इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम मुझे शत्रुओं से बचा लें

एक व्यक्ति इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम के पास पहुँचा और कहने लगाः हे अमीरुल मोमिनीन (अ) के बेटे आप को क़सम हैं उसको ईश्वर के हक़ की...



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एक व्यक्ति इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम के पास पहुँचा और कहने लगाः हे अमीरुल मोमिनीन (अ) के बेटे आप को क़सम हैं उसको ईश्वर के हक़ की जिसने इतनी अधिक नेमतें आपको दी हैं, मेरी सहायता करें, और मुझे शत्रुओं से बचा लें, मेरा एक बहुत बड़ा शत्रु हैं, जो ना तो बुज़ुर्गों का सम्मान करता है और न ही बच्चों पर रहम करता है।

इमाम हसन ने जब यह बात सुनी तो आपने कहा कि बताओः तुम्हारा शत्रु कौन है? ता कि मैं उससे इन्साफ़ मांगूँ और उसको तुम से दूर कर सकूँ? उसने कहाः मेरा शत्रु फ़क़ीरी, पैसे का न होना और पठिनाइयाँ है।

इमाम हसन कुछ देर सोंचते रहे फिर आपने अपने दास को आदेश दियाः जितना भी पैसा तुम्हारे पास है ले आओ और इस व्यक्ति को दे दो,

दास पाँच हज़ार दिरहम लेकर आया और गिनकर उस व्यक्ति को दे दिये।

उसके बाद इमाम ने उस व्यक्ति को क़सम दी और फ़रमायाः

जब भी यह शत्रु दोबारा तुम को परेशान करे और तुम पर अत्याचार करे मेरे पास आना ताकि उसको मैं तुम से दूर कर सकूँ।


(मुनतहल आमाल जिल्द 1, पेज 162)


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