अगर तुम ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे अभिलाषी हो।

अगर अपने दुश्मन का दिल जीतना  चाहो तो उस पर अपनी नेकियों  का दरवाज़ा खोल दो। मक़सद यह है कि तुम्हारा दुश्मन जिस के  सीने में बुग़्ज़ व अदावत...

अगर अपने दुश्मन का दिल जीतना  चाहो तो उस पर अपनी नेकियों  का दरवाज़ा खोल दो। मक़सद यह है कि तुम्हारा दुश्मन जिस के  सीने में बुग़्ज़ व अदावत के शोले भड़क रहे हों उसपे  अपने अच्छे एखलाक  और अच्छे किरदार   की ऐसी बारिश करो कि उस को  अपनी करनी पे शर्मिन्दी का एहसास होने लगे. अदावत के शोले सर्द पड़ जायें, मुहब्बत की गर्मी  पैदा हो और दुश्मनी दोस्ती में तब्दील हो जाये। 



हजरत अली(अ.स) ने नहजुल बालाघा मैं फ़रमाया  कि लोगों के बीच ऐसे रहो  कि अगर मर जाओं तो वो तुम पर रोयें और ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे  अभिलाषी हो। 

आज दुनिया की नज़र में हुस्ने अख़लाक़, फ़रेब, हमदर्दी और मसलहत परस्ती की नाम है. हजरत अली(अ.स) ने नहजुल बालाघा मैं फ़रमाया की  हुस्ने अख़लाक़ के यह मतलब  है , अगर अपने दुश्मन को पाओ तो उस को माँफ़ कर देना और अल्लाह का शुकर अदा करना . 




जब तुम पर सलाम किया जाये तो उस का जवाब अच्छे तरीक़े से दो और जब तुम पर कोई अहसान करे तो उसे उस से बढ़ कर बदला दो। हुस्ने अख़लाक़ दुश्मनों को दोस्त  बना देता है और यह एक ऐसा अमल है जो गुनाहों को पिघला देता है.
हुस्ने अख़लाक़ की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से भी होता है कि हजरत अली(अ.स) ने  दुसरे धर्म के लोगों के साथ भी हुस्ने अख़लाक़ के साथ पेश आने की ताकीद की है। 


हम सभी ने बचपन मैं, किताबों मैं एक  कहानी पढ़ी है,  एक बुढ़िया जो रोज़  रसूल इ खुदा(स.अव) पे  कूड़ा फेंकती थी , कैसे रसूल इ खुदा(स.अ.व) उसका हाल पूछने उसकी बीमारी मैं गए.  



एक और मिसाल है, की एक औरत जो इस्लाम पे नहीं थी और जिसके दिल मैं रसूल इ खुदा (स.अ.व) के लिए नफरत भर  दी गयी थी, उसने एक दिन फैसला किया की वोह उस जगह से दूर चली जाएगी जहाँ यह मुहम्मद (स.अ.व) रहते हैं.वो इसी ख्याल से अपने सामान के साथ बाहर आई और शहर से दूर जाने वाली सड़क पे चलने लगी. थक गयी तो आराम कर ने लगी, इतने मैं एक शख्स आया , उसका हाल पुछा, उसने अपनी परेशानी बताई और मुहम्मद (स.अ.व) की बुराई  करने लगी, की उसकी वजह से आज वतन से दूर जाना पड रहा है. उस इंसान ने कहा चलो मैं तुमको इस शहर से दूर तुम जहाँ जा रही हो पहुंचा देता हूँ. जब दोनों शहर से बहार पहुँच गयी तो उस औरत ने शुक्रिया अदा किया और कहा भाई तुमने अपना नाम तक नहीं बताया? उस शख्स ने कहा मैं वही मुहम्मद (स.अ.व) हूँ जिसकी वजह से तुम वतन से दूर जा रही हो. वोह औरत ताज्जुब मैं पड़ गयी और शर्मिंदा हुई, की मैंने तुमको कितना बुरा भला रास्ते भर  कहा और तुम कुछ ना बोले , बल्कि मेरी मदद की. उस औरत ने माफ़ी मांगी और कहा एक एहसान  और कर दो  , मुझे वापस मेरे घर वापस  पहुंचा दो. मैं अब उसी मुहम्मद(स.अव) के वतन मैं रहना चाहती हूँ.

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