सूरत या सीरत किस्मे आपका विशवास है |
कल मैंने एक लेख लिखा था " मैं मुसलमान हो गया | " बहुत से लोगों ने सवाल भी पूछे| सभी के सवाल अपनी जगह जाएज़ हैं, इसीलिये यहाँ ...
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कल मैंने एक लेख लिखा था "मैं मुसलमान हो गया | " बहुत से लोगों ने सवाल भी पूछे| सभी के सवाल अपनी जगह जाएज़ हैं, इसीलिये यहाँ कुछ उदाहरण के साथ जवाब देने की कोशिश कर रहा हूँ | सवाल पूछने वालों के अधिकतर सवाल इसलिए मुझे सही लगे क्यों कि आज के मुसलमान और इस्लाम के कानून में एक बड़ा अंतर दिखने लगा है | वैसे यह अंतर आज करीब करीब सभी धर्म में ज़ाहिर होने लगा है | उनकी धार्मिक किताबें कुछ और कहती हैं और उनका आचरण ,व्यवहार या किरदार कुछ और कहता है | जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए |
कुरान में तो साफ़ साफ़ कहा है की मुसलमान शक्ल से या नमाज़ों से नहीं सीरत से अच्छे किरदार से बनता है और पहचाना जाता है | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) ने कहा की किसी को उसकी नमाज़ों या बड़े बड़े सजदो से न पहचानो बल्कि उसकी सीरत से पहचानो | वैसे भी सूरत अक्सर झूट बोल जाती है लेकिन सीरत नहीं |
हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) के वक़्त का एक वाकेया है की एक इंसान उनके पास रोज़ बैठता था और इस्लाम के बारे में जानकारी हासिल करता था | अपने घर जा के कुरान पढता और समझने की कोशिश किया करता था | क्यूंकि उसका बाप इस्लाम पे नहीं था वो उसे रोकता था कभी कभी बुरा भला भी कह देता था |
एक दिन जब वो शख्स रसूल इ खुदा (सव) की बज़्म में पहुंचा तो उसका चेहरा उतरा हुआ था और कुछ परेशां नज़र आ रह था | रसूल ऐ खुदा (स.अ.व) ने उससे इसका कारन पुछा तो उसने कहा | कल जब उसका बाप उसे कुरान पढने से मन कर रह था तो उसे गुस्सा आ गया और उसने अपने बाप पे हाथ उठा दिया |
इतना सुनना था की रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा मेरी बज़्म से चले जाओ और जा के अपने बाप से माफी मांगो |
उस शख्स ने कहा अरे रसूल ऐ खुदा (स.अ.व) वो तो काफ़िर है ,इस्लाम पे भी नहीं है मुझे कुरान पढने पे मारता भी है |उस से क्यूँ माफी मांगू |
रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने जवाब दिया " वो इस्लाम पे हो या किसी और मज़हब पे इस से तुझे कोई फर्क नही पड़ना चाहिए ,क्यूंकि वो तुम्हारा बाप है और उसे तकलीफ पहुँचाना इस्लाम के कानून के खिलाफ है |
अब ज़रा गौर करें उनके बारे में रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) का क्या ख्याल होगा जो खुद को मुसलमान भी कहते हैं और अपने वालेदैन (मा-बाप) को तकलीफ भी पहुंचाते हैं |
एक दूसरा वाकेया भी याद आ रह है जो उस वाकये से मिलता जुलता है जिसे बचपन में स्कूल की किताबों में पढ़ा था | कूड़ा फेकने वाली बुढिया और रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) का |
एक बूढी औरत थी जो मक्के में उस दौर में रहती थी जब रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने लोगों को इस्लाम की बातें बतानी शुरू की | उस बूढी औरत को लोगों ने कहा यह कोई जादूगर है ,उससे दूर रहना क्यूँ की वो जिससे बात करता है या जो उससे मिलता है वो उसकी बातों में आ जाता है और इस्लाम को अपना धर्म मान लेता है |
वो औरत इस बात से डर गयी और उसने मक्का छोड़ने का फैसला कर लिया | वो अपना सामान ले कर सफ़र पे निकल पडी | सामान वजनी था और औरत बूढी | बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ पा रही थी | उसे रास्ते में एक ख़ूबसूरत शख्स मिला जिसने उसका सामान उठा लिया और बोला कहाँ जाना है बता दो और उस बूढी औरत को उस इलाके के बहार पहुँच दिया |
रास्ते में वो औरत बताई जा रही थी की एक शख्स मक्के में हैं, जादूगर है ,लोगों को गुमराह कर रहा है, इसीलिए वो उस शख्स की पहुँच से दूर जा रही है | जब वो बूढी उस ख़ूबसूरत शख्स की मदद से मंजिल पे पहुँच गयी तो उस औरत ने कहा बीटा तुमने अपना नाम नहीं बताया ? कौन हो और कहाँ के हो ?
उस ख़ूबसूरत शख्स ने जवाब दिया मैं वही मुहम्मद हूँ जिसके बारे में तुम रास्ते में मुझे बता रही थी और जिससे दूर तुम जाना चाह रही हो | उस औरत को बड़ा ताज्जुब हुआ और उसने पुछा की तुम सब कुछ जानते थे फिर भी मुझे मंजिल पे पहुंचा दिया और मेरी इतनी मदद की | क्यूँ ?
रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा इस्लाम में अल्लाह का हुक्म है कि कमज़ोर ,बूढों और मजबूर की मदद करो ,इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो किस धर्म को मानने वाला है |
वो बूढी औरत रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के क़दमो पे गिर पड़ी और कहने लगी जिस धर्म के कानून इतने अच्छे हैं उसे बताने वाला जादूगर या गलत कैसे हो सकता है ?
इन उदाहरण से यह बात साफ़ है की मुसलमान अपनी सीरत से पहचाना जाता है और जिसकी सीरत पैग़म्बर ऐ इस्लाम हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) से जुदा हो वो कुछ भी हो सकता है मुसलमान नहीं हो सकता |
एक उदाहरण नीचे के विडियो में मुस्लिम समुदाय के मौलाना भी आपको बता रहे हैं ,अवश्य सुने |
लेखक :एस.एम्.मासूम
कुरान में तो साफ़ साफ़ कहा है की मुसलमान शक्ल से या नमाज़ों से नहीं सीरत से अच्छे किरदार से बनता है और पहचाना जाता है | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) ने कहा की किसी को उसकी नमाज़ों या बड़े बड़े सजदो से न पहचानो बल्कि उसकी सीरत से पहचानो | वैसे भी सूरत अक्सर झूट बोल जाती है लेकिन सीरत नहीं |
हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) के वक़्त का एक वाकेया है की एक इंसान उनके पास रोज़ बैठता था और इस्लाम के बारे में जानकारी हासिल करता था | अपने घर जा के कुरान पढता और समझने की कोशिश किया करता था | क्यूंकि उसका बाप इस्लाम पे नहीं था वो उसे रोकता था कभी कभी बुरा भला भी कह देता था |
एक दिन जब वो शख्स रसूल इ खुदा (सव) की बज़्म में पहुंचा तो उसका चेहरा उतरा हुआ था और कुछ परेशां नज़र आ रह था | रसूल ऐ खुदा (स.अ.व) ने उससे इसका कारन पुछा तो उसने कहा | कल जब उसका बाप उसे कुरान पढने से मन कर रह था तो उसे गुस्सा आ गया और उसने अपने बाप पे हाथ उठा दिया |
इतना सुनना था की रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा मेरी बज़्म से चले जाओ और जा के अपने बाप से माफी मांगो |
उस शख्स ने कहा अरे रसूल ऐ खुदा (स.अ.व) वो तो काफ़िर है ,इस्लाम पे भी नहीं है मुझे कुरान पढने पे मारता भी है |उस से क्यूँ माफी मांगू |
रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने जवाब दिया " वो इस्लाम पे हो या किसी और मज़हब पे इस से तुझे कोई फर्क नही पड़ना चाहिए ,क्यूंकि वो तुम्हारा बाप है और उसे तकलीफ पहुँचाना इस्लाम के कानून के खिलाफ है |
अब ज़रा गौर करें उनके बारे में रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) का क्या ख्याल होगा जो खुद को मुसलमान भी कहते हैं और अपने वालेदैन (मा-बाप) को तकलीफ भी पहुंचाते हैं |
एक दूसरा वाकेया भी याद आ रह है जो उस वाकये से मिलता जुलता है जिसे बचपन में स्कूल की किताबों में पढ़ा था | कूड़ा फेकने वाली बुढिया और रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) का |
एक बूढी औरत थी जो मक्के में उस दौर में रहती थी जब रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने लोगों को इस्लाम की बातें बतानी शुरू की | उस बूढी औरत को लोगों ने कहा यह कोई जादूगर है ,उससे दूर रहना क्यूँ की वो जिससे बात करता है या जो उससे मिलता है वो उसकी बातों में आ जाता है और इस्लाम को अपना धर्म मान लेता है |
वो औरत इस बात से डर गयी और उसने मक्का छोड़ने का फैसला कर लिया | वो अपना सामान ले कर सफ़र पे निकल पडी | सामान वजनी था और औरत बूढी | बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ पा रही थी | उसे रास्ते में एक ख़ूबसूरत शख्स मिला जिसने उसका सामान उठा लिया और बोला कहाँ जाना है बता दो और उस बूढी औरत को उस इलाके के बहार पहुँच दिया |
रास्ते में वो औरत बताई जा रही थी की एक शख्स मक्के में हैं, जादूगर है ,लोगों को गुमराह कर रहा है, इसीलिए वो उस शख्स की पहुँच से दूर जा रही है | जब वो बूढी उस ख़ूबसूरत शख्स की मदद से मंजिल पे पहुँच गयी तो उस औरत ने कहा बीटा तुमने अपना नाम नहीं बताया ? कौन हो और कहाँ के हो ?
उस ख़ूबसूरत शख्स ने जवाब दिया मैं वही मुहम्मद हूँ जिसके बारे में तुम रास्ते में मुझे बता रही थी और जिससे दूर तुम जाना चाह रही हो | उस औरत को बड़ा ताज्जुब हुआ और उसने पुछा की तुम सब कुछ जानते थे फिर भी मुझे मंजिल पे पहुंचा दिया और मेरी इतनी मदद की | क्यूँ ?
रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा इस्लाम में अल्लाह का हुक्म है कि कमज़ोर ,बूढों और मजबूर की मदद करो ,इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो किस धर्म को मानने वाला है |
वो बूढी औरत रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के क़दमो पे गिर पड़ी और कहने लगी जिस धर्म के कानून इतने अच्छे हैं उसे बताने वाला जादूगर या गलत कैसे हो सकता है ?
इन उदाहरण से यह बात साफ़ है की मुसलमान अपनी सीरत से पहचाना जाता है और जिसकी सीरत पैग़म्बर ऐ इस्लाम हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) से जुदा हो वो कुछ भी हो सकता है मुसलमान नहीं हो सकता |
एक उदाहरण नीचे के विडियो में मुस्लिम समुदाय के मौलाना भी आपको बता रहे हैं ,अवश्य सुने |
लेखक :एस.एम्.मासूम
Behtreen lekh Masoom bhai...
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