अली के चाहने वाले कितने ख़ुशनसीब हैं?

एमादुद्दीन तबरी इमामी अपनी किताब बशारतुल मुस्तफ़ा में लिख़ते हैं: एक दिन रसूले ख़ुदा (स) बहुत प्रसन्न हो कर हज़रत अली (अ) के पास...



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एमादुद्दीन तबरी इमामी अपनी किताब बशारतुल मुस्तफ़ा में लिख़ते हैं:
एक दिन रसूले ख़ुदा (स) बहुत प्रसन्न हो कर हज़रत अली (अ) के पास आए और आपको सलाम किया।

हज़रत अली (अ) ने सलाम का जवाब दिया और कहाः "हे अल्लाह के रसूल आज आप बहुत प्रसन्न दिखाई देते हैं इससे पहले मैंने आपको इतना ख़ुश कभी नहीं देखा"।

रसूले इस्लाम (स) ने फ़रमायाः "हे अली मैं तुम्हे एक ख़ुश ख़बरी सुनाने आया हूँ, अभी जिब्रईल आए थे और उन्होंने कहाः अल्लाह आपको सलाम भेजता है और फ़रमाता है कि आप अली को बशारत दे उसके तमाम शिया चाहे वह नेक हों या पापी सब के सब जन्नती हैं"।

हज़रत अली (अ) ने जैसै ही यह सुना फ़ौरन सजदे में चले गए और सजदे के बाद दोनों हाथ उठाकर कहाः "ख़ुदाया गवाह रहना मैंने अपनी आधी नेकियां अपने शियों को दे दी हैं "।

इमाम हुसैन (अ) ने भी सजदा किया और कहाः "हे ख़ुदा गवाह रहना कि मैंने अपनी आधी नेकियां अपने पिता के शियों को दे दी हैं"।

इमाम हसन (अ) ने भी सजदा किया और कहाः "हे अल्लाह गवाह रहना कि मैंने अपनी आधी नेकियां शियों को दे दी हैं"।
यह सुन कर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः "तुम मुझसे ज़्यादा सख़ी नहीं हो मैंने भी अपनी आधी नेकियां अली के शियों को दे दी हैं"।

इसी बीच ख़ुदा ने फ़रमायाः "तुम्हारी सख़ावत और करम मुझसे अधिक तो नहीं है मैंने अली के शियों के गुनाहों को क्षमा किया"।
(पंदे तारीख़ से लिया गया पेज 112)


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