इस्लाम, एकता का धर्म है- इमाम गजाली

हुज्जतुल इस्लाम इमाम अबू मुहम्मद अल गजाली (१०५५-११११ AD) कहा जा सकता है कि आज के युग में ग़ज़ाली एकता का परचम उठाने वालों में से एक ह...

हुज्जतुल इस्लाम इमाम अबू मुहम्मद अल गजाली (१०५५-११११ AD)

कहा जा सकता है कि आज के युग में ग़ज़ाली एकता का परचम उठाने वालों में से एक हैं। ग़ज़ाली का मानना है कि, इस्लाम, एकता का धर्म है| और अपनी उत्पत्ति के शुरूआती दिनों में ही उसने अरब और अजम (ग़ैरे अरब) की बीच में एकता का संचार कर दिया था और सत्तर साल में इंसानी और इस्लामी दुनिया की सब से बड़ी सभ्यता का शिला न्यास करे लेकिन अफ़सोस उसके बाद इख़्तेलाफ़ का बीज डाल दिया गया और जन समूह एवं सम्प्रदाय एक दूसरे से अलग हो गए, फल स्वरूप इस्लामी देश समाप्त हो गए।     हवाला : तमअ काराने कीनावर बा नक़्शाहाई इस्तेमारी, पेज 27

मुसलमानो के बीच इख़्तिलाफ़ का एक बहुत बड़ा कारण सामने वाले की आस्था, विश्वास, आमाल और अख़्लाक़ के बारे में जानकारी का ना होना है। जानकारी का न होना ग़लत फ़ैसलों का कारण बनती है।
जब अल्लामी शैख़ मोहम्मद शलतूत, अल अज़हर के धर्म गुरू (शैख़) ने मज़हबे अहले बैत के पालन के जाएज़ होने का फ़त्वा दिया, तो कुछ बंद फ़िक्र और छोटे विचार वालों ने जानकारी न होने के कारण उन के इस फ़त्वे का विरोध किया। ग़ज़ाली इस बारे में कहते हैः
मुझे याद है कि जब एक दिन एक व्यक्ति ये क्रोधित हो कर मुझ से पूछाः कि शैख़े अल अज़हर ने किस प्रकार ये फ़त्वा दे दिया कि शिया दूसरे सम्प्रदायो की तरह एक इस्लामी फ़िरक़ा है? मैं ने उस से जवाब में पूछाः तुम को शियों के बारे में कुछ जानकारी है? और शिया सम्प्रदाय के बारे में क्या जानते हो? वह थोड़ी देर चुप रहा और फिर कहाः वह एक ऍसा जन समूह है जो हमारे से अलग एक दूसरे दीन का पालन करते हैं। मैं ने कहाः लेकिन मैं ने देखा है कि वह बिलकुल हमारी तरह ही नमाज़ पढ़ते हैं, और रोज़ा रखते हैं। उसने आश्चर्य से कहाः ये कैसे हो सकता है? मैं ने कहा कि इस से ज़्यादा आश्चर्य जनक बात तो ये है कि हमारी ही तरह क़ुरआन पढ़ते हैं, और ईश्वर के दूत (पैग़म्बरे इस्लाम (स0)) का सम्मान करते हैं, और हज करते हैं। उसने कहाः मैं ने सुना है कि उनका क़ुरआन हम से अलग है और इसलिए काबे को जाते हैं कि ता कि उसका अपमान कर सकें!
मैं ने उसको दया भरी दृष्टि से देखा और कहाः इसमे तुम्हारी ग़लती नही है क्योंकि हम में से कुछ लोग दूसरों के बारे में ऍसी बातें कहते हैं कि जिस से उनका अपमान करना चाहते हैं। वही, पेज 299

 
मुसलमानो के बीच इख़्तिलाफ़ का एक बड़ा कारण पुराने इख़्तिलाफ़ात को खोदना और उनको बड़ा बना कर पेश करना है। इस्लाम के शुरूवाती दिनों में ही ख़िलाफ़त (रसूल के बाद उनका उत्ताधिकारी कौन) मुसलमानों के बीच इख़्तिलाफ़ का बड़ा कारण बना, और अब भी बना हुआ है। ग़ज़ाली इस बारे में कहते हैः
हम बुनयादी तौर से ही पीछे रह गए हैं, इस्लाम क्या करे? मुसलमानो की हालत चिंता जनक है। वह पुरानी बातों को एक दूसरे के सामने ला रहे हैं। उमर और अबू बकर के बीच का इख़्तिलाफ़, उमर और अली (अ0) के बीच का इख़्तिलाफ़।
इतिहास की दृष्टि से ये बात समाप्त हो चुकी है, मैं आज की नस्ल हूँ, इस मामले को उभारना किस समस्या को हल करता है, सिवाए इसके कि आज की नस्ल में भी इख़्तिलाफ़ की आग उसी प्रकार भड़क जाएगी जिस प्रकार हमारे पूर्वजो में थी, हम ने क्या पाया है? कुछ नही |रिसालत, 3/4/1370, पेज 12


ग़जाली का मानना है कि मुसलमानो के बीच इख़्तिलाफ़ को समाप्त करने और एकता का संचार करने का रास्ता मुसलिम समाज में इल्मी और संस्क्रतिक तरक़्क़ी है। वह इस बारे में कहते हैः
जानकारी का विस्तार, इल्म और तरक़्क़ी, जीवन की वास्तविक्ताओं की जानकारी, और पुराने फ़ल्सफ़ियों तथा धर्म गुरूओं के रास्ते की जानकारी इख़्तिलाफ़ को हल करने की पहली सीढ़ी है | हवाला :इस्लाम व बलाहाई नवीन, पेज 197


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