क्यों और कबसे मुसलमान बैतुल मुक़द्दस के स्थान पर काबे की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ने लगे।

क्यों और कबसे मुसलमान बैतुल मुक़द्दस के स्थान पर काबे की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ने लगे। 



मुसलमान प्रतिदिन पांच बार नमाज़ पढ़ते हैं।  दुनिया भर के मुसलमान काबे की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ते हैं जो पवित्र नगर मक्के में है।  संसार में जितनी भी मस्जिदें पाई जाती हैं उन सबका रुख़ काबे की ओर होता है। लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था बल्कि पहले  मुसलमानों ने बैतुल मुक़द्दस की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ी।  बाद में ईश्वर का आदेश आया और मुसलमान बैतुल मुक़द्दस के स्थान पर काबे की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ने लगे।

जब आखिरी पैगम्बर हज़रात मुहम्मद पे लोग ईमान लाय और नमाज़ का हुक्म हुआ तो इस्लाम के अनुयायियों ने बैतूल मुकद्दस की तरफ रुख करके नमाज़ पढ़ी क्यों की इससे पहले ईसाई , यहूदी जो नबी हज़रत ईसा और मूसा अलैहिसलाम के मानने वाले थे बैतूल मुकद्दस की तरफ रुख करके ही प्रार्थना किया करते थे | 

पैग़म्बरे इस्लाम मक्के में इस प्रकार से नमाज़ पढ़ते थे कि काबा, बैतुल मुक़द्दस की दिशा में होता था हालांकि मदीना पलायन करने के बाद एसी स्थिति संभव नहीं थी और केवल बैतुल मुक़द्दस की ओर रुख़ करके नमाज़ पढ़ी जा सकती थी।  मुसलमानों द्वारा बैतुल मुक़द्दस की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ने से संसार के तीन बड़े धर्मों के अनुयाई मुसलमान, यहूदी और ईसाई सारे ही बैतुल मुक़द्दस की ओर रुख़ करके उपासना करते थे जो एक सकारात्मक बात थी।  जैसे-जैसे इस्लाम फैलने लगा यहूदी धर्मगुरूओं ने मुसलमानों को कमज़ोर करने के उद्देश्य से तरह-तरह से षडयंत्र करने आरंभ कर दिये।  उन्होंने मुसलमानों से यह कहना शुरू कर दिया कि बैतुल मुक़द्दस की ओर मुंह करने नमाज़ पढ़ने का अर्थ यह है कि यहूदी धर्म सही है।  यहूदी धर्मगुरू पैग़म्बरे इस्लाम का अपमान करने के लिए कहने लगे कि मुहम्मद यह दावा करते हैं कि वे एक धर्म लेकर आए हैं जो सच्चा है और पुराने धर्मों के स्थान पर उसे माना जाना चाहिए।  हालांकि वे स्वयं ही अभी तक यहूदियों के उपासना स्थल की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ रहे हैं।  उनकी इन बातों से पैग़म्बरे इस्लाम को तकलीफ तो होती थी किंतु वे ईश्वर के आदेश के अनुसार ही हर काम किया करते थे। 

पैग़म्बरे इस्लाम मदीने के सलेमा मुहल्ले की मस्जिद में ज़ोहर की नमाज़ पढ़ रहे थे।  वे दो रकअत नमाज़ पूरी कर चुके थे।  इसी बीच ईश्वरीय दूत जिब्रईल ने सूरे बक़रा की आयत संख्या 144 पढ़कर उन्हें सुनाई जिसके एक भाग का अनुवाद हैः (हे पैग़म्बर) हमने तुम्हें देखा कि तुम वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश की प्रतीक्षा में किस प्रकार आकाश की ओर अपना मुंह घुमा रहे थे, तो अब हम तुम्हें ऐसे क़िबले की ओर मोड़ देंगे जिससे तुम राज़ी रहो, तो तुम अपना मुख मस्जिदुल हराम की ओर करो और, हे मुसलमानो! तुम जहां भी रहो अपना मुख उसकी ओर मोड़ दो।  इस आयत के पढ़ने के साथ ही जिब्रईल ने पैग़म्बरे इस्लाम के हाथ को पकड़कर उनका रुख़ काबे की ओर कर दिया।  जो लोग पैग़म्बरे इस्लाम के पीछे नमाज़ पढ रहे थे उन्होंने भी अपना रुख़ बैतुल मुक़द्दस से काबे की ओर कर लिया।  पैग़म्बरे इस्लाम की इस नमाज़ की आंरम्भिक 2 रकअतें बैतुल मुक़द्दस की ओर थीं जबकि दूसरी दो रकअतें काबे की ओर पढ़ी गईं।  इस दिन से मुसलमान, काबे की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ने लगे।  मदीने की जिस मस्जिद में पैग़म्बर उस समय नमाज़ अदा कर रहे थे वह आज भी मौजूद है और उसका नाम मस्जिदे "ज़ूक़िब्लतैन" अर्थात दो क़िबलों  वाली मस्जिद है।

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