इस्लाम में इंसान की जान की कीमत

इस्लाम में इंसान की जान की कीमत का अंदाज़ा आप मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना क़ल्बे सादिक की इस विडियो में कही बातों से लगा सकते हैं |  डॉ कल्...


इस्लाम में इंसान की जान की कीमत का अंदाज़ा आप मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना क़ल्बे सादिक की इस विडियो में कही बातों से लगा सकते हैं | डॉ कल्बे सादिक़ फरमाते हैं कि यदि कोई मुस्लिम अपने घर से नहा-धो कर पवित्र होकर यहां तक कि नमाज़ से पहले किया जाने वाला वज़ू कर और रोज़ा रखकर हज करने की गरज़ से अपने घर से बाहर निकलता है और रास्ते में नमाज़ का वक़्त हो जाता है | वहाँ एक नदी किनारे वो नमाज़ पढने लगता है |वह मुसलमान अपने पास हज यात्रा का पासपोर्ट भी अपनी जेब में रखे होता है ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति जोकि ,हिंदू या गैर मुस्लिम है वह किसी नदी में डूब रहा है और उसके मुंह से डूबते वक्त यह आवाज़ भी निकल रही हो कि हे राम मुझे बचाओ। इस अवस्था में उस मुसलमान व्यक्ति पर पहले यह वाजिब है कि वह नमाज़ तोड़ दे और उस डूबते हुए गैर मुस्लिम व्यक्ति की जान बचाने की कोशिश करे। अब यदि वह मुसलमान पानी में कूद कर उसकी जान बचाता है तो पानी में तैरने की वजह से या डुबकी लगाने के कारण उसका रोज़ा भी टूट जाएगा, उसकी जेब में रखा पासपोर्ट भी भीगकर खराब हो जाएगा और वह व्यक्ति हज भी नहीं कर सकेगा। परंतु इस्लाम की नज़र में नमाज़, रोज़ा और हज से ज़्यादा ज़रूरी है किसी इंसान की जान की रक्षा करना। मौलवी कल्बे सादिक़ साहब यह उदाहरण देने के बाद नीम-हकीम मौलवियों व इस्लाम विरोधी दुष्प्रचार करने वालों से एक सवाल यह पूछते हैं कि जो धर्म इंसान की जान की कीमत को सबसे ज़्यादा यहां तक कि हज,रोज़ा व नमाज़ से भी ज़्यादा अहमियत देता हो वह इस्लाम बेगुनाहों की हत्याएं किए जाने, आत्मघाती बम बनाने या इस्लाम के नाम पर दहशत फैलाए जाने की इजाज़त आखिर कैसे दे सकता है?

यह दुर्भाग्यपूर्ण है की ऐसे मोलवियों के बैटन को मिडिया वाले भी अहमियत कम देते हैं लेकिन नीम हाकिम लालची मुल्लाओं की विवादित व्याख्याओं को सोशल मीडिया द्वारा हाथों-हाथ लिया जाता है |

यह बहुत से लोग  नहीं जानते के हकीकत मैं कुरान मैं क्या है… और यकीनन जो कुरान है वही इस्लाम है…..आज इस बात की ज़रुरत है की इस्लाम को मुहम्मद (स.अव० और उनके घराने की सीरत, किरदार और कुरान की हिदायत से पहचनवाया जाए.

राजशाही और तानाशाही का नाम इस्लाम नहीं है. और आज जो इस्लाम का चेहरा दिखाई  देता है, वो  नकली मुल्लाओं और निरंकुश शासकों के बीच नापाक गठजोड़ का नतीजा है.  जबकि इस इस्लाम के बिगड़े चेहरे का पूरा असर केवल १०% मुसलमानों पे हुआ है और पश्चिमी हुक्मरान ने जाती फायदे  के लिए , इस्लाम मैं आयी उन बुराईयों का , इस्तेमाल इस्लाम और मुस्लमान को बदनाम करने के लिए बखूबी किया.
इस्लाम और आतंकवाद यह दोनों एक दुसरे के विपरीत हैं , लिकिन  आज अफ़सोस की बात है की  मुसलमान के साथ आतंकवाद का  नाम जोड़ा जाता है. यह और बात है की समाज के पढ़े लिखे लोग अब समझने लगे हैं, की आतंकवाद का किसी धर्म विशेष से लेना देता नहीं.

यह शब्द ‘इस्लाम’ शब्द असल मैं शब्द तस्लीम है, जो शांति  से संबंधित है. आज इस्लाम नकली मुल्लाओं की व्याख्या का कैदी बन के रह गया है. नकली मुल्लाओं सम्राटों के हाथ की  कठपुतली हमेशा से रहे हैं. आज यह नेताओं और सियासी पार्टिओं के हाथ की कठपुतली हैं.  अरबी भाषा में अर्थ है मुल्ला जो ज्ञानी, एक उच्च शिक्षित विद्वान है. लेकिन, जो धार्मिक पोशाक पहन ले  और धर्म और शासकों के बीचविद्वानों की तरह  मध्यस्थ के रूप में कार्य करे  , कठमुल्ला   या नकली मुल्ला  कहलाता है. ऐसे लोगों को इस्लाम के बारे में उचित जानकारी नहीं है हालांकि वे दावा करते हैं.

नकली मुल्लाओं को इस्लाम के संदेश को प्रतिबंधित करने की कोशिश की. अल्लाह सिर्फ मुसलमानों का पालने वाला  नहीं है, या फिर सिर्फ उनका पालने वाला  नहीं जो मस्जिदों  मैं नमाजें पढ़  करते हैं, बल्कि अल्लाह सारी कायनात  के हर एक मखलूक का पालने वाला  है. और अल्लाह के नबी मुहम्मद (स.अ.व) सारे इंसानों के लिए रहमत हैं. और इस दुनिया के हर इंसान का, एक दुसरे पे किसी ना किसी प्रकार का हक है.
दोस्तों! इस्लाम, सरकार भी नहीं है बल्कि धर्म है. अगर इस्लाम सरकारी सत्ता का मतलब है, तो पैगंबर मुहम्मद की सबसे बड़े  सम्राट के शीर्षक के साथ सम्मानित किया जाना था. लेकिन उन्हें यह  शीर्षक नहीं दिया गया. उनको पैग़म्बर इ इस्लाम , बन्दा  ऐ   खुदा,अल्लाह का रसूल का खिताब मिला .
सच्चा इस्लाम है जो कि कुरान में पढ़ाया जाता है, और जिसको  पैगंबर मुहम्मद (स) और उनके घराने ने समझाया   ने समझाया, क़ुरबानी दे के.

कुरान ५:३२ मैं कहा गया है की अगर किसी ने एक बेगुनाह इंसान की जन ली तो यह ऐसा हुआ जैसे पूरे इंसानियत का क़त्ल किया और अगर किसी ने एक इंसान की जान बचाई तो उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई.

इमाम अली(अ.स) ने जब मालिक  इ अश्तर को मिस्र के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया तो हिदायत दी” मुस्लमान तुम्हारा धर्म भाई है और बाकी सब इंसानियत मैं भाई हैं. तुम दोनों  की मदद करना और फैसला मुसलमानों  का धर्म के आधार पे  करना और दूसरों  का फैसला  उनके, उनकी आम मानवता के आधार पे करना.


इस्लाम के दामन पे इन दुनिया परस्त मुल्लाओं की वजह से,  बहुत से बदनुमा दाग़ लग गए हैं. इनको आज कुरान की सही हिदायतों के ज़रिये धोने की ज़रुरत  है. सैयद ‘अबुल अला Maududi और डॉ. ताहा हुसैन के जैसे   विद्वानों द्वारा दर्ज किया  एक सत्य , की अबू सुफ़िआन ने इस्लाम का इस्तेमाल  राजनैतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए इस्लाम को ग़लत तरीके से पेश किया. जो खुल के कर्बला मैं आया जहां यजीद ने  जो की अबू सुफ़िआन का  पोता था और बनू उमीया काबिले से था , इमाम हुसैन (अ.स) को जो की रसूल इ खुदा (स.अव) के नवासे थे और बनुहाशिम  काबिले से थे,  घेर के भूखा प्यासा निर्दयता से शहीद कर दिया, उनके ६ महीने के बच्चे को भी पानी ना पिलाया और गर्दन पे तीर मारा . रसूल इ खुदा(स.अव) के घराने की ओरतों  को सरे बाज़ार घुमाया और यजीद के दरबार मैं ले जा के क़ैद खाने मैं दाल दिया.

यहीं से हक और बातिल का चेहरा खुल के सामने आ गया. क्यूंकि इस्लाम मैं ज़ुल्म करने वाला, उसको देख के चुप रहने वाला, ज़ालिम के हक मैं दुआ करने वाला और ज़ुल्म पे खुश होने वाला , सभी ज़ालिम हैं.  इस्लाम मैं जंग मैं भी, बूढ़े , बच्चे और औरतों को नुकसान पहुँचाने की इजाज़त नहीं है, यहाँ तक की अगर कोई पीठ दिखा जाए तो उसको भी नुकसान पहुँचाने की इजाज़त नहीं. इस्लाम मैं सिर्फ और सिर्फ सामने से हमला करने वाले पे ही हमला किया जा सकता है.

यजीद जिसने यह ज़ुल्म किया अगर खुद को बादशाह कहता तो कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन अफ़सोस की वोह खुद को मुसलमानों का खलीफा कहता था. और लोगों तक यह पैग़ाम गया की यह ज़ुल्म ही इस्लाम है.
आज यह सच  है की ९०% मुसलमान अबुसुफियान, मुआविया , और यजीद जैसे जालिमों के इस्लाम पे नहीं हैं, और ना ही आज इनको खलीफा का दर्जा हासिल है. लेकिन इस्लाम के दामन पे जो ज़ुल्म के ज़रिये दाग़ लगाया ,उसका नुकसान आज सभी मुसलमान उठा रहे हैं.

लेखक : एस एम् मासूम

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  1. ऐसे बेहतरीन article को पोस्ट करने के लिए अल्लाह आपको जज़ा-ए-ख़ैर अता फरमाए.
    आमीन!

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