google.com, pub-0489533441443871, DIRECT, f08c47fec0942fa0 ईद के चांद ने वातावरण को एक नए रूप मे सुगन्धित किया | हक और बातिल

ईद के चांद ने वातावरण को एक नए रूप मे सुगन्धित किया

    ईद के चांद ने वातावरण को एक नए रूप मे खुशगवार बना दिया . चांद देखते ही लोगों के बीच फ़ितरे की बातें होने लगीं.  फ़ितरा उस धार्मिक कर ...

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ईद के चांद ने वातावरण को एक नए रूप मे खुशगवार बना दिया . चांद देखते ही लोगों के बीच फ़ितरे की बातें होने लगीं.  फ़ितरा उस धार्मिक कर को कहते हैं जो प्रत्येक मुस्लिम परिवार के मुखिया को अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य की ओर से निर्धनों को देना होता है. रमज़ान में चरित्र और शिष्टाचार का प्रशिक्षण लिए हुए लोग इस अवसर पर फ़ितरा देने और अपने दरिद्र भाइयों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं.

इस्लाम इस बात का ख्याल रखता है कि हर वो शख्स जिसने रोज़ा रेखा हो चाहे वो अमीर हो या ग़रीब उसके घर  मैं ईद मनाई जाए. एक ग़रीब रोज़ा तो बग़ैर किसी कि मदद के रख सकता है और इफ्तार और सहरी किसी भी मस्जिद मैं जा के कर सकता है लेकिन ईद मानाने के लिए नए कपडे, और सिंवई बना के खुशिया मानाने के लिए पैसे कहाँ से लाये?
अदा  इस्लाम ने इस बात का ख्याल रखते हुए चाँद रात  फितरा  देना हर मुसलमान पे फ़र्ज़ किया है. फितरा की  रक़म इस बात पे तय कि जाती है कि आप किस दाम का अन्न जैसे गेहूं या चावल आप अधिक खाते हैं ? उसका तीन किलो या सवा तीन सेर अन्न की कीमत आप निकाल के ग़रीबों मैं चाँद रात ही बाँट दें. यह  रक़म घर का मुखिया अपने घर के हर एक फर्द की तरफ से अदा करेगा. मसलन अगर घर में ३ मेम्बर मैं तो रक़म ९ किलो अन्न की जाएगी.

यदि आप के इलाके मैं , शहर मैं कोई ग़रीब है जिसके घर ईद ना मन पा रही हो तो फितरे की रक़म बाहर नहीं भेजी जा सकती. हाँ आप यह रक़म अगर  कहीं दूर किसी गरीब को भेजना चाहते हैं  तो आप इसे  चाँद रात के पहले भी निकाल सकते हैं बस नियत  यह होगी की उस शख्स को क़र्ज़ दिया और जैसे ही चाँद आप देखें आप निय्यत कर दें के जो रक़म बतौर क़र्ज़ दी थी वो फितरे मैं अदा किया.

इस तरह से आप किसी दूर के ग़रीब रिश्तेदार, दोस्त  या भाई तक यह रक़म पहुंचा सकते हैं जिस से वो ईद मना सके,

इस फितरे की रकम पे सबसे पहले आप के अपने गरीब रिश्तेदार , फिर पडोसी, फिर समाज का गरीब और फिर दूर के रोज़ेदार का हक़ होता है.




बच्चों की ईद इसलिए सबसे निराली होती है क्योंकि उन्हें नए-नए कपड़े पहनने और बड़ों से ईदी लेने की जल्दी होती है. बच्चे, चांद देख कर बड़ों को सलाम करते ही यह पूछने में लग जाते हैं कि रात कब कटेगी और मेहमान कब आना शुरू करेंगे. महिलाओं की ईद उनकी ज़िम्मेदारियां बढ़ा देती है. एक ओर सिवइयां और रंग-बिरंगे खाने तैयार करना तो दूसरी ओर उत्साह भरे बच्चों को नियंत्रित करना. इस प्रकार ईद विभिन्न विषयों और विभिन्न रंगों के साथ आती और लोगों को नए जीवन के लिए प्रेरित करती है.

 


इस समय एक महीने तक मन के उपवन पर ईश्वरीय अनुकंपाओं और विभूतियों की वर्षा के पश्चात ईमान के फूलों के खिलने का दिन आता है. आज रोज़ा रखने वाले ईश्वर से अपनी ईदी लेने के लिए आकाश की ओर हाथ उठाए हुए हैं. ईद की नमाज़ वास्तव में ईश्वर की अनुकंपाओं के लिए उसका आभार व्यक्त करना ही तो है.



रोज़ा सभी धर्मों की विशेष उपासनाओं में सम्मिलित है किंतु अंतर यह है कि अन्य धर्मों में रोज़े का अंत किसी महोत्सव पर नहीं होता है. इस्लाम में पहली बार एक महीने के रोज़े के पश्चात आने वाले दिन को ईद का नाम दिया गया और लोगों को यह आदेश दिया गया कि वे इस दिन को विशेष उपासनाओं के साथ मनाएं. पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम फ़रमाते हैं कि ईदेफ़ित्र ईश्वर की ओर से मेरी उम्मत अर्थात मेरे अनुयाइयों को दिया गया उपहार है और ईश्वर ने एसा उपहार मुझसे पूर्व किसी को भी प्रदान नहीं किया.



शब्दकोष में ईद का अर्थ है लौटना और फ़ित्र का अर्थ है प्रवृत्ति.इस प्रकार ईदे फ़ित्र के विभिन्न अर्थों में से एक अर्थ, मानव प्रवृत्ति की ओर लौटना है. अब प्रश्न यह उठता है कि इस दिन को ईदेफ़ित्र क्यों कहा गया है? वास्वतविक्ता यह है कि मनुष्य अपनी अज्ञानता और लापरवाही के कारण धीरे-धीरे वास्तविक्ता और सच्चाई से दूर होता जाता है. वह स्वयं को भूलने लगता है और अपनी प्रवृत्ति को खो देता है. मनुष्य की यह उपेक्षा और असावधानी ईश्वर से उसके संबन्ध को समाप्त कर देती है. रमज़ान जैसे अवसर मनुष्य को जागृत करते और उसके मन तथा आत्मा पर जमी पापों की धूल को झाड़ देते हैं. इस स्थिति में मनुष्य अपनी प्रवृत्ति की ओर लौट सकता है और अपने मन को इस प्रकार पवित्र बना सकता है कि वह पुनः सत्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करने लगे.




यदि मनुष्य इस सीमा तक परिपूर्णता तक पहुंच जाए तो इसका अर्थ यह है कि अब उसमे ईदे फ़ित्र को समझने की योग्यता उत्पन्न हो गई है. इसीलिए कहा जाता है कि एक महीने तक रोज़े रखने के पश्चात मनुष्य इतना परिवर्तित हो जाता है कि जैसे उसने पुनः जन्म लिया हो. यही कारण है कि अपनी भौतिक इच्छाओं पर सफलता के दिन वह उत्सव मनाता है.



हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हे लोगो, यह दिन आपके लिए एसा दिन है कि जब भलाई करने वाले अपना पुरूस्कार प्राप्त करते और घाटा उठाने वाले निराश होते हैं। इस प्रकार यह दिन प्रलय के दिन के समान होता है। अतः अपने घरों से ईदगाह की ओर जाते समय कल्पना कीजिए मानों क़ब्रों से निकल कर ईश्वर की ओर जा रहे हैं। नमाज़ में स्थान पर खड़े होकर ईश्वर के समक्ष खड़े होने की याद कीजिए। घर लौटते समय, स्वर्ग की ओर लौटने की कल्पना कीजिए। इसीलिये यह बेहतर है कि नमाज़ ए ईद खुले मैदान मैं अदा कि जाए और सर पे सफ़ेद रुमाल नंगे पैर ईद कि नमाज़ मैं जाए. नमाज़ से पहले गुसल करे और सजदा नमाज़ के दौरान मिट्टी पे करे.
 

हे ईश्वर के बंदों, रोज़ा रखने वालों को जो न्यूनतम वस्तु प्रदान की जाती है वह यह है कि रमज़ान महीने के अन्तिम दिन एक फ़रिश्ता पुकार-पुकार कर कहता हैः शुभ सूचना है तुम्हारे लिए हे ईश्वर के दासों कि तुम्हारे पापों को क्षमा कर दिया गया है अतः बस अपने भविष्य के बारे में विचार करो कि बाक़ी दिन कैसे व्यतीत करोगे?

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ईदे फ़ित्र के महत्व के संबन्ध में महान विचारक शेख मुफ़ीद लिखते हैं कि शव्वाल महीने के प्रथम दिन को ईद मनाने का कारण यह है कि लोग रमज़ान के महीने में अपने कर्मों के स्वीकार होने पर प्रसन्न होते हैं. वे इस बात से प्रसन्न होते हैं कि महान ईश्वर ने उनके पापों को क्षमा करके उनकी बुराई पर पर्दा डाल दिया है. ईमान वाले ईश्वर की ओर से दी गई उस शुभसूचना पर प्रसन्न होते हैं कि उनका विधाता उन्हें अत्यधिक पुरूस्कार और पारितोषिक देगा। वे इसलिए प्रसन्न हैं कि रमज़ान के दिनों और रातों में ईश्वर के सामिप्य के कई चरण पार कर चुके हैं. ईद के दिन जिन कामों पर विशेष रूप से बल दिया गया है उनमें नहाना है जो पापों से पवित्र होने की निशानी है. अत्र व सुगंध का प्रयोग, स्वच्छ या नए वस्त्र धारण करना और खुले आसमान तले नमाज़ पढ़ना है। यह सब प्रसन्नता का प्रतीक है, एसी प्रसन्नता का प्रतीक जो तत्वज्ञान के साथ होती है.




ईदे फ़ित्र एक सुन्दर एतिहासिक घटना को नेत्रों के सामने चित्रित करती है. वह घटना मर्व नामक स्थान पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा पढ़ाई गई ईदे फ़ित्र की नमाज़ के बारे में है. एक दिन अब्बासी शासक मामून ने जनता को धोखा देने और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से कहा कि वे ईद की नमाज़ पढ़ाएं. इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने जो मामून की भावना से पूर्णत्यः अवगत थे, इस काम से इन्कार कर दिया किंतु मामून आग्रह करने लगा. उसके आग्रह पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इस शर्त के साथ नमाज़ पढ़ाना स्वीकार किया कि उनका व्यवहार पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की परंपरा के अनुसार होगा. मामून ने उत्तर दिया कि जैसा चाहे करें परन्तु बाहर आएं और ईद की नमाज़ पढ़ाएं.



इस बात का समाचार फ़ैलते ही कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा नमाज़ पढ़ाई जाएगी, लोग नगर के हर गली कूचे से निकल कर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के घर पर एकत्रित होने लगे ताकि उनके साथ नमाज़ के लिए जा सकें. पहली शव्वाल अर्थात ईद के दिन का सूर्य उदय हो रहा था कि इमाम रज़ा अलैहिस्साम ने स्नान किया, सफ़ेद पगड़ी बांधी, हाथ में छड़ी पकड़ी और घर से निकल पड़े. उनके पैरों में जूते नहीं थे। यह देखकर उनके सेवक और निकटवर्ती साथी भी नंगे पैर हो गए और इमाम के पीछे-पीछे ईदगाह की ओर चल पड़े. इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम घर से निकले और आकाश की ओर मुंह करके उन्होंने चार बार अल्लाहो अकबर कहा. उनकी वाणी आध्यात्म और पवित्र ईश्वरीय प्रेम से इतनी ओतप्रोत थी कि मानो धरती और आकाश मिल कर उनके साथ ईश्वर की महानता की घोषणा कर रहे हों.



इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की आवाज़ पर पुरूष, महिलाएं और बच्चे सभी लोग, अल्लाहोअकबर कहने लगे. नगर का वातावरण अल्लाहो अकबर के पवित्र शब्दों से गूंजने लगा. यह वातावरण इतना प्रभावशाली था कि मामून के सिपाही ही घोड़ों से उतर कर नंगे पांव चलने लगे. अब स्थिति यह हो गई थी कि मामून के मंत्री फ़ज़्ल बिन सहल ने उसे सूचना दी कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम यदि इसी प्रकार से ईदगाह तक चले गए तो हो सकता है कि जनता, शासन के विरोध पर उतर आए अतः उनको मार्ग से ही वापस बुला लिया जाए. मामून ने तुरंत इमाम को लौटने पर विश्व करने का आदेश दे दिया. इस प्रकार उस दिन ईदे फ़ित्र की नमाज़ इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम नहीं पढ़ा सके परन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के प्रति जनता का प्रेम सिद्ध हो गया.


ईदे फ़ित्र का दिन रोज़े रखने का पुरूस्कार है अतः मनुष्य को चाहिए कि वह इस दिन अपने  लिए अपने समाज, देश तथा अन्य लोगों के लिए बहुत अधिक दुआ करे और ईश्वर से लोक-परलोक की भलाइयां मांगे. .


ईद मुबारक

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  1. ईदुल फ़ितर की हार्दिक शुभकामनायें ..

    ReplyDelete
  2. ईद की दिली मुबारकबाद...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  3. आपको भी ईद-उल-फ़ित्र की बहुत-बहुत मुबारकबाद!

    ReplyDelete
  4. आपकी पोस्ट से बहुत जानकारी मिली,आभार.
    आपको ईदुल फ़ितर की हार्दिक शुभकामनायें .

    ReplyDelete

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