हमारा कुसूर क्या है ?
जी हाँ आज भी हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की औलाद दुनिया भर के मुसलमानों से पूछती है हमारा कुसूर क्या था कि बाद वफात ए रसूल ए खुदा हज़रत मुहम्मद...
https://www.qummi.com/2011/09/blog-post_04.html
जी हाँ आज भी हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की औलाद दुनिया भर के मुसलमानों से पूछती है हमारा कुसूर क्या था कि बाद वफात ए रसूल ए खुदा हज़रत मुहम्मद(स.अव) हम पे इतने ज़ुल्म हुए कि जिनको सुन कर आम इंसान के भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. जनाब ए फातिमा (स.अ) को कहना बड़ा बाबा के बाद हम पे इतने ज़ुल्म हुई कि अगर दिन पे होते तो रात मैं बदल जाता.
इस्लाम नाम है अल्लाह के बनाये कानून का और इसका ज़िक्र अल्लाह की किताब कुरान मैं मुकम्मल तौर पे किया गया है. अपनी ज़िंदगी मैं रसूल ए खुदा (स.अ.व) ने जो कुछ हदीसें दी , जो जो अमल किये उसे मुसलमान सुन्नत ए रसूल (स.अ व) के नाम से जानता है. मुसलमान उन सुन्नतों को मानने के मामले मैं सख्त है. हरे रंग की पगड़ी लगाना, इतर लगाना , आँखों मैं सुरमा लगाना भी सवाब का काम समझता है क्यों की यह हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की सुन्नत है , वो अपने जीवन मैं ऐसा ही किया करते थे.
हम मुसलमानों को किसको अपना इमाम या नेता मानना है, अपने जीवन मैं किसकी बात मानना है यह तय करती है कुरान की हिदायतें और इस्लाम के कानून. इस्लाम मैं ज़ालिम के पीछे ना तो चला जाता है, ना उसका साथ दिया जाता है और ना ही उसके लिए अल्लाह से दुआ की जाती है है. इन्साफ कहते हैं किसी भी वस्तु को उसकी सही जगह पे रखने को. टोपी को सर पे ना रखने पैर के नीचे रखने वाला भी ज़ालिम हुआ करता है.
हम मुसलमानों मैं यदि किसी शख्स का नाम कुरान इज्ज़त से ले ले या उसकी इज्ज़त करने को कहे तो उसको मानना आवश्यक हो जाता है. उस हुक्म को ना मानने वाला अल्लाह से बग़ावत करने वाला कहलाता है. यह मेरी बताई बातें एक आम मुसलमान भी जानता है चाहे वो किसी भी फिरके का मुसलमान हो.
अब देखिये कुरान क्या कहती है?
ऐ रसूल, आप कह दीजिये कि मैं तुम से इस तबलीग़े रिसालत का कोई अज्र नही चाहता अलावा इस के कि मेरे अक़रबा से मुहब्बत करो. सूर ए शूरा आयत २३
ऐ ईमानदारों, तक़वा इख़्तियार करो और सच्चों के साथ हो जाओ.....सूर ए तौबा आयत ११९
ऐ (पैग़म्बरके) अहले बैत, ख़ुदा तो बस यह चाहता है कि तुम को हर तरह की बुराई से दूर रखे और जोपाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे। सूरह अहज़ाब आयत 33)
ऐसी ना जाने कितनी हदीस और कुरान की अयातिएँ मौजूद हैं जो सच्चे , इमानदार तक्वा रखने वालों और हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के घर वाले (अहले बैत) से मुहब्बत और उनके पीछे चलने की हिदायत देता है.
हदीस : पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया अहले बैत (अ) कश्ती ए निजात हैं .मेरे अहले बैत की मिसाल कश्ती ए नूह जैसी है कि जो उसमे सवार हो गया वह निजात पा गया और जिसने रू गरदानी की वह ग़र्क़ हो गया.
पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया जिसने मेरी बेटी फातिमा (स.अ) को नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया.
मुस्लिम बिन हुज्जाजअपनी मुसनद के साथ जनाबे आयशा से नक़्ल करते हैं कि रसूले अकरम (स) सुबह के वक़्तअपने हुजरे से इस हाल में निकले कि अपने शानों पर अबा डाले हुए थे, उस मौक़े पर हसनबिन अली (अ) आये, आँ हज़रत (स) ने उनको अबा (केसा) में दाख़िल किया, उसके बाद हुसैनआये और उनको भी चादर में दाख़िल किया, उस मौक़े पर फ़ातेमा दाख़िल हुई तो पैग़म्बर (स) ने उनको भी चादर में दाख़िल कर लिया, उस मौक़े पर अली (अ) आये उनको भी दाख़िलकिया और फिर इस आयते शरीफ़ा की तिलावत की। (आयते ततहीर) (सही मुस्लिमजिल्द 2 पेज 331)
सुयूती इब्ने अब्बास से रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वहरिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है? तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया:अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे। (अहयाउल मय्यत बे फ़ज़ायले अहले बैत (अ) पेज 239, दुर्रे मंसूर जिल्द 6 पेज 7, जामेउल बयान जिल्द 25 पेज 14, मुसतदरके हाकिम जिल्द 2 पेज 444, मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 199)
हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा(स) और आयते मुबाहला ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है: आयत (सूरह आले इमरान आयत 61)
ऐ पैग़म्बर, इल्म के आ जाने के बाद जो लोग तुम से कट हुज्जती करें उनसेकह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ, हम अपने बेटों को बुलायें तुम अपने बेटों को और हमअपनी औरतों को बुलायें और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलायें और तुमअपनी जानों को, उसके बाद हम सब मिलकर ख़ुदा की बारगाह में गिड़गिड़ायें और झूठों परख़ुदा की लानत करें।
मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयतेशरीफ़ा में (अनफ़ुसोना) से मुराद अली बिन अबी तालिब (अ) हैं, पस हज़रत अली (अ)मक़ामात और फ़ज़ायल में पैग़म्बरे अकरम (स) के बराबर हैं, अहमद बिन हंमल अल मुसनदमें नक़्ल करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई तो आँहज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया औरफ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं। नीज़ सही मुस्लिम, सही तिरमिज़ी औरमुसतदरके हाकिम वग़ैरह में इसी मज़मून की रिवायत नक़्ल हुई है।
(मसनदे अहमदजिल्द 1 पेज 185),(सही मुस्लिम जिल्द 7 पेज 120),(सोनने तिरमिज़ीजिल्द 5 पेज 596)
(अल मुसतदरके अलल सहीहैन जिल्द 3 पेज 150)
मैंने कुछ फजायेल हम्ज्रत मुहम्मद (स.अ.व) के घराने के लोगों के कुरान और हदीस से बताये जिनसे किसी भी मुसलमान को एतराज़ नहीं है.
अब देखिये जो मुसलमान सुरमे और इतर की सुन्नत को बड़ी पाबंदगी से अमल मैं लाता है उसने अपने ही नबी हज़रत मुहम्मद सव की वफात के बाद क्या किया या क्या होते बैठा चुप छाप देखता रहा.?
हज़रत मुहम्मद स.अ.व) की वफात के बाद उनकी बेटी हज़रत फातिमा को तोहफे मैं दिया गया बाग़ ए फदक उनसे ले लिया गया यह कह के की रसूल ए खुदा (स.अ.व) अपने पीछे कोई विरासत नहीं छोड़ जाता. जब की कुरान मैं केई नबियों के औलादों को उनकी जायदाद दी गयी. और यह बाग ए फदक हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की मिलकियत भी नहीं थी क्यों की उन्होंने इसी अपने जीवन काल में जनाब ए फातिमा (स.अ) को तोहफे मैं दे दिया था.
वो फातिमा (स.अव) जिसके आने पे इज्ज़त से पैग़म्बर ए इस्लाम भी खड़े हो जाते थे, उसको दरबार मैं बुलाया गया और उसके अपना हक़ मांगने पे उसका मज़ाक उड़ाया गया. क्या ऐसा करने से फातिमा (स.अ) और हज़रत मुहम्मद (स.अव) की नाराजगी नहीं हासिल की उस मुसलमान ने?
हज़रत फातिमा (स.अव) के बार बार उस बाग ए फदक को मांगने पे उसे वापस नहीं किया गया लेकिन बड़ी शान से हज़रत फातिमा को सिद्दीका कहता है यह मुसलमान.
अभी हज़रत मुहम्मद सव की वफात के कुछ ही दिन गए थी की दूसरा ज़ुल्म यह हुआ की जनाब ए फातिमा (स.अव) के घर को घेर लिया गया और दरवाज़े को जला के लात मार के गिराया गया , जिसके गिरने से जनाब ए फातिमा (स.अव) के पेट मैं जो बच्चा था शहीद हो गया और खुद जनाब ए फातिमा (स.अ) की पसली टूट गयी और ऐसे बहुत से ज़ुल्म हुए ,जिस से हज़रत मुहम्मद(स.अ.व) की वफात के ७५ दिन बाद ही वो १८ साल की उम्र मैं दुनिया से चल बसीं.
हज़रत अली (अ.स) जो जनाब ए फातिमा (स.अव) के पति थे उनको रस्सी से बांध के खींचा गया, और दरबार ले जाया गया. वो हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के घराने के लिए बहुत सख्त दिन था इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की जनाब ए फातिमा (स.अ.व) को दफत चुपके से रात के अँधेरे मैं किया गया और आज तक मुसलमानों मैं उनकी कब्र को लेके एक राय नहीं है की सही कब्र कहाँ है?
हज़रत अली (अस) जिसे पहला मुसलमान कहा जाता है, जिसका जन्म खान ए काबा मैं हुआ था , जिसके फजायेल कुरान मैं मौजूद हैं , उसके अपने जीवन के कुछ वर्ष गुमनामी मैं गुज़ारने पड़े और मुसलमानों ने उनको चौथा खलीफा भी बनाया लेकिन उनको भी मस्जिद ए कूफा मैं २१ रमजान को शहीद कर दिया गया.
हज़रत अली (अ.स) के बड़े बेटे इमाम हसन (अ.स) को ज़हर दे के मार दिया गया और जब उनको दफन करने हज़रत मुहम्मद(स.अ.व) की कब्र के पास ले जाने लगे तो उनकी मैय्यत पे तीर बरसे गए.
एक बड़ा सवाल यह उठता है की कहाँ था मुसलमान जो अपने ही पैग़म्बर की बेटी पे, दामाद पे, नवासों पे ज़ुल्म होते देखता रहा? कौन था बादशाह उस इलाके का जो उन जालिमों को सजा भी ना दे सका?
और सबसे बड़ी बात तो यह इन हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की ओलादों, हज़रत फातिमा (स.अव) , इमाम अली (अ.स), इमाम हसन (अ.स), इमाम हुसैन (अ.स) की इज्ज़त का दावा सभी करते हैं क्यों की इनकी शान मैं कुरान भी बोला है, हदीस ए मुहम्मद (स.अ.व) भी बोली है. इनके किरदार के अफ्ज़लियत पे किसी को शक नहीं फिर भी बाद वफात ए रसूल (स.अव) ना इनको कोई ओहदा मिला, ना इनकी हिफाज़त की गयी बल्कि इनपे ज़ुल्म किये गए और इनकी नस्ल मैं एक एक कर के सभी को शहीद कर दिया गया. और उस दौर के बादशाहों की शिरकत इस ज़ुल्म मैं हमेशा ज़ाहिर रही इसी वजह से उनके कातिलों को कभी पकड़ा नहीं गया.और ना ही सजा दी गयी.
क्यों ऐसा हुआ और किसने किया इसको समझने के लिए आप को इस्लाम मैं मुसलमानों की किस्मों को समझना होगा.
इस्लाम को कुबूल करने के बाद मुसलमान जो भी हुआ उनमें से एक तो था सच्चा मुसलमान उसने रसूल ए खुदा (स.अव) की सुन्नत इत्र लगाने को भी माना , हरी पगड़ी को भी माना और इनके घराने के ईमान रखने वालों की इज्ज़त दी, उनके कातिलों से दूरी अख्तियार रखी और आज भी उनके ही नक़्शे क़दम पे चलता है.
उस वक़्त कुछ लोग मुसलमान इसलिए हुई की वो इस्लाम की बढ़ती ताक़त से डर गए थे और बाद वफात ए रसूल ए खुदा (स.अव) बादशाहत की लालच मैं हुक्म ए खुदा और हदीस ए रसूल (स.अव) भी भूल गए और नतीजे मैं अफ्ज़लियत रखने वाले उनके घराने के लोगों पे ज़ुल्म करने लगे.
ऐसे मुसलमानों को कुरान मुनाफ़िक़ कहती है और यह मुनाफ़िक़ उस से भी गिरे हुई माने जाते हैं जिसने इस्लाम कुबूल ही ना किया हो.
आज भी इन मुसलमानों को देखा जा सकता है. ,माहे रमजान मैं जंगे करना मना है लेकिन इसी पकिस्तान मैं बोंम्ब फटने हैं. इस्लाम मैं बेगुनाह की जान लेना हराम है लेकिन बोंम्ब ब्लास्ट करना और आतंकवाद का रास्ता भी इनके उस मुनाफ़िक़ तबक़े ने अख्तियार कर लिया है.
कर्बला मैं हज़रत मुहम्मद( स अव) ने नवासे हुसैन (अ.स) को शहीद करने वाला कोई ग़ैर मुस्लिम नहीं एक ऐसा मुसलिम था जो कलमा पढता था हज़रत मुहम्मद (स.अव) का और हुक्म बजा लता था ज़ालिम यजीद (ल) का.
सऊदी हुकूमत ने सन 1926 में जन्नतुल बकी स्थित मोहम्मद साहब के ख़ानदान वालों शहजादी फातिमा, हजरत इमाम हसन, हजरत इमाम जैनुल आब्दीन, हजरत इमाम मोहम्मद बाकर और हजरत इमाम जाफर सादिक के मजारों को ध्वस्त करा दिया था. आज भे देख लें सऊदी अरब की हुकूमत जिस रसूल का कलमा पढ़ती है उसकी बेटी की कब्र पर आज कोई साया नहीं है.
क्या यह यह ताज्जुब की बात नहीं की जिस रसूल का कलमा मुसलमान पढता था उसको दफन करने की नमाज़ ए जनाज़ा मैं वो शरीक नहीं था और उनको दफन उनके ही घर वालों ने किया और नमाज़ ए जनाज़ा पढी. मुसलमानों ने पहले बादशाह बनाया फिर नमाज़ ए जनाज़ा पढने के लिए आये.
क्या यह ताज्जुब की बात नहीं की जिस रसूल का कलेमा मुसलमान पढता है उसकी बेटी का घर जलाया, उसको ज़ख़्मी किया और उसको दफन छिपा के करना पड़ा इस डर से की कहीं मुसलमान उसकी कब्र पे ज़ुल्म ना करें? तब तो नहीं हो सका यहा काम लेकिन अब सउदी सरकार ने कर दिखाया.
क्या यह ताज्जुब की बात नहीं की जिस रसूल का कलेमा मुसलमान पढता है उनके घराने वालों को कुरान के इज्ज़त देने के बावजूद, हज़रत मुहम्मद(स.अ.व) के खुद इज्ज़त देने के बावजूद सभी को शहीद किया गया?
यह हम मुसलमानों पे फ़र्ज़ है की तहकीक करें और यह यकीन कर लें की वो किसी ज़ालिम बादशाह के पीछे चलने वाले नहीं बल्कि उनके पीछे चलने वाले हैं जिनके पीछे कुरान और हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने हुक्म दिया. और यकीनन वो शख्स ज़ालिम, और ना इन्साफ तो नहीं हो सकता है?
हमारा कुसूर क्या है ? यह आज भी पूछते हैं हज़रत मुहम्मद (स.अव) के घराने वाले?
क्या यही की कुरआन ने उसकी अफ्ज़लियत बयान की और हज़रत मुहम्मद (सा.व) को वो बहुत अज़ीज़ थे?
क्या अब भी आप को ज़ालिम के मुसलमान ना होने पे शक नहीं हुआ?
इस्लाम नाम है अल्लाह के बनाये कानून का और इसका ज़िक्र अल्लाह की किताब कुरान मैं मुकम्मल तौर पे किया गया है. अपनी ज़िंदगी मैं रसूल ए खुदा (स.अ.व) ने जो कुछ हदीसें दी , जो जो अमल किये उसे मुसलमान सुन्नत ए रसूल (स.अ व) के नाम से जानता है. मुसलमान उन सुन्नतों को मानने के मामले मैं सख्त है. हरे रंग की पगड़ी लगाना, इतर लगाना , आँखों मैं सुरमा लगाना भी सवाब का काम समझता है क्यों की यह हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की सुन्नत है , वो अपने जीवन मैं ऐसा ही किया करते थे.
हम मुसलमानों को किसको अपना इमाम या नेता मानना है, अपने जीवन मैं किसकी बात मानना है यह तय करती है कुरान की हिदायतें और इस्लाम के कानून. इस्लाम मैं ज़ालिम के पीछे ना तो चला जाता है, ना उसका साथ दिया जाता है और ना ही उसके लिए अल्लाह से दुआ की जाती है है. इन्साफ कहते हैं किसी भी वस्तु को उसकी सही जगह पे रखने को. टोपी को सर पे ना रखने पैर के नीचे रखने वाला भी ज़ालिम हुआ करता है.
हम मुसलमानों मैं यदि किसी शख्स का नाम कुरान इज्ज़त से ले ले या उसकी इज्ज़त करने को कहे तो उसको मानना आवश्यक हो जाता है. उस हुक्म को ना मानने वाला अल्लाह से बग़ावत करने वाला कहलाता है. यह मेरी बताई बातें एक आम मुसलमान भी जानता है चाहे वो किसी भी फिरके का मुसलमान हो.
अब देखिये कुरान क्या कहती है?
ऐ रसूल, आप कह दीजिये कि मैं तुम से इस तबलीग़े रिसालत का कोई अज्र नही चाहता अलावा इस के कि मेरे अक़रबा से मुहब्बत करो. सूर ए शूरा आयत २३
ऐ ईमानदारों, तक़वा इख़्तियार करो और सच्चों के साथ हो जाओ.....सूर ए तौबा आयत ११९
ऐ (पैग़म्बरके) अहले बैत, ख़ुदा तो बस यह चाहता है कि तुम को हर तरह की बुराई से दूर रखे और जोपाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे। सूरह अहज़ाब आयत 33)
ऐसी ना जाने कितनी हदीस और कुरान की अयातिएँ मौजूद हैं जो सच्चे , इमानदार तक्वा रखने वालों और हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के घर वाले (अहले बैत) से मुहब्बत और उनके पीछे चलने की हिदायत देता है.
हदीस : पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया अहले बैत (अ) कश्ती ए निजात हैं .मेरे अहले बैत की मिसाल कश्ती ए नूह जैसी है कि जो उसमे सवार हो गया वह निजात पा गया और जिसने रू गरदानी की वह ग़र्क़ हो गया.
पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया जिसने मेरी बेटी फातिमा (स.अ) को नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया.
मुस्लिम बिन हुज्जाजअपनी मुसनद के साथ जनाबे आयशा से नक़्ल करते हैं कि रसूले अकरम (स) सुबह के वक़्तअपने हुजरे से इस हाल में निकले कि अपने शानों पर अबा डाले हुए थे, उस मौक़े पर हसनबिन अली (अ) आये, आँ हज़रत (स) ने उनको अबा (केसा) में दाख़िल किया, उसके बाद हुसैनआये और उनको भी चादर में दाख़िल किया, उस मौक़े पर फ़ातेमा दाख़िल हुई तो पैग़म्बर (स) ने उनको भी चादर में दाख़िल कर लिया, उस मौक़े पर अली (अ) आये उनको भी दाख़िलकिया और फिर इस आयते शरीफ़ा की तिलावत की। (आयते ततहीर) (सही मुस्लिमजिल्द 2 पेज 331)
सुयूती इब्ने अब्बास से रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वहरिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है? तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया:अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे। (अहयाउल मय्यत बे फ़ज़ायले अहले बैत (अ) पेज 239, दुर्रे मंसूर जिल्द 6 पेज 7, जामेउल बयान जिल्द 25 पेज 14, मुसतदरके हाकिम जिल्द 2 पेज 444, मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 199)
हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा(स) और आयते मुबाहला ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है: आयत (सूरह आले इमरान आयत 61)
ऐ पैग़म्बर, इल्म के आ जाने के बाद जो लोग तुम से कट हुज्जती करें उनसेकह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ, हम अपने बेटों को बुलायें तुम अपने बेटों को और हमअपनी औरतों को बुलायें और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलायें और तुमअपनी जानों को, उसके बाद हम सब मिलकर ख़ुदा की बारगाह में गिड़गिड़ायें और झूठों परख़ुदा की लानत करें।
मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयतेशरीफ़ा में (अनफ़ुसोना) से मुराद अली बिन अबी तालिब (अ) हैं, पस हज़रत अली (अ)मक़ामात और फ़ज़ायल में पैग़म्बरे अकरम (स) के बराबर हैं, अहमद बिन हंमल अल मुसनदमें नक़्ल करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई तो आँहज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया औरफ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं। नीज़ सही मुस्लिम, सही तिरमिज़ी औरमुसतदरके हाकिम वग़ैरह में इसी मज़मून की रिवायत नक़्ल हुई है।
(मसनदे अहमदजिल्द 1 पेज 185),(सही मुस्लिम जिल्द 7 पेज 120),(सोनने तिरमिज़ीजिल्द 5 पेज 596)
(अल मुसतदरके अलल सहीहैन जिल्द 3 पेज 150)
मैंने कुछ फजायेल हम्ज्रत मुहम्मद (स.अ.व) के घराने के लोगों के कुरान और हदीस से बताये जिनसे किसी भी मुसलमान को एतराज़ नहीं है.
अब देखिये जो मुसलमान सुरमे और इतर की सुन्नत को बड़ी पाबंदगी से अमल मैं लाता है उसने अपने ही नबी हज़रत मुहम्मद सव की वफात के बाद क्या किया या क्या होते बैठा चुप छाप देखता रहा.?
हज़रत मुहम्मद स.अ.व) की वफात के बाद उनकी बेटी हज़रत फातिमा को तोहफे मैं दिया गया बाग़ ए फदक उनसे ले लिया गया यह कह के की रसूल ए खुदा (स.अ.व) अपने पीछे कोई विरासत नहीं छोड़ जाता. जब की कुरान मैं केई नबियों के औलादों को उनकी जायदाद दी गयी. और यह बाग ए फदक हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की मिलकियत भी नहीं थी क्यों की उन्होंने इसी अपने जीवन काल में जनाब ए फातिमा (स.अ) को तोहफे मैं दे दिया था.
वो फातिमा (स.अव) जिसके आने पे इज्ज़त से पैग़म्बर ए इस्लाम भी खड़े हो जाते थे, उसको दरबार मैं बुलाया गया और उसके अपना हक़ मांगने पे उसका मज़ाक उड़ाया गया. क्या ऐसा करने से फातिमा (स.अ) और हज़रत मुहम्मद (स.अव) की नाराजगी नहीं हासिल की उस मुसलमान ने?
हज़रत फातिमा (स.अव) के बार बार उस बाग ए फदक को मांगने पे उसे वापस नहीं किया गया लेकिन बड़ी शान से हज़रत फातिमा को सिद्दीका कहता है यह मुसलमान.
अभी हज़रत मुहम्मद सव की वफात के कुछ ही दिन गए थी की दूसरा ज़ुल्म यह हुआ की जनाब ए फातिमा (स.अव) के घर को घेर लिया गया और दरवाज़े को जला के लात मार के गिराया गया , जिसके गिरने से जनाब ए फातिमा (स.अव) के पेट मैं जो बच्चा था शहीद हो गया और खुद जनाब ए फातिमा (स.अ) की पसली टूट गयी और ऐसे बहुत से ज़ुल्म हुए ,जिस से हज़रत मुहम्मद(स.अ.व) की वफात के ७५ दिन बाद ही वो १८ साल की उम्र मैं दुनिया से चल बसीं.
हज़रत अली (अ.स) जो जनाब ए फातिमा (स.अव) के पति थे उनको रस्सी से बांध के खींचा गया, और दरबार ले जाया गया. वो हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के घराने के लिए बहुत सख्त दिन था इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की जनाब ए फातिमा (स.अ.व) को दफत चुपके से रात के अँधेरे मैं किया गया और आज तक मुसलमानों मैं उनकी कब्र को लेके एक राय नहीं है की सही कब्र कहाँ है?
हज़रत अली (अस) जिसे पहला मुसलमान कहा जाता है, जिसका जन्म खान ए काबा मैं हुआ था , जिसके फजायेल कुरान मैं मौजूद हैं , उसके अपने जीवन के कुछ वर्ष गुमनामी मैं गुज़ारने पड़े और मुसलमानों ने उनको चौथा खलीफा भी बनाया लेकिन उनको भी मस्जिद ए कूफा मैं २१ रमजान को शहीद कर दिया गया.
हज़रत अली (अ.स) के बड़े बेटे इमाम हसन (अ.स) को ज़हर दे के मार दिया गया और जब उनको दफन करने हज़रत मुहम्मद(स.अ.व) की कब्र के पास ले जाने लगे तो उनकी मैय्यत पे तीर बरसे गए.
एक बड़ा सवाल यह उठता है की कहाँ था मुसलमान जो अपने ही पैग़म्बर की बेटी पे, दामाद पे, नवासों पे ज़ुल्म होते देखता रहा? कौन था बादशाह उस इलाके का जो उन जालिमों को सजा भी ना दे सका?
और सबसे बड़ी बात तो यह इन हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) की ओलादों, हज़रत फातिमा (स.अव) , इमाम अली (अ.स), इमाम हसन (अ.स), इमाम हुसैन (अ.स) की इज्ज़त का दावा सभी करते हैं क्यों की इनकी शान मैं कुरान भी बोला है, हदीस ए मुहम्मद (स.अ.व) भी बोली है. इनके किरदार के अफ्ज़लियत पे किसी को शक नहीं फिर भी बाद वफात ए रसूल (स.अव) ना इनको कोई ओहदा मिला, ना इनकी हिफाज़त की गयी बल्कि इनपे ज़ुल्म किये गए और इनकी नस्ल मैं एक एक कर के सभी को शहीद कर दिया गया. और उस दौर के बादशाहों की शिरकत इस ज़ुल्म मैं हमेशा ज़ाहिर रही इसी वजह से उनके कातिलों को कभी पकड़ा नहीं गया.और ना ही सजा दी गयी.
क्यों ऐसा हुआ और किसने किया इसको समझने के लिए आप को इस्लाम मैं मुसलमानों की किस्मों को समझना होगा.
इस्लाम को कुबूल करने के बाद मुसलमान जो भी हुआ उनमें से एक तो था सच्चा मुसलमान उसने रसूल ए खुदा (स.अव) की सुन्नत इत्र लगाने को भी माना , हरी पगड़ी को भी माना और इनके घराने के ईमान रखने वालों की इज्ज़त दी, उनके कातिलों से दूरी अख्तियार रखी और आज भी उनके ही नक़्शे क़दम पे चलता है.
उस वक़्त कुछ लोग मुसलमान इसलिए हुई की वो इस्लाम की बढ़ती ताक़त से डर गए थे और बाद वफात ए रसूल ए खुदा (स.अव) बादशाहत की लालच मैं हुक्म ए खुदा और हदीस ए रसूल (स.अव) भी भूल गए और नतीजे मैं अफ्ज़लियत रखने वाले उनके घराने के लोगों पे ज़ुल्म करने लगे.
ऐसे मुसलमानों को कुरान मुनाफ़िक़ कहती है और यह मुनाफ़िक़ उस से भी गिरे हुई माने जाते हैं जिसने इस्लाम कुबूल ही ना किया हो.
आज भी इन मुसलमानों को देखा जा सकता है. ,माहे रमजान मैं जंगे करना मना है लेकिन इसी पकिस्तान मैं बोंम्ब फटने हैं. इस्लाम मैं बेगुनाह की जान लेना हराम है लेकिन बोंम्ब ब्लास्ट करना और आतंकवाद का रास्ता भी इनके उस मुनाफ़िक़ तबक़े ने अख्तियार कर लिया है.
कर्बला मैं हज़रत मुहम्मद( स अव) ने नवासे हुसैन (अ.स) को शहीद करने वाला कोई ग़ैर मुस्लिम नहीं एक ऐसा मुसलिम था जो कलमा पढता था हज़रत मुहम्मद (स.अव) का और हुक्म बजा लता था ज़ालिम यजीद (ल) का.
सऊदी हुकूमत ने सन 1926 में जन्नतुल बकी स्थित मोहम्मद साहब के ख़ानदान वालों शहजादी फातिमा, हजरत इमाम हसन, हजरत इमाम जैनुल आब्दीन, हजरत इमाम मोहम्मद बाकर और हजरत इमाम जाफर सादिक के मजारों को ध्वस्त करा दिया था. आज भे देख लें सऊदी अरब की हुकूमत जिस रसूल का कलमा पढ़ती है उसकी बेटी की कब्र पर आज कोई साया नहीं है.
क्या यह यह ताज्जुब की बात नहीं की जिस रसूल का कलमा मुसलमान पढता था उसको दफन करने की नमाज़ ए जनाज़ा मैं वो शरीक नहीं था और उनको दफन उनके ही घर वालों ने किया और नमाज़ ए जनाज़ा पढी. मुसलमानों ने पहले बादशाह बनाया फिर नमाज़ ए जनाज़ा पढने के लिए आये.
क्या यह ताज्जुब की बात नहीं की जिस रसूल का कलेमा मुसलमान पढता है उसकी बेटी का घर जलाया, उसको ज़ख़्मी किया और उसको दफन छिपा के करना पड़ा इस डर से की कहीं मुसलमान उसकी कब्र पे ज़ुल्म ना करें? तब तो नहीं हो सका यहा काम लेकिन अब सउदी सरकार ने कर दिखाया.
क्या यह ताज्जुब की बात नहीं की जिस रसूल का कलेमा मुसलमान पढता है उनके घराने वालों को कुरान के इज्ज़त देने के बावजूद, हज़रत मुहम्मद(स.अ.व) के खुद इज्ज़त देने के बावजूद सभी को शहीद किया गया?
यह हम मुसलमानों पे फ़र्ज़ है की तहकीक करें और यह यकीन कर लें की वो किसी ज़ालिम बादशाह के पीछे चलने वाले नहीं बल्कि उनके पीछे चलने वाले हैं जिनके पीछे कुरान और हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) ने हुक्म दिया. और यकीनन वो शख्स ज़ालिम, और ना इन्साफ तो नहीं हो सकता है?
हमारा कुसूर क्या है ? यह आज भी पूछते हैं हज़रत मुहम्मद (स.अव) के घराने वाले?
क्या यही की कुरआन ने उसकी अफ्ज़लियत बयान की और हज़रत मुहम्मद (सा.व) को वो बहुत अज़ीज़ थे?
क्या अब भी आप को ज़ालिम के मुसलमान ना होने पे शक नहीं हुआ?
इस्लाम में सुन्नत के खिलाफ काम करनेवाले लोग
ReplyDeleteमुहम्मद आम का फल नहीं खाता था (सर सैयद अहमद का पहला पेपर), इसलिए आम खाना सुन्नत के खिलाफ है. मुहम्मद नें कभी मर्सिडिज, बी.एम.डब्ल्यु. में सफर नहीं किया, इसलिए मर्सिडिज, बी.एम.डब्ल्यु. और अन्य गाड़ीयों में सफर करनेवाले सौदी राजपरिवार तथा अन्य मुस्लिम सुन्नत के खिलाफ काम कर रहे हैं, उन्हें इन गाड़ीयों के बजाय घोड़ों, ऊंटों, खच्चरों पर सवारी करनी चाहिए, यही सुन्नत है. मुहम्मद नें कत्ल करने के लिए तलवारें और कुल्हाडीयाँ, खंजर, चक्कू तथा भालों का प्रयोग किया, इसलिए तालिबानी, जिहादी, इस्लामी कट्टरवादी जो ए.के.47 का प्रयोग करके गैरमुस्लिमों को मार रहे हैं, वह सुन्नत के खिलाफ है, उन्हे गैरमुस्लिमों को मारने के लिए हमेशा तलवारें, कुल्हाडीयाँ, खंजर, चक्कू और भालों का प्रयोग करना चाहिेए, ना कि ए.के.47 का. भले ही गैरमुस्लिमों के पास अाधुनिक अग्नीशस्त्र क्यों ना हों. और मुहम्मद के जमाने में मानवीय बम का कोई वजुद ही नहीं था, इसलिए जिहादी मानवीय बम का सहारा लेकर जिहाद को अंजाम देते हैं, वह सुन्नत के खिलाफ है. मुहम्मद के जमानें में आलू, टमाटर, पपिता की पैदाईश सौदी अरेबिया में नहीं होती थी, इसलिए वह मुहम्मद नें इन फलों को कभी नहीं खाया, इसलिए आलू, टमाटर, पपिता वगैराह फल खाना सुन्नत के खिलाफ है. मुहम्मद के जमानें में एअर कंडीशन नहीं हुआ करता था, इसलिए मस्जिद में एअर कंडीशन लगाना सुन्नत के खिलाफ है. मुहम्मद के जमानें में मुंह पर पावडर मलना, नेल पॉलिश लगाना, हाथों पर मेहंदी लगाना जैसे काम नहीं होते थें, इसलिए आज ऐसे काम करना सुन्नत के खिलाफ है.
सुन्नत के हक में और खिलाफ में बातेंः
गधा, लकडबघ्घा आदी का गोश्त खाना सुन्नत है, क्योंकि मुहम्मद नें इन दोनों जानवरों का गोश्त खाया था. टट्टी करने के बाद पानी से गुदा को धोना सुन्नत के खिलाफ है, क्योंकि मुहम्मद पानी का प्रयोग करने के बजाय विषम संख्या के पत्थरों का प्रयोग करता था. इसलिए मुसलमानों को आधुनिक अपार्टमेंटों में भी पत्थर का प्रयोग गुदा स्वच्छ करने के लिए करना चाहिए. टेलिफोन, मोबाईल और कम्प्युटर का प्रयोग सुन्नत के खिलाफ है, क्योंकि मुहम्मद के जमाने में टेलिफोन, मोबाईल और कम्प्युटर नहीं हुआ करता था, उसे हवा से ही जिब्रील अल्लाह का संदेसा भेजता था. इसलिए मुसलमानों को टेलिफोन, मोबाईल और कम्प्युटर का प्रयोग नहीं करना चाहिए, और हवा से संदेसा पाने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि यह काम सिर्फ उनके आखरी नबी के लिए मुमकिन था. मुसलमानों को आधुनिक काम जैसे बँक में क्लर्क, कैशियर, मैनेजर बनना, कम्प्युटर ऑपरेटर, प्रोग्रामर बनना इत्यादी काम नहीं करने चाहिए, क्योंकि मुहम्मद के जमानें में इस तरह का काम खुद मुहम्मद और कोई मुसलमान नहीं करता था, वे केवल हाईवे पर जाते हुए कारवाँ की लुटमार, दुसरें काबीलों पर हमला करके उनके जान-माल को लुटना, उनकी औरतों के साथ बलात्कार करना इ. कामों में लिप्त रहते थे. इसलिए आधुनिक मुसलमानों को (आधुनिक शब्द का प्रयोग करनें में संदिग्धता है) बँक में क्लर्क, कैशियर, मैनेजर बनना, कम्प्युटर ऑपरेटर, प्रोग्रामर बनना इत्यादी काम नहीं करने चाहिए, उन्हें केवल हाईवे पर जाते हुए कारवाँ की लुटमार, दुसरें काबीलों पर हमला करके उनके जान-माल को लुटना, उनकी औरतों के साथ बलात्कार करना इ. कामों में लिप्त रहकर अपनी रोजीरोटी कमानी चाहिए, यही असली सुन्नत है.
जय हिंद!