या अली (अ) आप के आदेश का पालन हम पर वाजिब है
बिहारुल अनवार में रिवायत हैं! कि एक बार हज़रत अली (अ) घर में आए। और जनाबे ज़हरा (स) से फ़रमाया। कुछ खाने को हैं? बीबी ने फ़रमाया।...
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आप ने फ़रमाया:
अच्छा ऐसा करो कोई वस्तु दे दो ताकि किसी के पास गिरवी रख कर कुछ खाने को लाऊं।
बीबी ने एक चादर पेश कर दी।
हज़रत अली (अ) उसे लेकर अपने यहूदी पड़ोसी के पास गये। और फ़रमाया: यह चादर रख लो और हमें कुछ जौ दे दो। यहूदी ने चादर रख ली और जौ दे दिये। फिर क्रोध में आकर कहा।
या अली (अ) तुम्हारा नबी (स) तो बड़े बड़े कार्य करता हैं। और तुम लोग कहते हो कि वह ईश्वर का बहुत अच्छा बन्दा हैं। जो प्रार्थना करता हैं। वह पूरी हो जाती हैं। क्या उस से इतना भी नहीं हो सकता हैं कि वह तुम लोगों के लिए पेट भर खाने की प्रार्थना करता और वह पूरी हो जाती। ताकि तुम लोग इधर उधर ना फिरते और आराम से खाना खा लिया करते।
आप ने फ़रमाया:
यहूदी ऐसी बात नहीं हैं। हमारा आक़ा तो बहुत बड़ा मालिक हैं। अगर मैं भी चाहूं! और इस दीवार को आदेश दूं कि सोने की हो जा, तो यह दीवार सोने की हो जाएगी।
अब जो यहूदी की निगाह दीवार पर पड़ी तो क्या देखा कि पूरी दीवार सोने की हो गई थी।
हज़रत अली (अ) ने दीवार से फ़रमाया: मैं तो बस ऐसे ही बात कर रहा था। मैं ने तुझे हुक्म तो नहीं दिया। दीवार से आवाज़ आई। या अली (अ) आप के आदेश का पालन हम पर वाजिब है और दुनिया का हर व्यक्ति उलिल अम्र का कहना मानता हैं। यहुदी ने उसी समय कलमा पढ़ लिया।
हज़रत अली (अ) ने फ़रमाया:
हम दुनिया इसीलिए नहीं चाहते हैं। कि उसे ईश्वर पसन्द नहीं करता। वरना दुनिया हमारे लिए इतनी मुश्किल नहीं हैं।
(दमअतुस साकेबा पेज 331)
और दोबार आँखें देखने लगीं....
किताब अलरौज़ा में रिवायत हैं कि 652 हिजरी में वास्ता में इब्ने सलामा फ़राज़ी था। जिस की दाई आँख की रौशनी चली गई थी। इब्ने सलमा एक आँख से मजबूर होने के कारण कोई कार्य नहीं कर सकता था। और इब्ने हनज़ला का क़र्ज़ दार था। एक दिन इब्ने हनज़ला ने क़र्ज़ के बारे में कहा।
इब्ने सलामा ने हज़रत अली (अ) से फ़रियाद की। ख़्वाब में उस ने अज़ाउद्ददीन तैय्येबी को एक व्यक्ति के साथ देखा। उस ने अज़ाउद्ददीन से पूछा कि यह कौन हैं?
अज़ाउद्ददीन ने बताया कि यह तेरे आक़ा हज़रत अली (अ) हैं।
इब्ने सलामा आप के पैरों में गिरा। और कहा कि मौला आँख भी चाहिए। और अदाएगी क़र्ज़ भी। आप ने फ़रमाया। घबराओ ना दोनों कार्य हो जाएगें। सुबह आँख भी मिल जाएगी। और क़र्ज़ भी अदा हो जाएगा। आप ने दायी आँख पर हाथ फेरा और फ़रमाया:
हे ईश्वर इसे दोबारा सही व सालिम कर दें। जिस प्रकार पहली बार अपना करम किया था।
अबू सलामा कहता हैं। कि मैं सुबह को उठा तो मेरी दायी आँख पहले की तरह रौशन थी। और सरहाने देखा तो क़र्ज़ के पैसे भी रखे थे। उठ कर इब्ने हनज़ला के पास गया। और उसका क़र्ज़ अदा कर दिया। और वास्ता के हर व्यक्ति ने अबू सलमा की सही आँख देखी।
(दमअतुस साकेबा पेज 380)