इस्लाम और मुसलमान नदी के दो किनारे क्यों ? दहेज़

इस्लाम धर्म के कानून की किताब कुरान हैं और मुहम्मद(स.अ.व) ने हम तक इस्लाम को मुकम्मल तौर पे पहुँचाया इसी लिए उनको पैग़म्बर ए इस्लाम कहा जाता...

dowryइस्लाम धर्म के कानून की किताब कुरान हैं और मुहम्मद(स.अ.व) ने हम तक इस्लाम को मुकम्मल तौर पे पहुँचाया इसी लिए उनको पैग़म्बर ए इस्लाम कहा जाता है. जो शख्स इस्लाम के बताए कानून पे चलता है उसे मुसलमान कहते हैं और जो इस कानून पे नहीं चलता लेकिन खुद को मुसलमान कहता है उसे मुनाफ़िक़ ( दो चेहरे वाला ) कहते हैं.
यह  हर  मुसलमान  का  फ़र्ज़  है  कि  वो कुरान कि हिदायतों पे चलने कि कोशिश करे और अगर कभी  किसी नफ्स की  कमजोरी   के तहत  गुनाह हो जाए तो उसकी तौबा करे. लेकिन आज के माहौल मैं जब मुसलमानों पे नज़र डालते हैं तो नज़ारा कुछ और ही दिखाई देता है. ऐसा लगता है कि जैसे हमने यह प्रण कर लिया है कि जो इस्लाम कहेगा हम उसका उल्टा ही करेंगे. और यह ग़लतियाँ अनजाने मैं नहीं समझ बूझ के करेंगे.

जब सवाल किया जाएगा कि आप कैसे मुसलमान हैं जो इस्लाम के बताये कानून पे नहीं चलते तो जवाब मैं कभी कुरान की आयातों के खुद से निकले हुई नतीजे, कभी समाज मैं रहते हुए उनपे अमल ना करने की मजबूरी इत्यादि का हवाल दिया जाता है. जो की सही नहीं.

मैंने पिछले लेख मैं  कता ए रहमी का ज़िक्र किया था जो की आज एक ऐसा आम गुनाह होता जा रहा है जिसकी माफी नहीं लेकिन किसी को फ़िक्र भी नहीं क़ि इस गुनाह से कैसे बचा जाए.

आज ज़िक्र करूँगा दहेज़  का.
इस्लाम के कानून के मुताबिक लड़की वाला दहेज़ नहीं देता बल्कि लड़का जो शादी कर रहा है यह उसका फ़र्ज़  है क़ि अपनी पत्नी के लिए रहने का, कपडे का खाने पीने का इंतज़ाम करे. सूरा ए निसा मैं अल्लाह ने साफ़ साफ़ कहा है क़ि शादी करो और लड़की को महर (एक तै रक़म) दो. और यह रक़म तै करती है लड़की. अगर लड़की पे कम रक़म तय करने के लिए ज़ोर डाला जाए तो लड़की शादी से इनकार कर सकती है.

अब देखें हो क्या रहा है ठीक इसका उल्टा हमारे समाज मैं? लड़की वाला लड़की भी दे और लाखों का दहेज़ भी और वो भी मर्जी से नहीं जबरन देना पड़ता है., जबरन इसलिए क़ि अगर ग़रीब है तो या तो शादी नहीं होती और अगर किसी तरह हो गयी तो जीवन भर के लिए ताना दिया जाता  है क़ि क्या लाई घर से?

हम खुद को मुसलमान कहते हैं और सुन्नत ए रसूल (स.अ.व) पे चलने का दावा भी करते हैं लेकिन सच यह है की अक्सर जब दुनियावी फायदे सुन्नत से अलग चलने में नज़र आते हैं तो सुन्नत भूल जाते हैं.

हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा दहेज़ मैं ज्यादा रक़म ना लिया करो क्यों की यह दोनों के बीच नफरत और दुश्मनी पैदा करती है.

(ख्याल  रहे यहाँ लड़के वाले से दहेज़ मैं ज्यादा रक़म ना लेने की बात हो रही है क्यों कि इस्लाम में दहेज़ लड़का दिया करता है .)
जनाब ए फातिमा(स.अ) पैग़म्बर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद(स.अ.व) की बेटी थी और उनकी शादी मुसलमानों के खलीफा हजरत अली (अ.स) से हुई. हम मुसलमानों को यह देखना चाहिए की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने दहेज़ मैं क्या दिया था या घर के सामान कहां से  आये थे.
जब शादी का वक़्त आया तो हजरत अली (अ.स) ने अपने घोड़े की जीन और एक तलवार बेच   दी और जो रक़म मिली उसके तीन हिस्से किये गए.
१) पहला हिस्सा घर मैं इस्तेमाल होने वाले सामान लाने के लिए दी गए.
२) दूसरा हिस्सा शादी कि तयारी मैं खुशबू . फूल वगैरह के लिए दिया गया.
३) तीसरा हिस्सा मेहमानों के खाने पीने के इंतज़ाम के लिए दिया गया.
घर कि ज़रुरत के सामान लाने के लिए हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने हजरत अबुबक्र को जनाब ए बिलाल और जनाब ए सलमान के साथ भेजा जो १८ सामान लाये.
  1. दो गद्दे जिसमें से एक फाइबर का और एक ऊनी था.
  2. चमड़े कि चटाई
  3. तकिया
  4. मश्क (पानी भेरने के लिए)
  5. जग और जार
  6. घड़ा रखने भरने के लिए
  7. ऊनी पर्दा
  8. कमीज़
  9. नकाब
  10. अंगरखा
  11. बिस्टर
  12. ४ गाव तकिये
  13. १ चटाई
  14. चक्की
  15. कुछ ताम्बे के बर्तन
  16. मसाला पीसने कि चक्की
  17. चूल्हा , पानी रखने का बर्तन
हजरत अली (अ.स) ने इन सभी सामान को लाने के पैसे हजरत मुहम्मद (स.अ.व) को दिए जिनसे जनाब ए फातिमा (स.अव) के दहेज़ का यह सामान आया. REF Masnad e Ahmad

इस नज़र से देखा जाए तो लड़के को वो पैसे लड़की के बाप को देना चाहिए जिनसे लड़की वाला अपनी बेटी के दहेज़ का साम लाये. और यह रक़म भी सिर्फ इतनी होनी चाहिए जिनसे घर के ज़रूरी सामान लाये जा सकें.
सवाल यह उठता है कि क्यों आज का मुसलमान इस सुन्नत पे नहीं चलता और लड़की के बाप पे ज़ुल्म करता है उससे दहेज़ कि मांग कर के?

जवाब एक ही है जहां माली नुकसान या किसी तरह का दुनियावी फायदा दिखा कि हम ने इस्लाम के कानून कि जगह अपना कानून बना लिया और अल्लाह कि बंदगी के जगह बंदा ए इब्लीस बन गए.
यह एक ऐसा मसला है जिसका हल उनके पास है जिनको अल्लाह ने बेटे दिए हैं. मत करो लड़की पे और उसके घरवालों पे ज़ुल्म दहेज़ मांग के.

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