विवाह मं लड़की की स्वीकृति इस्लाम की नज़र मं
विवाह मं लड़की की स्वीकृति इस्लाम की नज़र मं हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़र्माते हैं- मैं पैग़म्बर के पास गया और चुप-चाप उनके सम्मुख बैठ गया।पै...


मैंने कहा- जी हॉ।पैग़म्बर ने फ़र्माया- तुमसे पहले भी कुछ लोग फ़ातेमा का हाथ मांगने आए थे, लेकिन फ़ातेमा ने स्वीकार नहीं किया, ठहरो- पहले मैं उनसे पूछ लूं।फिर वे घर के अन्दर गए और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इच्छा को हज़रत फ़ातेमा के सम्मुख रखा। हर बार के विपरीत कि फ़ातेमा अपना मुंह फेर लेती थीं, इस बार शान्तिपूर्वक और चुप बैठी रहीं। पैग़म्बर ने फ़ातेमा के चेहरे पर जब प्रसन्नता के चिन्ह देखे, तो तक्बीर कहते हुए हज़रत अली के पास वापस लौटे और प्रसन्नता से फ़र्माया – उनका मौन उनके हॉं (इच्छा) का चिन्ह है।विवाह एक मज़बूत हार्दिक बन्धन है जो एक सन्तुलित समाज के आधार को बनाता है। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि यह बन्धन , दोनों पक्षों की चेतना, एक दूसरे की पहचान तथा इच्छा के बाद ही बॉंधा जाए। इस पवित्र बन्धन के लिए उक्त बातों को इस्लाम ने बहुत महत्व दिया है। इसी लिए रसूले ख़ुदा ने अपनी सुपुत्री के विवाह के अवसर पर उनकी इच्छा जानना चाहि थी। क्योंकि बेटी के विवाह के समय पिता की अनुमति इस्लाम में अनिवार्य है।
परन्तु यह समाज में संकल्प की स्वतन्त्रता में बाधा के रूप में नहीं है। इसी लिए इस क्षेत्र में विश्व की लगभग सभी क़ानूनी पद्धतियों में यह सीमाएं विदित हैं जैसे फ़्रांस और दूसरी क़ानूनी व्यवस्थाओं में।इस्लाम में बेटी के विवाह के लिए पिता की अनुमति स्वंय एक क़ानून है, और यह बेटी पर पिता के वर्चस्व के अर्थ में नहीं है तथा उसकी स्वतन्त्रता को कमज़ोर नहीं करता । बड़े बड़े धार्मिक गुरूओं ने भी इस पर विभिन्न दृष्टिकोंण प्रस्तुत किए हैं। एक लड़की की मानसिक और शारिरिक व्यवस्था को देखते हुए इमाम ख़ुमैनी ने बेटी के विवाह में पिता की अनुमति को अनिवार्य माना है और नागरिक क़ानूनों ने भी इसे स्वीकार किया है। इस विषय को भली भॉंति समझने के लिए अच्छा है कि हम समकाली विद्वान शहीद मुतह्हरी के विचारों को देखें – वे कहते हैं-
पिता की अनुमति की शर्त का यह अर्थ नहीं है कि लड़का बौद्धिक, वैचारिक और सामाजिक विकास में एक पुरूष से कम है, क्योंकि इस विषयका संबंध नर तथा नारी के मनोविज्ञान से है। किसी भी बात पर शिघ्र ही विश्वास करने की अपनी प्रवृत्रि के कारण महिलाएं पुरूषों के प्रेम पूर्ण शब्दों पर भरोसा कर लेती हैं। और कभी कभी लोभी पुरूष, नारी की इसी भावना का अनुचित लाभ उठाते हैं। बहुत सी अनुभव हीन युवतियॉं पुरूषों के जाल में फँस जाती हैं। यही पर इस बात की आवश्यकता कि पिता, जो कि स्वंय पुरूषों की भावनाओं से भली भांति परिचित हैं, अपनी अनुभवहीन बेटी के जीवन साथी के चयन पर नियन्त्रण रखें। इस प्रकार क़ानून ने न केवल यह कि नारी का अनादर नहीं किया हैं बल्कि एक वास्तविक दृष्टिकोंण से उसका समर्थन भी किया है.