google.com, pub-0489533441443871, DIRECT, f08c47fec0942fa0 क्या इस सृष्टि का कोई रचयिता है? | हक और बातिल

क्या इस सृष्टि का कोई रचयिता है?

प्राचीन काल से ही मनुष्य के मन में यह प्रश्न उठता रहा है कि सृष्टि का आरंभ कब हुआ,  कैसे हुआ, क्या यह संभव है कि मनुष्य कभी यह समझ सके कि...

प्राचीन काल से ही मनुष्य के मन में यह प्रश्न उठता रहा है कि सृष्टि का आरंभ कब हुआ, कैसे हुआ, क्या यह संभव है कि मनुष्य कभी यह समझ सके कि चाँद, सितारे, आकाशगंगाएं, पुच्छलतारे, पृथ्वी, पर्वत, उसकी ऊँची ऊँची चोटियाँ, जंगल, कीड़े-मकोड़े, पशु, पक्षी, मनुष्य, जीव-जन्तु यह सब कहाँ से आए और कैसे बने? 

हमने और आपने हो सकता है न सोचा हो किन्तु हज़ारों वर्षों से इस पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों ने सोचा और यहीं से धर्म का जन्म हुआ। 

हम ब्रहमाण्ड की रचना की जटिल बहस का उल्लेख नहीं करेंगे क्योंकि बिग-बैंग, जो इस सृष्टि की रचना का कारण बताया जाता है, उस पर भी वैज्ञानिकों ने बहुत से प्रश्न उठाए हैं। यहाँ बस केवल एक प्रश्न है जो हर काल में प्रायः हर मनुष्य के मन में उठता रहा है कि क्या कोई वस्तु बिना किसी बनाने वाले के बन सकती है?

एक अरब ग्रामीण से पूछा गया कि तुमने अपने ईश्वर को कैसे पहचाना? तो उसने उत्तर दिया कि ऊँट की मेंगनियाँ, ऊँट का प्रमाण हैं, पद-चिन्ह किसी पथिक का प्रमाण हैं, तो क्या इतना बड़ा ब्रह्माण्ड, यह आकाश, और कई परतों में पृथ्वी, किसी रचयिता का प्रमाण नहीं हो सकती!

यह अत्यधिक सादे शब्दों में ईश्वर के अस्तित्व के बारे में दिया जाने वाला वह प्रमाण है जिस पर बड़े-बड़े दार्शनिकों ने बहस की है और अपने विचार व्यक्त किए हैं, किन्तु अधिकांश लोगों ने ब्रह्माण्ड में मौजूद व्यवस्था को, ईश्वर के अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण माना है।

अल्लामा हिल्ली एक बहुत प्रसिद्ध शीया बुद्धिजीवी थे। उनके काल में एक नास्तिक बहुत प्रसिद्ध हुआ। वह बड़े बड़े आस्तिकों को बहस में हरा देता था, उसने अल्लामा हिल्ली को भी चुनौती दी। बहस के लिए एक दिन निर्धारित हुआ और नगरवासी निर्धारित समय और निर्धारित स्थान पर इकट्ठा हो गए। 

वह नास्तिक भी समय पर पहुंच गया, किन्तु अल्लामा हिल्ली का कहीं पता नहीं था। काफ़ी समय बीत गया लोग बड़ी व्याकुलता से अल्लामा हिल्ली की प्रतीक्षा कर रहे थे कि अचानक अल्लामा हिल्ली आते दिखाई दिए। उस नास्तिक ने अल्लामा हिल्ली से विलंब का कारण पूछा तो उन्होंने विलंब के लिए क्षमा मांगने के पश्चात कहा कि वास्तव में मैं सही समय पर आ जाता, किन्तु हुआ यह कि मार्ग में जो नदी है उसका पुल टूटा हुआ था और मैं तैर कर नदी पार नहीं कर सकता था, इसलिए मैं परेशान होकर बैठा हुआ था कि अचानक मैंने देखा कि नदी के किनारे लगा पेड़ कट कर गिर गया और फिर उसमें से तख़्ते कटने लगे और फिर अचानक कहीं से कीलें आईं और उन्होंने तख़्तों को आपस में जोड़ दिया और फिर मैंने देखा तो एक नाव बनकर तैयार थी। मैं जल्दी से उसमें बैठ गया और नदी पार करके यहाँ आ गया। 

अल्लामा हिल्ली की यह बात सुनकर नास्तिक हंसने लगा और उसने वहाँ उपस्थित लोगों से कहाः "मैं किसी पागल से वाद-विवाद नहीं कर सकता, भला यह कैसे हो सकता है? कहीं नाव, ऐसे बनती है?" यह सुनकर अल्लामा हिल्ली ने कहाः "हे लोगो! तुम फ़ैसला करो। मैं पागल हूँ या यह, जो यह स्वीकार करने पर तैयार नहीं है कि एक नाव बिना किसी बनाने वाले के बन सकती है, किन्तु इसका कहना है कि यह पूरा संसार अपने ढेरों आश्चर्यों और इतनी सूक्ष्म व्यवस्था के साथ स्वयं ही अस्तित्व में आ गया है"। नास्तिक ने अपनी हार मान ली और उठकर चला गया।

मानव इतिहास के आरंभ से ही ईश्वर को मानने वाले सदैव अधिक रहे हैं अर्थात अधिकांश लोग यह मानते हैं कि इस संसार का कोई रचयिता है, अब वह कौन है? कैसा है? और उसने क्या कहा है? इस बारे में लोगों में मतभेद है किन्तु यही सच है कि यदि सही अर्थ में कोई धर्म है तो फिर उसका उद्देश्य भी मनुष्य को ईश्वर तक पहुँचाना होता है। वैसे यह बिन्दु भी स्पष्ट रहे कि ईश्वर और धर्म को मानने में ही भलाई हैं, क्योंकि आप दो ऐसे व्यक्तियों के बारे में सोचें कि जिनमें से एक धर्म और ईश्वर को मानता है और दूसरा नहीं मानता। उदाहरण स्वरूप दो व्यक्ति किसी ऐसे नगर की ओर जा रहे हैं जहाँ के बारे में दोनों को कुछ नहीं मालूम है। मार्ग में उन्हें एक अन्य व्यक्ति मिलता है जो उनसे कहता है कि जिस नगर में तुम दोनों जा रहे हो वहाँ खाने पीने को कुछ नहीं मिलेगा, इसलिए उचित होगा कि वहाँ के लिए थोड़ा भोजन और पानी रख लो तो ऐसी स्थिति में बुद्धि क्या कहती है? 

बुद्धि यही कहती है कि वहाँ के लिए कुछ खाना पानी रख लिया जाए, क्योंकि यदि वह सही कह रहा होगा तो मरने का ख़तरा टल जाएगा और यदि झूठ बोल रहा होगा तो कोई हानि नहीं होगी। अब इस कल्पना के दृष्टिगत एक व्यक्ति ने खाना पानी रखा लिया किन्तु दूसरे ने कहा कि इस व्यक्ति ने मज़ाक़ किया है, या यह कि झूठ बोल रहा था, या यह कि देखने में भरोसे का आदमी नहीं लग रहा था, यह सोच कर उसने कुछ साथ नहीं लिया। नगर आया तो उसने देखा कि खाना पानी सब कुछ था, जो व्यक्ति खाना पानी साथ लाया था उसने उसे फेंक दिया, बस सब कुछ ठीक हो गया, किन्तु दूसरी स्थिति में सोचें कि ये दोनो यात्री उस नगर में जब पहुंचे तो 
देखा कि वहाँ कुछ भी नहीं था तो अब जिसने अपने साथ खाना पानी रख लिया था, उसकी तो जान बच गई किन्तु जिसने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया था वह भूख और प्यास से मर गया।

इसिलए बुद्धि हमें यह सिखाती है कि यदि ख़तरा या लाभ बहुत बड़ा हो तो उसकी सूचना देने वाला चाहे जैसा हो, बुद्धि कहती है कि उसके लिए कुछ प्रबंध अवश्य करना चाहिए। यदि दस ग्लास पानी हमारे सामने रखा है और कोई कहता है कि किसी एक में विष है तो बुद्धि कहती है कि किसी भी ग्लास का पानी न पिया जाए।

इस संसार में बहुत से लोग आए जो विदित रूप से अच्छे मनुष्य थे, लोगों की सहायता करते थे, अच्छे कार्य करते थे, लोकप्रिय थे, किन्तु वे कहा करते थे कि हम ईश्वरीय दूत हैं, इस संसार का एक रचयिता है, मरने के बाद एक अन्य लोक है जहाँ कर्मों का हिसाब किताब होगा और अच्छे कार्य करने वालों को स्वर्ग और बुरे कार्य करने वालों को नरक में भेजा जाएगा। 

तो फिर इस संदर्भ में हमारी बुद्धि क्या कहती है? यदि हम केवल बुद्धि की बात मानें तो होना यह चाहिए कि हम यह सोचें कि यदि इन लोगों ने सही कहा होगा तो हम स्वर्ग में जाएंगे और नरक में जाने से बच जाएंगे किन्तु यदि उन लोगों ने ग़लत कहा होगा तो मरने के बाद मिट्टी में मिल जाएंगे और परलोक नाम का कोई लोक नहीं होगा और हमें कोई हानि भी नहीं होगी। हमने अपने जीवन में जो अच्छे कर्म किए उसके कारण लोग हमें याद रखेंगे।

इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि इस सृष्टि का कोई रचयिता है, क्योंकि कोई भी वस्तु बिना बनाने वाले के नहीं बनती। बनाने वाले को अधिकांश लोग मानते हैं, उसे पहचानने के लिए विभिन्न लोगों को भिन्न-भिन्न मार्ग अपनाना पड़ता है। धर्मों में विविधता का कारण यही है। 

बुद्धि कहती है कि ईश्वर और परलोक की बात करने वालों पर विश्वास किया जाए, क्योंकि अविश्वास की स्थिति में यदि उनकी बातें सही हुईं तो बहुत बड़ी हानि होगी।

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  1. कोई रचियता नहीं, सृष्टि खुद-ब-खुद है और खुदा है।

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  2. इस सृष्टि का कोई रचयिता है, क्योंकि नास्तिक से पूछो तो वह बता नहीं पाता कि
    बुराई क्या है और बुराई को मिटाने के लिए कोई अपनी जान क्यों गवांए ? Evil

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  3. ved ke anusar ---- parmatma kon hain aur unka real namekya hain read this please---- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17

    शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।
    कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।

    अनुवाद - सर्व सृष्टी रचनहार (हर्य शिशुम्) सर्व कष्ट हरण पूर्ण परमात्मा मनुष्य के विलक्षण बच्चे के रूप में (जज्ञानम्) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलता के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वुिः) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) भक्त (गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्रम् अत्येति) अत्यधिक निर्मलता के साथ (कविर् गीर्भि) कविर् वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रेभन्) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, हुआ वर्णन करता (कविर् सन्त् सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है।

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  4. ved ke anusar god kon hain aur unka name kya hain please read this-----ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17

    शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।
    कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।

    अनुवाद - सर्व सृष्टी रचनहार (हर्य शिशुम्) सर्व कष्ट हरण पूर्ण परमात्मा मनुष्य के विलक्षण बच्चे के रूप में (जज्ञानम्) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलता के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वुिः) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) भक्त (गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्रम् अत्येति) अत्यधिक निर्मलता के साथ (कविर् गीर्भि) कविर् वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रेभन्) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, हुआ वर्णन करता (कविर् सन्त् सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है।

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  5. ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17

    शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।
    कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।

    अनुवाद - सर्व सृष्टी रचनहार (हर्य शिशुम्) सर्व कष्ट हरण पूर्ण परमात्मा मनुष्य के विलक्षण बच्चे के रूप में (जज्ञानम्) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलता के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वुिः) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) भक्त (गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्रम् अत्येति) अत्यधिक निर्मलता के साथ (कविर् गीर्भि) कविर् वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रेभन्) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, हुआ वर्णन करता (कविर् सन्त् सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है।

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