जौनपुर,इस्लाम का चौक चेहल्लुम
मोहम्मद इस्लाम इब्ने शेख बहादुर अली , मोहल्ला बाज़ार भुआ जौनपुर के रहने वाले थे.वोह कुश्ती मैं बहुत माहिर थे और अक्सर इनामात वगैरह भी...
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मोहम्मद इस्लाम इब्ने शेख बहादुर अली , मोहल्ला बाज़ार भुआ जौनपुर के रहने वाले थे.वोह कुश्ती मैं बहुत माहिर थे और अक्सर इनामात वगैरह भी पाया करते थे . शेख साहब मज़हबी मुआमलात मैं सख्त थे. शेख मोहम्मद इस्लाम एक बेहतरीन जाकिर ऐ सय्यिद ऐ शोहदा थे और इमामबाडा चम्मन के जाकिर भी थे.
मोअज्ज़ा: एक साल शेख मोहम्मद इस्लाम, शब् ऐ आशूर अपने घर के सामने चौक पे ताजिया रख के इमामबाडा चम्मन मैं ज़ाकिरी के लिये गए.वहाँ से सब्जी बाज़ार मदद अली के अज़ाखाने गए और बाद नजरो नियाज़ कर के जब अपने घर वापस आ रहे थे तोह काजी मोहम्मद जमिउल्लाह के पिसर ऐ मुल्ला खालिलुल्लाह काजी जौनपुर ने उनको दंगे फसाद की डर से गिरफ्तार केर लिया. यह वाकेया बाज़ार अलिफ़ खान उर्फ़ काजी की गली मैं हुआ. बहुत सिफारिश की गयी लेकिन काजी पे कोई असर न हुआ.
शेख मोहम्मद इस्लाम के भाई अली और उनकी जोज़ा ने ख्वाहिश की के अपने चौक का ताजिया दफ़न कर दिया जाए लेकिन शेख मोहम्मद इस्लामिल ने इजाज़त न दी और ताजिया जीनत ऐ चौक बना रहा.
.
उनकी जोज़ा दिन रात मासूम (अ.स) और शहीद ए कर्बला के वास्ते से दुआ करती रहीं और शेख मोहम्मद इस्लाम क़ैद खाने के अंदरूनी हिस्से मैं आपकी बेगुनाही की फरियाद अल्लाह से करते और रोते रहते थे.
१९ सफ़र को शेख मोहम्मद इस्लाम पे जब की वोह दुआ मैं मसरूफ थे अचानक बेहोशी तारी हो गयी और उनको एक आवाज़ सुनाई दी " जाओ तुम आज़ाद हो". उनकी यही बशारत उनकी जौजा ने अपने घर मैं भी सुनी और शेख इस्लाम के भाई को बताया.
शेख मोहम्मद इस्लाम जब होश मैं आये तो देखा उनकी बेडियाँ खुली हैं और क़ैद खाने का दरवाज़ा भी खुला है. जब वो बाहर निकल रहे थे तो पहरेदारों ने उनको रोका और काजी को खबर दी. काजी ने उनको नहीं रोका और आज़ाद कर दिया.
शेख मोहम्मद इस्लाम बस वहीं से लोगों को खबर देते हुए घर आये. जब मोमिनीन जमा हो गए , मजलिस की और वोह ताजिया जो शब् ऐ आशूर चौक पे रखा गया था, वोह १९ सफ़र को उठा. (अल्लाह हम्मा सल्ले अल मुहम्मद व आल ऐ मुहम्मद.)
चौक मुहम्मद इस्लाम से सदर इमामबारा बहुत करीब है. लेकिन इस ख्याल से के औरतें भी, अपने घरों से ज़िआरत कर सकें. काजी जमील उल्लाह साहब, काजी जौनपुर के भाई ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की के, यह जुलूस उनके दरवाज़े से गुज़रे इसलिये ताजिया उठा तो चौक मुहम्मद इस्लाम , बाज़ार भुआ से मोहल्ला चत्तर, मुहल्लाह कोठिया, मोहल्ला टोला, मुहल्लाह बार दुअरिया, मोहल्ला हमाम दरवाज़ा, मोहल्ला शेख महामिद, मोहल्ला अजमेरी,मोहल्ला बाज़ार अलिफ़ खान, काजी की गली,मोहल्ला उमर खान, ज़ेर ऐ मस्जिद कलां, मोहल्ला अर्ज़क,मोहल्ला नकी फाटक, मोहल्ला बाग ऐ हाशिम,,मोहल्ला दलियाना टोला, मुहल्लाह शेख बुरहानुद्दीन पुरा, मुहल्लाह मकदूम शाह बडे, मोहल्ला बाज़ार टोला, रानी बाज़ार,मोहल्ला नासिर ख्वान,छत्री घाट, मोहल्ला नवाब गाजी का कुवां,मोहल्ला जगदीशपुर,बेगम गंज , होता हुआ सदर इमामबाडा तक आया और दफ़न कर दिया गया.
इस जुलूस का यह रास्ता मुस्तकिल हो गया जो की अब तक है. १९ सफ़र का यह ताजिया शेख मुहम्मद इस्लाम से हर साल उसी तारीख को उठने लगा . बाज़ रवायतों से यह भी ज़ाहिर है की, असीराने ऐ कर्बला क़ैद से रिहा हो के, १९ सफ़र को कर्बला मैं पहुंचे थे.
शहर के और भी अज़ाखानो के ताजिया भी, इसी तारिख मैं उठने लगे.और सब के सब एक एक कर के ,इस्लाम के चौक वाले ताजिए के साथ रास्ते मैं, शामिल होते चले गए.. आगे इस्लाम का ताजिया होता है, और उसके बाद दूसरे अज़ाखानो के ताजिए रहते हैं. यह जुलूस शाम को सदर इमामबाडा पहुच के तमाम होता है. मोमिनीन की कई अन्जुमनें मातम , गिरया और नौहा ख्वानी करती हुई साथ साथ चलती हैं. . मजमा कसीर होता है.
आज के दौर मैं १८ और १९ सफ़र को इसी इस्लाम के चौक पे सैयेदा का लाल का चेहल्लुम हुआ करते है और कई लाख हिन्दू और मुसलमानों का मजमा होता है.
अब यह ताजिया शब् ऐ आशूर को न रेख के १८ सफ़र (शब् ऐ १९) रात ८ बजे रखा जाता है और रात भर मकामी अंजुमन ऐ मातम, गिरया, सीना ज़नी करती हैं. यह ताजिया मन्नत मुराद पूरी होने के लिए भी बहुत मशहूर है. और यहाँ मांगी दुआ कभी रद्द नहीं होती.
१९ सफ़र वक्त ए जुहर यह ताजिया बाद सोज़ख्वानी और मजलिस, उठाया जाता है और आज भी यह उसी ऊपर बताए पुराने रास्ते से होता हुआ सदर इमामबारा जाता है. इस ताजिया के साथ एक तुर्बत भी उठा करती है , जिसे भी एक मोजज़ा मंसूब है.
इस चेहल्लुम के जुलूस और मोजज़े से यह भी ज़ाहिर होता है, अगेर कोई नेक नियत, अकीदत के साथ, शोहदा ऐ कर्बला की अजादारी करे तोह अल्लाह उसे हर क़ैद से आज़ाद करेगा, और यही मोअजज़ा शैख़ मोहमम्द इस्लाम मरहूम के साथ हुआ. जिस तरह अल्लाह ने शैख़ इस्लाम को क़ैद से आज़ादी दिलवाई , उसी तरह अल्लाह हर अजादार ऐ हुसैन (अ.स) की मुराद पूरी करे. अमीन
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद वा आले मुहम्मद"
जौनपुर,अजादारी,मुहर्रम,चेहल्लुम
मोम्मद इस्लाम इब्ने शेख बहादुर अली , मोहल्ला बाज़ार भुआ जौनपुर के रहने वाले थे.वोह कुश्ती मैं बहुत माहिर थे और अक्सर इनामात वगैरह भी पाया करते थे . शेख साहब मज़हबी मुआमलात मैं सख्त थे. शेख मोहम्मद इस्लाम एक बेहतरीन जाकिर ऐ सय्यिद ऐ शोहदा थे और इमामबाडा चम्मन के जाकिर भी थे.
मोअज्ज़ा: एक साल शेख मोहम्मद इस्लाम, शब् ऐ आशूर अपने घर के सामने चौक पे ताजिया रख के इमामबाडा चम्मन मैं ज़ाकिरी के लिये गए.वहाँ से सब्जी बाज़ार मदद अली के अज़ाखाने गए और बाद नजरो नियाज़ कर के जब अपने घर वापस आ रहे थे तोह काजी मोहम्मद जमिउल्लाह के पिसर ऐ मुल्ला खालिलुल्लाह काजी जौनपुर ने उनको दंगे फसाद की डर से गिरफ्तार केर लिया. यह वाकेया बाज़ार अलिफ़ खान उर्फ़ काजी की गली मैं हुआ. बहुत सिफारिश की गयी लेकिन काजी पे कोई असर न हुआ.
शेख मोहम्मद इस्लाम के भाई अली और उनकी जोज़ा ने ख्वाहिश की के अपने चौक का ताजिया दफ़न कर दिया जाए लेकिन शेख मोहम्मद इस्लामिल ने इजाज़त न दी और ताजिया जीनत ऐ चौक बना रहा.
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उनकी जोज़ा दिन रात मासूम (अ.स) और शहीद ए कर्बला के वास्ते से दुआ करती रहीं और शेख मोहम्मद इस्लाम क़ैद खाने के अंदरूनी हिस्से मैं आपकी बेगुनाही की फरियाद अल्लाह से करते और रोते रहते थे.
१९ सफ़र को शेख मोहम्मद इस्लाम पे जब की वोह दुआ मैं मसरूफ थे अचानक बेहोशी तारी हो गयी और उनको एक आवाज़ सुनाई दी " जाओ तुम आज़ाद हो". उनकी यही बशारत उनकी जौजा ने अपने घर मैं भी सुनी और शेख इस्लाम के भाई को बताया.
शेख मोहम्मद इस्लाम जब होश मैं आये तो देखा उनकी बेडियाँ खुली हैं और क़ैद खाने का दरवाज़ा भी खुला है. जब वो बाहर निकल रहे थे तो पहरेदारों ने उनको रोका और काजी को खबर दी. काजी ने उनको नहीं रोका और आज़ाद कर दिया.
शेख मोहम्मद इस्लाम बस वहीं से लोगों को खबर देते हुए घर आये. जब मोमिनीन जमा हो गए , मजलिस की और वोह ताजिया जो शब् ऐ आशूर चौक पे रखा गया था, वोह १९ सफ़र को उठा. (अल्लाह हम्मा सल्ले अल मुहम्मद व आल ऐ मुहम्मद.)
चौक मुहम्मद इस्लाम से सदर इमामबारा बहुत करीब है. लेकिन इस ख्याल से के औरतें भी, अपने घरों से ज़िआरत कर सकें. काजी जमील उल्लाह साहब, काजी जौनपुर के भाई ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की के, यह जुलूस उनके दरवाज़े से गुज़रे इसलिये ताजिया उठा तो चौक मुहम्मद इस्लाम , बाज़ार भुआ से मोहल्ला चत्तर, मुहल्लाह कोठिया, मोहल्ला टोला, मुहल्लाह बार दुअरिया, मोहल्ला हमाम दरवाज़ा, मोहल्ला शेख महामिद, मोहल्ला अजमेरी,मोहल्ला बाज़ार अलिफ़ खान, काजी की गली,मोहल्ला उमर खान, ज़ेर ऐ मस्जिद कलां, मोहल्ला अर्ज़क,मोहल्ला नकी फाटक, मोहल्ला बाग ऐ हाशिम,,मोहल्ला दलियाना टोला, मुहल्लाह शेख बुरहानुद्दीन पुरा, मुहल्लाह मकदूम शाह बडे, मोहल्ला बाज़ार टोला, रानी बाज़ार,मोहल्ला नासिर ख्वान,छत्री घाट, मोहल्ला नवाब गाजी का कुवां,मोहल्ला जगदीशपुर,बेगम गंज , होता हुआ सदर इमामबाडा तक आया और दफ़न कर दिया गया.
इस जुलूस का यह रास्ता मुस्तकिल हो गया जो की अब तक है. १९ सफ़र का यह ताजिया शेख मुहम्मद इस्लाम से हर साल उसी तारीख को उठने लगा . बाज़ रवायतों से यह भी ज़ाहिर है की, असीराने ऐ कर्बला क़ैद से रिहा हो के, १९ सफ़र को कर्बला मैं पहुंचे थे.
शहर के और भी अज़ाखानो के ताजिया भी, इसी तारिख मैं उठने लगे.और सब के सब एक एक कर के ,इस्लाम के चौक वाले ताजिए के साथ रास्ते मैं, शामिल होते चले गए.. आगे इस्लाम का ताजिया होता है, और उसके बाद दूसरे अज़ाखानो के ताजिए रहते हैं. यह जुलूस शाम को सदर इमामबाडा पहुच के तमाम होता है. मोमिनीन की कई अन्जुमनें मातम , गिरया और नौहा ख्वानी करती हुई साथ साथ चलती हैं. . मजमा कसीर होता है.
आज के दौर मैं १८ और १९ सफ़र को इसी इस्लाम के चौक पे सैयेदा का लाल का चेहल्लुम हुआ करते है और कई लाख हिन्दू और मुसलमानों का मजमा होता है.
अब यह ताजिया शब् ऐ आशूर को न रेख के १८ सफ़र (शब् ऐ १९) रात ८ बजे रखा जाता है और रात भर मकामी अंजुमन ऐ मातम, गिरया, सीना ज़नी करती हैं. यह ताजिया मन्नत मुराद पूरी होने के लिए भी बहुत मशहूर है. और यहाँ मांगी दुआ कभी रद्द नहीं होती.
१९ सफ़र वक्त ए जुहर यह ताजिया बाद सोज़ख्वानी और मजलिस, उठाया जाता है और आज भी यह उसी ऊपर बताए पुराने रास्ते से होता हुआ सदर इमामबारा जाता है. इस ताजिया के साथ एक तुर्बत भी उठा करती है , जिसे भी एक मोजज़ा मंसूब है.
इस चेहल्लुम के जुलूस और मोजज़े से यह भी ज़ाहिर होता है, अगेर कोई नेक नियत, अकीदत के साथ, शोहदा ऐ कर्बला की अजादारी करे तोह अल्लाह उसे हर क़ैद से आज़ाद करेगा, और यही मोअजज़ा शैख़ मोहमम्द इस्लाम मरहूम के साथ हुआ. जिस तरह अल्लाह ने शैख़ इस्लाम को क़ैद से आज़ादी दिलवाई , उसी तरह अल्लाह हर अजादार ऐ हुसैन (अ.स) की मुराद पूरी करे. अमीन
मोअज्ज़ा: एक साल शेख मोहम्मद इस्लाम, शब् ऐ आशूर अपने घर के सामने चौक पे ताजिया रख के इमामबाडा चम्मन मैं ज़ाकिरी के लिये गए.वहाँ से सब्जी बाज़ार मदद अली के अज़ाखाने गए और बाद नजरो नियाज़ कर के जब अपने घर वापस आ रहे थे तोह काजी मोहम्मद जमिउल्लाह के पिसर ऐ मुल्ला खालिलुल्लाह काजी जौनपुर ने उनको दंगे फसाद की डर से गिरफ्तार केर लिया. यह वाकेया बाज़ार अलिफ़ खान उर्फ़ काजी की गली मैं हुआ. बहुत सिफारिश की गयी लेकिन काजी पे कोई असर न हुआ.
शेख मोहम्मद इस्लाम के भाई अली और उनकी जोज़ा ने ख्वाहिश की के अपने चौक का ताजिया दफ़न कर दिया जाए लेकिन शेख मोहम्मद इस्लामिल ने इजाज़त न दी और ताजिया जीनत ऐ चौक बना रहा.
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उनकी जोज़ा दिन रात मासूम (अ.स) और शहीद ए कर्बला के वास्ते से दुआ करती रहीं और शेख मोहम्मद इस्लाम क़ैद खाने के अंदरूनी हिस्से मैं आपकी बेगुनाही की फरियाद अल्लाह से करते और रोते रहते थे.
१९ सफ़र को शेख मोहम्मद इस्लाम पे जब की वोह दुआ मैं मसरूफ थे अचानक बेहोशी तारी हो गयी और उनको एक आवाज़ सुनाई दी " जाओ तुम आज़ाद हो". उनकी यही बशारत उनकी जौजा ने अपने घर मैं भी सुनी और शेख इस्लाम के भाई को बताया.
शेख मोहम्मद इस्लाम जब होश मैं आये तो देखा उनकी बेडियाँ खुली हैं और क़ैद खाने का दरवाज़ा भी खुला है. जब वो बाहर निकल रहे थे तो पहरेदारों ने उनको रोका और काजी को खबर दी. काजी ने उनको नहीं रोका और आज़ाद कर दिया.
शेख मोहम्मद इस्लाम बस वहीं से लोगों को खबर देते हुए घर आये. जब मोमिनीन जमा हो गए , मजलिस की और वोह ताजिया जो शब् ऐ आशूर चौक पे रखा गया था, वोह १९ सफ़र को उठा. (अल्लाह हम्मा सल्ले अल मुहम्मद व आल ऐ मुहम्मद.)
चौक मुहम्मद इस्लाम से सदर इमामबारा बहुत करीब है. लेकिन इस ख्याल से के औरतें भी, अपने घरों से ज़िआरत कर सकें. काजी जमील उल्लाह साहब, काजी जौनपुर के भाई ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की के, यह जुलूस उनके दरवाज़े से गुज़रे इसलिये ताजिया उठा तो चौक मुहम्मद इस्लाम , बाज़ार भुआ से मोहल्ला चत्तर, मुहल्लाह कोठिया, मोहल्ला टोला, मुहल्लाह बार दुअरिया, मोहल्ला हमाम दरवाज़ा, मोहल्ला शेख महामिद, मोहल्ला अजमेरी,मोहल्ला बाज़ार अलिफ़ खान, काजी की गली,मोहल्ला उमर खान, ज़ेर ऐ मस्जिद कलां, मोहल्ला अर्ज़क,मोहल्ला नकी फाटक, मोहल्ला बाग ऐ हाशिम,,मोहल्ला दलियाना टोला, मुहल्लाह शेख बुरहानुद्दीन पुरा, मुहल्लाह मकदूम शाह बडे, मोहल्ला बाज़ार टोला, रानी बाज़ार,मोहल्ला नासिर ख्वान,छत्री घाट, मोहल्ला नवाब गाजी का कुवां,मोहल्ला जगदीशपुर,बेगम गंज , होता हुआ सदर इमामबाडा तक आया और दफ़न कर दिया गया.
इस जुलूस का यह रास्ता मुस्तकिल हो गया जो की अब तक है. १९ सफ़र का यह ताजिया शेख मुहम्मद इस्लाम से हर साल उसी तारीख को उठने लगा . बाज़ रवायतों से यह भी ज़ाहिर है की, असीराने ऐ कर्बला क़ैद से रिहा हो के, १९ सफ़र को कर्बला मैं पहुंचे थे.
शहर के और भी अज़ाखानो के ताजिया भी, इसी तारिख मैं उठने लगे.और सब के सब एक एक कर के ,इस्लाम के चौक वाले ताजिए के साथ रास्ते मैं, शामिल होते चले गए.. आगे इस्लाम का ताजिया होता है, और उसके बाद दूसरे अज़ाखानो के ताजिए रहते हैं. यह जुलूस शाम को सदर इमामबाडा पहुच के तमाम होता है. मोमिनीन की कई अन्जुमनें मातम , गिरया और नौहा ख्वानी करती हुई साथ साथ चलती हैं. . मजमा कसीर होता है.
आज के दौर मैं १८ और १९ सफ़र को इसी इस्लाम के चौक पे सैयेदा का लाल का चेहल्लुम हुआ करते है और कई लाख हिन्दू और मुसलमानों का मजमा होता है.
अब यह ताजिया शब् ऐ आशूर को न रेख के १८ सफ़र (शब् ऐ १९) रात ८ बजे रखा जाता है और रात भर मकामी अंजुमन ऐ मातम, गिरया, सीना ज़नी करती हैं. यह ताजिया मन्नत मुराद पूरी होने के लिए भी बहुत मशहूर है. और यहाँ मांगी दुआ कभी रद्द नहीं होती.
१९ सफ़र वक्त ए जुहर यह ताजिया बाद सोज़ख्वानी और मजलिस, उठाया जाता है और आज भी यह उसी ऊपर बताए पुराने रास्ते से होता हुआ सदर इमामबारा जाता है. इस ताजिया के साथ एक तुर्बत भी उठा करती है , जिसे भी एक मोजज़ा मंसूब है.
इस चेहल्लुम के जुलूस और मोजज़े से यह भी ज़ाहिर होता है, अगेर कोई नेक नियत, अकीदत के साथ, शोहदा ऐ कर्बला की अजादारी करे तोह अल्लाह उसे हर क़ैद से आज़ाद करेगा, और यही मोअजज़ा शैख़ मोहमम्द इस्लाम मरहूम के साथ हुआ. जिस तरह अल्लाह ने शैख़ इस्लाम को क़ैद से आज़ादी दिलवाई , उसी तरह अल्लाह हर अजादार ऐ हुसैन (अ.स) की मुराद पूरी करे. अमीन
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद वा आले मुहम्मद"
जौनपुर,अजादारी,मुहर्रम,चेहल्लुम
मोम्मद इस्लाम इब्ने शेख बहादुर अली , मोहल्ला बाज़ार भुआ जौनपुर के रहने वाले थे.वोह कुश्ती मैं बहुत माहिर थे और अक्सर इनामात वगैरह भी पाया करते थे . शेख साहब मज़हबी मुआमलात मैं सख्त थे. शेख मोहम्मद इस्लाम एक बेहतरीन जाकिर ऐ सय्यिद ऐ शोहदा थे और इमामबाडा चम्मन के जाकिर भी थे.
मोअज्ज़ा: एक साल शेख मोहम्मद इस्लाम, शब् ऐ आशूर अपने घर के सामने चौक पे ताजिया रख के इमामबाडा चम्मन मैं ज़ाकिरी के लिये गए.वहाँ से सब्जी बाज़ार मदद अली के अज़ाखाने गए और बाद नजरो नियाज़ कर के जब अपने घर वापस आ रहे थे तोह काजी मोहम्मद जमिउल्लाह के पिसर ऐ मुल्ला खालिलुल्लाह काजी जौनपुर ने उनको दंगे फसाद की डर से गिरफ्तार केर लिया. यह वाकेया बाज़ार अलिफ़ खान उर्फ़ काजी की गली मैं हुआ. बहुत सिफारिश की गयी लेकिन काजी पे कोई असर न हुआ.
शेख मोहम्मद इस्लाम के भाई अली और उनकी जोज़ा ने ख्वाहिश की के अपने चौक का ताजिया दफ़न कर दिया जाए लेकिन शेख मोहम्मद इस्लामिल ने इजाज़त न दी और ताजिया जीनत ऐ चौक बना रहा.
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उनकी जोज़ा दिन रात मासूम (अ.स) और शहीद ए कर्बला के वास्ते से दुआ करती रहीं और शेख मोहम्मद इस्लाम क़ैद खाने के अंदरूनी हिस्से मैं आपकी बेगुनाही की फरियाद अल्लाह से करते और रोते रहते थे.
१९ सफ़र को शेख मोहम्मद इस्लाम पे जब की वोह दुआ मैं मसरूफ थे अचानक बेहोशी तारी हो गयी और उनको एक आवाज़ सुनाई दी " जाओ तुम आज़ाद हो". उनकी यही बशारत उनकी जौजा ने अपने घर मैं भी सुनी और शेख इस्लाम के भाई को बताया.
शेख मोहम्मद इस्लाम जब होश मैं आये तो देखा उनकी बेडियाँ खुली हैं और क़ैद खाने का दरवाज़ा भी खुला है. जब वो बाहर निकल रहे थे तो पहरेदारों ने उनको रोका और काजी को खबर दी. काजी ने उनको नहीं रोका और आज़ाद कर दिया.
शेख मोहम्मद इस्लाम बस वहीं से लोगों को खबर देते हुए घर आये. जब मोमिनीन जमा हो गए , मजलिस की और वोह ताजिया जो शब् ऐ आशूर चौक पे रखा गया था, वोह १९ सफ़र को उठा. (अल्लाह हम्मा सल्ले अल मुहम्मद व आल ऐ मुहम्मद.)
चौक मुहम्मद इस्लाम से सदर इमामबारा बहुत करीब है. लेकिन इस ख्याल से के औरतें भी, अपने घरों से ज़िआरत कर सकें. काजी जमील उल्लाह साहब, काजी जौनपुर के भाई ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की के, यह जुलूस उनके दरवाज़े से गुज़रे इसलिये ताजिया उठा तो चौक मुहम्मद इस्लाम , बाज़ार भुआ से मोहल्ला चत्तर, मुहल्लाह कोठिया, मोहल्ला टोला, मुहल्लाह बार दुअरिया, मोहल्ला हमाम दरवाज़ा, मोहल्ला शेख महामिद, मोहल्ला अजमेरी,मोहल्ला बाज़ार अलिफ़ खान, काजी की गली,मोहल्ला उमर खान, ज़ेर ऐ मस्जिद कलां, मोहल्ला अर्ज़क,मोहल्ला नकी फाटक, मोहल्ला बाग ऐ हाशिम,,मोहल्ला दलियाना टोला, मुहल्लाह शेख बुरहानुद्दीन पुरा, मुहल्लाह मकदूम शाह बडे, मोहल्ला बाज़ार टोला, रानी बाज़ार,मोहल्ला नासिर ख्वान,छत्री घाट, मोहल्ला नवाब गाजी का कुवां,मोहल्ला जगदीशपुर,बेगम गंज , होता हुआ सदर इमामबाडा तक आया और दफ़न कर दिया गया.
इस जुलूस का यह रास्ता मुस्तकिल हो गया जो की अब तक है. १९ सफ़र का यह ताजिया शेख मुहम्मद इस्लाम से हर साल उसी तारीख को उठने लगा . बाज़ रवायतों से यह भी ज़ाहिर है की, असीराने ऐ कर्बला क़ैद से रिहा हो के, १९ सफ़र को कर्बला मैं पहुंचे थे.
शहर के और भी अज़ाखानो के ताजिया भी, इसी तारिख मैं उठने लगे.और सब के सब एक एक कर के ,इस्लाम के चौक वाले ताजिए के साथ रास्ते मैं, शामिल होते चले गए.. आगे इस्लाम का ताजिया होता है, और उसके बाद दूसरे अज़ाखानो के ताजिए रहते हैं. यह जुलूस शाम को सदर इमामबाडा पहुच के तमाम होता है. मोमिनीन की कई अन्जुमनें मातम , गिरया और नौहा ख्वानी करती हुई साथ साथ चलती हैं. . मजमा कसीर होता है.
आज के दौर मैं १८ और १९ सफ़र को इसी इस्लाम के चौक पे सैयेदा का लाल का चेहल्लुम हुआ करते है और कई लाख हिन्दू और मुसलमानों का मजमा होता है.
अब यह ताजिया शब् ऐ आशूर को न रेख के १८ सफ़र (शब् ऐ १९) रात ८ बजे रखा जाता है और रात भर मकामी अंजुमन ऐ मातम, गिरया, सीना ज़नी करती हैं. यह ताजिया मन्नत मुराद पूरी होने के लिए भी बहुत मशहूर है. और यहाँ मांगी दुआ कभी रद्द नहीं होती.
१९ सफ़र वक्त ए जुहर यह ताजिया बाद सोज़ख्वानी और मजलिस, उठाया जाता है और आज भी यह उसी ऊपर बताए पुराने रास्ते से होता हुआ सदर इमामबारा जाता है. इस ताजिया के साथ एक तुर्बत भी उठा करती है , जिसे भी एक मोजज़ा मंसूब है.
इस चेहल्लुम के जुलूस और मोजज़े से यह भी ज़ाहिर होता है, अगेर कोई नेक नियत, अकीदत के साथ, शोहदा ऐ कर्बला की अजादारी करे तोह अल्लाह उसे हर क़ैद से आज़ाद करेगा, और यही मोअजज़ा शैख़ मोहमम्द इस्लाम मरहूम के साथ हुआ. जिस तरह अल्लाह ने शैख़ इस्लाम को क़ैद से आज़ादी दिलवाई , उसी तरह अल्लाह हर अजादार ऐ हुसैन (अ.स) की मुराद पूरी करे. अमीन
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद वा आले मुहम्मद"