बचें तोह अगले बरस हम हैं और यह ग़म फिर है जो चल बसें तो यह अपना सलामे आखिर है
सलाम खाक नशीनौं पे सोग्वारों का ग़रीब देते हैं पुरसा तुम्हारे प्यारों का सलाम उन पे जिन्हें शर्म खाए जाती है खुले सरौं प...
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ग़रीब देते हैं पुरसा तुम्हारे प्यारों का
सलाम उन पे जिन्हें शर्म खाए जाती है
खुले सरौं पह असीरी की खाक आती है
सलाम उस पह जोह ज़हमत कशे सलासिल है
मुसीबतौं में इमामत की पहली मंजिल है
सलाम भेजते हैं अपनी शहजादी पर
के जिसको सौंप गए मरते वक़्त घर सर्वर
मुसफिरत ने जिसे बेबसी यह दिखलाई
निसार कर दिए बच्चे ना बच सका भाई
असीर होके जिसे शामियौं के नर्ग्हे में
हुस्सैनियत है सिखाना अली के लहजे में
सकीना बीबी तुम्हारे ग़ुलाम हाज़िर हैं
बुझे जोह प्यास तोह अश्कौं के जाम हाज़िर हैं
पहाड़ रात बड़ी देर है सवेरे में
कहाँ हो शामे घरीबां के घुप अंधेरे में
ज़मीने गर्म यतीमी की सख्तियाँ बीबी
वोह सीना जिस पह के सो -ती थी अब कहाँ बीबी
यह सिं यह हश्र यह सदमे नए नए बीबी
कहाँ पे बैठी हो खेमे तोह जल गए बीबी
जनाब मादरे बेशीर को भी सब का सलाम
अजीब वक़्त है क्या दें तस्सलीयौं का पयाम
अभी कलेजे में एक आग सी लगी होगी
अभी तोह गोद की गर्मी ना कम हवी होगी
न इस तरह कोई खेती हरी भरी उजडे
तुम्हारी मांग भी उजड़ी है गोद भी उजड़ी
नहीं अंधेरे में कुछ सूझता कहाँ ढूँढें
तुम्हारा चाँद कहाँ चुप गया कहाँ ढूँढें
नहीं लायीनो में इंसान कोई खुदा हाफिज़
दरिन्दे और यह बेवारिसी खुदा हाफिज़
सलाम तुम पे शहीदों के बेकफ़न लाशो
सलाम तुम पे रसूल -ओ -बतूल के प्यारो
बचें तोह अगले बरस हम हैं और यह ग़म फिर है
जो चल बसें तो यह अपना सलामे आखिर है
सलाम ए आखिर -- आल ’ए राजा मरहूम .जिसको नासिर जहाँ साहब मरहूम ने बेहतरीन अंदाज़ मैं पढ़ा