करबला में लिखी गई थी इस्लामी आतंकवाद की पहली इबारत

मोहर्रम का महीना तो दरअसल इस्लामिक कैलेन्डर के अनुसार वर्ष का पहला महीना होता है। परन्तु इसी मोहर्रम माह में करबला (इराक) में लगभग 1400 वर...

तनवीर जाफरी, (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी)

मोहर्रम का महीना तो दरअसल इस्लामिक कैलेन्डर के अनुसार वर्ष का पहला महीना होता है। परन्तु इसी मोहर्रम माह में करबला (इराक) में लगभग 1400 वर्ष पूर्व अत्याचार व आतंक का जो खूनी खेल एक मुस्लिम बादशाह द्वारा खेला गया, उसकी वजह से आज पूरा इस्लामी जगत मोहर्रम माह का स्वागत नववर्ष की खुशियों के रूप में करने के बजाए शोक व दुःख के वातावरण में करता आ रहा है। शहीद-ए-करबला हजरत इमाम हुसैन को अपनी अश्रुपूरित श्रद्घांजलि देने के साथ-साथ पूरी दुनिया में इस्लामी जगत के लोग उस सीरियाई शासक यजीद को भी लानत भेजते हैं, जिसने हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन व उनके 72 परिजनों को आज से लगभग 1400 वर्ष पूर्व मैदान-ए-करबला में फुरात नदी के किनारे तपती धूप में क्रूरतापूर्वक भूखा व प्यासा शहीद कर इस्लामी आतंकवाद की पहली इबारत लिखी थी।

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  1. ‘इस्लामी आतंकवाद‘ एक ग़लत शब्द है
    इस्लामी आतंकवाद यह एक शब्द है जिसे पश्चिम के सूदख़ारों ने इस्लाम को बदनाम करने के लिए दिया और दुनिया भर के सूदख़ोरों ने इसे दुहराया। यह लेख पढ़कर पता चला कि दीन की सही समझ न रखने वाले ऐसे लोग भी इसकी चपेट में आ गए हैं जिनके नाम मुसलमानों जैसे हैं। हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके परिजनों को करबला में ज़ालिमाना तरीक़े से क़त्ल कर डाला गया। इन ज़ालिमों में हुकूमत के लालची यज़ीद के सैनिक भी थे और वे दग़ाबाज़ भी थे जिन्होंने ख़त लिखकर आली मक़ाम इमाम हुसैन रज़ि. को बुलाया था। नबी स. और औलादे नबी से मुहब्बत ईमान का लाज़िमी तक़ाज़ा और उसकी एक लाज़िमी अलामत है। ये ज़ालिम इस मुहब्बत से बिल्कुल ख़ाली थे। इनके अमल को आज तक दुनिया के किसी भी आलिम ने ‘इस्लामी अमल‘ नहीं कहा। दग़ाबाज़ों का कोई भी अमल कभी इस्लामी नहीं होता।
    हज़रत मुहम्मद स. ने फ़रमाया है कि
    ‘जो धोखा दे वह हम में से नहीं है।‘

    क़ातिलाने हुसैन का धोखा जगज़ाहिर है। उनके अमल को सिर्फ़ आतंकवाद कहा जाना उचित है।
    इस्लाम क्या है ?
    यह इमाम हुसैन रज़ि. की ज़िंदगी से जानने की ज़रूरत है।
    ‘इस्लाम‘ का एक अर्थ सलामती और शान्ति है।
    ‘इस्लामी आतंकवाद‘ का अनुवाद होता है ‘शान्तिवादी आतंकवाद‘।
    क्या दुनिया में ‘शान्तिवादी आतंकवाद‘ संभव है ?
    जहां शान्ति होगी वहां आतंकवाद नहीं हो सकता और जहां आतंकवाद होगा वहां शान्ति नहीं हो सकती।
    अतः ‘इस्लामी आतंकवाद‘ एक ग़लत शब्द है। अपने खंडन के लिए यह शब्द ख़ुद ही गवाह है।
    लेखक को इस बात पर संजीदगी से विचार करना चाहिए।

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  2. ISLAMI ATANKWAAD naam ki koi chiz is duniya me nahi hai...ye to aman k mazhab ko badnaam karne ki kaafiro ki ek chaal thi.wo isme khud hi fans kar rah jayenge..jarurat to hame apni galatfahmiya dur karne ki hai....

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  3. ISLAMI terrorism ye word to western world ne apne matlab k liye gadha. taki iski aad me muslim kaum aur sakaro ko badnam kar sake. aur unke petrol par kabja jama sake.musalmaan aur digar aman pasandida brothers ko ye baat samajhni chahiye ki ISLAMI ATANKWAD naam ki koi chiz is duniya me nahi hai...

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