इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम आंदोलन के शुरू में मदीने से मक्के क्यों गए?

इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम आंदोलन के शुरू में मदीने से मक्के क्यों गए?

मदीने से इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम के निकलने का कारण यह था कि यज़ीद ने मदीने के शासक वलीद इब्ने अतबा के नाम ख़त में हुक्म दिया था कि मेरे कुछ विरोधियों से (जिनमें से एक इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम भी थे) ज़रूर बैयत ली जाए और बिना बैयत लिए उनको छोड़ा न जाए। (वक़अतुत तफ़, पेज 57) 

वलीद अगरचे अपनी शांतिपूर्ण कार्यपद्धति के कारण अपने हाथों को इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ून में रंगने को तय्यार नहीं था। (इब्ने आतम, अलफ़ुतूह, जिल्द 5, पेज 12, वक़अतुत तफ़, पेज 81) 

लेकिन मदीने में अमवी ग्रुप के कुछ लोगों ने (ख़ास कर मरवान इब्ने हकम जिससे वलीद सख़्त अवसरों पर तथा इस मामले में सलाह, मशवरा करता था।) उस पर सख़्त दबाओ डाला कि वह इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम को क़त्ल कर दे, इसी लिए जैसे ही यज़ीद का ख़त पहुँचा और वलीद ने मरवान से मशवरा किया तो मरवान बोला कि मेरी राय यह है कि अभी इसी समय उन लोगों को बुला भेजो और उनको यज़ीद की बैयत व अनुसरण पर मजबूर करो और अगर विरोध करें तो इसके पहले कि उन्हें मुआविया के मरने की ख़बर मिले, उनके सर व तन में जुदाई कर दो इसलिए कि अगर उन्हें मुआविया के मरने की सूचना हो गई तो उनमें हर कोई एक तरफ़ जा कर विरोध करेगा और लोगों को अपनी तरफ़ बुलाना शुरू कर देगा। (वक़अतुत तफ़, पेज 77)


इस आधार पर इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस बात को देखते हुए की मदीने के हालात, ख़ुल्लम ख़ुल्ला विरोध प्रकट करने और उठ खड़े होने के लिए उचित नहीं है, तथा किसी प्रभावी आंदोलन की सम्भावना के बिना इस शहर में अपनी जान को ख़तरा भी है, मदीने को छोड़ने का फ़ैसला किया और मदीने से निकलते समय जिस आयत की आपने तिलावत की उससे यह बात (कि मदीना शहर छोड़ने का कारण सुरक्षा के न होने का एहसास है।) साफ़ पता चलती है, अबू मख़नफ़ के लिखने के अनुसार इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम ने 27 रजब की रात या 28 रजब को अपने अहलेबैत के साथ इस आयत की तिलावत फ़रमाई (वक़अतुत तफ़, पे 85, 186) 

जो मिस्र से निकलते समय असुरक्षा के एहसास के कारण क़ुर्आन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ज़बानी बयान कर रहा हैः
मूसा शहर से भयभीत निकले और उन्हें हर क्षण किसी घटना की आशंका थी, उन्होंने कहा कि ऐ परवरदिगार मुझे ज़ालिम व अत्याचारी क़ौम से नेजात दे। (सूरए क़ेसस, 21)

आपने मक्के का चयन ऐसे समय में किया कि अभी मुख़्तलिफ़ शहरों के लोगों को मुआविया के मरने की ख़बर नहीं थी और यज़ीद के विरोध में वास्तविक संघर्ष का आरम्भ नहीं हुआ था और अभी इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम को कूफ़ा और दूसरे शहरों से बुलाने का सिलसिला शुरू नहीं हुआ था इसलिए इमाम को हिजरत (प्रस्थान) के लिए एक जगह का चयन करना ही था ताकि एक तो आज़ादी के साथ सिक्योरिटी के माहौल में वहाँ अपने नज़रिये को बयान कर सकें और दूसरे अपने नज़रिये को वहाँ से पूरी इस्लामी दुनिया तक पहुंचा सकें, मक्का शहेर में दोनो बातें मौजूद थीं, क्योंकि क़ुर्आन के साफ व स्पष्ट शब्दों के अनुसार कि (व मन दख़ला काना आमेना)(सूरए आले इमरान, 97) 

मक्का इलाही हरम था, तथा इस बात के दृष्टिगत कि काबा इसी शहर में है और पूरी इस्लामी दुनिया से मुस्लमान हज व उमरा के आमाल बजा लाने के लिए यहाँ वारिद होंगे इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम मुख़तलिफ़ गिरोहों से बाक़ाएदा मुलाक़ात कर सकते थे और यज़ीदो बनी उमय्या के शासन के विरोध की वजह उन से बयान कर सकते थे तथा इस्लामी अहकाम और मुआविया के कुछ पहलुओं को उजागर कर सकते थे और कूफ़ा और बसरा और दूसरे इस्लामी शहरों के विभिन्न गिरोहों से सम्बंध भी रख सकते थे। इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम जुमे की रात 2 शाबान स0 60 हीजरी को वारिदे मक्का हुए और उसी साल की 8 ज़िलहिज्जा तक उस शहर में अपनी सरगर्मियों में मसरूफ़ रहे।

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