दोस्त की तळाश है तो पढे सूरए बक़रह की २५७ आयत |

अल्लाह विश्वास रखने वालों का स्वामी है और उन्हें अंधकारों से प्रकाश की ओर ले जाता है और इन्कार करने वालों के स्वामी झूठे ख़ुदा होते हैं...



अल्लाह विश्वास रखने वालों का स्वामी है और उन्हें अंधकारों से प्रकाश की ओर ले जाता है और इन्कार करने वालों के स्वामी झूठे ख़ुदा होते हैं जो उन्हें प्रकाश से निकाल कर अंधकार में ढकेल देते हैं। वे नरक वाले हैं जहां वे सदैव रहेंगे। (2:257)


ईमान या धर्मविश्वास मन की एक ऐसी क्रिया है जो बलपूर्वक नहीं करवाई जा सकती बल्कि तर्क, उपदेश और शिष्टाचार वह तत्व हैं जो किसी भी व्यक्ति को किसी धर्म के अधीन कर देते हैं। अल्लाह ने मनुष्य के विकास और उसकी परिपूर्णता के लिए एक ओर तो पैग़म्बरों और आसमानी किताबों को भेजा ताकि मनुष्य को सही और ग़लत मार्ग की पहचान हो जाए और दूसरी ओर उसे यह अधिकार दिया कि वह जिसका चाहे चयन करे। यही कारण है कि ईश्वरीय दूतों ने भी किसी को ईमान लाने पर विवश नहीं किया क्योंकि ज़बरदस्ती के ईमान और विश्वास का कोई महत्व नहीं होता।

 अब अगर कोई पापी और अत्याचारी की अधीनता से निकल कर केवल अल्लाह का दास बन जाए तो वह ईश्वर के स्वामित्व में चला जाता है और ईश्वर स्वयं उसके मामलों की देखरेख करता है कुछ इस प्रकार कि जीवन के हर मोड़ पर सदैव उसका सत्य की ओर मार्गदर्शन करता है और उसे विभिन्न ख़तरों से सुरक्षित रखता है। किंतु दूसरी और यदि कोई ईश्वर को छोड़कर किसी अन्य से आशा बांधे और उसपर भरोसा करे तो उसे जान लेना चाहिए कि उसने अपने आप को अंधकार के हवाले कर दिया है और वह लोग प्रकाश का कोई छोटा सा झरोखा भी उसके लिए नहीं छोड़ेंगे।

इस आयत से मिलने वाले पाठः

उस धर्म का महत्व होता है जो जानकारी और पहचान पर आधारित हो तथा जिसे स्वंतत्रता एवं स्वेच्छा से ग्रहण किया गया हो।सत्य का मार्ग प्रकाश है जो मार्गदर्शन, आशा और शांति का कारण होता है किंतु असत्य का मार्ग अंधकार है कि जो पथभ्रष्टता, अज्ञानता और व्याकुलता का कारण बनता है।

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