इस्लाम का सफ़र मक्के से कर्बला तक यजीद लइन की सत्ता |

अमीर मुआविया ने अपने क़बीले बनी उमय्या का शासन स्थापित करने के साथ साथ उस इस्लामी शासन प्रणाली को भी समाप्त कर दिया जिसमें ख़लीफ़...





अमीर मुआविया ने अपने क़बीले बनी उमय्या का शासन स्थापित करने के साथ साथ उस इस्लामी शासन प्रणाली को भी समाप्त कर दिया जिसमें ख़लीफ़ा एक आम आदमी के जैसी ज़िन्दगी बिताता था। मुआविया ने ख़िलाफ़त को राज शाही में तब्दील कर दिया और अपने कुकर्मी और दुराचारी बेटे यज़ीद को अपना उत्तराधिकारी घोषित करके उमय्या क़बीले के अरबों और दूसरे मुसलामानों पर राज्य करने के पुराने ख्वाब को पूरा करने की ठान ली।

मुआविया को जब लगा कि मौत क़रीब है तो यज़ीद को सत्ता पर बैठाने के लिए अहम् मुस्लिम नेताओं से यज़ीद कि बैयत(मान्यता देने) को कहा।

यज़ीद को एक इस्लामी शासक के रूप में मान्यता देने का मतलब था इस्लामी आदर्शों की तबाही और बर्बादी. यज़ीद जैसे कुकर्मी, बलात्कारी, शराबी और बदमाश को मान्यता देने का सवाल आया तो सब से पहले इस पर लात मारी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यारे नवासे और हज़रत अली (अ) के शेर दिल बेटे इमाम हुसैन (अ) ने कहा कि वह अपनी जान क़ुर्बान कर सकते हैं लेकिन यज़ीद जैसे इंसान को इस्लामिक शासक के रूप में क़ुबूल नहीं कर सकते।
इमाम हुसैन के अतिरिक्त पैगम्बर साहब की पत्नी हज़रात आयशा ने भी यज़ीद को मान्यता देने से इनकार कर दिया। कुछ और लोग जिन्होंने यज़ीद को मान्यता देने से इनकार किया वो हैं: अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर, 2. अब्दुल्लाह बिन उमर, 3 उब्दुल रहमान बिन अबू बकर, 4, अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास. इनके आलावा अब्दुल रहमान बिन खालिद इब्ने वलीद और सईद बिन उस्मान ने भी यज़ीद की बैअत से इनकार किया लेकिन इनमें से अब्दुल रहमान को ज़हर देकर मार डाला गया और सईद बिन उस्मान को खुरासान(ईरान के एक प्रान्त) का गवर्नर बना कर शांत कर लिया गया।

मुआविया की नज़र में इन सारे विरोधियों का कोई महत्व नहीं था उसे केवल इमाम हुसैन (अ) की फ़िक्र थी कि अगर वे राज़ी हो जाएँ तो यज़ीद की ख़िलाफ़त के लिए रास्ता साफ़ हो जाएगा। मुआविया ने अपने जीवन में इमाम हुसैन (अ) पर बहुत दबाव डाला कि वो यज़ीद को शासक मान लें मगर उसे सफ़लता नहीं मिली।

यज़ीद का परिचय

यज़ीद बनी उमय्या के उस कबीले का कपूत था, जिस ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को जीवन भर सताया. इसी क़बीले के सरदार और यज़ीद के दादा अबू सूफ़ियान ने कई बार हज़रत मोहम्मद (स) की जान लेने की कौशिश की थी और मदीने में रह रहे पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर कई हमले किये थे. यज़ीद के बारे में कुछ इतिहासकारों की राय इस प्रकार है:

तारीख-उल-खुलफ़ा में जलाल-उद-दीन सियोती ने लिखा है की “यज़ीद अपने पिता के हरम में रह चुकी दासियों के साथ दुष्कर्म करता था। जबकि इस्लामी कानून के तहत रिश्ते में वे दासियाँ उसकी माँ के समान थीं।

सवाअक-ए-महरका में अब्दुल्लाह बिन हन्ज़ला ने लिखा है की “यज़ीद के दौर में हम को यह यकीन हो चला था की अब आसमान से तीर बरसेंगे क्योंकि यज़ीद ऐसा व्यक्ति था जो अपनी सौतेली माताओं, बहनों और बेटियों तक को नहीं छोड़ता था. शराब खुले आम पीता था और नमाज़ नहीं पढता था.”

जस्टिस अमीर अली लिखते हैं कि “यज़ीद ज़ालिम और ग़द्दार दोनों था उसके चरित्र में रहम और इंसाफ़ नाम की कोई चीज़ नहीं थी”.

एडवर्ड ब्रा ने हिस्ट्री और पर्शिया में लिखा है कि “यज़ीद ने एक बददु(अरब आदिवासी) माँ की कोख से जन्म लिया था। रेगिस्तान के खुले वातावरण में उस की परवरिश हुई थी, वह बड़ा शिकारी, आशिक़, शराब का रसिया, नाच गाने का शौकीन और मज़हब से कोसो दूर था.”

अल्लामा राशिद-उल-खैरी ने लिखा है कि “यज़ीद गद्दी पर बेठने के बाद शराब बड़ी मात्रा में पीने लगा और कोई पल ऐसा नहीं जाता था कि जब वह नशे में धुत न रहता हो और जिन औरतों से पवित्र कुरान ने निकाह करने को मना किया था, उनसे निकाह को जायज़ समझता था.”


ज़ाहिर है इमाम हुसैन (अ) यज़ीद जैसे अत्याचारी, कुकर्मी, बलात्कारी, शराबी और अधर्मी को मान्यता कैसे दे सकते थे। यजीद ने अपने चचाज़ाद भाई वलीद बिन अत्बा को जो मदीने का गवर्नर था यह सन्देश भेजा कि वह मदीने में रह रहे इमाम हुसैन, इब्ने उमर और इब्ने ज़ुबैर से उसके लिए बैयत(मान्यता) की मांग करे और अगर तीनों इनकार करें तो उनके सर काट कर यज़ीद के दरबार में भेजें।


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