शरीयत और फिकह दो अलग चीजें है

बाराबंकी कर्बला सिविल लाइन में नौचंदी जुमेरात पर एक मजलिस को खिताब करते हुए ऑल इण्डिया मुस्लिम लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना डा. सैयद कल...


बाराबंकी कर्बला सिविल लाइन में नौचंदी जुमेरात पर एक मजलिस को खिताब करते हुए ऑल इण्डिया मुस्लिम लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना डा. सैयद कल्बे सादिक ने कहा हमें हर काम करने से पहले शैतान के शर के पनाह के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए |

मौलाना डा0 कल्बे सादिक ने कहा शरीयत और फिकह दो अलग चीजें है हर अच्छे काम को बजा लाने व हर बुरे काम को रोकने को शरीयत कहते हैं लेकिन अच्छा लगना और है, अच्छा होना और है।

मौलाना ने कहा इस्लाम बेवकूफों को मुंह नहीं लगाता। इस्लाम इल्म (ज्ञान) के साथ होता है जिसके पास इल्म (ज्ञान) नहीं होता उसके पास इस्लाम नहीं रहता। इस्लाम ने हमेशा अमन व भाई चारे का पैगाम दिया है। लोग अलग-अलग भाषाओं में उस पैदा करने वाले का नाम बताते हैं कोई गाड, ईश्वर, खुदा के नाम से पुकारते हैं। मौलाना ने कहा कि मगर मौला अली ने बताया उसका कोई नाम नहीं क्योंकि वह तब से है जब कोई भाषा का वजूद ही नहीं हुआ था। आगे मौलाना ने कहा मौला अली सही फरमाते हैं कि जिसको किसी ने पैदा ही नहीं किया वह पैदा होने वाली भाषाओं में कैसे हो सकता है। हर चीज परिभाषित की जा सकती है लेकिन उस पैदा करने वाले को परिभाषित नहीं कर सकते।





मौलाना डा. कल्बे सादिक ने आगे कहा शरीयत यह है कि नमाज के बगैर कोई अमल पूरा नहीं होता यानी नमाज सबसे अच्छी इबादत है इसका पढ़ना हर हाल में जरूरी है लेकिन अगर किसी इंसान की जान खतरे में हो चाहे व दुश्मन ही क्यों न हो उसे बचाने के लिए अगर नमाज को तोड़ना पड़े तो तोड़ दो यह फिक्ह है। मौलाना ने यह भी कहा चाहे किसी भी धर्म या जाति का इन्सान हो ईश्वर अत्याचार करने वालों को इज्जत नहीं देता बल्कि उसे जलील व रूसवा कर देता है। इसलिए जिहालत से बचना चाहिए इल्म हासिल करना चाहिए। जो लोग अपने बच्चों को इल्म हासिल नहीं कराते वह भी जालिम होते हैं। अच्छा होना अक्ल से पहचाना जाता है और जजबात से अच्छा लगना शैतानी वसवसे का कारण होता है, इससे बचना चाहिए। इन्सान को जजबात अक्ल के कन्ट्रोल में रहे ये शरीयत बताती है। शरीयत हमको उस रसूल (स0अ0व0) से मिली जिसने दुनिया वालों से इल्म हासिल नहीं किया, बल्कि उस पैदा करने वाले के यहां से पढ़ा पढ़ाया इस दुनिया में आया। दुनिया में चाहे जितने अच्छे अमल किये हो वह सब तब तक नहीं पूंछे जायेंगे जब तक नमाज कुबूल नहीं होगी।


अन्त में शहीदाने कर्बला के दर्दनाक मसायब पेश करते हुए कहा कि इमाम हुसैन (अ0स0) की शहादत हमें पैगाम देती है। इन्सानियत की राह पर चलने की और जालिम और जुल्म के खिलाफ लड़ने की। इमाम की शहादत का दर्दनाक मंजर बयान किया जिसे सुनकर अजादार रो पड़े।
मजलिस से पूर्व हसनैन आब्दी ने हदीसे किसा पढ़कर मजलिस का आगाज किया। इसके बाद अब्बास व सरवर अली रिजवी ने पेशख्वानी कर नजरानये अकीदत पेश की। मजलिस के बाद अन्जुमन गुन्चये अब्बासिया ने नौहाख्वानी के साथ नौचंदी के अलम का गस्त किया। मजलिस की समाप्ति पर कर्बला के खादिम रिजवान मुस्तफा ने सबका शुक्रिया अदा किया।

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