न्याय व मानवताप्रेम के प्रतीक हज़रत अली

  शहादत 21 रमज़ान वर्ष 40 हिजरी क़मरी की भोर का समय था। दो दिन पूर्व नमाज़ की स्थिति में सिर पर विष में बुझी तलवार का वार लगने के कारण पैग...

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शहादत 21 रमज़ान वर्ष 40 हिजरी क़मरी की भोर का समय था। दो दिन पूर्व नमाज़ की स्थिति में सिर पर विष में बुझी तलवार का वार लगने के कारण पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम की स्थिति बिगड़ चुकी थी। उनसे मिलने के लिए आने वाले सभी लोगों की आंखों में आंसू थे। हज़रत अली ने आंखें खोलीं और कहा कि कल तक मैं तुम्हारा साथी था, आज मेरी स्थिति तुम्हारे लिए एक पाठ है और कल मैं तुमसे जुदा हो जाऊंगा। अंतिम समय में उनके लिए कूफ़े के बच्चे जो दूध लेकर आए थे, उसका एक प्याला उन्हें दिया गया। उन्होंने थोड़ा सा दूध पिया और कहा कि बाक़ी दूध उस बंदी को दे दिया जाए जिसने उनके सिर पर वार किया था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का अंतिम समय निकट आ चुका था और उनकी संतान उन्हें अपने घेरे में लिए हुए थी, सभी की आंखों से आंसुओं की बरसात हो रही थी। उन्होंने अपनी अंतिम वसीयतें कीं और ज्येष्ठ पुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम से कहा कि उन्हें कूफ़ा नगर से दूर किसी अज्ञात स्थान पर दफ़्न किया जाए।


इतना सुनना था कि हज़रत अली के निकट मौजूद लोग संयम न रख सके और सभी के रोने की आवाज़ें गूंजने लगीं। उन्होंने इमाम हसन से अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि हे मेरे बेटे मेरे बाद अपने बहन भाइयों का ध्यान रखना और संयम से काम लेना। इसके बाद उन्होंने जो अंतिम वाक्य कहे उनमें ईश्वर के अनन्य होने और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अंतिम पैग़म्बर होने की गवाही दी। इसके बाद संसार में न्याय व मानवताप्रेम का सबसे बड़ा प्रतीक अपने बच्चों को रोता बिलकता छोड़ कर अपने रचयिता से जा मिला। शहादत के समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम की आयु तिरसठ वर्ष थी और उन्हें कूफ़े के निकट नजफ़ नामक नगर में दफ़्न किया गया। लगभग सौ वर्षों तक उनकी क़ब्र अज्ञात रही और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में लोगों को उनकी क़ब्र का पता चला। श्रोताओ हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और इस संबंध में एक विशेष कार्यक्रम लेकर उपस्थित हैं।

 

कुछ हस्तियों के अस्तित्व की विभूतियां लम्बे समय तक जारी रहती हैं किंतु इतिहास में ऐसे कम ही लोग देखे जा सकते हैं जिनका अस्तित्व सर्वकालिक हो और समय उनकी यादों को मिटाने में विफल रहा हो। हज़रत अली इब्ने अबी तालिब ऐसी ही हस्ती हैं और सभी कालों से संबंधित हैं। लेबनान के प्रख्यात लेखक जिबरान ख़लील जिबरान, यद्यपि ईसाई हैं, किंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं में से एक हैं। वे उनके बारे में अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं। मैं इस बात को समझ नहीं पाता हूं कि क्यों कुछ लोग अपने काल से इतने आगे होते हैं। मेरे विचार में हज़रत अली केवल अपने समय और काल से विशेष नहीं थे बल्कि वे ऐसे व्यक्ति हैं जो जिनका अस्तित्व सर्वकालिक है।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम ऐसी हस्ती हैं जिनके अस्तित्व के गुणों और पवित्र प्रवृत्ति ने उन्हें सभी मानवीय आयामों से श्रेष्ठ बना कर हर समय व पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत किया है। उनका प्रशिक्षण पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम जैसी महान हस्ती की छत्रछाया में हुआ था जिसके बाद वे साहस, न्याय व ईश्वर से भय की चरम सीमा पर पहुंच गए। वर्तमान काल के प्रख्यात दार्शनिक शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी अपनी एक पुस्तक में हज़रत अली के बारे में लिखते हैं। वे एक संतुलित अस्तित्व के स्वामी थे। सभी मावनीय गुण उनमें एकत्रित हो गए थे। उनके विचार अत्यंत गहन और भावनाएं अत्यंत कोमल थीं। दिन में लोगों की आंखें उन्हें त्याग व बलिदान करते देखतीं और कान उनके तत्वदर्शितापूर्ण कथनों और नसीहतों को सुनते थे जबकि रात में आकाश के तारे, ईश्वर के गुणगान को सुनते और उपासना के समय उनकी आंखों से बहती अश्रुओं की धारा को देखते थे। वे तत्वदर्शी और ईश्वर की गहरी पहचान रखने वाले भी थे, सामाजिक नेता और सिपाही भी थे, तथा मज़दूर, वक्ता एवं लेखक भी थे। कुल मिला कर वे सभी गुणों वाले एक संपूर्ण मनुष्य थे।

 

 

सबके मन में यह प्रश्न आता है कि वह क्या बात है जिसने चौदह शताब्दियां बीतने के बावजूद लोगों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम का दीवाना बना रखा है और हर व्यक्ति बरबस ही उनकी प्रशंसा कर उठता है? इस प्रश्न का उत्तर ईश्वर से उनका गहरा संबंध है। यही संबंध उन्हें समय, काल और स्थान से ऊपर उठा देता है। लोग उनसे प्रेम करते हैं क्योंकि ईश्वर से उनका जुड़ाव बहुत गहरा था। यही कारण है कि हर पवित्र एवं स्वस्थ प्रवृत्ति जो सच्चाई की ओर झुकाव रखती है, अली की प्रशंसा और उनसे प्रेम करती है। वे सत्य के उन पथिकों का सबसे स्पष्ट उदाहरण हैं जिनकी कथनी और करनी भलाई और सच्चाई पर आधारित होती है। यही कारण है कि जब वे सत्ता संभालते हैं तो उनकी नीयत और संकल्प यह होता है कि उसके माध्यम से सच्चाई को पुनर्जागृत करेंगे और मानवीय गुणों के विकास तथा न्याय की स्थापना के लिए उचित अवसर उपलब्ध कराएंगे। कभी हम उन्हें मायामोह में ग्रस्त धन की पूजा करने वालों से संघर्ष के मंच पर देखते हैं, कभी मिथ्याचारी राजनितिज्ञों से मुक़ाबले के मैदान में देखते हैं तो कभी वे हमें स्वयं को धर्म का ठेकेदार बताने वाले पथभ्रष्ट लोगों से मुक़ाबला करते दिखाई देते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने वास्तविक रूप में जनता का ऐसा शासन स्थापित किया जो इतिहास में अद्वितीय एवं अनुदाहरणीय है। न्याय इस शासन की सबसे बड़ी विशेषता थी। कोई भी वस्तु यहां तक कि निकट की नातेदारी भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के न्यायप्रेमी विचारों पर कण भर भी प्रभाव नहीं डाल सकती थी।

 


जीवन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का चरित्र, संसार के संबंध में उनके दृष्टिकोण से संबंधित था। वे संसार के संबंध में तर्कसंगत दृष्टिकोण रखते थे तथा संसार के संबंध में उनका रवैया अपने आपमें अनुदाहरणीय था। संसार तथा उसकी सुंदर प्रकृति ईश्वर की रचना है। आकाश, धरती, समुद्र, बादल, हवाएं तथा पर्वत सभी ईश्वर की निशानियां हैं। हज़रत अली धरती तथा प्रकृति से प्रेम करते थे और ईश्वर की सभी निशानियों की सुंदरता की प्रशंसा करते थे। वे सोतों, खेतों, खजूर के बाग़ों से अत्यधिक प्रेम करते थे। वे अपने कंधों पर खजूर की गुठलियों का गट्ठर उठा कर ले जाते और उन्हें मरुस्थल में बोते थे तथा गहरे कुओं से अपने हाथों से पानी निकाल कर उनकी सिंचाई करते थे। इस प्रकार उन्होंने मरुस्थल में खजूर के अनेक बाग़ों को अस्तित्व प्रदान कर दिया था। वे संसार को बुरा भला कहने वाले कि निंदा करते हुए संसार के संबंध में कहते हैं। संसार, सच्चों के लिए वास्तविक घर है, संसार को सही ढंग से पहचानने वालों के लिए स्वस्थ ठिकाना है और जो इससे (प्रलय के मार्ग के लिए) आहार लेना चाहे उसके लिए आवश्यकतामुक्त कर देने वाला घर है। संसार, ईश्वर को चाहने वालों का उपासना स्थल, तथा फ़रिश्तों के नमाज़ पढ़ने का स्थान है। संसार ईश्वर के प्रेमियों के व्यापार की मंडी है जहां वे ईश्वरीय दया का पात्र बनते हैं और अनंतकालीन स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।

 

इस आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में संसार, प्रलय व परलोक की भूमिका है। जब तक हम इस संसार में प्रयास नहीं करेंगे और सही ढंग से प्रयत्न नहीं करंगे तब तक हमें परलोक के लिए सही लाभ प्राप्त नहीं होगा। यह संसार परीक्षा का स्थान है और परिपूर्णताओं तक पहुंचने की सीढ़ी है। यह एक ऐसा बाज़ार है जिसमें ईमान वाले व्यापारी अपनी भौतिक व आध्यात्मिक क्षमताओं से लाभ उठा कर मानवता के उच्च स्थानों तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। वे लोगों से प्रेम और उनकी सेवा और न्याय व मानव प्रतिष्ठा के प्रसार द्वारा एक कल्याण प्राप्त समाज का गठन करते हैं जिसमें लोगों के लिए पवित्र जीवन उपलब्ध होता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में संसार तब तक प्रिय व सम्मानीय है जब तक वह लोगों की सेवा, न्याय के प्रसार और शांति व समानता के आधारों को सुदृढ़ बनाने का माध्यम हो। संसार के संबंध में यही दृष्टिकोण इस बात का कारण बनता है कि अली अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध युद्ध के रणक्षेत्र के सबसे बड़े योद्ध बन जाते हैं और अत्याचाग्रस्त लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं। इसी प्रकार वे तपती दोपहर में खजूरों के बागों की सिंचाई करते हैं और उससे प्राप्त होने वाले धन को दरिद्रों और वंचितों पर ख़र्च कर देते हैं।

 


किंतु यदि यह संसार लक्ष्य बन जाए और परलोक के मुक़ाबले में आ जाए तो फिर यह मनुष्य की परिपूर्णता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। यदि इस संसार में उच्च मानवीय लक्ष्यों को कुचल दिया जाए, ईश्वर के बंदों को दास बनाया जाए, उनकी संपत्ति की लूट-मार की जाए और धार्मिक शिक्षाओं, मानवीय भावनाओं तथा शिष्टाचारिक कटिबद्धताओं को सत्ता लोलुपता, वर्चस्ववाद तथा धन प्रेम की आग में जला दिया जाए तो फिर यह संसार अप्रिय है। हज़रत अली अलैहिस्सालम इस प्रकार के संसार से युद्ध करते हैं और इसे अत्यंत कुरूप बताते हैं। वे कभी इसे एक ऐसे सांप की उपमा देते हैं जो विदित रूप में बहुत रंगीन है किंतु उसके मुंह में प्राण घातक विष है। कभी वे कहते हैं यह संसार मेरी दृष्टि में सुअर की उस हड्डी से भी अधिक तुच्छ है जो किसी कोढ़ी के हाथ में हो। या गेहुं के उस छिलके से भी कम महत्व का है जो किसी टिड्डी के मुंह में हो। इस संसार के विरुद्ध हज़रत अली निरंतर संघर्ष करते हैं। नमरूद, फ़िरऔन और इसी प्रकार के अत्याचारियों का संसार उन्हें स्वीकार नहीं है। इस प्रकार के संसार के बारे में वे कहते हैं। हे संसार! मुझ से दूर हो जा कि मैंने तेरी लगाम तेरी गर्दन में डाल कर तुझे छोड़ दिया है। कहां हैं वे लोग जिनसे तूने खिलवाड़ किया और कहां हैं वे जातियां जिन्हें तूने अपने आभूषणों से धोखा दिया। जिसने भी तेरे फिसलने वाले मार्ग पर क़दम रखा, लड़खड़ा कर पाताल में गिर गया, जो तेरी उफनती हुई लहरों में फंसा वह डूब गया और जो कोई तेरे जाल को तोड़ कर निकल गया, वह विजयी हो गया। ईश्वर की सौगंध! मैं तेरे समक्ष नहीं झुकूंगा कि तू मुझे अपमानित कर दे और तेरे समक्ष नतमस्तक नहीं हूंगा कि तू मुझ पर अपनी लगाम कस दे।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस कथन के अनुसार संसार फिसलने वाला एक ऐसा मार्ग भी हो सकता है जो मनुष्य को ईश्वर तथा परिपूर्णता तक पहुंचने से रोक दे और उसकी चमक-दमक मनुष्य को स्वयं पर मोहित कर ले। अतः बुद्धिमान लोग संसार के बारे में गहन विचार करते हैं और ईश्वर का भय रखने वाले पवित्र लोगों की भांति, संसार को गंतव्य नहीं अपितु मार्ग समझ कर गुज़र जाते हैं और अपने आपको पापों से दूषित नहीं करते। हज़रत अली अलैहिस्सलाम एक अन्य स्थान पर कहते हैं कि ईश्वर दया करे उस व्यक्ति पर जो संसार के बारे में सोचे, उससे पाठ सीखे और चेतना प्राप्त करे क्योंकि जो कुछ इस संसार में है वह शीघ्र की समाप्त हो जाएगा और जो कुछ प्रलय में है वह अनंतकालीन है।


यही कारण है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम लोक-परलोक में सफलता का मंत्र यह बताते हैं कि मनुष्य धर्म व ईश्वरीय शिक्षाओं को जड़ तथा संसार को शाखाएं समझे। इस संबंध में वे कहते हैं कि यदि तुमने अपने संसार को अपने धर्म का आज्ञापालक बना लिया तो तुमने अपने धर्म और संसार दोनों की रक्षा की और प्रलय में भी तुम्हें मोक्ष व सफलता प्राप्त होगी।

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