जहालत फसाद की जड़ है |

मुसलमान बड़ा शोर मचाता है कि वो कुरान को मानता है शरीयत ऐ मुहम्मद में यकीन रखता है फिर ना जाने क्यूँ इधर उधर अपना अलग अलग इमाम तलाशता फ...

मुसलमान बड़ा शोर मचाता है कि वो कुरान को मानता है शरीयत ऐ मुहम्मद में यकीन रखता है फिर ना जाने क्यूँ इधर उधर अपना अलग अलग इमाम तलाशता फिरता है और जब गुमराह होता है तो चिल्लाता है इनके फतवे गलत साबित हुए उनके फतवे गलत साबित हुए | आरे भाई कुरान और शरीयत ऐ मुहम्मदी को मानने का ढोंग करके बनाते  हो अपनी मर्जी का नेता (इमाम ) तो फिर शोर मचाते क्यूँ हो ? ना कुरान बदली या हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की अहादीस और सुन्नत बदली तो इमामों द्वारा दिए गए फतवे कैसे बदल गए यह सोंचने की बात है ?  और  तो और अपने इस गलती को सुधार के सही मुल्ला नेता या इमाम चुनने की जगह और गुमराह करने का तरीका फतवा ना मांगने की नसीहत करके कर डाला | आज पूरा विश्व देख रहा है की जिहाद के गलत इस्तेमाल का नज़ारा और जन्नत के वादों का झुटा फतवा | जन्नत क्या कभी आत्मघाती हमलो से ख़ुदकुशी करने पे या बेगुनाह इंसानों की जान लेने पे मिली है ? वो मुसलमान जो इस्लाम को समझता है ना  इन फतवों को मानता है और ना ही ऐसे फतवे देने वाले इमामों को मानता है | लेकिन आज कल  तो बिना हवालों (रिफरेन्स) के फतवों की बाढ़ आ गयी है जहां न फतवों के अपने शब्द होते हैं और देने वाले का नाम पता ,जो खुला सुबूत हैं की इन लेखों को लिखने वाला बाजारू अफवाहों को इस्लाम से जोड़ के देखता है और उसे इस्लाम की शरीयत का ज्ञान नहीं है | वरना तो बाजारू फतवे देखते ही मुसलमान समझ जाता है यह सब झूठे फतवे हैं और उनके द्वारा दिए गए या फिलाये गए हैं जो इसकी आड़ में अपना मकसद या फायदा तलाश रहे हैं |



अक्सर लोग यह नहीं समझ पाते की यह 73 फिरके का क्या मतलब है ? 73  फिरके का मतलब  है मुसलमानों के 73  इमाम (नेता)|   हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की वफात के बाद लोगों ने अपना अलग अलग इमाम चुन लिया और हर इमाम ने अपने अनुसार नए नए फतवे शरीयत ऐ मुहम्मदी में जोड़ डाले  | सभी का दावा है की उसका चुना हुआ इमाम सही है और वो जन्नती है क्यूँ की हजरत मुहमद (स.अ.व) ने साफ़ कहा है की 73 में से केवल एक जन्नती है (सहीह बुखारी)| अब जिसके इमामों के फतवे नयी तहकीकात के बाद गलत साबित हो रहे हैं उनको यह चाहिए की वो अपना इमाम बदल लें और ऐसे इमाम के फतवों पे चलें जिनके फतवे वक़्त के साथ आज भी नहीं बदले |ताज्जुब की बात है की कुरान नहीं बदलती और ना ही हजरत मुहम्मद (स.अव) की शरीयत  बदलती फिर यह फतवे कैसे बदल जाते हैं ? हजरत अली (अ.स) से खलीफा के चुनाव के समय पुछा गया की क्या आप वादा करते हैं कि आप कुरान और सुन्नत ऐ रसूल (स.अ.व) और सहाबा खलीफा  की सुन्नत  पे चलेंगे तो हजरत अली (अ.स) का जवाब था मैं कुरान और शरीयत ऐ मुहम्मदी ,सुन्नत ऐ रसूल (स.अ.व) पे चलूँगा और यदि  सहाबा खलीफा की सुन्नत उस से अलग हुयी तो उसपे  चलने का वादा नहीं करता |(ref: नहजुल बलाग ) क्या हजरत अली (अ.स) का यह कहना साफ़ यह इशारा नहीं कर  रहा कि वक़्त के साथ साथ यह सहाबा और खलीफा  भी नहीं रहेंगे और उनकी जगह मुल्ला ले  लेंगे जो अपने फायदे के फतवे दे के मुसलमान को गुमराह करेंगे इसलिए मुसलमानों को समझा दो कि कुरान और शरीयत ऐ मुहम्मदी के बाद कुछ नहीं और जो इनपे चलते  हुए मुसलमानों को सही राह दिखायेगा  वही सही इमाम और नेता होगा और उस इमाम के सही होने की गवाही उसके कभी ना बदलने वाले  फतवे देंगे |कुछ लोग इस्लाम और मुसलमान के बारे में अधिक ज्ञान नहीं रखते अक्सर यह गलती कर जाते हैं की जैसे यहूदी में ७२ फिरके हैं मुसलमान में भी ७२ ही होंगे | ऐसे लोगों को अपने ज्ञान को और बढ़ाना चाहिए|




हर मुसलमान के पास इतना ज्ञान नहीं होता की वो अपने हर काम को कुरान और शरीयत ऐ मुहम्मद (स.अ.व) के अनुसार समझ सके |इसलिए  आज सच्चा और समझदार मुसलमान किसी ऐसे इस्लाम के जानकार की तकलीद ( सलाह को मानना ) करता है जिसके पास कुरान, अहादीस ,सुन्नत ऐ रसूल(स.अ.व) के साथ साथ विज्ञान का इल्म हो जिसके लिए ३०-४० वर्ष भी लग जाया करते हैं | इन्हें मुजतहिद कहते हैं और इनके फतवे कभी गलत साबित नहीं होते | राह से भटके इंसान की पहचान यही होती है की वो हर गली में रहने वाले से रास्ता पूछता है और अक्सर और भटकता चला जाता है यही हाल भटके हुए मुसलमानों का हुआ जिन्होंने अपने सही इमाम को नहीं पहचाना और अब गली गली समय के साथ बदलते फतवे लेते और बाद में शोर मचाते हैं | और मारे शर्म के किसने फतवा दिया यह बता भी नहीं पाते की कहीं कोई यह ना पूछ ले मियाँ वहाँ कहाँ चले गए थे फतवा लेने या कोई कह दे मियाँ क्या यह भी कोई फतवा लेने की चीज़ है की लाउडस्पीकर पे बोला जाये या बिना लाउडस्पीकर से , ट्रेन से चला जाए या घोड़े से, किताब लिखी जाए या छपाई जाये ? एक तो ऐसे फतवे मांगते हैं और जब कोई कठमुल्ला दे देता है तो उसका उसका मज़ाक बना के मुसलमानों बदनाम करते हैं|यह और बात है की फतवा हमेशा कुछ ख़ास शब्दों के चुनाव के साथ दिया जाता है और उसे कभी भी बिना फतवा देने वाले मौलवी या मुजतहिद के नाम के कहीं लिखा या बताया नहीं जाता |एक  फतवा अवश्य हर मुसलमान मानता है की अज्ञानियों की पैरवी करना उनकी तकलीद करना या उनके पीछे चलना हराम है क्यूँ की कुरान 6:१५२ में साफ़ साफ़ इस बात को समझाया गया है | इमाम सादिक जाफ़र (अ.स) ने अहादीस कहती है “फैसले दो तरह से हुआ करते हैं पहला अल्लाह के हुक्म के मुताबिक जो अक्लमंद और ज्ञानी करता है और दूसरा जाहिल इंसानों द्वारा |जिसने अल्लाह के फैसले को नहीं समझा या जाना वो यकीनन जाहिलों के फैसले पे ईमान ले आएगा और गुमराह होगा | कुरान ५:५० में भी यही बात कही गए है | 


मुसलमान यदि गुमराह होने से बचना चाहता है तो उसे इस्लाम के कुछ कानून को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए | अहादीस , कुरान का तर्जुमा और उलेमा का फतवा जब भी कहीं लिखा मिले फ़ौरन उसका हवाला मांगें और हवाला ना मिलने पे उसे मानने से इनकार कर दें |क्यूंकि कुरान की आयात का तर्जुमा कुछ मखसूस है जिनको दुनिया के सभी मुसलमानों ने माना है | ऐसे ही अहादीस की कुछ किताबें हैं जिनको मुसलमान उलेमा ने सहीह करार दिया  है और उसी प्रकार फतवा देने का अधिकार पढ़े लिखे मुजतहिद को आलिम को है इसलिए जिसने फतवा दिया उसका नाम अवश्य दिया जाता है | कुछ अहादीस मुतावातिर कही जाती हैं जिनका मतलब होता है की वो इतनी बार सुनी और सुनायी गयीं हैं की अब मुसलमान उनको पहचानता है | ऐसी हदीस को बिना हवाले मानने में हर्ज नहीं लेकिन यदि उनपे शक हो जाए तो उनका भी हवाला तलाशना चाहिए | इन उसूलों को मुसलमानों का हर फिरका मानता है इसलिए उम्मीद है अफज़ल साहब भी इसे मानेंगे और आगे से एहतियात करेंगे और फतवों का हवाला भी देंगे | इसीलिये अफज़ल साहब के उस लेख पे हर मुसलमान ने हवाला माँगा क्यूँ की यही सही तरीका है|
अखबार में छपी खबर या फतवा पढने के बाद अपने आलिम से उसकी जांच अवश्य करा लें |


हर मुसलमान का फ़र्ज़ है की वो अपने इल्म को बढाए क्यूँ की इल्म हासिल करना भी इस्लाम में फ़र्ज़ है | सिर्फ इल्म आपको गुमराही से बचा सकता है | यदि आप गुमराह होने से बचना चाहते हैं तो अंतरजाल पे  इंसानों को उनके नाम से नहीं बल्कि उनके विचारों से पहचानना चाहिए और किसी अहादीस या फतवे पे शक होने पे अपने उलेमा से फ़ौरन संपर्क करना चाहिए |हजरत अली (अ.स) ने कहा की यह ना देखो कौन कह रहा है बल्कि यह देखो क्या कह रहा है | हम देखते हैं कि कोई बात कहने वाले का नाम क्या है और उसने अपना नाम जिस धर्म के अनुसार लिख दिया उसी को उसकी पहचान बना लेते हैं | आलिम और ज्ञानी किसी इंसान को कुरान और अहादीस से तौलता है और कभी गुमराह नहीं होता | फतवा या मशविरा किसी आलिम से या ज्ञानी  से लेना कुरान (४:59)का हुक्म है और इसके खिलाफ चलने की नसीहत कोई मुसलमान हरगिज़ नहीं कर सकता और यदि करता है तो या तो वोह या तो आपको जान बुझ के गुमराह कर रहा  है या जहालत के कारण अनजाने में ऐसा कर रहा है |कुरान में अल्लाह फरमाता है “ हे ईमान वालो! ईश्वर का आज्ञापालन करो तथा पैग़म्बर और स्वयं तुम में से ईश्वर द्वारा निर्धारित लोगों की आज्ञा का पालन करो। यदि किसी बात में तुममें विवाद हो जाये तो उसे ईश्वर की किताब और पैग़म्बर की ओर पलटाओ, यदि तुम ईश्वर और प्रलय पर ईमान रखते हो। नि:संदेह विवादों को समाप्त करने के लिए यह पद्धति बेहतर है और इसका अंत अधिक भला है। (4:59)| सोंचने की बात है की क्या कोई मुसलमान इस अल्लाह के हुक्म के खिलाफ चलने की नसीहत कर  सकता है ? सच यही है कि  जाहिलों द्वारा इस्लाम की और फतवों की व्याख्या बंद होनी चाहिए और अपनी हर मुश्किल को मुजतहिद(ज्ञानी ) से पूछ के उनके अल्लाह के कानून अनुसार दिए गए मशविरे और फतवों पे ही मुसलमान को चलना चाहिए और हर मुसलमान को खुद कुरान और सुन्नत ऐ मुहम्मद (स.अव) का इतना ज्ञान तो होना ही चाहिए की वो गुमराह होने से खुद को बचा सके |

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