सांसारिक कार्यों और जीवन के मामलों में ईश्वरीय शिक्षाओं के अनुसार काम करें |सूरए मोमिनून, आयतें 25-30




सूरए मोमिनून, आयतें 25-30



(विरोधियों ने कहाः) यह तो बस एक उन्माद ग्रस्त व्यक्ति है। तो कुछ समय तक इसकी प्रतीक्षा कर लो (कि यह मर जाए या उन्माद मुक्त हो जाए)। (23:25) नूह ने कहा हे मेरे पालनहार! इन्होंने जो मुझे झुठलाया है उस पर तू मेरी सहायता कर। (23:26)





इससे पहले हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के संबंध में काफ़िरों की अनुचित बातों का वर्णन किया गया था। यह आयत उसी क्रम को जारी रखते हुए कहती है कि उन्होंने केवल निराधार आरोप नहीं लगाया बल्कि उस ईश्वरीय पैग़म्बर को पागल भी बताया कि जिसकी बुद्धि समाप्त हो चुकी है और जो उलटी सीधी बातें करता है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के व्यक्ति को छोड़ देना चाहिए कि वह स्वयं ही थक हार कर इस प्रकार की बातें करना बंद कर दे।



उन्माद का आरोप, उन आरोपों में से है कि जो पैग़म्बरों के विरोधी उन पर लगाया करते थे और प्रयास करते थे कि इस हथकंडे के माध्यम से लोगों को उनसे दूर करके समाज में उन्हें अलग-थलग कर दें। अलबत्ता कई अवसरों पर वे अपने इस प्रयास में सफल भी रहे हैं।

आगे चल कर आयत कहती है कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह इस प्रकार के हठधर्मी लोगों के मुक़ाबले में जो किसी भी तर्क से सत्य को स्वीकार नहीं करते, उनकी सहायता करे और उनके लिए कोई मार्ग खोले।





इन आयतों से हमने सीखा कि मूर्तियों की पूजा करने वाले और अनेकेश्वरवादी, जिनका कार्य, बुद्धि और तर्क से मेल नहीं खाता, एकेश्वरवादियों और पैग़म्बरों को पागल और उन्मादी कहते हैं।

काफ़िरों के आरोपों के मुक़ाबले में ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हैं और उसी से सहायता चाहते हैं क्योंकि वह सभी शक्तियों से ऊपर है।

 सूरए मोमिनून की 27वीं आयत

तो हमने उनकी ओर वहि की कि हमारी आँखों के सामने और हमारी वहि के अनुसार नौका बनाओ और फिर जब हमारा आदेश आ जाए और तनूर (से तूफ़ान) उमड़ पड़े तो (पशुओं की) प्रत्येक प्रजाति में से एक-एक जोड़ा उसमें रख लो और अपने परिजनों को भी सवार कर लो सिवाए उनके जिनके विरुद्ध पहले बात हो चुकी है और अत्याचारियों (की मुक्ति) के बारे में मुझसे बात न करना कि वे तो डूब कर ही रहेंगे। (23:27)





क़ुरआने मजीद की आयतों के अनुसार हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने साढ़े नौ सौ वर्षों तक लोगों को एकेश्वरवाद का निमंत्रण दिया किंतु केवल कुछ ही लोग उन पर ईमान लाए और अधिकांश लोगों ने उन्हें झुठलाया, उनका अनादर किया और उनका मज़ाक़ उड़ाया। स्थिति इस प्रकार की हो गई कि ईश्वर ने हज़रत नूह को सूचना दी कि अब कोई भी उन पर ईमान नहीं लाएगा और इस जाति की आगामी पीढ़ियां भी काफ़िर ही होंगी। तब हज़रत नूह ने ईश्वर से उस जाति को दंडित करने की प्रार्थना की और ईश्वर ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।



एक भयंकर तूफ़ान आया ताकि धरती को काफ़िरों के अस्तित्व से मुक्त करके उनका नाम व निशान तक मिटा दे किंतु ईश्वर ने उन थोड़े से ईमान वालों और पशुओं की रक्षा के लिए हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को आदेश दिया कि वे एक बड़ा समुद्री जहाज़ तैयार करें और जब ईश्वर के आदेश से धरती से पानी उबलने लगे और आकाश से भयंकर बारिश होने लगे तो वे हर पशु का एक जोड़ा जहाज़ में ले आएं और फिर ईमान वालों को तथा अपनी पत्नी और एक पुत्र को छोड़ कर अपने समस्त परिजनों को सवार करें क्योंकि वे काफ़िरों के साथ हो गए थे अतः उन्हें इस जहाज़ में सवार होने का अधिकार नहीं था।



इस आयत से हमने सीखा कि यदि हम अपने सांसारिक कार्यों और जीवन के मामलों में ईश्वरीय शिक्षाओं के अनुसार काम करें तो सफल रहेंगे।

मनुष्य, पशुओं के संबंध में भी उत्तरदायी है और उसे उनकी प्रजातियों को विलुप्त नहीं होने देना चाहिए।

धार्मिक संबंध, पारिवारिक संबंधों पर प्राथमिकता रखते हैं। यदि पैग़म्बर की पत्नी और पुत्र भी अयोग्य हों तो उनके साथ उनका कोई धार्मिक संबंध नहीं है और वे ईश्वरीय दंड से सुरक्षित नहीं हैं।





यदि ईश्वर चाहे तो वह पानी को, जो जीवनदायक है, अत्याचारियों की तबाही का कारण बना सकता है।

आइये अब सूरए मोमिनून की 28वीं, 29वीं और 30वीं आयत

फिर जब तुम और तुम्हारे साथी नौका पर सवार हो जाएं तो कहो कि समस्त प्रशंसा है उस ईश्वर के लिए जिसने हमें अत्याचारियों की जाति से मुक्ति दिलाई। (23:28) और कहो कि हे मेरे पालनहार! मुझे भले स्थान पर उतार और तू सबसे अच्छा मेज़बान है। (23:29) निःसंदेह इस (घटना) में कितनी ही निशानियाँ हैं और हम (अपने बंदों की) परीक्षा तो लेते ही हैं। (23:30)





ईश्वर इन आयतों में हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को शुभ सूचना देता है कि जहाज़ के तैयार होने और तूफ़ान के आने के बाद सभी काफ़िर मर जाएंगे। अतः ईमान वालों को ईश्वर का आभार प्रकट करना चाहिए कि उसने उन्हें अत्याचारियों से मुक्ति दिलाई और यदि उसकी कृपा न होती तो ईमान वालों को कभी भी उनसे मुक्ति न मिलती।

आगे चल कर आयतें ईश्वर की एक अटल परंपरा की ओर संकेत करते हुए कहती हैं कि ईश्वरीय दंड केवल पिछली जातियों से विशेष नहीं था बल्कि ईश्वर सदैव ही अपने बंदों की परीक्षा लेता है और अत्याचारियों को उनके कर्मों का दंड देता है।





इन आयतों से हमने सीखा कि अत्याचारियों से मुक्ति के लिए ईश्वर पर भरोसा करके प्रयास करना चाहिए और उनसे दूर होने के लिए कोई मार्ग खोजना चाहिए।

क़ुरआने मजीद इतिहास से अवगत होने की किताब नहीं है। इस ईश्वरीय किताब में पिछली जातियों का वर्णन इस लिए किया गया है ताकि लोग उनसे पाठ सीख सकें।



हर काल और हर युग में लोगों की परीक्षा लेना ईश्वर की परंपरा है। सत्य और असत्य की पहचान, सत्य का पालन और असत्य से दूरी इस ईश्वरीय परीक्षा में सफलता का मार्ग है।




Related

सूरए मोमिनून 5463276934451730078

Post a Comment

emo-but-icon

Follow Us

Hot in week

Recent

Comments

इधर उधर से

Comment

Recent

Featured Post

नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है ...

Admin

item