क़ुरआन ने सुनाई हज़रत यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा के इश्क़ की दास्तान |

 क़ुरआन ने सुनाई हज़रत यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा के इश्क़ की दास्तान  हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई उन्हें कुएं में डालने के बाद रोते हुए ...



 क़ुरआन ने सुनाई हज़रत यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा के इश्क़ की दास्तान 

हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई उन्हें कुएं में डालने के बाद रोते हुए अपने पिता के पास आए। उन्होंने पिता के समक्ष यह सिद्ध करने के लिए यूसुफ़ को भेड़िया खा गया है, उनके शरीर से कुर्ता उतार लिया था और उस पर किसी पशु का ख़ून लगा कर उसे पिता के समक्ष पेश कर दिया था किंतु वे उस कुर्ते को फाड़ना भूल गए। हज़रत यूसुफ़ के पिता हज़रत याक़ूब ने जैसे ही अपने पुत्र के कुर्ते को देखा को सब कुछ समझ गए। उन्होंने कहा कि तुम लोग झूठ बोल रहे हो, तुम्हारी आंतरिक इच्छाओं ने इस बुरे कर्म को तुम्हारे समक्ष अच्छा करके प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपने प्राण प्रिय पुत्र के विरह में रोते हुए कहा कि मैं ऐसे धैर्य का उदाहरण प्रस्तुत करूंगा जो अत्यंत सुंदर धैर्य होगा।

हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम अकेले कुएं के भयावह अंधेरे में बड़ा कठिन समय बिता रहे थे किंतु ईश्वर पर ईमान और उससे प्राप्त होने वाला संतोष उनके दिल में आशा की किरण जगाए हुए था। कुछ दिन गुज़रे थे कि वहां एक कारवां पहुंचा और उसी कुएं के निकट ठहर गया। जल्द ही किसी ने कुएं में डोल डाला। हज़रत यूसुफ़ को आवाज़ से पता चल गया कि कुएं की मुंडेर पर कोई है, फिर उन्होंने डोल और रस्सी को नीचे आते देखा। उन्होंने तुरंत ही डोल को पकड़ लिया। पानी निकालने वाले को लगा कि डोल सीमा से अधिक भारी हो गया है और जब उसने शक्ति लगा कर उसे ऊपर खींचा तो अचानक उसकी नज़र एक सुंदर बालक पर पड़ी। वह ख़ुशी से चीख़ पड़ा कि पानी के बजाए एक बच्चा निकला है। कारवां वाले यूसुफ़ को अपने साथ मिस्र ले गए और दासों के मंडी में उन्हें सस्ते दामों बेच दिया। फ़िरऔन के मंत्री ने जिसे अज़ीज़े मिस्र कहा जाता था, यूसुफ़ को ख़रीद लिया। इस प्रकार मिस्र पहुंच कर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के जीवन का एक नया अध्याय आरंभ हुआ।

सूरए यूसुफ़ की 21वीं आयत में ईश्वर कहता हैः और मिस्र के जिस व्यक्ति ने उसे ख़रीदा था उसने अपनी पत्नी से कहा कि इसे आदर सत्कार के साथ रखना, हो सकता है कि यह भविष्य में हमें लाभ पहुंचाए या हम इसे अपना बेटा ही बना लें। और इस प्रकार हमने यूसुफ़ को (मिस्र की उस) धरती में स्थान दिया और उन्हें सपनों की ताबीर अर्थात व्याख्या का ज्ञान प्रदान किया। और ईश्वर, अपने मामले में विजयी रहता है किन्तु अधिकांश लोग इसे नहीं समझते। अज़ीज़े मिस्र ने, जो उस बालक की सुंदरता और मासूमियत से वशीभूत हो गया था और स्वयं उसकी कोई संतान नहीं थी, अपनी पत्नी से कहा कि वह उसे सम्मान के साथ रखे।

क़ुरआने मजीद के व्याख्याकारों की दृष्टि में इस आयत में ईश्वर ने जो कहा है कि हमने यूसुफ़ को मिस्र की धरती में स्थान दिया, वह इस कारण है कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का मिस्र आना और अज़ीज़े मिस्र के जीवन में उनका शामिल होना, भविष्य में उनकी अभूतपूर्व शक्ति की भूमिका बन गया। शायद यह इस बात की ओर भी संकेत हो कि हर प्रकार की सुविधा से संपन्न अज़ीज़े मिस्र के महल में जीवन की तुलना कुएं के अकेलेपन और भय के जीवन से किसी भी प्रकार नहीं की जा सकती।

हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम, अज़ीज़े मिस्र के घरे में पले-बढ़े और व्यस्कता के चरण तक पहुंचे और फिर ज्ञान व तत्वदर्शिता से संपन्न हुए। उनके सुंदर व तेजस्वी चेहरे ने अज़ीज़े मिस्र को वशीभूत कर लिया था और उसकी पत्नी ज़ुलैख़ा भी उन्हें चाहने लगी थी, इस प्रकार से कि यूसुफ़ का प्रेम उसके दिल की गहराइयों में बस गया था। धीरे-धीरे वह यूसुफ़ के प्रेम में पागलपन की सीमा तक डूब गई जबकि पवित्र प्रवृत्ति वाले यूसुफ़ केवल अपने ईश्वर से प्रेम करते थे।

ज़ुलैख़ा ने अपनी कामेच्छा की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाए और यूसुफ़ के मार्ग में अनेक जाल बिछाए किंतु वह सफल नहीं हो सकी। उसके मन में जो अंतिम युक्ति आई वह यह थी कि उन्हें अपने शयन कक्ष में अकेले बुलाए और उन्हें उत्तेजित करने के सभी साधन तैयार रखे। उसने अत्यंत सुंदर वस्त्र धारण किया और बन ठन कर ऐसा वातावरण बना दिया कि युवा यूसुफ़ के पास उसकी बात मानने के अतिरिक्त कोई मार्ग न रहे। जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम उसके शयन कक्ष में आ गए तो उसने सारे दरवाज़े बंद कर दिए और उनसे कहा कि मैं तुम्हारे अधिकार में हूं।

हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने देखा कि लड़खड़ाने और पाप में पड़ने के सभी साधन उपलब्ध हैं और उनके पास कोई अन्य मार्ग नहीं बचा है। उन्होंने ज़ुलैख़ा से कहा कि मैं ईश्वर की शरण चाहता हूं। इस प्रकार उन्होंने पूरी दृढ़ता से उसकी अनैतिक मांग को ठुकरा दिया और उसे समझा दिया कि वे उसके समक्ष झुकने वाले नहीं हैं। इसी के साथ उन्होंने सभी के समक्ष यह वास्तविकता भी स्पष्ट कर दी कि इस प्रकार की परिस्थिति में शैतान के उकसावों से बचने का एकमात्र मार्ग, ईश्वर की शरण में जाना है। सूरए यूसुफ़ की 23वीं आयत है। और जिस स्त्री के घर में यूसुफ़ थे उसने उन पर डोरे डाले और दरवाज़े बंद कर दिए और कहने लगी लो आओ। यूसुफ़ ने कहा, मैं ईश्वर की शरण चाहता हूं, निश्चित रूप से अज़ीज़े मिस्र ने मुझे अच्छा ठिकाना प्रदान किया है और (क्या संभव है कि मैं उससे विश्वासघात करूं?) निसंदेह अत्याचारी कभी सफल नहीं होते।

इस स्थान पर हज़रत यूसुफ़ व ज़ुलैख़ा की घटना सबसे संवेदनशील चरण में पहुंच जाती है जिसे क़ुरआने मजीद ने बड़े अर्थपूर्ण ढंग से बयान किया है। सूरए यूसुफ़ की 24वीं आयत में कहा गया है। और निसंदेह उस स्त्री ने यूसुफ़ से बुराई का इरादा किया और यदि वे भी अपने पालनहार का तर्क न देख लेते तो उसकी ओर बढ़ते। इस प्रकार हमने ऐसा किया ताकि बुराई और अश्लीलता को उनसे दूर रखें कि निश्चित रूप से यूसुफ़ हमारे निष्ठावान बंदों में से थे। यद्यपि ज़ुलैख़ा, यूसुफ़ को पाप के मुहाने तक ले गई किंतु ईमान व बुद्धि की शक्ति के असाधारण रूप से लामबंद हो जाने के कारण, वासना का तूफ़ान थम गया। उस संवेदनशील क्षण में हज़रत यूसुफ़ ने अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए, आंतरिक इच्छाओं का डट कर मुक़ाबला किया। इस आयत में ईश्वर द्वारा हज़रत यूसुफ़ को अपना निष्ठावान बंदा बताए जाने में यह बिंदु निहित है कि वह अपने निष्ठावान बंदों को कठिन क्षणों में अकेले नहीं छोड़ता बल्कि विभिन्न मार्गों से उनकी सहायता करता है।

हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम पाप में पड़ने से बचने के लिए बड़ी तेज़ी के साथ महल के द्वार की ओर दौड़े ताकि उसे खोल कर बाहर निकल जाएं। ज़ुलैख़ा भी, जिसकी बुद्धि, भावनाओं से मात खा चुकी थी, उनके पीछे दौड़ी ताकि उन्हें बाहर न जाने दे।

सूरए यूसुफ़ की 25वीं आयत में इसके बाद के दृश्य का चित्रण इस प्रकार किया गया है। और (यूसुफ़ तथा अज़ीज़े मिस्र की पत्नी) दोनों दरवाज़े की ओर दौड़े। उस महिला ने यूसुफ़ के कुर्ते को पीछे से फाड़ दिया, उसी समय उन दोनों ने उसके पति को द्वार पर पाया। वह बोल पड़ी जो तुम्हारी पत्नी के संबंध में बुरी नीयत रखे उसका बदला इसके अतिरिक्त क्या है कि उसे कारावास में डाल दिया जाए या कड़ी यातना दी जाए?

साक्ष्यों और तर्कों पर विचार करने के बाद अज़ीज़े मिस्र को समझ में आ गया कि उसकी पत्नी ने उसका विश्वास तोड़ा है और वह झूठ बोल रही है किंतु इस भय से कि यदि यह बात खुल गई तो उसकी बेइज़्ज़ती हो जाएगी, उसने मामले को दबाने का निर्णय किया। उसने यूसुफ़ से कहा कि तुम इस बात को छोड़ दो और इस बारे में किसी से कुछ मत कहना। उसने अपनी पत्नी से कहा कि तू भी अपने पाप का प्रायश्चित कर कि तू पापियों में से थी। किंतु महल वालों की अपेक्षा के विपरीत, यह बात महल के बाहर तक पहुंच गई और जैसा कि आयतों में कहा गया है कि नगर की कुछ महिलाओं ने कहा कि अज़ीज़े मिस्र की पत्नी ने अपने दास को अपनी ओर बुलाया और दास का प्रेम उस पर इतना हावी हो गया कि उसके दिल की गहराइयों तक पहुंच गया। उन्होंने कहा कि हम ज़ुलैख़ा को खुली हुई पथभ्रष्टता में देखते हैं।

ज़ुलैख़ा को जब मिस्र की महिलाओं की इन बातों का पता चला तो उसने एक सभा का आयोजन किया और उन महिलाओं को उसमें आमंत्रित किया। उसने उन सभी को फल खाने के लिए एक एक चाक़ू दिया और फिर यूसुफ़ से कहा कि वे उन महिलाओं के सामने से गुज़र जाएं। मिस्र की उन प्रतिष्ठित महिलाओं ने जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के तेज व आभा को देखा तो इस प्रकार हतप्रभ रह गईं मानो उन पर किसी ने जादू कर दिया हो और उन्होंने फल के बजाए चाक़ू से अपने-2 हाथ काट लिए। उन महिलाओं ने कहा कि पवित्र है ईश्वर, यह कोई मनुष्य नहीं बल्कि ईश्वर का कोई महान फ़रिश्ता है।

इस प्रकार ज़ुलैख़ा ने उन महिलाओं को, यूसुफ़ पर अपने मोहित होने का कारण समझा दिया। उस सभा में उसने खुल कर अपने पाप को स्वीकार किया और कहा कि हाँ मैंने यूसुफ़ से अपना कामेच्छा पूरी करवानी चाही थी किंतु उसने इन्कार कर दिया। इसके बाद उसने कहा कि जो कुछ मैं कह रही हूं, यदि उसे यूसुफ़ ने पूरा न किया तो निश्चित रूप से उसे कारावास में डाल दिया जाएगा जहां वह अपमानित होगा।

सूरए यूसुफ़ की तैंतीसवीं आयत के अनुसार ऐसी परिस्थितियों में जब समस्याओं और कठिनाइयों की आंधियों ने चारों ओर से हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को घेर रखा था, उन्होंने बड़े साहस के साथ निर्णय किया और उन कामुक महिलाओं को संबोधित करने के बजाए अपने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहाः प्रभुवर! मेरी दृष्टि में कारावास उस काम से अधिक प्रिय है जिसकी ओर मुझे ये बुला रही हैं। और यदि तूने मुझे इनकी चालों से न बचाया तो मैं इनकी ओर झुक सकता हूं और ऐसी स्थिति में मैं अज्ञानियों में से हो जाऊंगा।

ईश्वर ने भी हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को अकेला नहीं छोड़ा और उन महिलाओं के षड्यंत्रों को विफल बना दिया। अंततः यूसुफ़ का निर्दोष और ज़ुलैख़ा का दोषी होना सिद्ध हो गया। अज़ीज़े मिस्र ने ज़ुलैख़ा के अनैतिक कर्म के कारण अपनी बेइज़्ज़ती को रोकने के लिए यूसुफ़ को जेल में डलवा दिया ताकि लोग उन्हें भूल जाएं। उसने सोचा कि उनके जेल में जाने से लोग यह सोचेंगे कि दोषी यूसुफ़ ही थे। इस प्रकार एक पवित्र, निर्दोष एवं आदर्श व्यक्ति को कारावास में डाल दिया गया।

दो और युवाओं को भी उसी समय हज़रत यूसुफ़ के साथ जेल में डाला गया। एक दिन उन दोनों ने एक सपना देखा और हज़रत यूसुफ़ के सामने उसका उल्लेख किया और उनसे कहा कि वह उनके सपने की ताबीर अर्थात उसकी व्याख्या बयान करें।

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हज़रत यूसुफ़ आस्था एवं विश्वास के उस स्तर पर थे कि उनके सामने बहुत से रहस्यों से परदे हट गए थे। उन्होंने एकेश्वरवाद की वास्तविकता से उन्हें अवगत करवाते हुए कहा, हे क़ैद में मेरे साथियों, तुम में से एक आज़ाद हो जाएगा और अपने स्वामी की साक़ी बनकर सेवा करेगा, लेकिन दूसरे को फांसी दे दी जाएगी और परिंदे उसका मास खायेंगे। हज़रत यूसुफ़ ने आज़ाद होने वाले से कहा कि जैसे ही तुम आज़ाद होगे तो अपने मालिक राजा से मेरे बारे में बताना, और कहना कि वह मेरे बारे में जांच करायें ताकि मेरा निर्दोष होना सिद्ध हो जाए। वह व्यक्ति कुछ समय बाद रिहा हो गया, लेकिन हज़रत यूसुफ़ को बिल्कुल भूल गया। हज़रत यूसुफ़ एक अजनबी व्यक्ति की तरह वर्षों तक जेल में बंद रहे। वे जेल में आत्मनिर्माण, क़ैदियों की सेवा और उनका मार्गदर्शन करते रहे।

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इस घटना को सात वर्ष बीत गए यहां तक कि मिस्र के राजा ने परेशान करने वाला एक सपना देखा। सुबह होते ही उसने सपने की व्याख्या करने वालों और अपने दरबारियों को उपस्थित होने का आदेश दिया।

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उसने कहा, मैंने सपने में सात मोटी ताज़ा गायों को देखा जिन्हें सात पतली दुबली गाय खा रही हैं, और सात बालियां हरी हैं और सात अन्य सूखी हुई। (आयत-43)

उसने कहा हे सरदारों अगर मेरे सपने की व्याख्या करत सकते हो तो इसके बारे में मुझे बताओ। लोगों ने राजा से कहा यह बुरा स्वप्न है और हम इस तरह के स्वप्न के बारे में अधिक नहीं जानते हैं।

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इस समय उस युवा को हज़रत यूसुफ़ का ख़याल आया और उसने कहा, जेल की एक कोठरी में एक धर्मात्मा क़ैद हैं जो इस सपने की व्याख्या कर सकते हैं। मुझे अनुमति दें ताकि मैं उनसे मिल सकूं। उसने हज़रत यूसुफ़ के पास जाकर कहा, हे सच्च बोलने वाले मुनि आप इस सपने के बारे में क्या कहेंगे?


हज़रत यूसुफ़ ने राजा के सपने की व्याख्या करते हुए कहा, सात वर्षों तक निरंतर गंभीरता से खेती करो, इसलिए कि इन सात वर्षों में काफ़ी बारिश होगी। लेकिन जो भी उत्पादन करो उसे बालियों समेत ही भंडार कर लो, केवल थोड़ी सी मात्रा में निकालों जितनी ज़रूरत हो। लेकिन यह जान लो कि इन सात वर्षों के बाद सात वर्षों तक सूखा पड़ेगा और उस समय केवल जो तुमने भंडारण किया होगा उसे उपयोग कर सकोगे, नहीं तो नष्ट हो जाओगे। अगर योजना अनुसार, इन सात वर्षों को बिताओगे तो ख़तरा टल जाएगा। इसलिए कि उसके बाद ख़ूब बारिश होगी और लोग ईश्वरीय अनुकंपाओं से लाभांवित होंगे।

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हज़रत यूसुफ़ ने राजा के सपने की सटीक व्याख्या की और इसी के साथ सूखे का सामना करने के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया। राजा और दरबारी इस व्याख्या से आश्चर्यचकित रह गए।

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राजा ने यूसुफ़ को आज़ाद करने का आदेश दिया लेकिन हज़रत यूसुफ़ ने कहा कि वे उस समय आज़ाद होना पसंद करेंगे जब उन पर लगे आरोपों की जांच हों और वे निर्दोष साबित हो जाएं। अंततः ज़ुलेख़ा ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और कहा, अब सत्य सिद्ध हो चुका है, मैंने काम वासना की इच्छा व्यक्त की थी। इस प्रकार, मिस्र वासियों के लिए हज़रत यूसुफ़ (अ) का निर्दोष होना सिद्ध हो गया।

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राजा ने हज़रत यूसुफ़ को अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया। राजा ने पाया कि हज़रत यूसुफ़ असाधारण ज्ञान एवं दूरदर्शिता रखते हैं। राजा ने उनसे कहा कि आज हमारे निकट तुम्हारा उच्च स्थान है और हमें तुम पर भरोसा है। हज़रत यूसुफ़ के सुझाव पर उन्हें कोषाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

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हज़रत यूसुफ़ की भविष्यवाणी के मुताबिक़, अच्छी बारिश होने के कारण सात वर्षों तक अच्छी फ़सल हुई। इस दौरान हज़रत यूसुफ़ ने खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिए गोदामों के निर्माण का आदेश दिया। उन्होंने जनता से कहा कि अपनी आवश्यकतानुसार फ़सलों में से ले लें और बाक़ी सरकार को बेच दें। इस प्रकार, गोदाम अनाज ने भर गए। सात वर्षों तक अच्छी फ़सल होने के बाद, सूखे का दौर शुरू हो गया और लोगों के पास अनाज की कमी होने लगी। हज़रत यूसुफ़ योजना के अनुसार, लोगों को अनाज बेचते थे और न्यायपूर्ण ढंग से उनकी ज़रूरतों की आपूर्ति किया करते थे। मिस्र के आसपास के इलाक़ों में भी सूखा पड़ रहा था। अतः हज़रत याक़ूब के लड़के अनाज ख़रीदने के लिए मिस्र गए। हज़रत यूसुफ़ स्वयं अनाज के वितृण की निगरानी करते थे, उन्होंने लोगों की भीड़ में अपने भाईयों को पहचान लिया, लेकिन उन्होंने हज़रत यूसुफ़ को नहीं पहचाना। हज़रत यूसुफ़ ने उनके साथ बहुच अच्छा व्यवहार किया और उनसे उनका हालचाल पूछा। भाईयों ने कहा, हज़रत याक़ूब के हम दस बेटे हैं और वे हज़रत इब्राहीम के पौत्र हैं और ईश्वरीय दूत हैं, लेकिन उन्हें गहरा दुख पहुंचा है। उनका एक और बेटा था जिसे वे बहुत चाहते थे, एक दिन शिकार के लिए हमारे साथ जंगल गया, हमारा ध्यान उससे हट गया और भेड़िए ने उसे खा लिया।

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हज़रत यूसुफ़ कोशिश में थे कि किसी भी तरह अपने छोटे भाई बिनयामिन को मिस्र बुला लें। उन्होंने अपने भाईयों से कहा, अगर तुम दोबारा यहां आओ तो अपने उस भाई को भी लेकर आना जो तुम्हारे पिता के साथ है। अगर उसे नहीं लाओगे तो तुम्हें अनाज नहीं दिया जाएगा। हज़रत यूसुफ़ के आदेशानुसार, सेवकों ने ख़ुफ़िया रूप से उनके भाईयों के सामान में वह पैसे रखवा दिए जो उन्होंने अनाज ख़रीदने के बदले चुकाए थे। कुछ समय बाद जब हज़रत याक़ूब के बेटे अपने शहर पहुंचे तो उन्होंने अपने पिता से मिस्र के शासक के दयालु और कृपालु होने का उल्लेख किया और उनसे आग्रह किया कि बिनयामिन को उनके साथ मिस्र भेज दें। अंततः बेटों के बहुत अधिक आग्रह के बाद हज़रत याक़ूब ने बिनयामिन को उनके साथ भेजेने की बात स्वीकार कर ली। वे बिनयामिन को लेकर हज़रत यूसुफ़ के पास गए। हज़रत यूसुफ़ ने उनका स्वागत किया और उन्हें सम्मान दिया। फिर चुपके से अपने भाई बिनयामिन से कहा, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ हूं, दुखी मत होना और उनके व्यवहार से नाराज़ नहीं होना।

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हज़रत यूसुफ़ के आदेशानुसार, एक कर्मचारी ने चुपके से बिनयामिन के भार में विशेष प्याला छिपा दिया। क़ाफ़िला जब चलने को हुआ तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें सोने का प्याला चुराने के अपराध में रोक लिया। हज़रत यूसुफ़ के भाईयों ने कहा, ईश्वर की सौगंध हमने कभी भी चोरी नहीं की। उनसे कहा गया कि अगर तुममे से किसी के सामान में यह प्याला निकला तो उसे क्या दंड दिया जाना चाहिए? भाईयों ने कहा, हमारी परम्परा के अनुसार, चोर को सेवक के रूप में रोक लिया जाए।

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सुरक्षाकर्मियों ने पहले दूसरों के सामान की जांच की और उसके बाद बिनयामिन के सामान की, बिनयामिन के सामान से प्याला निकल आया, भाईयों पर दुखों को पहाड़ टूट पड़ा। उन्होंने लज्जित होते हुए कहा, अगर बिनयामिन चोरी करे  तो आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि उसका जो एक भाई था उसने भी चोरी की थी। हज़रत यूसुफ़ को निराधार आरोप सुनकर बहुत दुख पहुंचा लेकिन उन्होंने ज़ाहिर नहीं किया। भाईयों ने कहा, हे मिस्र के शासक, बिनयामिन के पिता बहुत बूढ़े हैं, उसे हमारे साथ भेज दो और हम में से किसी एक को उसके स्थान पर रोक लो, आप तो बहुत दयालु व्यक्ति हो। यूसुफ़ ने कहा, हमें ईश्वर का भय है, जिसके पास से प्याला नहीं मिला है हम उसे नहीं रोक सकते, अगर ऐसा करेंगे तो हम अत्याचारी होंगे।

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जब भाई निराश हो गए तो बड़ा भाई मिस्र में रुक गया और दूसरे भाई पिता का आदेश लेने पिता की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने उपस्थित होकर हज़रत याक़ूब को पूरी बात बताई। पिता ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया और कहा, ऐसा नहीं है बल्कि तुम्हारे मन ने तुम्हें धोखा दिया है, मैं धैर्य से काम लूंगा, और मुझे ईश्वर से आशा है कि वह दूसरे बेटों को भी मुझ से मिला देगा। हज़रत सूसुफ़ की जुदाई में रो रोकर हज़रत याक़ूब की आंखों की पुतलियां सफ़ैद पड़ चुकी थीं और उन्हें दिखाई देना बंद हो गया था। उन्होंने अपने बेटों से कहा, मिस्र वापस जाएं और यूसुफ़ और उनके भाई को खोजें, और ईश्वर की कृपा से निराश न हों। उनके बेटों ने पुनः मिस्र की यात्रा की और हज़रत यूसुफ़ से आग्रह किया कि अपनी महानता के आधार पर उनकी सहायता करें।

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हज़रत यूसुफ़ ने कहा, क्या तुम जानते हो कि तुमने अज्ञानता और नादानी में यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्या किया? उन्हें यूसुफ़ जाने पहचाने से लगे लेकिन उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि यूसुफ़ मिस्र के शासक कैसे बन सकते हैं। इसी लिए उन्होंने आशंका व्यक्त करते हुए पूछा क्या तुम ही यूसुफ़ हो? यहां यूसुफ़ ने वास्तविकता स्पष्ट कर दी और कहा, हां मैं यूसुफ़ हूं और यह मेरा भाई बिनयामिन है। ईश्वर ने अपनी कृपा से हमें ख़तरों से बचाया। और यह स्थान ईश्वर ने मुझे धैर्य और अच्छे काम अंजाम देने तथा बुरे कामों से दूर रहने के कारण प्रदान किया है।

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उनके भाईयों ने कहा, ईश्वर की सौगंध, ईश्वर ने तुम्हें हम पर वरीयता प्रदान की जबकि हमने तुम्हारे साथ ग़लती की। हज़रत यूसुफ़ ने कहा, अब तुम्हारी ग़लती पर तुम्हें दंडित नहीं किया जाएगा, मैं ईश्वर से तुम्हें क्षमा करने के लिए याचना करता हूं वह क्षमा करने वाला और अति महरबान है।

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उसके बाद, अपने भाईयों से कहा, उनका कुर्ता लेकर जाएं और पिता के चेहरे पर डाल दें ताकि उनकी आंखों का प्रकाश लौट आए। हज़रत यूसुफ़ के भाई बहुत ही उत्साहपूर्व कनआन की ओर पलटे और तेज़ी से पिता के पास गए। उन्होंने हज़रत युसूफ़ के कुर्ते को हज़रत याक़ूब के चेहरे पर डाला, उनकी आंखों का प्रकाश लौट आया और उन्होंने कहा, क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि ईश्वर ने मुझे उन चीज़ों का ज्ञान दिया है जिनका ज्ञान तुम्हारे पास नहीं है।

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हज़रत याक़ूब और उनके बेटे हज़रत यूसुफ़ से मुलाक़ात के लिए चल दिए। यूसुफ़ भी अपने माता पिता के स्वागत के लिए गए। अंततः हज़रत याक़ूब के जीवन का सबसे अच्छा क्षण आ गया, और वर्षों बाद बाप बेटे एक दूसरे से मिले। यूसुफ़ ने कहा मिस्र में पधारिए और ईश्वर की इच्छा से आप पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेंगे। जब वे दरबार में पहुंचे तो उन्होंने अपने माता पिता को सिंहासन पर बैठाया। इस दृश्य से उनके भाई इतने अधिक प्रभावित हुए कि सभी सजदे में गिर गए। इस समय हज़रत सुसूफ़ ने अपने पिता की ओर देखकर कहा, पिता श्री यह उस सपने का सच होना है जो अतीत में मैंने देखा था, ईश्वर ने उसे सच कर दिखाया।

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