इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) की विलादत माह ऐ रजब में और उनकी ज़िन्दगी |

इमाम  मुहम्मद बाकिर (अ.स) की विलादत एक रबीउल अव्वल रोज़ ऐ जुमा   सन ५७ हिजरी को मदीने में हुयी | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) की माँ इमाम हसन (अ.स) की बेटी  थीं जिनका नाम फातिमा था और पिता इमाम जैनुल आबेदीन (अ.स) थे | यह वाहिद इमाम हैं जिनकी माँ और बाप दोनों हजरत अली (अ.स) और जनाब इ फातिमा की औलाद थे | रवायतों में मिलता है की इमाम मुहम्मद बाकिर (अ,स) की विलादत वाकये कर्बला से ३ -४ या 5 साल पहले हुयी | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) ऐसे इमाम हैं जिन्हें रसूल ऐ खुदा (स.अ.व) ने अपने सहाबी जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी से सलाम भिजवाया था और इनका नाम मुहम्मद और लक़ब बाकिर रखने की हिदायत  दी थी | बाकिर का मतलब होता है कुशादा इल्म | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) की शक्ल और सीरत रसूल ऐ खुदा (.स.अव० ) से मिलती थी और क़द दरमियाना ,गेन्हुवा रंग ,चेहरे में तिल था | इमाम के हाथों पे उनके दादा इमाम हुसैन (अ.स) की अंगूठी हुआ करती थी |इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) कर्बला  में मौजूद थे और उम्र २ से 5 साल के बीच में बताई जाती है | अबु हनीफा जो अहले सुन्नत के हनफी लोगों के इमाम हैं इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) के शागिर्द हुआ करते थे. सन 95 हिजरी में इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) इमामत मिली जो सिर्फ १९ साल रही जब उनकी वफात ज़हर देने से मदीने में सन ११४ में हो गयी | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) 5 साल तक इमाम हुसैन (अ.स) की गोद में खेले और बकी 34 साल अपने वलीद इमाम जैनुल आबेदीन (अ.स) के साथ रहे |

इमाम महम्मद बाकिर (अ.स) का अखलाक और नर्म दिली बहुत मशहूर थी और उन्होंने अपने शियों को समाज में किस तरह रहा जाए बार बार समझाया | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) ने अपने शियों को यह हिदायत दी की जितना   भी मुमकिन हो इल्म हासिल  करो और उसका इस्तेमाल खुद अपना किरदार बनाने में ओर लोगों में बांटने में करो | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) की अहादीस है की जो कोई दीन ऐ इस्लाम से मुताल्लिक कोई इल्म लोगों को बिना खुद इल्म हासिल किये देता है उसपे अल्लाह के फ़रिश्ते लानत भेजते हैं |

इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स)  ने कहा को जो इंसान किसी दुसरे इंसान के लिए अशब्दों का इस्तेमाल करे वो हममे से नहीं |  सुमा'आ कहता है कि इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) के पास जब वो गया तो हुज़ूर ने बगैर उस से कुछ पूछे कहा की तुम्हारे और ऊंट वाले के बीच यह क्या वाकेया हुआ और तुम खुद को चिलाने, गलियाँ देने, लानत मलामत करने से खुद को बचाओ | सुमा'आ ने कहा खुदा की क़सम उसने मुझपे ज़ुल्म किया था |इमाम ने कहा की अगर उसने तुम पे ज़ुल्म किया तो चिल्ला के गालियाँ देके तुमने भी उस पे ज़ुल्म किया है और यह हमारे चाहने वालों का तरीका नहीं और हम इस बात की इजाज़त किसी को नहीं देते ,जाओ और इस्तेगफार (अल्लाह से माफ़ी माँगो) करो | सुमा'आ कहता है उसने तौबा की और अल्लाह से माफी मांगी और फिर ऐसा ना करने का वादा किया | ...अल काफी वोल २ पेज ३२८

इमाम का कौल है की कोई भी ख़ुशी ऐसी दीवानगी के साथ ना मनाओ की तुम हराम और हलाल का फर्क ही भूल जाओ और कभी भी ऐसा गुस्सा ना करो की तो हलाल और हराम का फर्क ही भूल जाओ |

एक बार इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) अपने खजूर के बाग़ में जा रहे थे | यह गर्मी के दिन थे जब खजूर के पत्ते भी सूख जाते हैं ऐसे में सह्दीद गर्मी से इमाम का चेहरा लाल हो रहा था और पसीने से तर  बतर था | एक शख्स ने इमाम को देखा और इमाम से उसे हमदर्दी पैदा हुयी की यह कौन शख्स है जो इतनी शदीद गर्मी में भी कुछ पैसों के लिए इतनी म्हणत कर रहा है | वो शख्स जिसका नाम मुहम्मद था जब पास पहुंचा तो उसने पहचान लिया की यह इमाम हैं | उसने ताज्जुब से पुछा या इमाम आपके जैसा समझदार इंसान इतनी गर्मी में चाँद सिक्कों के लिए घर से बाहर इतनी म्हणत कर रहा है कहीं ऐसे में आपको मौत आ गयी तो अल्लाह को आप क्या जवाब देंगे ?

इमाम (अ.स) ने कहा तुमको लगता है की सिर्फ नमाज़ रोज़ा हज ज़कात ही इबादत है ? मैं इस वक़्त रोज़ी की तलाश में हूँ जिसका दर्जा इबादतों में सबसे ऊपर है क्यूँ की इसी से मैं अपने परिवार का पेट भरूँगा | ऐसे में अगर मुझे मौत आ गयी तो इबादत करते हुए दुनिया से गया अमाल नामे में लिखा जाएगा | इंसान को अपने गुनाहों को अंजाम देते वक़्त डरना चाहिए की कहीं ऐसे में उसे मौत आ गयी तो उसका क्या होगा ?

इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया: एक ज़माना वह आयेगा कि जब लोगों का इमाम ग़ायब होगा, ख़ुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारी दोस्ती पर साबित क़दम रहे | हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया :हज़रत इमाम महदी (अ. स.) और उनके मददगार अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर करने वाले होंगे।

अल अमाली में मुहम्मद इब्ने सुलेमान से रवायत है की उनके वलीद के ज़माने में एक सीरिया का रहने वाला ऐसा इंसान था जो अह्लेबय्त का दुश्मन था लेकिन इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) के इल्म और शराफत की कद्र करता था | एक बार वो बहुत बीमार पड़ गया तो उसने वसीयत करी की इमाम (अ.स) उसकी नमाज़ ऐ जनाज़ा पढाएं | दुसरे दिन जब उसका बदन ठंडा पद गया तो इमाम को बुलाया गया लेकिन इमाम ने दो रकत नमाज़ पढ़ी और उस बीमार को उसके नाम से पुकारा | वो शख्स उठ के बैठ गया | इमाम उसके बाद अपने घर चली आये लेकिन वो शख्स इमाम के घर पहुंचा और उसने कहा की जब वो आधी नींद में था की उसने एक आवाज़ सुनी “ लौटा दो इसकी रूह को क्यूँ की इमाम मुहम्मद बाकिर ने अल्लाह से इसे लौटाने की दुआ की है “ और वो शख्स ईमान ले आया |


हज़रत इमाम मोहम्मद बाकिर अ.स ने फ़रमाया :जो शख्स तस्बीह के बाद अस्ताग्फार करे ...उसके गुनाह माफ़ करदिये जाते है -और उसके दानो की अदद १०० है -और उसका सवाब मीज़ान-ऐ-अमल मै हज़ार दर्जा है-जो शख्स वाजिबी नमाज़ के बाद हज़रत फातिमा अ.स कि तस्बीह को बजा लाये और वोह उस हल मै हो के उसने अभी तक अपने दाये पाओ को बाये पाओ पर से उठाया भी न हो ...उसके तमाम gunah माफ़ करदिये जाते है -और इस तस्बीह का आगाज़ अल्लाहोअक्बर से किया जाये-(तहज़ीबुल अहकाम जिल्द २ पेज 105)

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