाज़ से एक सीमावर्ती क्षेत्र में भेज दिया ताकि वह वहां पर अपने दायित्व का निर्वाह करे।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो इंसान दूसरों को भलाई का आदेश देता है और बुराई से रोकता है उसे चाहिये कि वह स्वयं इन बातों के प्रति वचनबद्ध रहे और जो कहता है उस पर स्वयं अमल करे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस इंसान की निंदा की है जो दूसरों को अच्छाई का आदेश देता है और बुराई से रोकता है और स्वयं उस पर अमल नहीं करता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम एसी महान हस्ती थे जिनके कथन और कर्म में लेशमात्र का भी अंतर नहीं था। वे अपने एक भाषण में कहते हैं हे लोगों ईश्वर की सौगन्ध मैं तुम्हें उस चीज़ के लिए प्रोत्साहित नहीं करता जिसे मैं तुमसे पहले स्वयं अंजाम न दे दूं। तुम्हें पाप से नहीं रोकना मगर यह कि तुमसे पहले मैं स्वयं उसे दूर रहना हूं”
अच्छाई का आदेश और बुराई से रोकना इस प्रकार से हो कि समाज को नुकसान न पहुंचे। इसके अतिरिक्त जब तक कोई खुलकर पाप नहीं करता तब तक किसी को भी उसके व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप करने या दूसरों के मामलों के बारे में जासूसी करने का कोई अधिकार नहीं है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” जब कोई बंदा गुप्त रूप से कोई पाप करे तो उसके अलावा किसी और को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा और जब वह उसी पाप को खुल्लम खुल्ला अंजाम दे और लोग उस पर आपत्ति न जतायें तो उससे आम लोगों को नुकसान पहुंचेगा। एक अन्य स्थान पर पैग़म्बरे इस्लाम इसी संबंध में फरमाते हैं” ईश्वर उस पाप के कारण लोगों को दंड नहीं देगा जिसे विशेष लोग गुप्तरूप से अंजाम दें और उससे लोग अनभिज्ञ हों” हां यहां पर एक अपवाद है और वह सार्वजनिक एवं सरकारी संस्था व संगठनों की निगरानी है। क्योंकि इस प्रकार के संगठन व संस्थाएं लोगों के धन से अस्तित्व में आती हैं और उन्हें चाहिये कि वे सदैव इस मार्ग में रहें। अतः सदैव उनकी निगरानी की जानी चाहिये। इस प्रकार इन संगठनों व संस्थाओं को चलाने वाले और उनमें काम करने वाले अधिकारी निगरानी में शामिल हैं। इसी कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने गवर्नर मालिके अश्तर से सिफारिश करते हैं कि वे अपने अधीनस्थ लोगों और सरकारी कर्मचारियों के क्रिया कलापों की निगरानी करें और विशेष निरक्षकों को भेज कर संभावित उल्लंघन की रोकथाम करें।