सुरे कौसर -एक जिंदा मुअज्ज़ा |

सुरे कौसर -एक जिंदा मुअज्ज़ा | यह सुरा, कुरान का एक  ऐसा जिंदा मुअज्ज़ा  है जिसका इनकार ख़ुद मुसलामानों की एक बड़ी जमात कर रही है, सि...

सुरे कौसर -एक जिंदा मुअज्ज़ा |


यह सुरा, कुरान का एक  ऐसा जिंदा मुअज्ज़ा  है जिसका इनकार ख़ुद मुसलामानों की एक बड़ी जमात कर रही है, सिर्फ़ कौसर के लुग्वी  मानी को इख्तेयार न करते ही.हुज़ूर (स.अ.व ) ने इमाम  हसन (अस) और इमाम  हुसैन (अस) को अपना फरजंद कहा है,और आपकी नस्ल इन्ही दोनों से परवान चढ़ी  है जो सादात कहलाती है |


आज रुए ज़मीन पर जितने भी अल्वी, हसनी, हुस्सैनी, अब्दी, जैदी, बाकरी , जाफरी, मूसवी,काज़मी, रिज़वी, तकवी और नक़वी आबाद हैं वोह सब सादात में शामिल हैं| आज दुनिया का कोई ऐसा इलाका नहीं है जहाँ सादात ना रहते  हों| मेरा दावा है की दुनिया के किसी मज़हब के पेशवाओं  या उनके पैरोकारों  में से किसी भी शख्स की ज़ुर्रियत में इतने अश्कास  नहीं मिल सकते| आज ज़रूरत इस बात की है कि कौसर का मतलब कसीर या कसरत लिया जाए, और यह की अकवामे इ आलम  के सामने कुरान की हक्कानियत  को इस जिंदा मोअज्ज़े के  साथ पेश  किया जाए|.

सूरा इ  कौस्र्र की तफसीर

Marmaduke Pickthall ka English Translation:
1. Lo! We have given thee Abundance:
2. So pray unto thy Lord, and sacrifice.
3. Lo! It is thy insulter (and not thou) who is without posterity.

मौलाना फतह मोहम्मद जालंधरी साहब का उर्दू तर्जुमा:

"(ऐ  मोहम्मद) हम ने तुमको कौस्र्र अता फरमाई है|  तो अपने परवर दिगार  के लिए नमाज़ पढ़ा  करो और कुर्बानी किया करो| 

कुछ शक नहीं के तुम्हारा दुश्मन ही बे-औलाद रहेगा." मौलाना फतह मोहम्मद जालंधरी साहब की तफसीर:
बहोत सी हदीसें हैं जिनसे साबित होता है के कौसर  बहिश्त की एक नहर  का नाम है जो हजरत मुहम्मद  (सव ) को अता हुई  है.| हजरत  अनस से रवायत है के अन्हाजत  (सव्व) को ऊंघ आ गई, फिर सर  उठाकर तबस्सुम फरमाया और तबस्सुम की यह वजह बयान फरमाई की  अभी मुझ पर एक  सूरत नाजिल हुई है, और फिर यह सूरत पढ़ी और फ़रमाया के तुम जानते हो की  कौसर क्या चीज़ है? सहाबा ने अर्ज़ किया की खुदा और रसूल  ही जानें| फरमाया वो एक नहर  है जो खुदा ने मुझको बहिश्त में दी है, उसमे  खैर'ऐ कथीर है.|

मौलाना स्येद अली नकी नकवी साहब का उर्दू तर्जुमा:

" हमने तो आपको कसरती नस्ल अता की है, तो आप अपने परवर दिगार के लिए नमाज़ पढ़ते रहिये और कुर्बानी करते रहिये. यकीननआपका दुश्मन ही बे-औलाद होगा "

मौलाना स्येद अली नकी नकवी साहब की तफसीर:

"कौसर के लिए चूंके रवायात में है के यह जन्नत की एक बड़ी नहर  है जो मेराज में रसूल (सव्व) को दिखाई भी गई थी और मुसलामानों में इस नहर कौसर की चर्चा  है और कौसर  से सिराबी का शौक़ है इस लिये पहली आयत में जो कौस्र्र की अता का एलान हुआ है, उसकी तफसीर के लिए उ सीके मुताबिक यह रवायत आ गई और यह शोहरत हो गई के यह उसी नहर  के अता होने  का एलान है. लेकिन हकीकत में यह कौसर की अता का यह एलान मुकाबिल में दुश्मनों की ज़बान से निकली हुई लफ्ज़ अब्तर से है,जिसको खुदा वन्दे आलम ने ख़ुद उनके लिए दोहराया है|  इस लिए कौसर के मायने  अब्तर की मुनासेबत से और उसके ताकाबुल के साथ लेना  चाहिए जिसका इस लव्ज़के  साथ जो़र हो जो हजरत के लिए उन्हों ने इस्तेमाल की थी|  जहाँ तक हम जानते  हैं कौसर जो नहर  है, उसका कोई जो़र उस अब्तर से नहीं होता जो वो रसूल  (सव्व) के लिए कहते थे| अब्तर की लफ्ज़ बतर से है जिसके मानी काटा यानी कटने के हैं." 


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