कर्बला के बहत्तर शहीदों के नाम व मुखतसर तआरुफ़
कर्बला के बहत्तर शहीदों के नाम व मुखतसर तआरुफ़ जनाबे मुस्लिम बिन औसजा – रसूल अकरम (स॰अ॰व॰व॰) के सहाबी थे। जनाबे अब्दुल्लाह बिन ओ...
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कर्बला के बहत्तर शहीदों के नाम व मुखतसर तआरुफ़
- जनाबे मुस्लिम बिन औसजा – रसूल अकरम (स॰अ॰व॰व॰) के सहाबी थे।
- जनाबे अब्दुल्लाह बिन ओमैर कल्बी – हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- जनाबे वहब – इन्होंने इस्लाम क़बूल किया था, करबला में इमाम हुसैन (अ॰स॰) की नुसरत में शहीद हुए।
- जनाबे बोरैर इब्ने खोज़ैर हमदानी – हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- मन्जह इब्ने सहम – इमाम हुसैन (अ॰स॰) की कनीज़ हुसैनिया के बत्न से थे।
- उमर बिन ख़ालिद – कूफ़ा के रहने वाले और सच्चे मोहिब्बे अहलेबैत (अ॰स॰) थे।
- यज़ीद बिन ज़ेयाद अबू शाताए किन्दी – कूफ़ा के रहने वाले थे।
- मजमा इब्ने अब्दुल्ला मज़जही – अली (अ॰स॰) के सहाबी थे, यह जंगे सिफ़्फीन में भी शरीक थे।
- जनादा बिन हारिसे सलमानी – कूफ़ा के मशहूर शिया थे, यह हज़रते मुस्लिम के साथ जेहाद में भी शरीक थे।
- जन्दब बिन हजर किन्दी – कूफ़ा के मश्हूर शिया व हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- ओमय्या बिन साद ताई – हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- जब्ला बिन अली शैबानी – कूफ़ा के बाशिन्दे और हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे, करबला में हमल-ए-ऊला में शहीद हुए।
- जनादा बिन क़ाब बिन हारिस अंसारी ख़ज़रजी – मक्का से अपने कुन्बे के साथ करबला आए और हमल-ए-ऊला में शहीद हुए।
- हारिस बिन इमरउल क़ैस किन्दी – करबला में उमरे साद की फ़ौज के साथ आए थे लेकिन इमाम हुसैन (अ॰स॰) के साथ शामिल होकर शहीद हुए।
- हारिस बिन नैहान – हज़रते हमज़ा के ग़ुलाम नैहान के बेटे और हज़रते अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- हब्शा बिन क़ैस नहमी – आलिमे दीन थे, हमल-ए-ऊला में शहीद हुए।
- हल्लास बिन अम्रे अज़्दी – हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- ज़ाहिर बिन अम्रे सल्मी किन्दी – रसूल अकरम (स॰अ॰व॰व॰) के सहाबी और हदीस के रावी थे।
- स्वार बिन अबी ओमेर नहमी – हदीस के रावी थे, हमल-ए-ऊला में शहीद हुए।
- शबीब बिन अब्दुल्लाह – हारिस बिन सोरैय के ग़ुलाम थे, हज़रत अली (अ॰स॰) और रसूल अकरम (स.अ.व.व.) के सहाबी थे।
- शबीब बिन अब्दुल्लाह नहशली – हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- अब्दुर्रहमान बिन अब्दे रब अन्सारी ख़ज़रजी - रसूल अकरम (स॰अ॰व॰व॰) के सहाबी थे।
- अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल्लाह बिन कदन अरहबी – जनाबे मुस्लिम के साथ कूफ़ा पहुँचे किसी तरह बचकर करबला पहुँचे और हमल-ए-ऊला में शहीद हुए।
- अम्मार बिन अबी सलामा दालानी – रसूल अकरम (स॰अ॰व॰व॰) और हज़रत अली (अ॰स॰) के साथ भी शरीक थे। करबला में हमल-ए-ऊला में शहीद हुए।
- क़ासित बिन ज़ोहैर तग़लबी – यह और इनके दो भाई हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- कुरदूस बिन ज़ोहैर बिन हारिस तग़लबी - क़ासित इब्ने ज़ोहैर के भाई और हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- मसऊद बिन हज्जाज तैमी – उमरे साद की फ़ौज में शामिल होकर करबला पहुँचे लेकिन इमाम हुसैन (अ॰स॰) की नुसरत में शहीद हुए।
- मुस्लिम बिन कसीर सदफ़ी अज़्दी – जंगे जमल में हज़रत अली (अ॰स॰) के साथ थे, करबला में हमला-ए-ऊला में शहीद हुए।
- मुस्कित बिन ज़ोहैर तग़लबी – करबला में हमला-ए-ऊला में शहीद हुए।
- कनाना बिन अतीक़ तग़लबी - करबला में हमला-ए-ऊला में शहीद हुए।
- नोमान बिन अम्रे अज़दी – हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे, हमला-ए-ऊला में शहीद हुए।
- नईम बिन अजलान अन्सारी – हमला-ए-ऊला में शहीद हुए।
- अम्र बिन जनादा बिन काब ख़ज़रजी – करबला में बाप की शहादत के बाद माँ के हुक्म से शहीद हुए।
- हबीब इब्ने मज़ाहिर असदी – हज़रत रसूल अकरम (स॰अ॰व॰व॰) के सहाबी, हज़रत अली (अ॰स॰), हज़रत इमामे हसन (अ॰स॰) के सहाबी थे, इमामे हुसैन (अ॰स॰) के बचपन के दोस्त थे और करबला में शहीद हुए।
- मोसय्यब बिन यज़ीद रेयाही – हज़रत हुर के भाई थे।
- हुज़्र बिन हुर यज़ीद रेयाही – जनाबे हुर के बेटे थे।
- जनाबे हुर बिन यज़ीद रेयाही – यज़ीदी फ़ौज के सरदार थे, बाद में इमामे हुसैन (अ॰स॰) की ख़िदमत में हाज़िर होकर शहादत का शरफ़ हासिल किया।
- अबू समामा सायदी – आशूर के दिन नमाज़े ज़ोहर के एहतेमाम में दुश्मनों के तीर से शहीद हुए।
- सईद बिन अब्दुल्लाह हनफ़ी – ये भी नमाज़े ज़ोहर एहतेमाम में दुश्मनों के तीर से शहीद हुए।
- ज़ोहैर बिन क़ैन बोजिल्ली - ये भी नमाज़ ज़ोहर में ज़ख़्मी होकर जंग में शहीद हुए।
- उमर बिन करज़ाह बिन काब अंसारी – ये भी नमाज़े ज़ोहर में शहीद हुए।
- नाफ़े बिन हेलाल हम्बली – नमाज़े ज़ोहर की हिफ़ाज़त में जंग की और बाद में शिम्र के हाथों शहीद हुए।
- शौज़ब बिन अब्दुल्लाह – मुस्लिम इब्ने अक़ील का ख़त लेकर कर्बला पहुँचे और शहीद हुए।
- आबिस बिन अबी शबीब शकरी – हज़रत इमाम अली (अ॰स॰) के सहाबी थे, रोज़े आशूरा कर्बला में शहीद हुए।
- हन्ज़ला बिन असअद शबामी – रोज़े आशूर ज़ोहर के बाद जंग की और शहीद हुए।
- जौन ग़ुलामे अबूज़र ग़ेफ़ारी – हब्शी थे, हज़रत अबूज़र ग़ेफ़ारी के ग़ुलाम थे।
- ग़ुलामे तुर्की – हज़रत इमामे हुसैन (अ॰स॰) के ग़ुलाम थे, इमाम ने अपने फ़रज़न्द हज़रत इमामे ज़ैनुल आब्दीन (अ॰स॰) के नाम हिबा कर दिया था।
- अनस बिन हारिस असदी – बहुत बूढ़े थे, बड़े एहतेमाम के साथ शहादत नोश फ़रमाई।
- हज्जाज बिन मसरूक़ जाफ़ी – मक्के से साथ हुए और वहीं से मोअज़्ज़िन का फ़र्ज़ अंजाम दिया।
- ज़ेयाद बिन ओरैब हमदानी – इनके वालिद हज़रत रसूल अकरम (स॰अ॰व॰व॰) के सहाबी थे।
- अम्र बिन जन्दब हज़मी – हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- साद बिन हारिस – हज़रत अली (अ॰स॰) ग़ुलाम थे।
- यज़ीद बिन मग़फल – हज़रत अली (अ॰स॰) के सहाबी थे।
- सोवैद बिन अम्र ख़सअमी – बूढ़े थे, करबला में इमाम हुसैन (अ॰स॰) के तमाम सहाबियों में सबसे आख़िर में जंग में ज़ख्मी हुए थे। होश में आने पर इमाम हुसैन (अ॰स॰) की शहादत की ख़बर सुन कर फिर जंग की और शहीद हुए।
बनी हाशिम यानी आले अबू तालिब (अ॰स॰) के शोहदा
- हज़रत अब्दुल्लाह – जनाबे मुस्लिम के बेटे और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत मोहम्मद – जनाबे मुस्लिम के बेटे और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत जाफ़र – हज़रत अक़ील के बेटे और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत अब्दुर्रहमान - हज़रत अक़ील के बेटे और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत मोहम्मद – हज़रत अक़ील के पोते और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पर पोते।
- हज़रत मोहम्मद – अब्दुल्ला के बेटे, जाफ़र के पोते और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पर पोते।
- हज़रत औन – अब्दुल्ला के बेटे जाफ़र के पोते और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पर पोते।
- जनाबे क़ासिम – हज़रत इमाम हुसैन (अ॰स॰) के बेटे, हज़रत इमाम अली (अ॰स॰) के पोते और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पर पोते।
- हज़रत अबू बक्र - हज़रत इमामे हसन (अ॰स॰) के बेटे, हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) के पोते और जनाबे अबू तालिब (अ॰स॰) के पर पोते।
- हज़रत मोहम्मद - हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) बेटे और जनाबे अबु तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत अब्दुल्ला - हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) बेटे और जनाबे अबु तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत उसमान - हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) बेटे और जनाबे अबु तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत जाफ़र - हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) बेटे और जनाबे अबु तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत अब्बास - हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) बेटे और जनाबे अबु तालिब (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत अली अकबर – हज़रत इमामे हुसैन (अ॰स॰) और हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत अब्दुल्लाह - हज़रत इमामे हुसैन (अ॰स॰) और हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत अली असग़र - हज़रत इमामे हुसैन (अ॰स॰) और हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) के पोते।
- हज़रत इमामे हुसैन (अ॰स॰) - हज़रत इमामे अली (अ॰स॰) बेटे और जनाबे अबु तालिब (अ॰स॰) के पोते।
'अल्हम्दोलिल्लाह' लाखों थे उस तरफ और बहत्तर थे इस तरफ...,
ReplyDelete"72" अंक का बार-बार आना इस्लाम में कई बार देखा गया है.
इमाम हुसैन...., बीबी फातिमा की चादर....., कर्बला के बहत्तर शहीद....., 'अल्हम्दोलिल्लाह' नेक लोगों का बहत्तर अंक से बार- बार (कई मर्तबा) किसी न किसी सूरत में परिचित होना...,
"हम उन लोगों के लिए खोल-खोल के निशानियाँ ब्यान करते हैं, जो सोच विचार से काम लेना चाहें:कुरआन 10:२४"
यकीनन अल्लाह हमेशा अच्छे लोगों को ही दुःख देखर उनकी परीक्षा लेता है कि वह इस हाल में भी अल्लाह का शुक्र अता करते हैं कि नहीं. वैसे परीक्षा उसी की ली जाती है जो इस काबिल होता है और दुःख: झेलकर भी अल्लाह का शुक्र अता करने वाले विरले ही होते हैं.
Islam the religion of Peace, Joy and Security! Alhamdolillah!
वाकयात-ए-करबला में इमाम हुसैन ने अपना पूरा कुनबा, कुर्बान कर दिया। अपने भाई जनाबे अब्बास को जंग करने से रोका ताकि कोई यह नहीं कह सके कि यह जंग राजशाही के लिए थी। कहा जाता है कि हजरत अब्बास इतने बहादुर थे कि अकेले पूरी फौज पर भारी थे। बड़े भाई को दिया वचन हजरतअब्बास ने अपनी जान देकर भी निभाया। तानाशाह यजीद ने इमाम हुसैन को झुकाने के लिए नहरे फराद का पानी बंद कर दिया। इमाम हुसैन के कारवां में बच्चे भी थे और वृद्ध भी। कुल 72 लोगों का कारवां था। हजरत अब्बास से बच्चों की प्यास देखी नहीं गई। उन्होंने इमाम से कहा कि वह पानी लेने जाएंगे। इमाम हुसैन ने पहले तो इनकार किया। फिर बोले-जाओ मगर तुम जंग नहीं करोगे। जिसके आगे न शमशीर की चली और न जंजीर की, दुनिया का सबसे ताकतवर यह इंसान अपने भाई के प्यार में हार गया। केवल मश्क लेकर नहर पर गया। सकीना की प्यास बुझाने। जालिम यजीद ने अब्बास को शहीद कर दिया। मश्क गिर गया। पानी बिखर गया। रह गई प्यास।
ReplyDeleteहजरत कासिम से लेकर अली असगर की शहादत भी हजरत इमाम हुसैन ने देखी। बेदर्द जालिम हुरमला केतीर ने अली असगर (छह माह के बालक) को भी शहीद कर दिया। रह गए सिर्फ जलते हुए खेमे। रह गई केवल प्यास। करबला की दास्तान दुनिया की शायद पहली ऐसी जंग (एकतरफा) है जिसमें पानी भी एक कारण रहा। दस मोहर्रम वह तारीख है, जब इमाम हुसैन को नमाज अदा करते वक्त शहीद किया गया।
इमाम हुसैन सहित सभी ने दीन और दुनिया केसामने आदर्श रखे। भाई से भाई का रिश्ता-बहन से भाई का रिश्ता, सगे और सौतेलों का रिश्ता। हक के लिए लड़ो। हकीकत से मुंह मत मोड़ो। इस्लाम की पहचान यजीद या फिरऔन से नहीं बल्कि अल्लाह के फर्ज, नबियों की सीख और हुसैन जैसे किरदारों से है।
इमाम हुसैन ने मानवता और सच्चाई के लिए शहादत दी थी। उनकी जंग सत्ता के लिए नहीं थी। उनकी जंग उन इस्लामी उसूलों के लिए थी जो मानवता और इंसान की भलाई का संदेश देते हैं।
ReplyDeleteमौलाना ने कहा कि इमाम जंग का इरादा नहीं रखते थे। क्योंकि उनके काफिले में केवल 72 लोग शामिल थे। यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि इमाम का इरादा जंग का नहीं था। क्योंकि 72 की संख्या में जिनमें छह माह का बेटा अली असगर और आपकी बहन, बेटियां,पत्नी व महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे शामिल थे। यह संख्या किसी जंग के लिए नहीं हो सकती। जंग में महिलाओं, बच्चों को ले जाने का कोई मकसद भी नहीं था।
मौलाना ने कहा कि इमाम हमेशा सब्र से काम लेते थे और जंग को टालते रहे। दुनिया में शायद ही कोई ऐसी जंग हो जिसमें 72 के मुकाबले लाखों की फौज हो। वास्तव में यजीद की फौज के मुकाबले इमाम हुसैन की सच्चाई और आदर्शों की यह पहली जीत थी।