मेहदी जनाब ऐ कासिम निकालो लेकिन ग़लत निस्बत से नहीं |

अज़ादारी के  तरीकों आती जा रही तब्दीलियाँ और इस पे होने वाले एतराजात इस बात की तरफ इशारा करते हैं की शिया कौम को एक साथ जोड़ने वाले यह ...



अज़ादारी के  तरीकों आती जा रही तब्दीलियाँ और इस पे होने वाले एतराजात इस बात की तरफ इशारा करते हैं की शिया कौम को एक साथ जोड़ने वाले यह अज़ादारी यह मुहब्बत ऐ हुसैन (अ.स) है जिसे तोड़ने की साज़िश आज जोर शोर से हो रही ही और हमारा ज्यादा जज्बाती होना दुश्मन के हाथ में हमारी कमज़ोरी का आ जाना है जिसका इस्तेमाल बखूबी किया जा रहा है |

कभी क़मा ज़ंजीर का मातम निशाने पे रहता है तो कभी जनाब ऐ कासिम की मेहदी तो कभी अली की विलायत का एलान करता कलेमा | जब की शियों में इन सब को ले के कोई एख्तेलाफ नहीं है |


ध्यान से देखिये और अपने बुजुर्गों से पूछिए यह क़मा और ज़ंजीर हमेशा से हुआ है और होता रहेगा गम ऐ हुसैन में लेकिन ध्यान से यह भी देखिये की इसका अंदाज़ क्यूँ बदल रहा है ? यह जो बदलाव है यह सही नहीं है | क़मा  और  ज़ंजीर या आग के मातम के वक़्त तहारत ज़रूरी है , वजू के साथ इसे करें और ग़म के एहसास के साथ ,अल्लाह की कुर्बत की नीयत से इसे करें और हमेशा करते रहे मुस्तहब है |

जिद में इसे ना करें और न इसके अंदाज़ को बदलें | जब नमाज़ का अंदाज़ नहीं बदला तो इस मातम का अंदाज़ ऐसा क्यूँ बादला की तलवारों तक के इस्तेमाल की ज़रुरत पेश आने लगी ? ज्यादा कुछ नहीं बोलूँगा बस इतना जैसा क़मा का मातम पहले हमारे बुजुर्गों ने किया था वैसे ही करते रहे |


इसी तरह से मेहदी जनाब ऐ कासिम हमेशा से निकाली गयी और निकाली जाती रहेगी क्यूँ की कर्बला में हुसैन (अ.स) का भरा घर लुट गया, किसी के दिल का अरमान दिल में ही रह गया , किसी का बच्चा गया, किसी का जवाब बेटा तो किसी का शौहर, किसी का बाप |

इमाम हसन (अ.स) का बेटा कासिम जिसका बाप कर्बला के वक़्त नहीं था | बिन बाप का बेटा जिसे उनकी  माँ उम्मे फरवा ने ने बड़े अरमानो से पाला था क्यूँ उसके दिल में यह अरमान नहीं होगा की बेटे की शादी करती उसका सेहरा देखती ?

और आज का जुलूस तो नाम ही है हमारे एलान का की ऐ कर्बला वालों जो आप को दुश्मन ने ना करने दिया उसी को याद करके हम आंसू बहायेंगे | हजरत अब्बास अलमदार का आलम नहर ऐ फुरात पे गिरा तो हमने उठा लिया और ता क़यामत उसे उठाय रहेंगे गिरने ना देंगे |

उम्मे फर्वाह को पुरसा उनके बेटे कासिम का जब देते हैं तो उम्मे फर्वाह के दिल के अरमान को याद कर के जनाब ऐ कासिम की मेहदी निकालते हैं और यह नेक काम है मुस्तहब है |
लेकिन अब यहाँ भी तब्दीली आ गयी की जनाब ऐ कासिम की शादी हुयी थी और उसे मंसूब कर दिया किसी की बेटी की तरफ जो सही नहीं वो भी ऐसी हालत में की यह शादी आज तक कोई मुजतहिद साबित नहीं कर सका और सबने एहतियात के तौर पे इस्पे यकीन से मना किया |

इसलिए मेहदी जनाब ऐ कासिम निकालो लेकिन किसी के बेटी से मंसूब करके नहीं बल्कि उम्मे फर्वाह के दिल के अरमान को याद करके निकालो |

अज़ादारी के तरीकों में कुछ नया शामिल मत करो क्यूँ की मौला अली (अ.स) का कौल है की जब इस्लाम के नाम पे तब्दीलिया इसमें आने लगे और आप की समझ में सही या गलत ना आये तो जो पुराना तरेका है उस से चिपक जाओ |

अज़ादारी के मसले पे आपस में न लड़ो क्यूँ की आपस में लड़ना हराम है और हुसैनियत के नाम पे आपस में लड़ना जब की सब अज़ादारी करते हों अलग अलग अंदाज़ में यकीनन हराम है | हराम के ज़रिये नेकी मुमकिन नहीं |

इसलिए एक रहो और मकसद ए अज़ादारी को पामाल होने से बचाएँ | मुहर्रम अल्लाह की निशानियों में से एक है और अज़ादारी इस अल्लाह की निशानी की याद को जिंदा रखती है | हर अज़ादार पे यह सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी यह है की पूरी दुनिया हुसैन और किरदार ऐ हुसैन को पहचाने और हमें उसी किरदार से पहचाने की हम हुसैनी हैं |
एस एम् मासूम




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