ईश्वर एक है और इसके तर्क

ईश्वर एक है इसके बहुत से तर्क प्रस्तुत किये गये हैं और ईश्वर एक है या कई यह विषय अत्यधिक प्राचीन है और इस पर बहुत चर्चा हो चुकी है | इस ल...

ईश्वर एक है इसके बहुत से तर्क प्रस्तुत किये गये हैं और ईश्वर एक है या कई यह विषय अत्यधिक प्राचीन है और इस पर बहुत चर्चा हो चुकी है |


इस लेख में हम ईश्वर के एक होने के कुछ सरल प्रमाण पेश कर रहे हैं । जैसे यदि यह मान लिया जाए कि इस सृष्टि की रचना २ या कई ईश्वरों ने मिल कर की है तो इस धारणा के लिए कुछ दशाएं होगी या तो विश्व की हर वस्तु को उन सब ने मिल कर बनाया होगा या फिर कुछ वस्तुओं को एक ने और कुछ अन्य को दूसरे ने बनाया होगा। या फिर समस्त रचनाओं को किसी एक ईश्वर ने ही बनाया होगा किंतु कुछ अन्य देवता संसार को चलाते होंगे किंतु यदि हम यह मान लें कि हर रचना को कई ईश्वरों ने मिल कर बनाया है तो यह संभव नहीं है क्योंकि इस का अर्थ यह होगा कि विश्व की एक वस्तु को २ या कई देवताओं ने मिल कर बनाया है और हर एक ने एक वस्तु को बनाया है जिससे से हर वस्तु के कई अस्तित्व हो जाएंगें जबकि एक वस्तु का एक ही अस्तित्व होता है अन्यथा वह एक वस्तु नहीं होगी किंतु यदि यह माना जाए कि कई देवताओं में से प्रत्येक ने किसी वस्तु विशेष या कई वस्तुओं की रचना की है तो इस धारणा का अर्थ यह होगा कि हर रचना केवल अपने रचनाकार के बल पर अस्तित्व में आई होगी और उसे अपने अस्तित्व के लिए केवल अपने रचनाकार की ही आवश्यकता होगी अर्थात केवल उसी ईश्वर की आवश्यकता होगी जिसने उसे बनाया है किंतु इस प्रकार की आवश्यकता सारी वस्तुओं को बनाने वाले अंतिम रचनाकार की होगी जो वास्तव में ईश्वर है।



दूसरे शब्दों में संसार के लिए कई ईश्वर मानने का अर्थ यह होगा कि संसार में कई प्रकार की व्यवस्थाएं हैं जो एक दूसरे के अलग- अलग भी हैं जब कि संसार की एक ही व्यवस्था है और सारी प्रक्रियाएं एक दूसरे से जुड़ी हैं और एक दूसरे पर अपना प्रभाव भी डालती हैं और उन सब को एक दूसरे की आवश्यकता होती है इसी प्रकार पहली प्रक्रिया अपने बाद की प्रक्रिया से संबंध रखती है और पहले की प्रत्येक प्रक्रिया अपने बाद की प्रक्रिया के अस्तित्व का कारण होती है इस प्रकार से ऐसी रचना जिसकी विभिन्न प्रक्रियाएं एक दूसरे से जुड़ी हों और सारी प्रक्रियाएं और व्यवस्थाएं एक व्यापक व्यवस्था के अंतर्गत हों तो उन का कई नहीं एक ही रचनाकार हो सकता है अर्थात इस प्रकार से व्यस्थित परिणामों व प्रक्रियाओं का एक ही कारक हो सकता है और वह कई कारकों का परिणाम नहीं हो सकता किंतु यदि यह माना जाए कि वस्तुतः ईश्वर एक ही है किंतु उसकी सहायता के लिए और संसार को चलाने के लिए कई अन्य देवता मौजूद हैं तो यह भी सही नहीं है क्योंकि हर वस्तु अपने पूरे अस्तित्व के साथ अपने कारक से संबंधित है और उसका अस्तित्व उसी के सहारे पर निर्भर होता है और किसी अन्य अस्तित्व में उसे प्रभावित करने की शक्ति नहीं होती अलबत्ता यहां पर प्रभावित करने से वह प्रभाव आशय नहीं है जो वस्तुएं एक दूसरे पर डालती हैं ।



इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि यदि ईश्वर के सहायकों की बात मान ली जाए तो फिर इसकी दो दशाएं होंगी। एक यह कि ईश्वर को इन सहायकों की आवश्यकता होती है या उसे उनकी आवश्यकता नहीं होती। अब यदि हम यह मान लें कि ईश्वर को सहायकों की आवश्यकता होती है तो फिर वह ईश्वर नहीं हो सकता क्योंकि सहायता की आवश्यकता उसे होती है जो अकेले की कोई काम करने की क्षमता नहीं रखता और हम पहले की यह चर्चा कर चुके हैं कि ईश्वर आवश्यकता मुक्त और हर काम करने की क्षमता रखता है किंतु यदि यह माना जाए कि ईश्वर को सहायकों की आवश्यकता नहीं हैं किंतु फिर भी उसके सहायक हैं तो फिर यह अकारण काम होगा अर्थात ईश्वर ने सहायकों की आवश्यकता न होने के बावजूद कुछ लोगों को अपनी सहायता के लिए रखा है तो इस से यह सिद्ध होगा कि ईश्वर ने एसा काम किया है जिसकी आवश्यकता ही नहीं थी और यह ईश्वर के लिए सही नहीं है क्योंकि वह केवल वही काम करता है जिसकी आवश्यकता होती है अनाश्वयक काम मनुष्य तो कर सकता है किंतु ईश्वर नहीं कर सकता।



यदि हम यह मानें कि ईश्वर के कुछ लोग सहायक हैं तो फिर यह प्रश्न उठता है कि उनकी किसने रचना की? यदि ईश्वर ने ही उनकी रचना की है तो फिर उन सहायकों का अस्तित्व, ईश्वर पर निर्भर होगा तो फिर एसे लोग साधन हो सकते हैं, ईश्वर के सहायक नहीं। वैसे हम बता चुके हैं कि सहायता की आवश्यकता अक्षमता व कमज़ोरी का चिन्ह है किसी कंपनी या संस्था में सहायक इस लिए होते हैं क्योंकि सारे कामों की देखभाल महानिदेशक अकेले नहीं कर सकता अर्थात उसमें यह क्षमता नहीं होती कि वह सारे छोटे- बड़े काम अकेले की करे इसलिए सहायकों की नियुक्ति की जाती है किंतु ईश्वर के लिए हम यह कल्पना नहीं कर सकते कि कोई काम उसके लिए संभव नहीं हैं या अकेले वह इतने सारे काम नहीं कर सकता इस लिए उसने अपने लिए कुछ सहायक रखे हैं। क्योंकि ईश्वर की तुलना मनुष्य से नहीं की जा सकती और न ही मनुष्य के काम काज की शैली की ईश्वरीय व्यवस्था से तुलना की जा सकती है।



इस लिए हमारा मानना है कि ईश्वर एक है ऐसा एक जो कभी दो नहीं हो सकता। अकेला है न उसका कोई भागीदार है और न ही सहायक। न उसका कोई पिता है और न ही वह किसी का पिता है। न उसकी किसी से नातेदारी है और न ही उसका कोई परिवार अथवा पत्नी है यह सब मनुष्य की विशेषताएं हैं और ईश्वर के बारे में इस प्रकार की बातों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

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  1. Bilkul sahi hai, Ishwar ek hai, kyonki musibon ke aate hi insan usi ek ishwar ko alag alag nam se pukarata hai shradha rakhata hai. Sabhi manushyon ko banane vala ek hi hai kyoki sabhi ke sharir me bilkul ek jaisa hi rakt hai, jarurat padane par allah ka gulam ishwar ke bhakt ko, ya ek bhakt gulam ko khoon dekar usaki jan bachakar apna dharm bacha sakata hai, kyoki insaniyat or paropkar hi sabse bada dharm hai.

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