कहीं ऐसा तो नहीं कि औलाद हमारी है परवरिश दे रहा है इब्लीस? facebook ethics.

किसी भी अक्लमंद इंसान को सबसे पहले यह सोंचना चाहिए की वो हकीकत में हैं क्या और अल्लाह से उसका क्या रिश्ता है |मानवजाति का अल्...

wseeyat hazrat ali












किसी भी अक्लमंद इंसान को सबसे पहले यह सोंचना चाहिए की वो हकीकत में हैं क्या और अल्लाह से उसका क्या रिश्ता है |मानवजाति का अल्लाह से रिश्ता तय हो जाने के बाद इंसान को अगर लगे की वो सिर्फ अल्लाह का बंदा हैं तो उसे बंदगी क्या है और कैसे की जाये इस्पे अवश्य विचार करना चाहिए |अगर बंदगी और अल्लाह से खुद का रिश्ता यह इंसान समझ गया तो यह मुमकिन नहीं की किसी भी काम को अंजाम देते वक़्त वो यह ना सोंचे की इस मामले में ईश्वरीय आदेश क्या है और वो जो करने जा रहा है वो कहीं ईश्वरीय आदेश के खिलाफ तो नहीं| क्यूँ की ईश्वरीय आदेश के खिलाफ जाके  अल्लाह की ख़ुशी हासिल करना संभव नहीं | धर्म शास्त्रियों ने हमें ईश्वरीय आदेशों के बारे में समझाया है जिनका आधार कुरान और हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की सुन्नत हुआ करती है | हर मुसलमान को इन कानून को समझना चाहिए और उनके खिलाफ चलने से बचना चाहिए | इसीलिये तकलीद (किसी मुजतहिद (धर्मशास्री) की अवश्य करना चाहिए यदि आप के पास इस्लामिक कानून का ज्ञान नहीं है | अब अजब आपके पास कुरान है हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की सुन्नत है धर्मशास्त्रियों की व्याख्या है फिर उसके बाद आपका खुद का ऐसा कानून बना लेना जो इनके खिलाफ हो हकीकत में शिर्क और खुद की खुदाई का दावा हुआ करता है जिससे हर मुसलमान को बचना चाहिए |
 
धर्मशास्त्रियों (मुजतहिद) ने इन कानून को समझाने के लिए कुछ शब्द रखे हैं जैसे कोई काम वाजिब (फ़र्ज़) है का मतलब करना आवश्यक है और ना करने पे गुनाह है जैसे नमाज़, रोज़ा ,हाज ,ज़कात ,ख़ुम्स,इल्म का हासिल करना , लोगों को नेकी की दावत देना और बुराई से रोकना इत्यादि | इसी प्रकार से दूसरा शब्द है हराम जिसका मतलब है किसी काम को करने की मनाही है और उसके करने पे गुनाह है जैसे शराब पीना, झूट बोलना ,जिना, ना महरम और महरम का ख्याल ना रखना इत्यादि | इसी प्रकार से मकरूह शब्द है जिसका मतलब किसी काम को ना करना अल्लाह की नज़र में पुण्य है लेकिन किया जाए तो पाप भी नहीं है | ऐसे ही मंदुब -आवश्यकता से अधिक किसी काम को करना और मुबाह शब्द हैं |
 
हर इंसान को अपने किसी भी काम को अंजाम देने से पहले यह अवश्य जान लेना चाहिए की उसका यह काम किस श्रेणी में आ रहा है और अल्लाह की क्या मर्जी है ? अल्लाह की मर्जी के मुताबिक अपना जीवन गुजारना हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी और पहचान है |
 
जिस समाज में हम रहते हैं वहाँ हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए इसकी इस्लाम में बहुत अहमियत है क्यूंकि हमारे आचरण से ही हम पहचाने जाते हैं और हमारे खुद को मुसलमान कहके इस्लाम की नीतियों और उस के कानून के खिलाफ चलने से अहम खुद को  गुनाहगार बनाते हैं ,दूसरों को भी गुनाहों की दावत देते हैं और इस्लाम को भी बदनाम करते हैं | इतने गुनाह एक साथ करने वाला अल्लाह की ख़ुशी की तमन्ना करे तो यह उसकी बेवकूफी और गुमराही ही कही जायगी|
 
एक उग्रवादी बेगुनाहों को सारी आम क़त्ल करदेता है और बदनाम होता है इस्लाम| एक मुसलमान अपने बेटे की शादी में दहेज़ मांगता है तो बदनाम होता है मुसलमान | इत्यादि बड़े बड़े उदाहरण है | यहाँ मैं कुछ ऐसे कानून का ज़िक्र करूँगा जिनके बारे में धर्मशास्त्रियों और मुजतहिद ने भी बताया है |
 
 
हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के कहा ऐ अबुज्ज़र तुम जिस काम को भी अंजाम देते हो उसका मकसद और नीयत का ख्याल पाहे किया कारो चाहे वो सोना और खाना ही क्यूँ ना हो ? आज इंसान को दूसरों से बातचीत के लिए यह ज़रूरी नहीं की वो घर से बहार जाए बल्कि सोशल नेटवर्क और वेबसाईट के द्वारा वो  अपने बात अपना अंदाज़, मिज़ाज,अचार व्यवहार सभी कुछ दूसरों तक पहुंचा सकता है | facebook आज सबसे मशहूर है जहां आपको हर किस्म लो लोग और हर किस्म के मुसलमान भी मिल जायेंगे | क्या एक मुसलमान को यह नहीं सोंचना चाहिए की वो facebook पे क्या करने जाता है ? उसका मकसद क्या है ? और क्या वो यहाँ जो कह रहा है जो कर रहा है वो इस्लामिक नीतियों और कानून से सही है और अल्लाह की नाराज़गी की वजह नहीं बनेगा ?
इमाम इ रजा (अ.स) ने कहा कि वो मोमिन नहीं जो अपने राज़ की हिफाज़त नहीं कर सकता और इमाम अली (अ.स) ने कहा ऐ मुसलमानों अपने गुनाहों की नुमाईश हरगिज़ ना करों क्यों की यह बड़े गुनाहों में शुमार होता है |
 
  आज पश्चिम सभ्यता का असर हमारे समाज पे भी देखा और महसूस सड़कों पे और सोशल मीडिया की वेबसाईट पे आसानी से किया जा सकता है जिसमे महरम और ना महरम का फर्क ना करना, महिलाओं द्वारा अपनी बेहिजाब तस्वीर डालके लोगों द्वारा पसंद करने पे खुश होना,  खुद को मौला का चाहने वाला बताना और फिल्म की बेहयाई और मौसीक़ी को पसंद करना और दूसरों के साथ शेयर करना, पुरुष मित्रों के साथ बिना किसी ख़ास कारण के चैटिंग करना और उसे मित्रता का नाम देना इत्यादि | यह ताजुब की बात है की हम अल्लाह के बड़े हैं और उसकी नीतियों और कानून का असर हमपे नहीं होता और पश्चिमी सभ्यता या दुसरे समाज का असर हम पे इतनी आसानी से होता है की हम अल्लाह की नाराजगी का भी ख्याल नहीं करते और अगर कोई आपको गुमराही से गुनाह से बचान एकी कोशिश करता है तो उस से भी नाराज़ हो जाते हैं और बहुत बार एक नए गुनाह को अपने अमाल में ऐसे इंसान की गीबत और बुराई कर के जोड़ लिया करते हैं | अल्लाह के किसी भी कानून को तोड़ने से केवल एक गुनाह नहीं होता बल्कि हर गुनाह से दूसरा गुनाह जुदा होता है और यह एक गुनाहं की चेन बन जाती है जिसे facebook जैसी वेबसाईट में मुसलमानों के आचरण से महसूस किया जा सकता है |
 
हिजाब के सारे क़वानीन जानने के लिए यहाँ एक बार ज़रूर जायें |
facebook और चैटिंग और हिजाब से सम्बंधित कानून जाने के लिए यहाँ जायें |
 
आज वो मुसलमान जो हिन्दुस्तान में रह रहे हैं उनके बीच एक नयी गुमराही का शुमार होता जा रहा है |अपने रिश्ते के भाई बहनों को अब यह ना महरम नहीं मानते और एक दुसरे के शारीरिक शारीरिक स्पर्श को गुनाह नहीं समझते | यह हकीकत में कुरान ,हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की हदीस और धर्मशास्त्रियों (मुजतहिद) के बताये कानून के खिलाफ है और अल्लाह की मर्जी के खिलाफ है| क्या ऐसा करके यह लोग इस्लाम का मज़ाक और अल्लाह के बनाए कानून की तोहीं नहीं कर रहे ? और उस से बड़ा सवाल है की क्यूँ ? इस क्यूँ का सही जवाब ऐसा करने वालों के पास इसके सिवाए कुछ नहीं की सवाल करने वाले की ही तौहीन करना शुरू कर दें | क्या इस तरह से अल्लाह की ख़ुशी हासिल हो सकती है ? जो लड़की या लड़का अपने ईमान को इतने सस्ते में बेच दे उस से दुनिया के और रिश्तों में क्या वफादारी की उम्मीद की जा सकती है ?
 
हर मुजतहिद ने इस बारे में फतवा दिया है और सवालों के जवाब में इस बात का ज़िक्र किया है की विपरीत लिंग वाले ना महरम से चैटिंग या किसी भी प्रकार की अनावश्यक बात चीत इस्लाम में मना है क्यूँ की यह गुनाहों की तरफ ले जा सकती है इसलिए इन बातचीत में ध्यान रखा जाये की केवल अति आवश्यक होने पे ही बातचीत की जाये | और यह आवश्यकता इस्लाम की नज़र में गैर इस्लामिक ना हो यहाँ तक की केवल टाइमपास के लिए भी बात चीत मना है | अब जब किसी के लिए मुह बोली बेटी, बहन , या रिश्ते के ना महरम भाई बहन से बेहद ज़रूरी होने के बिना बात चीत नहीं की जा सकती तो उनके सामने बेहिजाब घूमना,उनके साथ तस्वीर खिंचवाना ,उनके साथ शारीरिक स्पर्श इत्यादि कितना बड़ा गुनाह और अल्लाह की नाफ़रमानी होगी इसका अंदाज़ा अगर इन गुनाहों को अंजाम देने वालों को लग जाई तो पसीने छुट जायें |
 
उम्मीद है की अहलेबय्त के चाहने वाले मुसलमान कम से कम अपने को इन गुनाहों से बचाते हुए ज़िन्दगी बसर करने की कोशिश करेंगे और दूसरों को भी इन गुनाहों से बचाने की कोशिश किया करेंगे | क्यूंकि होता इसका उल्टा है जो महिलाएं सोशल मीडिया के इस्तेमाल से अपनी बेहिजाब नुमाईश किया करती है वो दूसरों को ऐसी इस्लाम की बातें करने वालों से दूर रहने की ही हिदतय देती हैं और दूसरों की बेटियों को अभी ऐसी ही नुमाईश की तरफ आमादा किया करती हैं और अपने माल नामे में एक गुनाह ऐ जारिया का इजाफा करती रहती हैं | कहीं ऐसा तो नहीं की हमारी औलाद है और परवरिश दे रहा है इब्लीस ? सुनिए मौलाना सादिक हसन साहब की तक़रीर इसी विषय में
 

       





























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