google.com, pub-0489533441443871, DIRECT, f08c47fec0942fa0 प्रार्थना, उपासना की आत्मा है | हक और बातिल

प्रार्थना, उपासना की आत्मा है

प्रार्थना, उपासना की आत्मा है। विशेषकर रोज़े के समय प्रार्थना का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इस समय मनुष्य का पूरा अस्तित्व ईश्वर से ...

प्रार्थना, उपासना की आत्मा है। विशेषकर रोज़े के समय प्रार्थना का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इस समय मनुष्य का पूरा अस्तित्व ईश्वर से संबन्धित होता है। प्रार्थना जितनी आस्था और मन से की जाएगी उसका प्रभाव भी उतना ही व्यापक होगा। यह मन को स्वच्छ करती है। 


इस्लामी शिक्षाओं के संबन्ध में जर्मनी की प्रख्यात लेखिका एन मैरी शेमल, प्रार्थना के संदर्भ मे इमाम संज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआएं प्रस्तुत करती हैं। 

"मैं दुआओं को उनकी मुख्य भाषा अर्थात अरबी में ही पढ़ती हूं और किसी भी भाषा के अनुवाद में इन्हें नहीं पढ़ती। जिस समय मेरी माता अस्पताल में भर्ती थीं उस समय मैंने सहीफ़ए सज्जादिया नामक पुस्तक का जर्मनी भाषा में अनुवाद किया था। जिस समय मेरी माता सो जाती थीं उस समय मैं अस्पताल के एक कोने में बैठकर इस अनुवाद को साफ़ हैंडराइटिंग में लिखा करती थी। मेरी माता के बिस्तर के निकट ही एक अन्य बीमार महिला भी थी जो कटटर विचारों वाली कैथोलिक मतावलांबी थी। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि मैं किसी इस्लामी दुआओं अर्थात प्रार्थनाओं का अनुवाद जर्मनी भाषा में कर रही हूं तो वह बहुत दुखी हुई। उसने बहुत ही अप्रसन्नता तथा चिंताजनक शैली में कहा कि क्या हमारी धार्मिक पुस्तकों की दुआओं में कोई कमी है जो तुमने मुसलमानों की दुआओं का अनुवाद करना आरंभ किया है। उस समय तो मैंने उससे कुछ नहीं कहा। किंतु जब मेरी किताब प्रकाशित हुई तो मैंने किताब की एक प्रति उसे भी भेजी। कुछ समय पश्चात उस महिला ने टेलिफोन के माध्यम से मुझसे सम्पर्क किया और कहा कि इस अच्छे उपहार के लिए आपकी बहुत आभारी हूं। इसका कारण यह है कि मैं प्रतिदिन उसका एक विषय पढ़ती हूं। यह पुस्तक मनमोहक तथा बहुत ही गूढ़ है।

दुआ के संदर्भ में वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ईश्वर का मार्ग निकटस्थ मार्ग है। यदि कोई इच्छा कर ले तो फिर वह बुरे मार्ग से बच सकता है और एक अन्य मार्ग पर जो सीधा है उसपर चल सकता है। यह कार्य हर क्षण संभव है। इस्लामी शिक्षाओं में कहा गया है कि जो भी उसके अर्थात ईश्वर के मार्ग में क़दम बढ़ाता है तो ईश्वर का मार्ग निकट है। यदि एक क़दम बढ़ाओ तो उन लोगों से दूर हो जाओगे जो पतन की ओर जा रहे हैं और गिर जाने वाले हैं। तुम एक एसे मार्ग पर पहुंचोगे जिसपर चलने वाले अनंत मोक्ष या कल्याण तथा प्रकाश की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। जब हम अपनी आंतरिक इच्छाओं के दबाव में कोई कार्य करते हैं तो यह कार्य मनुष्य को ईश्वर से दूर करता है क्योंकि हमने पतन के मार्ग पर क़दम बढ़ाया है। किंतु इसके विपरीत जब हम अपनी इच्छाओं के विपरीत कार्य करने का निर्णय करते हैं तो हम उत्थान के मार्ग पर बढ़ रहे होते हैं। यह मार्ग परिवर्तन, माहे रमज़ान के पवित्र महीने में सरलता से संभव है। माहे रमज़ान वास्तव में मोक्ष तथा कल्याण प्राप्ति के लिए शार्टकट या छोटा रास्ता है।

बहुत से लोगों के अनुसार माहे रमज़ान का महीना भी वसंत की भांति है। ईश्वर, जिसने वसंत ऋतु को इसलिए बनाया कि वह प्रकृति को पुनर्जीवित करे तथा सूखी हुई टहनियों से नए फूल खिलाए, उसीने माहे रमज़ान का महीना बनाया है ताकि रोज़े रखकर लापरवाह लोगों में स्वतंत्र एवं पवित्र विचारों को जीवित किया जा सके। रोज़ा एक एसी मूल तथा मुख्य उपासना है जिसके अत्याधिक लाभों के कारण ईश्वर ने इसे धर्मों में वाजिब अर्थात अनिवार्य किया है। रोज़े के माध्यम से मानव की बहुत सी एसी आवश्यकताएं जो स्थिर तथा अपरिवर्तनीय हैं, पूरी होती हैं तथा इससे आत्मोथान होता है। यही कारण है कि रोज़े के विषय को हर धर्म में देखा जा सकता है। इस्लामी शिक्षाओं में मिलता है कि ईश्वर ने मूसा पर "वहय" अर्थात ईश्वरीय संदेश भेजा कि तुम्हारे लिए कौन सी वस्तु मेरी प्रार्थना में बाधा बनती है? मूसा जो रोज़े से थे उन्होंने कहा कि हे, ईश्वर अपनी इस स्थिति में मैं तेरी उपासना के योग्य नहीं हूं क्योंकि रोज़ेदार के मुंह से बदबू आती है। ईश्वर ने उनके उत्तर में कहा कि हे मूसा, रोज़ेदार के मुंह से आने वाली बदबू मेरे निकट कस्तूरी की ख़ुशबू से भी अधिक प्रिय है।

एक व्यक्ति ने हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के साथी इब्ने अब्बास से इस्लाम में रोज़े के कारण के संबन्ध में प्रश्न किया। उन्होंने उत्तर दिया कि यदि तुम दाऊद पैग़म्बर के रोज़े के संबन्ध में जानना चाहते हो तो वे एक दिन रोज़ा रखते थे और अगले दिन अफ़तार किया करते थे। यदि तुम उनके पुत्र सुलैमान के रोज़े के बारे में जानना चाहते हो तो वे हर महीने के तीन आरम्भिक दिनों, तीन बीच के दिनों तथा तीन अंत के दिनों में रोज़ा रखा करते थे। यदि हज़रत ईसा के रोज़े के बारे में जानना चाहते हो तो उन्होंने जीवन भर रोज़े रखे, वे जानवरों के बालों के बुने कपड़े पहना करते थे। यदि उनकी माता हज़रत मरियम के रोज़ों के बारे में जानना चाहते हो तो वे दो दिन लगातार रोज़े रखती थीं और तीसरे दिन रोज़ा अफ़तार करती थीं। यदि तुम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के रोज़ों के बारे में जानना चाहते हो तो वे हर महीने में तीन दिन रोज़े अवश्य रखा करते थे और कहते थे कि यह तीन रोज़े पूरे जीवन के रोज़ों के समान हैं।

इस समय मौजूद तौरेत तथा इंजील में भी यह बात पाई जाती है कि पिछले ईश्वरीय धर्मों में रोज़ा एक पुष्टि वाला विषय है। समस्याओं के समय यहूदी रोज़े की शरण में जाया करते थे। इसाई लोग भी कई दिनों तक लगातार रोज़े रखा करते थे। यह विषय दर्शाता है कि शरीर तथा आत्मा पर प्रभाव डालने के हिसाब से रोज़े का उल्लेख सभी ईश्वरीय धर्मों में पाया जाता है और बहुत सी पीढ़ियों ने इनकी विभूतियों से लाभ उठाया है। माहे रमज़ान के इस पवित्र महीने में हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें इससे लाभान्वित होने का अवसर प्रदान करे।

Post a Comment

  1. अच्छा लिखा है।
    मूल भाषा में पढ़ना और अनुवाद पढ़ने में बहुत फर्क होता है।
    रमज़ान के पाक महीने की बहुत बधाई। रोज़े सफल हों, दुआ कुबूल हो।

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete

emo-but-icon

Follow Us

INNER POST ADS

Hot in week

Recent

Comments

Admin

Featured Post

नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है ...

Discover Jaunpur , Jaunpur Photo Album

Jaunpur Hindi Web , Jaunpur Azadari

 

Majalis Collection of Zakir e Ahlebayt Syed Mohammad Masoom

A small step to promote Jaunpur Azadari e Hussain (as) Worldwide.

भारत में शिया मुस्लिम का इतिहास -एस एम्.मासूम |

हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की वफात (६३२ ) के बाद मुसलमानों में खिलाफत या इमामत या लीडर कौन इस बात पे मतभेद हुआ और कुछ मुसलमानों ने तुरंत हजरत अबुबक्र (632-634 AD) को खलीफा बना के एलान कर दिया | इधर हजरत अली (अ.स०) जो हजरत मुहम्मद (स.व) को दफन करने

जौनपुर का इतिहास जानना ही तो हमारा जौनपुर डॉट कॉम पे अवश्य जाएँ | भानुचन्द्र गोस्वामी डी एम् जौनपुर

आज 23 अक्टुबर दिन रविवार को दिन में 11 बजे शिराज ए हिन्द डॉट कॉम द्वारा कलेक्ट्रेट परिसर स्थित पत्रकार भवन में "आज के परिवेश में सोशल मीडिया" विषय पर एक गोष्ठी आयोजित किया गया जिसका मुख्या वक्ता मुझे बनाया गया । इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी

item