मुसलमान आज भी इन साजिशों का शिकार नहीं है|

इस्लाम के सिलसिले में  इन दो लव्जों  फतवा और जिहाद का सबसे अधिक  ग़लत इस्तेमाल हुआ है | इसके ज्यादा ज़िम्मेदार हम मुस्लिम खुद ही हैं| हमन...

इस्लाम के सिलसिले में  इन दो लव्जों  फतवा और जिहाद का सबसे अधिक  ग़लत इस्तेमाल हुआ है | इसके ज्यादा ज़िम्मेदार हम मुस्लिम खुद ही हैं| हमने अपनी कौम के नीम हाकिम और बिकाऊ मुल्लाओं को न पहचान के उनका साथ दे के दूसरों को इस बात का मौक़ा दिया की वो इन दो लव्जों जिहाद और फतवा का इस्तेमाल करके इस्लाम का मज़ाक बनाएं | इस्लाम को बदनाम करने के लिए जो साजिश की गयी उसमें इस लव्ज़ जिहाद का इस्तेमाल शायद सबसे अधिक हुआ है | यहाँ आप को बताता चलूँ की यह आतंकवाद और आतंकवादी शब्द और यह तालिबान शब्द का इस्तेमाल पिछले कुछ सालों में सबसे अधिक हुआ है | पाकिस्तान में जिया उल हक के समय में यह तालिबान का वजूद सामने आया |यह सवाल आम इंसान की दिमाग में अवश्य आएगा कि यह तालिबान या कट्टरपंथी पहले कहाँ थे और पहले क्यों नहीं इतने हमले किया करते थे ? जबकि इस्लाम को मुक़म्मल हुए आज १४३३ वर्ष हो चुके हैं |
जिस तरह दुनिया भर में कुछ इंसान किसी भी धर्म के  हो बिक जाया करते हैं और अपने धर्म ,देश को नुकसान पहुँचाया करते हैं | ऐसे लोगों का ईमान सिर्फ पैसा हुआ करता है | इसी तरह मुसलमानों में भी कुछ मुल्ला हैं जो अपना ईमान बेच के पैसे और शोहरत की लालच में ऐसे फतवे दिया करते हैं जिनका इस्लाम के कानून से कुछ लेना देना नहीं हुआ करता |फतवे का आसान सा मतलब है निर्देश | जब कोई मुश्किल मुसलमानों के पास आती है और वो जानना चाहता है की इस्लाम का इस बारे में क्या हुक्म है तो वो किसी इस्लाम के जानकार के पास जाता है और फतवा (निर्देश) लेता है |यह बात मुसलमानों को मालूम होनी चाहिए की इस्लाम में फतवा देने का हक उसी को हुआ करता है जिसके पास इस्लाम के कानून का मुकम्मल ज्ञान हो या कहलें जो मुजतहिद हो और इस्लाम की बारीकियां समझता हो | ऐसे लोग दुनिया में बहुत ही कम हैं और हर मुसलमान को चाहिए की उनकी पहचान करे और इस्लामिक मसलों का हल उन्ही से निकले | हर गली या हर जुमा मस्जिद के मौलवी या सऊदी बादशाहों ,अमीरों को यह हक नहीं की वो इस्लाम के मसलो में फतवे जारी किया करें| यदि ऐसे लोग फतवा जारी किया करते हैं किसी जाती मकसद को पूरा करने के लिए तो मुसलमानों को चाहिए की उसे ना माने और मुजतहिद से संपर्क करें |यदि मुसलमान इस बात को ध्यान में रखेंगे तो कभी गुमराह नहीं होंगे | और इस्लाम भी बदनाम न होगा |

दूसरी बात यह भी ध्यान देने वाली है की इस्लाम में ज़ोर और ज़बरदस्ती नहीं है | कौम के ज्ञानी मुल्ला और मुजतहिद को यह हक है कि आवश्यकता पड़ने पे फतवे जारी करें लेकिन उनको यह हक नहीं की उसे मनवाने के लिए कौम के लोगों पे ज़ोर ज़बरदस्ती करें | क्योंकि इस्लाम में जब्र नहीं बल्कि आज़ादी है | अल्लाह चाहता है की इंसान खुद अपनी मर्ज़ी से इस्लाम को कुबूल करते हुए उसके बताये कानून पे चले क्यूंकि अगर कोई ज़बरदस्ती इस्लाम को कुबूल करता है या उसके कानून को अपनाता है तो यह सही मायने में बंदगी नहीं हुई |

उदाहरण के तौर पे इस्लाम में औरत के लिए ज़रूरी है की वोह मर्दों से पर्दा करे और अपने शरीर की नुमाईश न करे | इस्लाम में ऐसी म्युज़िक जो मदहोश कर दे सुनना और गाना मना है| इस्लाम में अनैतिक संबंधों को बनाने पे सख्त सजा का प्राविधान है | इसी प्रकार से मातापिता की इज्ज़त करना, पड़ोसियों की मदद करना इत्यादि भी इस्लाम में बड़ी अहमियत रखता है | कौम को गुमराही से बचाने के लिए इस्लाम के रहबर मौलवी हजरात फतवे दे या बता सकते हैं लेकिन यदि कोई गुमराह है और उनको नहीं मानता तो इसकी सजा अल्लाह देगा कोई मुल्ला या इंसान आज के युग में ज़ोर ज़बरदस्ती कर के इसे मनवाने की जिद नहीं कर सकता | ईश्वर ने संसार के सभी मनुष्यों को चयन शक्ति दी है। अर्थात हर मनुष्य को यह अधिकार दिया है कि वह सही या गलत मार्ग में से किसी एक मार्ग का चयन करे|यदि ईश्वर लोगों को विवश करता तो फिर भले को भलाई का इनाम और बुरे को बुराई का दंड देना अर्थहीन हो जाता | हाँ यह अवश्य है की इस्लाम में गुमराह और न फरमानों का साथ देने की मनाही है क्यूंकि ऐसा करने पे उनके गुनाह में तुम भी शरीक माने जाओगे | इश्वर ने मनुष्य को बुद्धि जैसा उपहार दिया है जिसकी सहायता से वह भले बुरे की पहचान कर सकता है और यह हर इंसान का फ़र्ज़ है की वो अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए इस्लाम को समझे और सही रहबर ,मुल्ला को चुने |
यहाँ यह भी बताता चलूँ की इस्लाम इस बात पे अधिक जोर देता है की तुम जिस देश में भी रहो वहाँ इस बात का ध्यान रखो कि तुम्हारा ईमान बचा रहे और तुम्हे अपने धर्म के वाजिबात पे चलने में कोई मुश्किल न हो |लेकिन जब किसी अपराध की सजा का मसला आये तो अपने देश के कानून को मानो | जैसे इस्लाम में चोर की सजा कुछ मसलो में हाथ की उँगलियाँ काट देने का भी है या बलात्कारी की सजा मौत भी है लेकिन आपके देश का कानून यदि इसकी सजा केवल जेल भेजना तय करता है तो आप को इस सजा को ही मानना होगा |

इस्लाम के खिलाफ साजिशो में इस फतवे देने का बहुत ही अहम् रोल रहा है | इसकी दलील यह है की कोई इस बात पे फतवा नहीं देता की अपने वतन के प्रति इमानदार रहो वरना इस्लाम से ख़ारिज हो जाओगे | कोई यह फतवा नहीं देता की अपने माता पिता की बेईज्ज़ती न करो वरना वाजिब ऐ क़त्ल हो जाओगे | बस फतवा आपको मिलेगा जिहाद का क्यूंकि मुसलामो को दहशतगर्द साबित करना है और औरतों के परदे पे क्यूंकि इस्लाम को ज़ालिम और औरतों पे ज़ुल्म करने वाला मज़हब करार देना है | आज यह फतवे भी एक साजिश का हिस्सा बनते जा रहे हैं और इन साजिशों का शिकार होता है कम अक्ल और अज्ञानी मुसलमान|

जिहाद को भी यहाँ संछेप में समझाना आवश्यक है |जिहाद दो तरह का होता है पहला जेहाद अल अकबर जो एक अहिंसात्मक संघर्ष है जिसमें आदमी अपने सुधार के लिए प्रयास करता है और इसका उद्देश्य है अपने अंदर की बुरी सोच या बुरी ख़्वाहिशों को दबाना और कुचलना | दूसरा है जेहाद अल असग़र जिसका का उद्देश्य इस्लाम के संरक्षण के लिए संघर्ष करना होता है| जब इस्लाम के अनुपालन की आज़ादी न दी जाए, उसमें रुकावट डाली जाए तो इस जिहाद का इस्तेमाल होता है| लेकिन आज के दौर में इस्लाम के हालत को देखते हुए इस जेहाद अल असग़र का फतवा नहीं दिया जा सकता | और यदि कोई ऐसा फतवा देता है तो वो झूठा है | मुसलमान को केवल इस बात की इजाज़त है की यदि उनपे कोई हमला करे तो उसका जवाब दे सकते हैं |

यह भी एक हकीकत है की आम मुसलमान आज भी इन साजिशों का शिकार नहीं है और समाज में अमन और शांति से रहना चाहता है लेकिन यह ज़हर धीरे धीरे गंभीर रूप न लेने पाए इसलिए जागरूक रहना आवश्यक है | इन साजिशों का मकसद दो हुआ करता है एक तो मुसलमानों के बीच आंतरिक विभाजन और मतभेद को बढ़ाना और गैर मुसलमानों के बीच इस्लाम को दहशतगर्द और ज़ालिम मज़हब करा दे के इंसानों के बीच नफरत के बीज बोना |
आज आवश्यकता है इस बार की के हर इंसान जागरूक रहे और इन शांति और एकता को खंडित करने की कोशिशों को नाकाम बनाये |

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