google.com, pub-0489533441443871, DIRECT, f08c47fec0942fa0 नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा 65 | हक और बातिल

नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा 65

ख़ुत्बा-65 [ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की रेहलत (देहान्त) के बाद जब सक़ीफ़ए बनी साइदा की ख़बरें अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) तक पहुं...

ख़ुत्बा-65

[ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की रेहलत (देहान्त) के बाद जब सक़ीफ़ए बनी साइदा की ख़बरें अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) तक पहुंचीं, तो आप ने दर्याफ़्त फ़रमाया (पूछा) कि अन्सार क्या कहते थे ? लोगों ने कहा कि वह कहते थे कि एक हम में से अमीर हो जाए और एक तुम में से, हज़रत ने फ़रमाया कि ]

तुम ने यह दलील (तर्क) क्यों न पेश (प्रस्तुत) की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने वसीअत फ़रमाई थी कि अन्सार में जो अच्छा हो उस के साथ अच्छा बर्ताव किया जाए और जो बुरा हो उस से दर गुज़र (क्षमा) किया जाए. लोगों ने कहा कि इस में उन के खिलाफ़ (विरुद्ध) क्या सुबूत (प्रमाण) है ? आप ने फ़रमाया कि अगर हुकूमत व इमारत (सत्ता व समृद्धि) उन के लिये होती तो फिर उन के बारे में दूसरों को नसीहत क्यों की जाती ? फिर हज़रत ने पूछा कि क़ुरैश ने क्या कहा ? लोगोंने कहा कि उन्हों ने शजरए रसूल (स.) से होने की वजह से अपने इस्तेह्क़ाक़ (पात्रता) पर इस्तेद्लाल (तर्क) किया, तो हज़रत ने फ़रमाया कि उन्हों ने शज्रा एक होने से तो इस्तेद्लाल किया लेकिन उस के फलों को ज़ाए (नष्ट) कर दिया।

सक़ीफ़ए बनी साइदा के वाक़िआत (घटनाओं) से यही ज़ाहिर (स्पष्ट) होता है कि अन्सार के मुक़ाबिले में मुहाजिरीन (शरणार्थियों) की सब से बड़ी दलील और वजहे कामरानी (सफलता का कारण) यही चीज़ थी कि क़ुरैश चूंकि पैग़म्बर (स.) के हम क़ौम व हम क़बीले हैं लिहाज़ा उन के होते हुए कोई ग़ैर खिलाफ़त का हक़दार (अधिकारी) नहींहो सकता और इसी बिना (आधार) पर अन्सार का जम्मे ग़फ़ीर (जनसमूह) तीन मुहाजिरीन के सामने हथियार डालने को तैयार हो गया और वह नस्ली इमतियाज़ को पेश कर के ख़िलाफ़ त की बाज़ी जीतने में कामयाब हो गए। चुनांचे इतिहासकार तबरी वाक़िआते सक़ीफ़ा के सिलसिले में तहरीर करते हैं कि जब अन्सार ने सक़ीफ़ए बनी साइदा में सअद इब्ने इबादह के हाथ पर बैअत करने के लिये इजतिमाअ किया, तो हज़रत अबू बक्र, हज़रत उमर और अबू उबैदा इब्ने जर्राह भी सुन गुन पाकर वहां पहुंच गए। इस मौक़े (अवसर) के लिये हज़रत उमर ने पहले से ही कुछ सोच लिया था जिसे कहने के लिये उठे मगर हज़रत अबू बक्र ने उन्हें रोक दिया और ख़ुद खड़े हो गए और अल्लाह की हम्दो सना और मुहाजिरीन की हिजरत और सब्क़ते ईमानी (ईमान लाना में पहल) का तज़किरा (चर्चा) करने के बाद फ़रमाया :--

“यह वही हैं जिन्हों ने सब से पहले ज़मीन में (पृथ्वी पर) अल्लाह की परस्तिश की और सब से पहले अल्लाह व रसूल (स.) पर ईमान लाए। यही पैग़म्बर (स.) के दोस्त और उन के कुंबे वाले हैं और यही सब से ज़ायद (अधिक) ख़िलाफ़त के हक़दार हैं जो इन से टकरायेगा वह ज़ालिम होगा।”

जब हज़रत अबू बक्र अपना बयान खत्म कर चुके तो हबाब इब्ने मुनज़िर खड़े हुए और अन्सार से मुखातिब हो कर फ़रमाया, ऐ गुरोहे अन्सार ! तुम अपनी बाड डोर दूसरों के हाथ में न दो, दुनिया तुम्हारे साये में बस रही है, तुम इज़्ज़त व सर्वत (सम्मान व समृद्धि) वाले क़बीले और जत्थे वाले हो। अगर मुहाजिरीन को बअज़ (कुछ) चीज़ों में तुम पर फ़ज़ीलत (वरीयता) है, तो तुम्हें भी बअज़ चीज़ों में उन पर फ़ौक़ीयत (वरीयता) हासिल है। तुम ने उन्हें अपने घरों में पनाह (शरण) दी। तुम इसलाम के बाज़ूए शमशीर ज़न (तलवार चलाने वाले हाथ) हो तुम्हारी वजह से इसलाम अपने पैरों पर खड़ा हुआ। तुम्हारे शहरों में आज़ादी से अल्लाह की नमाज़ें क़ायम हुई। तुम तफ़रिक़ा व इनतिशार (मतभेद व बिखराव) से अपने को बचाओ और अपने हक़ (अधिकार) पर यकजेह्ती (एकता) से जमे रहो। और अगर मुहाजिरीन तुम्हारा हक़ तस्लीम न करें तो फिर उन से कहो कि एक अमीर तुम में से होगा और एक अमार हम में से होगा।

हबाब यह कह कर बैठे ही थे कि हज़रत उमर खड़े हो गए और फ़रमाया :--

“ ऐसा नहीं हो सकता कि एक वक्त में दो हुक्मरान जमअ हो जाएं। खुदा की क़सम ! अरब कभी इस पर राज़ी न होंगे कि तुम्हें अमीर बनायें, जब कि नबी (स.) तुम में से नहीं हैं। अलबत्ता अरब को इस में ज़रा पसो पेश (झिझक) न होगा कि खिलाफ़त उस के हवाले करें कि जिस के घराने में नुबुव्वत हो और साहिबे अम्र भी उन्हीं में से हो। और इन्कार करने वाले के सामने इस से हमारे हक़ में खुल्लम खुल्ला दलील और वाज़ेह बुर्हान (स्पष्ट तर्क) लाई जा सकती है। जो हम से मोहम्मद (स.) की इमारत (अमीरी) में टकरायेगा वह बातिल (अधर्म) की तरफ़ झुकने वाला, गुनाह का मुर्तकिब और वर्तए हलाकत (मृत्यु के भंवर) में गिरने वाला है।

हज़रत उमर के बाद हबाब फिर खड़े हुए और अन्सार से कहा देखो ! अपनी बात पर डटे रहो। और इस की और इस के साथियों की बातों में न आओ यह तुम्हारे हक़ को दबाना चाहते हैं। अगर यह लोग नहीं मानते तो इन्हें अपने शहरों से निकाल बाहर करो और खिलाफ़त को संभाल लो, भला तुमसे ज़ियादा इस का कौन हक़दार हो सकता है ? हबाब खामोश हुए तो हज़रत उमर ने उन्हें सख्त सुस्त (बुरा भला) कहा। उधर से भी कुछ तल्ख कलामी (कड़वी बातें) हुईं और बअज़ (सभा) का रंग बिगड़ने लगा। अबू उबैदा ने जब यह देखा तो अन्सार को ठंडा करने और अपने ढर्रे पर लाने के लिये कहा कि ऐ गुरोहे अन्सार ! तुम वही लोग हो जिन्हों ने हमें सहारा दिया, हमारी हर तरह मदद इमदाद की। अब अपनी रविश को न बदलो, और अपने तौर तरीक़ों को न छोड़ो। मगर अन्सार इन बातों में न आए और वह सअद के अलावा किसी की बैअत करने को तैयार न थे और उन की तरफ़ लोग बढ़ा ही चाहते थे कि सअद के क़बीले का एक आदमी बशीर खज़्रजी खड़ा हुआ और कहने लगा कि बेशक हम ने जिहाद में क़दम बढ़ाया, दीन को सहारा दिया, मगर उस से हमारी ग़रज़ सिर्फ़ अल्लाह की रज़ामन्दी और उस के रसूल (स.) की इताअत थी। हमारे लिये यह मुनासिब नहीं कि तफ़व्वुक़ (बर्तरी) जतलायें और खिलाफ़त में झगड़ा करें। मोहम्मद (स.) क़ुरैश में से थे लिहाज़ा उन की नियाबत व विरासत का हक़ भी उन्हीं की क़ौम को पहुंचता है। बशीर का यह कहना था कि अन्सार में फूट पड़ गई और उस का मक़्सद भी यही था। चूंकि वह अपने कुंबे (कुटुम्ब) के एक आदमी को बढ़ते हुए न देख सकता था। लिहाज़ा मुहाजिरीन ने अन्सार की इस फूट से पूरा पूरा फ़ाइदा उठाया और हज़रत उमर और अबू उबैदा ने हज़रत अबू बक्र के हाथ पर बैअत का तहैया (निशचय) कर लिया। अभी वह बैअत के लिये बढ़े ही थे कि बशीर ने सब से पहले बढ़ कर अपना हाथ हज़रत अबू बक्र के हाथ पर रख दिया और फिर हज़रत उमर और अबू उबैदा ने बैअत की, और फिर बशीर के क़ौम क़बीले वाले बढ़े और बैअत की और सअद इब्ने इबादा को पैरों तले रौंद कर रख दिया।

अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) इस मौक़े पर पैग़म्बर (स.) के ग़ुस्ल व कफ़न में मसरूफ़ (व्यस्त) थे। बाद में जब सक़ीफ़ा के इजतिमाअ (सम्मेलन) के बारे में सुना और उन्हें यह मालूम हुआ कि मुहाजिरीन ने अपने को पैग़म्बर (स.) का क़ौम व क़बीला कह कर अन्सार से बाज़ी जीत ली है तो यह लतीफ़ जुमला (मृदुल वाक्य) फ़रमाया कि शजरा एक होने से तो दलील लाए हैं और उस के फ़लों को ज़ाए (नष्ट) कर दिया है कि जो पैग़म्बर (स.) के अहले बैत हैं। यअनी अगर शजरए रसूल (स.) से होने की बिना पर उन का हक़ माना गया है, तो जो उस शजरए रिसालत के फ़ल हैं, वह क्यों कर नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं। हैरत है कि हज़रत अबू बक्र जो सातवीं पुश्त पर, और हज़रत उमर जो नवीं पुश्त (पीढ़ी) पर रसूल (स.) से जाकर मिलते हैं वह तो पैग़म्बर (स.) का क़ौमो क़बीला बन जाएं और जो इब्ने अम (चचाज़ाद भाई) था उस के भीई होने से भी इन्कार कर दिया जाता है।

Post a Comment

emo-but-icon

Follow Us

INNER POST ADS

Hot in week

Recent

Comments

Admin

Featured Post

नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है ...

Discover Jaunpur , Jaunpur Photo Album

Jaunpur Hindi Web , Jaunpur Azadari

 

Majalis Collection of Zakir e Ahlebayt Syed Mohammad Masoom

A small step to promote Jaunpur Azadari e Hussain (as) Worldwide.

भारत में शिया मुस्लिम का इतिहास -एस एम्.मासूम |

हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की वफात (६३२ ) के बाद मुसलमानों में खिलाफत या इमामत या लीडर कौन इस बात पे मतभेद हुआ और कुछ मुसलमानों ने तुरंत हजरत अबुबक्र (632-634 AD) को खलीफा बना के एलान कर दिया | इधर हजरत अली (अ.स०) जो हजरत मुहम्मद (स.व) को दफन करने

जौनपुर का इतिहास जानना ही तो हमारा जौनपुर डॉट कॉम पे अवश्य जाएँ | भानुचन्द्र गोस्वामी डी एम् जौनपुर

आज 23 अक्टुबर दिन रविवार को दिन में 11 बजे शिराज ए हिन्द डॉट कॉम द्वारा कलेक्ट्रेट परिसर स्थित पत्रकार भवन में "आज के परिवेश में सोशल मीडिया" विषय पर एक गोष्ठी आयोजित किया गया जिसका मुख्या वक्ता मुझे बनाया गया । इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी

item