मात्र बीस या पच्चीस साल की उम्र में बीबी फातिमा(स.) की शहादत हो गयी थी।

आज से हज़ार साल पहले एक महान इस्लामी विद्वान शेख सुददूक(अ.र.) हुए हैं। उन्होंने अपनी किताब 'कमालुददीन' में कुरआन व हदीस से यह ...


आज से हज़ार साल पहले एक महान इस्लामी विद्वान शेख सुददूक(अ.र.) हुए हैं। उन्होंने अपनी किताब 'कमालुददीन' में कुरआन व हदीस से यह सिद्ध किया है कि हर दौर और हर ज़माने में खुदा के दीन यानि इस्लाम धर्म को बताने वाले कभी नबी, कभी पैगम्बर, कभी रसूल और कभी इमाम के तौर पर दुनिया में मौजूद रहे हैं और इस दुनिया के अंत तक मौजूद रहेंगे। यानि अल्लाह कभी दुनिया को बिना धर्म अधिकारी के नहीं छोड़ता। कुरआन इन ही धर्म अधिकारियों के अनुसरण का हुक्म देता है। पैगम्बर मोहम्मद(स.) के बाद नबूवत का सिलसिला खत्म हो गया, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि इस्लाम बिना रहबर के हो गया। बल्कि कुरआन के मुताबिक यह सिलसिला अहलेबैत में जारी हुआ।

अहलेबैत में शामिल हैं हज़रत अली(अ.), बीबी फातिमा(स.), इमाम हसन(अ.) व इमाम हुसैन(अ.) । और यही पैगम्बर मोहम्मद(स.) के बाद धर्म के सर्वोच्च अधिकारी हुए। इनकी पैरवी करना पैगम्बर मोहम्मद(स.) के बाद हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है।
इस भाग में बात करते हैं बीबी फातिमा(स.) के बारे में। बीबी फातिमा(स.) पैगम्बर मोहम्मद(स.) की एकमात्र सगी बेटी थीं और इनकी माँ का नाम हज़रत खदीजा कुबरा(स.) था। हज़रत खदीजा कुबरा(स.) अपने समय की अरब मुल्क की सबसे धनी महिला थीं किन्तु उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद(स.) से शादी के बाद अपनी समस्त दौलत इस्लाम पर खर्च कर दी थी। माँ व बाप का आला किरदार बेटी को मिला, यहाँ तक कि रसूल(स.) ने अपनी बेटी के लिये फरमाया फातिमा(स.) मेरा टुकड़ा है। 

मात्र बीस या पच्चीस साल की उम्र में बीबी फातिमा(स.) की शहादत हो गयी थी। इस बीच उनकी फज़ीलत के बेशुमार रंग हमारे सामने ज़ाहिर होते हैं। इतिहास में यह दर्ज है कि जब कभी रसूल(स.) की बेटी उनसे मिलने जाती थी तो रसूल(स.) उनकी ताज़ीम में मेंबर से उठ जाते थे। पैगम्बर मोहम्मद(स.) की एक मशहूर हदीस ये है कि फातिमा(स.) तमाम दुनिया की औरतों की सरदार हैं।

रसूल(अ.) की बेटी होने के बावजूद बीबी फातिमा(स.) के पास दुनियावी दौलत में से कुछ नहीं था। सादगी में वह अपनी मिसाल आप थीं। अपनी माँ से मिले तमाम ज़ेवर उन्होंने अल्लाह की राह में दान कर दिये थे। वह घर में चक्की पीसने से लेकर तमाम कामों को अपने हाथों से अंजाम देती थीं और बच्चों की परवरिश करती थीं। घर में बिस्तर के नाम पर ऊंट की सूखी खाल थी जिसपर दिन में उनका ऊंट चारा खाता था और रात में वही खाल सोने के काम आती थी।
    
पैगम्बर मोहम्मद(स.) ने बीबी फातिमा(स.) की खुशनूदी को धर्म कहा और कहा कि जिसने बीबी फातिमा(स.) को खुश किया उसने अल्लाह को खुश किया और जिसने बीबी फातिमा(स.) को नाराज़ किया उसने अल्लाह को नाराज़ किया। एक रवायत के मुताबिक नमाज़ का वक्त हो चुका था और अज़ान कहने वाले हज़रत बिलाल(र.) मस्जिद नहीं पहुंचे थे। जब वे थोड़ी देर के बाद मस्जिद पहुंचे तो रसूल(अ.) ने देरी का सबब पूछा। जवाब में उन्होंने कहा कि वे बीबी फातिमा(स.) के घर की तरफ से जब गुजरे तो देखा कि आप अपने बेटे हसन(अ.) को गोद में लेकर चक्की पीसती जाती हैं और रोती जाती हैं। हज़रत बिलाल(र.) ने कहा अगर आप इजाज़त दें तो मैं आपके बेटे को बहलाऊं या चक्की पीस दूं। फिर बीबी फातिमा(स.) बेटे को बहलाने लगीं और हज़रत बिलाल(र.) ने चक्की पीसी। यह सुनकर रसूल(स.) ने फरमाया तुमने फातिमा(स.) पर रहम फरमाया, अल्लाह तुम पर रहम फरमायेगा।

पैगम्बर मोहम्मद(स.) पर अक्सर यह इल्ज़ाम लगाया जाता है कि उन्होंने नबूवत का दावा दौलत वगैरा हासिल करने के लिये किया था। लेकिन उनकी बेटी के हालात पढ़ने पर मालूम होता है कि यह इल्ज़ाम सरासर गलत है। अक्सर बीबी फातिमा(स.) व उनके बच्चे फाक़ाक़शी की हालत में होते थे। उनके शौहर इमाम हज़रत अली(अ.) का रोज़ाना का दस्तूर ये था कि सुबह मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के बाद वे मज़दूरी पर निकल जाते थे। अगर मज़दूरी मिलती थी तो घर में चूल्हा जलता था, वरना फाका होता था। अक्सर हज़रत अली(अ.) अपनी पूरी मज़दूरी किसी ज़रूरतमन्द की मदद में खर्च कर देते थे, और घर में फाकाक़शी होती थी। उसके बावजूद बीबी फातिमा(स.) की ज़बान से उफ तक नहीं निकलता था। बल्कि वो अपने शौहर के इस काम में  बराबर से शामिल रहती थीं. बीबी फातिमा(स.) ने अपनी पूरी जिंदगी में हज़रत अली(अ.) से कोई फर्माइश नहीं की।

शौहर के घर जाने के बाद आप ने जिस निज़ाम जिंदगी का नमूना पेश किया उसकी मिसाल नहीं मिलती। आप घर का तमाम काम अपने हाथ से करती थीं। झाड़ू देना, खाना पकाना, चरखा कातना, चक्की पीसना और बच्चों की तरबियत यह सब काम वह अकेली करती थीं। फिर जब सन 7 हिजरी में रसूल(स.) ने उन्हें एक कनीज़ अता की जो फ़िज़ज़ा के नाम से मशहूर हैं तो बीबी फातिमा(स.) ने उनके साथ एक सहेली जैसा बर्ताव किया। घर का काम एक दिन वह खुद करती थीं और एक दिन कनीज़ से काम लेती थीं।

पंजतन पाक की फज़ीलत में इस तरह की कई हदीसें मौजूद हैं कि अल्लाह पाक ने ज़मीन व आसमान की खिलक़त इन ही के लिये की है और अगर ये न होते तो कुछ भी न खल्क़ होता। और पंजतन पाक का मरकज़ यानि कि केन्द्र हैं बीबी फातिमा(स.)। इस बारे में एक मशहूर हदीस हदीसे किसा के नाम से जानी जाती है। जब पैगम्बर मोहम्मद(स.), बीबी फातिमा(स.), इमाम अली(अ.), इमाम हसन(अ.) और इमाम हुसैन(अ.) एक चादर के नीचे मौजूद थे। उस वक्त फरिश्तों ने परवरदिगार से पूछा कि चादर के नीचे कौन हैं? तो परवरदिगार ने फरमाया कि चादर के नीचे फातिमा(स.) हैं, उनके बाबा हैं, शौहर हैं और बेटे हैं। मैंने इनको हर बुराई व गंदगी से दूर रखा है और तमाम कायनात इन ही के वसीले में बनाई है।

बीबी फातिमा(स.) ज्ञान व अक्ल में दुनिया की औरतों में सर्वोच्च थीं। मुसहफे फातिमा इनकी लिखी हुई किताब है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कुरआन से तीन गुना ज्यादा ज़खीम है। यह किताब अब उपलब्ध नहीं है और माना जाता है कि यह इस्लाम के वर्तमान धर्माधिकारी के पास है जिनका जि़क्र हम आगे करेंगे। बीबी फातिमा(स.) के बहुत से खुत्बात, दुआएं व क़ौल विभिन्न किताबों में मिलते हैं जिनमें इल्म के दरिया जोश मारते हुए नज़र आते हैं और साथ में भाषा की खूबसूरती भी दिखाई देती है। उनके कुछ क़ौल इस प्रकार हैं :
1. मोमिन को तीन बातों का ख्याल रखना चाहिए, अपने पड़ोसी को न सताये, अपने मेहमान का इकराम करे, हमेशा अच्छी बात मुंह से निकाले वरना खामोश रहे।
2. औरत के लिये सबसे बेहतर बात ये है कि न वह किसी गैर मर्द को देखे और न उसे कोई गैर मर्द देखे।
3. इमाम हसन(अ.स.) फरमाते हैं कि एक दिन उन्होंने सारी रात बीबी फातिमा(स.) को इबादत गुज़ारी में मशगूल देखा और तमाम दुनिया के मोमिनीन के लिये दुआ माँगते सुना, यहाँ तक कि सुबह हो गयी। तो इमाम ने अपनी माँ से कहा कि आपने अपने लिये कुछ नहीं माँगा। जवाब में बीबी फातिमा(स.) ने फरमाया कि पहले अपने पड़ोसियों का ख्याल करो फिर अपने बारे में सोचो।
4. अल्लाह पाक ने दुनिया की सज़ाएं इसलिए रखी हैं ताकि वह आखिरत में गुनाहगार पर रहम फरमाये।
लिहाज़ा ये सिद्ध होता है कि पैगम्बर मोहम्मद(स.) की बेटी बीबी फातिमा(स.) महिलाओं में इस्लाम की सर्वोच्च अधिकारी थीं। 

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