दूसरों के बारे में बुरी सोंच का प्रभाव

ऐ ईमान लाने वालों! अपने बहुत से ख़्यालों से बचो, इस लिये कि (दिमाग़ में आने वाले) कुछ ख़्याल गुनाह होते हैं और कभी भी दूसरों की टोह म...



ऐ ईमान लाने वालों! अपने बहुत से ख़्यालों से बचो, इस लिये कि (दिमाग़ में आने वाले) कुछ ख़्याल गुनाह होते हैं और कभी भी दूसरों की टोह में न रहना, और तुम में से कोई किसी की ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई) न करे, क्या तुम में से कोई यह चाहता है कि अपने मरे भाई का गोश्त खाए? ज़रूर तुम्हे यह बहुत बुरा लगता है और अल्लाह से डरो, हक़ीक़त में अल्लाह बहुत ज़्यादा माफ़ करने वाला रहीम है। (सूरए हुजरात/ 12)

बुरी हरकतों और आदतों में से एक दूसरों के बारे में बुरा सोचना और उनकी बातों में छान-बीन करना है जिनसे हमारा कोई मतलब नहीं है, यह बुराई बड़े गुनाहों में से है और क़ुरआन और हदीस दोनों में इसको नकारा गया है।

 https://www.facebook.com/jaunpurazaadari/यह बुरी आदत एक पुरानी बीमारी की तरह बहुत से लोगों के सुकून और चैन को छीन लेती है और अगर हम यह कहें कि इस आदत की वजह से आदमी शारीरिक मरीज़ भी हो जाता है तो यह भी ग़लत नहीं है इस लिये कि इस आदत के होते हुए आदमी का चैन व सुकून ख़त्म हो जाता है जो हर शरीर और आत्मा की बुनियादी ज़रूरत है।

वह ग़लत चीज़ जो इस आदत को बुरा बनाती है वह यह है कि दूसरों के बारे में हम सिर्फ़ अपने भ्रम और ख़्याल की वजह से ग़लत फ़ैसला करने लगते हैं।

ऐसे बहुत से घराने देखने में आते हैं जिन्होंने इश्क़ व मोहब्बत की बुनियाद पर अपनी ज़िन्दगी शुरू की लेकिन मियाँ बीवी में से एक या दोनों में पायी जाने वाली यह छोटी सी लेकिन ख़तरनाक बुरी आदत ने उनकी ज़िन्दगी को ऐसा नुक़सान पहुँचाया जिसकी भरपाई नहीं हो सकती थी जैसे यही कि वह लोग एक दूसरे से जुदा होने की सोचने लगे और अंत में तलाक़ ले बैठे और फिर वह बच्चे होते हैं जो ज़िन्दगी भर अपने माँ-बाप की ग़लतियों की सज़ा भुगतते हैं।

दूसरों के बारे में बुरी सोंच का प्रभाव

1. अल्लाह क्रोधित होता हैः

इस बुरी आदत का सबसे बड़ा और बुरा असर यह होता है कि अल्लाह हमसे नाराज़ हो जाता है। अल्लाह की मर्ज़ी को हासिल करना उसके ख़ास बन्दों की एक इच्छा होती है और उसके साथ ही एक अच्छी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा लक्ष्य भी यही होता है। अल्लाह ने साफ़ साफ़ कहा है कि वह बिल्कुल इस बुरी आदत से ख़ुश नहीं है इसलिए कि उसने इस आदत से बन्दों को राका है।

2. जीवन में चैन और सुकूम समाप्त हो जाता है

इस रूही (मानसिक) बीमारी का सबसे पहला असर इन्सान की ज़िन्दगी में यह होता है कि उसकी ज़िन्दगी का सुकून ख़त्म हो जाता है और वह दूसरों के बारे में कभी भी अच्छा नहीं सोच सकता।

3. प्यार समाप्त हो जाता है फल स्वरूप परिवार बिखर जाता है

जैसा कि हमने पहले इशारा किया कि बहुत से घराने प्यार मोहब्बत के साथ अपनी एक अच्छी ज़िन्दगी आरम्भ करते हैं लेकिन इसी बुरी आदत की वजह से एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते और हमेशा बुरा सोचते हैं, धीरे धीरे यह आपसी मोहब्बत को ख़त्म कर देता है और एक फ़ैमली को बरबादी की कगार पर ला खड़ा करता है।

4. समाजिक जीवन में इन्सान का महत्व कम हो जाता है

दूसरों से सम्बंध एक ऐसी चीज़ है जिसकी हर आदमी को अपनी ज़िन्दगी में ज़रूरत होती है अगर कोई अपने समाजी सम्बंधों में लगातार किसी के पीछे लगा रहे और उसकी बुराईयों को जानने की कोशिश करता रहे तो तय है कि दूसरे लोग ऐसे आदमीं से नाराज़ होकर उससे दूर रहने की कोशिश करेंगे, इस लिये कि कोई नहीं चाहता कि दूसरा हमेशा उसकी टोह में लगा रहे।

दूसरों के बारे में बुरी सोच का इलाजः

मासूमीन अलैहेमुस्सलाम की हदीसों को जब हम देखतें हैं और साथ ही वह बातें जो हमारे उल्मा हमें बताते हैं, उनसे पता चलता है कि सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि ऐसी घाटियों में नहीं जाना चाहिये जहाँ हमारा जाना सही नहीं है। इनमें से एक वह जगह है जहाँ हम किसी के बारे में नहीं जानते और सिर्फ़ अपने वहेम और ख़्याल की वजह से उसके बारे में आंकड़े लगाते हैं।
सूरा ए असरा की आयत 36 में इरशाद हैः

وَ لا تَقْفُ ما لَیْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ إِنَّ السَّمْعَ وَ الْبَصَرَ وَ الْفُۆادَ كُلُّ أُولئِكَ كانَ عَنْهُ مَسْۆُلاً؛
जिसके बारे में तुम नहीं जानते ( इल्म नहीं रखते) उसका अनुसरण न करो, इसलिये कि कान, आँख और दिल से (एक दिन इस बारे में) सवाल किया जाएगा।

दूसरी बात यह है कि अगर हम किसी के बारे में कुछ नहीं जानते तो हमसे कहा गया है कि हम उसके बारे में बुरा सोचने के बजाए अच्छा सोंचें।

इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः

ضع امر اخیک علی احسنه حتی یاتیک ما یغلبک منه و لا تظنن بکلمه خرجت من اخیک سوءا و انت تجد لها غی الخیر مهملا

जब तक किसी के बुरा होने का इतमिनान तुम्हे नहीं है उस वक़्त तक उसके बारे में अच्छा सोचो, और उसकी कही बात के बारे में भी जब तक तुम अच्छा सोच सकते हो तो अच्छा ही सोचो। (कुलैनी-काफ़ी- जि.2 पेज 362


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