ऐ नाना मैंने अपना वादा पूरा किया --इमाम हुसैन (ए.स) .
एक दिन बाद माह ए मुहर्रम का चाँद आसमान पे दिखने लगेगा. मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है. लेकिन इसका स्वागत मुसलमान नम आँखों से ...
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एक दिन बाद माह ए मुहर्रम का चाँद आसमान पे दिखने लगेगा. मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है. लेकिन इसका स्वागत मुसलमान नम आँखों से करते हैं, खुशिया नहीं मनाते , क्योंकि इसी दिन हज़रत मुहम्मद (स.ए.व) के नवासे इमाम हुसैन (ए.स) को एक दहशतगर्द गिरोह ने ,कर्बला मैं उनके परिवार के साथ घेर के 10 मुहर्रम 61 हिजरी को भूखा प्यासा शहीद कर दिया.
हमारे एक भाई सय्यिद जाफ़र नकवी साहब को जब मैंने यह लेख़ पेश किया तो उन्होंने तोहफा ए मासूमीन (ए.स) मुझे पेश किया, जिसको पढ़ के आँखों से आंसू जारी हो गए....
आप भी पढ़ें यह ज़ुल्म ए यजीद और सब्र ए हुसैन (ए.स) की दास्ताँ ...
इमाम हुसैन (ए.स) अपनी नाना हज़रत मुहम्मद (स.ए.व) से फरमाते हैं की....
ऐ नाना, मैंने अल्लाह के दीन को आप से किये गए वादे के अनुसार कर्बला के मैदान में अपने तमाम बच्चों, साथियों और अंसारों की क़ुर्बानी देकर बचा लिया! नाना, मेरे ६ महीने के असग़र को तीन दिन की प्यास के बाद तीन फल का तीर मिला !
मेरा बेटा अकबर, जो आप का हमशक्ल था, उसके सीने में ऐसा नैज़ा मारा गया की उसका फल उसके कलेजे में ही टूट गया ! मेरी बच्ची सकीना को तमाचे मार-मार कर इस तरह से उसके कानो से बालियाँ खींची गयी के उसके कान के लौ कट गए !
ऐ नाना, बाबा की दुआओं की तमन्ना मेरा भैय्या अब्बास, जो हमारे कबीले के चमकते चाँद की तरह था, उसको इतने टुकड़ों में काटा गया की उसकी लाश को खैमा तक नहीं लाया जा सका ! ऐ नाना, भाई हसन का बेटा क़ासिम, इस तरह से घोड़ों की टापों से रोंदा गया की उसके जिस्म का एक एक टुकड़ा मक़तल में फैल गया! नाना, आप की उम्मत ने मुझे भी ना छोड़ा! मुझे प्यासा रख़ा नाना !
अंसार, अज़ीज़ और बेटों के शहादत के बाद मै तेरे दीन को बचाने की ख़ातिर कर्बला के उस तपते हुए रेगिस्तान में गया, जहाँ मैंने अकबर, असग़र, अब्बास वा कासिम को भेजा था ! नाना, तेरी उम्मत, दादा अबू तालिब को काफिर कहती थी, लेकिन कर्बला के मैदान में अल्लाह का दीन बचाने के लिए कटी औलादे अबुतालिब ही ना !
मैंने अल्लाह का, आप का और बाबा अली-मुर्तज़ा का नाम लेकर उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वोह न माने! जब निदा के बाद मैंने अपनी तलवार म्यान में रखी तो पहले लोगों में मुझ पर पत्थर मारे, फिर नैज़े, फिर तलवारें, नाना मुझे जब यह ज़ालिम मार रहे थे तो मैंने आपको, माँ फातिमा, बाबा अली, और भाई हसन को बहुत याद कर रहा था! नाना, सच तो यह है की अम्मा बहुत याद आयीं!
नाना मुझे इतने तीर लगे थे की जब मै घोड़े से ज़मीन पर ग़िर रहा था, मै भी भाई अब्बास की तरह हाथ के बल ना आ सका. बल्कि तीर इतने थे नाना की मै ज़मीन पर ही नहीं आ सका ! जालिमों ने मेरी उंगली काट कर अंगूठी उतार ली नाना ! कोई आप का अमामा ले गया कोई पैराहन ले गया ! नाना, जब शिमर ज़िल जौशन मेरा सर काट रहा था, मेरी अम्मा ने बचाने की बहुत कोशिश की थी!
प्यास की शिद्दत, भोथरी छुरी, उलटी गर्दन, १९०० ज़ख़्म नाना! नाना, मैने अपना सर नोके नैज़ा पर चढ़ा कर तेरे दीन की फ़तह का एलान किया! नाना ख़ुदा हाफ़िज़, अब मेरी जैनब व उम्मे कुलसूम की चादर का ख्याल तेरे हवाले, मेरे बीमार सैयदे सज्जाद को जलना से बचाना, नाना!
अल्लाहूम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन वा आले मोहम्मद
……..सय्यिद जाफ़र नकवी साहब
हमारे एक भाई सय्यिद जाफ़र नकवी साहब को जब मैंने यह लेख़ पेश किया तो उन्होंने तोहफा ए मासूमीन (ए.स) मुझे पेश किया, जिसको पढ़ के आँखों से आंसू जारी हो गए....
आप भी पढ़ें यह ज़ुल्म ए यजीद और सब्र ए हुसैन (ए.स) की दास्ताँ ...
इमाम हुसैन (ए.स) अपनी नाना हज़रत मुहम्मद (स.ए.व) से फरमाते हैं की....
ऐ नाना, मैंने अल्लाह के दीन को आप से किये गए वादे के अनुसार कर्बला के मैदान में अपने तमाम बच्चों, साथियों और अंसारों की क़ुर्बानी देकर बचा लिया! नाना, मेरे ६ महीने के असग़र को तीन दिन की प्यास के बाद तीन फल का तीर मिला !
मेरा बेटा अकबर, जो आप का हमशक्ल था, उसके सीने में ऐसा नैज़ा मारा गया की उसका फल उसके कलेजे में ही टूट गया ! मेरी बच्ची सकीना को तमाचे मार-मार कर इस तरह से उसके कानो से बालियाँ खींची गयी के उसके कान के लौ कट गए !
ऐ नाना, बाबा की दुआओं की तमन्ना मेरा भैय्या अब्बास, जो हमारे कबीले के चमकते चाँद की तरह था, उसको इतने टुकड़ों में काटा गया की उसकी लाश को खैमा तक नहीं लाया जा सका ! ऐ नाना, भाई हसन का बेटा क़ासिम, इस तरह से घोड़ों की टापों से रोंदा गया की उसके जिस्म का एक एक टुकड़ा मक़तल में फैल गया! नाना, आप की उम्मत ने मुझे भी ना छोड़ा! मुझे प्यासा रख़ा नाना !
अंसार, अज़ीज़ और बेटों के शहादत के बाद मै तेरे दीन को बचाने की ख़ातिर कर्बला के उस तपते हुए रेगिस्तान में गया, जहाँ मैंने अकबर, असग़र, अब्बास वा कासिम को भेजा था ! नाना, तेरी उम्मत, दादा अबू तालिब को काफिर कहती थी, लेकिन कर्बला के मैदान में अल्लाह का दीन बचाने के लिए कटी औलादे अबुतालिब ही ना !
मैंने अल्लाह का, आप का और बाबा अली-मुर्तज़ा का नाम लेकर उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वोह न माने! जब निदा के बाद मैंने अपनी तलवार म्यान में रखी तो पहले लोगों में मुझ पर पत्थर मारे, फिर नैज़े, फिर तलवारें, नाना मुझे जब यह ज़ालिम मार रहे थे तो मैंने आपको, माँ फातिमा, बाबा अली, और भाई हसन को बहुत याद कर रहा था! नाना, सच तो यह है की अम्मा बहुत याद आयीं!
नाना मुझे इतने तीर लगे थे की जब मै घोड़े से ज़मीन पर ग़िर रहा था, मै भी भाई अब्बास की तरह हाथ के बल ना आ सका. बल्कि तीर इतने थे नाना की मै ज़मीन पर ही नहीं आ सका ! जालिमों ने मेरी उंगली काट कर अंगूठी उतार ली नाना ! कोई आप का अमामा ले गया कोई पैराहन ले गया ! नाना, जब शिमर ज़िल जौशन मेरा सर काट रहा था, मेरी अम्मा ने बचाने की बहुत कोशिश की थी!
प्यास की शिद्दत, भोथरी छुरी, उलटी गर्दन, १९०० ज़ख़्म नाना! नाना, मैने अपना सर नोके नैज़ा पर चढ़ा कर तेरे दीन की फ़तह का एलान किया! नाना ख़ुदा हाफ़िज़, अब मेरी जैनब व उम्मे कुलसूम की चादर का ख्याल तेरे हवाले, मेरे बीमार सैयदे सज्जाद को जलना से बचाना, नाना!
अल्लाहूम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन वा आले मोहम्मद
……..सय्यिद जाफ़र नकवी साहब