अमन का पैगाम देते यह लेखक,पत्रकार और ब्लॉगर |
हिन्दुस्तान साप्रदायिक सौहाद्र और भाईचारे की हमेशा से एक मिसाल रहा है जिसे सत्ता की लालच में बिगाड़ने की कोशिशें भी होती रही हैं |कभी पकिस...

वरिष्ट ब्लॉगर और शायर इस्मत जैदी ने क्या खूब कहा है कि -
जब बात आश्ती की, अम्नो अमां की आये ,
बस मुस्कुराहटें ही इक दूसरे को दे दो .
अब बुग्ज़ और कीना, दिल से निकाल फेंको,
ये चाल है सियासी, तुम इनको मात दे दो
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कुछ ऐसे लोग भी इस समाज में होते हैं जो कभे उनका मज़ाक नहीं उड़ाते जो समाज में भड़काऊ भाषण देते हैं या समाज में नफरत अपने लेखों आज भी इस हिन्दुस्तान में वैसे ही लोग रहा करते हैं और अमन शांति से साथ साथ रहना भी चाहते हैं वर फैलाते हैं लेकिन अमन और शांति का पैगाम इन्हें रास नहीं आता |सामने से तो यह कुछ कह नहीं पाते लेकिन पीछे मजाक अवश्य उड़ाते हैं की फलां साहब हैं जो अमन और शांति का पैगाम देते हैं शायद इन्होने अपने बच्चों का नाम अमन और शांति रख दिया है और खुश हैं की समाज में अमन और शांति बनी हुयी है | यह सत्य है की बच्चों का नाम रखने का नाम अमन और शांति के लिए काम करना नहीं हुआ करता और इसी लिए मैंने सन २०१० में हिंदी ब्लॉगजगत से अपने अमन के पैगाम की शुरुआत की और यह अधिकतर हिन्दू-मुस्लिम ब्लॉगर भाई बहनों के सहयोग से कामयाब रहा | लोगों ने आगे बढ़ बढ़ के मुझे अपने पैगाम भेजे और उन्हें सराहा | सभी ब्लॉगर ने मिल के अमन का पैगाम पहुंचाया आज उसे को मैं आप सभी तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूँ |बहुत जल्द इस अमन के पैगाम को किताबी शक्ल दे के लोगों तक पहुँचाया जायेगा |
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उडते पँछी से जो मैने पूछ लिया जो एक सवाल।
कौन देश क्या धर्म तुम्हारा, हँस के वो ऐसे गया टाल!
पँछी बोला सारी धरती, हमको तो लगती है अच्छी।
ना कोइ मज़हब टोके मुज़को, ना कोइ सीमा रोके मुज़को।
आसमाँन को बाँट के देख़ो, उँचनीच को बाँटनेवालो। ओ इन्सान को....
……………….रज़िया मिर्ज़ा का आदाब ......आगे पढ़ें
समीर जी अपने शांति सन्देश मैं कहते हैं :
हर दिल की यह चाहत है कि चहु ओर अमन कायम हो-फिर आखिर वो कौन हैं जो अमन कायम नहीं होने देते, चैन से रहने नहीं देते. चंद सिरफिरे सियासी लोगों के स्वार्थ भरे मंसूबे ठीक वैसे ही कामयाब हो जाते हैं जैसे एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है या खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन के बाहर कर देती है. …समीर लाल
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श्री राजेन्द्र स्वर्णकार भी एक वरिष्ट ब्लॉगर हैं उनका यह अमन का अंदाज़ देखिये
सच में आज इंसान इंसानियत खो'कर कुछ और ही बनता जा रहा है ।
मेरे एक गीत की कुछ पंक्तियां आपको सादर समर्पित हैं
ये हिंदू है ! ये है मुस्लिम !
हिंदू कहां जाएगा प्यारे ! कहां मुसलमां जाएगा ?
इस मिट्टी में जनमा जो , आख़िर वो यहीं समाएगा !
ये हिंदू है ! ये है मुस्लिम ! आगे पढ़ें

तड़पता है मेरे भीतर
कोई
मुझसा
मचलता है बार-बार
बच्चों की तरह
जिद करता है
हर उस बात के लिए
जो मुझे अच्छी नहीं लगती।
यह करांची में
आतंकवादियों के धमाके से मारे गए निर्दोष लोगों के लिए भी
उतना ही रोता है
जितना
कश्मीर के अपने लोगों के लिए !
मैं उसे समझाता हूँ
वह शत्रु देश है
वहाँ के लोगों को तो मरना ही चाहिए।
मेरा समझाना बेकार
मेरा डांटना बेअसर
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इन्हें समझाना थोड़ी-सी टेड़ी खीर है
शायद उसकी वजह, इनका सोया हुआ ज़मीर है.
पर ये तो अमन, चैन, मोहब्बत, शांति, भाईचारा...
सबकुछ जानतें हैं...
ज़रा कभी पूछना इनसे... बतायेंगें...
अमन... किसी लड़के का नाम है
शायद इसी शहर के दूसरे मोहल्ले में रहता है
और 12th कक्षा पढता है...
चैन... चांदी या सोने की होती है
पर आज-कल लोग कम ही पहनते
पूजा शर्मा...................आगे पढ़ें
ब्लॉगर तारकेश्वर गिरी साहब की शक्सियत ब्लॉगजगत में के खरा लिखने वाले के सी रही है उनका कहना था मेरा अनुरोध है सभी भाई बहनों से ,मासूम साहब के चलाए इस इस अमन के पैग़ाम को मिल के आगे बढाएं. क्योंकि इसका असर अभी से ब्लॉगजगत मैं दिखने लगा है | तारकेश्वर गिरी.....आगे पढ़ें
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अंजना गुडिया जी का पैगाम कुछ इस तरह है
नाराज़ हो जाना, झगड़ लेना,
मेरी गलती पे चाहे जितना डांट देना,
पर अगली बार मिलो जो मुझसे,
बस एक बार दिल से मुस्कुरा देना
रंजिश ने हज़ारों दिलों में कब्रिस्तान बनाये हैं,
तुम अपने दिल में दोस्ती को धड़कने देना
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इसी सन्देश को .......आगे पढ़ें

एस एम् मासूम ..आगे पढ़ें
अजय कुमार झा साहब का कहना है की .अमन तो अपने आप में खुद एक नियामत है ..खुद ही एक पैगाम है ...जिंदगी का , मोहब्बत का , इबादत का , कुदरत का ...अब क्या कहूं लीजीए दिल कहता गया ..मैं लिखता गया ..अब आपके हवाले ..आगे पढ़ें
ऐसी खुशी नहीं चाहता ,जो किसी का दिल दुखाने से मिले,
हंसी ऐसी नहीं चाहता ,जो किसी को रुलाने से मिले
……..संजय भास्कर.. आगे पढ़ें
अहिंसा अमन सुख चैन की बातें कहाँ हैं अब
वो अवसर ढूँढते तलवार से अब वार करने का
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कुछ को दोस्त , कुछ को दुश्मन बनाना अच्छा लगता है ,
मुझे तो रिश्ता -ए-इंसानियत निभाना अच्छा लगता है.
हमने खुद को वादों में बाँट कर रखा और हम निरंतर बंटते जा रहे हैं , कभी भाषावाद , जातिवाद , क्षेत्रवाद , अस्तित्ववाद, आतंकवाद न जाने कितने वाद , परन्तु कहीं पर भी नाम नहीं आया , समतावाद का ,सर्वात्मवाद का ..वास्तविकता यह थी कि हम सब खुदा कि संतान है . सभी में खुदा का नूर है , सभी कि एक सी भाषा है , सभी का एक धर्म है...आगे पढ़ें
"मस्जिद की मीनारें बोलीं मंदिर के कंगूरों से,
संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से "
मुझे विश्वास है अगर हम एक जुट होकर एक साथ प्यार से, बिना एक दूसरे पर शक किये, रहना सीख जाएँ तो हम से अधिक खुशहाल और कौन होगा ? यह बात न केवल ब्लागर पर बल्कि परिवार और देश पर भी समान रूप से प्रभावी साबित होगी ! आगे पढ़ें
नए साल पर पूरी कर मेरे मन की मुराद मौला
मिरे वतन के सीने पर ना हो कोई फसाद मौला
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अनवर जमाल साहब का शांति सन्देश देने का अंदाज़ ही निराला है इस बेहतरीन अंदाज़ को भी देखें
भारतीय समाज अपने स्वभाव से ही सहनशील है। यही वजह है कि अमन के दुश्मनों की लाख कोशिशों के बावजूद भी भारतीय समाज से शांति का लोप नहीं हो सका है।
आग नफ़रत की दिलों से तुम बुझा दो लोगो
प्यार के फूल गुलशन में फिर खिला दो लोगो
एक थे एक हैं और एक रहेंगे हम सदा
यह अमल करके दुश्मन को दिखा दो लोगो
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लखनऊ के रहने वाली रांची से वीणा श्रीवास्तव जी |वीणा जी इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म मानती हैं. वीणा जी ने अपने जीवन के एक सच्चे वाकए से अमन का पैग़ाम दिया है. यह उनलोगों के लिए एक इबरत है जो धर्म के नाम पे अपने जैसे दूसरे इंसान को पसंद नहीं करते, दूरी बना के रखते हैं...
रश्मि प्रभा... जी. अपना परिचय देते हुए रशिम जी कहती हैं "
”सौभाग्य मेरा की मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ और मेरा नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और मेरे नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ मेरे नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन" , शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है. अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं”……..रश्मि प्रभा...इनका दिया पैगाम आगे पढ़ें
इनका सन्देश भी आगे पढ़ें
जनाब एस एम् मासूम साहब नमस्कार,अम्न का पैग़ाम मौज़ू पर ली गयी आपकी सभी रचनाएं कामयाब रहीं,इसी सिलसिले में अपनी एक ग़ज़ल इरसाल कर रहा हूँ,उम्मीद करता हूँ आप सब को पसंद आएगी और मकसद मैं कामयाब रहेगी. आजकल देहरादून से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका "सरस्वती-सुमन" के ग़ज़ल विशेषांक के अतिथि सम्पादन में व्यस्त हूँ आपकी साहित्य-साधना के लिये आपको साधुवाद कहता हूँ.
आगे पढ़ें दानिश साहब का सन्देश
क्रांति ही जीवन ..मीनाक्षी पन्त जी का कहना है |इतिहास गवाह है इन्सान ने जब भी किसी विपदा ( विपत्ति ) का सामना अगर किया है तो उसका जिम्मेदार वो खुद होता है ! उसी के द्वारा की हुई गलती का भुगतान वो बाद मै करता है ! क्युकी जब हम कोई भी फ़ेसला लेते हैं तो हमे सिर्फ वर्तमान का ही सुख दिखता है और उसी ख़ुशी का भुगतान हमे भविष्य मै दर्द सह कर देना होता है. .सन्देश आगे पढ़ें
यह पैगाम देने वाले विश्व के नामी गिरामी साहित्यकार , डॉक्टर , लेखक, ब्लॉगर महिलाएं पुरुष ,हिन्दू ,मुसलमान ,कलाकार और पत्रकार लोग हैं और यह लिस्ट अभी बहुत लम्बी है जिसे एक लेख में देना शायद संभव नहीं | रचना बजाज, अख्तर खान अकेला, दीप पाण्डेय ,कुंवर कुसुमेश, हरकीरत हीर ,दीप पाण्डेय , लता हया ,नीरज गोस्वामी ,मुकेश कुमार, डॉ रूपचंद्र शास्त्री मयंक , इत्यादि और यह लिस्ट हर दिन बढती ही जा रहे है जिसे अब किताब की शक्ल में भी पेश किया जायेगा |
इन पैगामो को देखने से साफ़ दिखाई देता है ज्ञानी आज भी अमन और शांति की राह तलाश रहा है और मुझे यकीन है ऐसी ही कोशिशें लोग करते रहे तो एक दिन कामयाबी हमारे क़दम चूमेगी |अमन का पैगाम समाज में अपने बच्चों का नाम अमन और शांति रखके नहीं बल्कि ज़मीनी स्तर पे इसके लिए काम कर के दिया जाता है| आप सभी से अनुरोध है की आप भी अपना क़दम आगे बढायें लोगों को अमन और शांति का पैगाम दें और खुद भी इसके लिए कोशिशें करें | मैं इसी को अपनी कलम का इस्तेमाल जान हित में करना मानता हूँ |
इन्ही ब्लॉगर द्वारा भजा गया लेख अब आप देख और सुन भी सकते हैं | कुछ आपके सभी के सामने पेश हैं |
मंदिर-मस्जिद
ReplyDeleteहिन्दू कहता चाहे कुछ हो,
मंदिर यहीं बनाएँगे|
मुल्लाओं का कौल यही है,
मस्जिद नहीं गिराएँगे|
लालबुझक्कड बनते हैं,
क्या इतना मुझे बताएँगे?
पूंछा है क्या राम-रहीम से,
वे रहने यहाँ पर आएंगे?
क्या इतने पैसे वाले हो,
कि उसको घर दिलवाएँगे?
महंगाई के इस आलम में,
फिर खुद कैसे खाएँगे?
खून खराबे, राग, द्वेष से,
रब्बा को भरमाएंगे?
ढ़ोर गम्मर्रे जिद करते हैं,
उस पर रौब जमाएंगे|
मौला तो रहता उस दिल में,
जिसमें प्रेम भरा होता|
नफरत के कालीनों पर तो,
उसका घाव हरा होता|
क्या तुम ठेकेदार राम के,
या अल्ला के पैरोकार?
लड़ना होगा खुद लड़ लेंगे,
तुमको है क्या सारोकार?
मेरा मंदिर, उसकी मस्जिद,
यह कैसी दाबेदारी?
जीवन की सच्ची दौलत है,
बस उसकी ताबेदारी|