हुस्ने अख़लाक़ नहजुल बलाग़ा की नज़र में
हुस्ने अख़लाक़ नहजुल बलाग़ा की नज़र में सैयद हुसैन अख़्तर रिज़वी जिस तरह से बाज़ मुल्कों के ज़ुग़राफ़ियाई हालात अफ़वाहों और ग़लत फ़हमियों के...
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हुस्ने अख़लाक़ नहजुल बलाग़ा की नज़र में
सैयद हुसैन अख़्तर रिज़वी
जिस तरह से बाज़ मुल्कों के ज़ुग़राफ़ियाई हालात अफ़वाहों और ग़लत फ़हमियों के लिये बड़े साज़गार होते हैं। उसी तरह मिज़ाजे इंसानी भी नाख़ुशगवार ताबीर व तंक़ीद के लिये इंतेहाई ख़ुशगवार वाक़े हुआ है। ख़ुदा न करे कि हमारे मुशाहेदे में कोई नाख़ुशगवार वाक़ेया रुनुमा हो। वर्ना वह हमारे ज़ौक़ और हमारी दिलचस्बी के लिये इंतेहाई ख़ुशगवार होता है।
आख़िर क्या वजह थी कि पहाड़ों के ग़ारों में पनाह ढ़ूढ़ने वालों को बहादुर व जाँबाज, ख़ानकाहों के गोशों में ज़िन्दगी गुज़ारने वालों को आबिद व ज़ाहिद, शराफ़ते सब्र को अहसासे कमतरी, मेयारे अदालत को हक़ व बातिल का हसीन इम्तेज़ाज, सियासी हिकमते अमली को जालसाजी व चालबाजी और जौहरे अख़लाक़ को फ़रेब व हमदर्दी से ताबीर किया गया? मिज़ाज की नाख़ुशगवारी और तबीयतों की नाहमवारी के नतीजे में ज़ेहने इंसानी हर सिफ़त और हर कमाल को सतही ऐतेबार से सोचने का आदी हो गया। नतीजे में इँसानी कमालात इस तरह मस्ख़ हो गये कि उन की वाक़ेई सूरत ना का़बिले शिनाख़्त बन गई। वह तो यह कहिये कि मुहम्मद व आले मुहम्मद (अ) की सीरत व ज़िन्दगी ने इंसानी कमालात की मस्ख़ शुदा सूरत को मअनवियत व रुहानियत से रुशनास कराया वर्ना इंसानी कमालात के तूल व अर्ज़ में ख़ामोश सिफ़तें तो होतीं कोई मअनवी किरदार न होता।
जहाँ तक मौला ए कायनात की ज़िन्दगी का सवाल है तो आप की शख़्सियत अपने क़ौल व फ़ेल के ऐतेबार से जिस इंफ़ेरादियत और बेशुमार ख़ुसूसियात की हामिल है इस सिलसिले में कोई दूसरा आप का हमसर नज़र नही आता। आप की शख़्सियत को जिस ज़ाविय ए निगाह से देखा जाये वह अपने अंदर ऐसी मअनवीयत और रुहानियत रखता है कि आम इंसानी ज़ेहन उस की तह तक नही पहुच सकता।
मसलन हुस्ने अख़लाक़ को ही ले लेजिये बज़बाने नहजुल बलाग़ा अगर अपने दुश्मन पर ऐताब करना चाहो तो उस पर अपनी अता का दरवाज़ा खोल दो। मक़सद यह है कि तुम्हारा दुश्मन जिस को सीने में बुग़्ज़ व अदावत के शोले भड़क रहे हों अपने अख़लाक़े करीमाना की ऐसी बारिश करो कि उस का वुजूद अहसासे शर्मिन्दी से शराबोर हे जाये, अदावत के शोले सर्द पड़ जायें, मुहब्बत की हरारत पैदा हो और दुश्मनी दोस्ती में तब्दील हो जाये। आप फ़रमाते हैं कि लोगों से इस तरह से मिलों कि अगर मर जाओं तो तुम पर रोयें और ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे मुश्ताक़ हो। मक़सद यह है कि जो शख़्स लोगों हुस्ने अख़लाक़ से पेश आता है लोग उस की तरफ़ दस्ते तआवुन बढ़ाते हैं, उस की इज़्ज़त व तौक़ीर करते हैं और उस के मरने के बाद उस की याद में आँसू बहाते हैं लिहाज़ा इंसान को चाहिये कि वह इस तरह मरनजाँ मरन्ज ज़िन्दगी गुज़ारे कि किसी को उस से शिकायत न हो और न उस से किसी को गज़ंद पहुचे ता कि उस को ज़िन्दगी में दूसरों की हमदर्दी हासिल हो और मरने के बाद भी उसे अच्छे अल्फ़ाज़ में याद किया जाये।
आज दुनिया की नज़र में हुस्ने अख़लाक़, फ़रेब, हमदर्दी और मसलहत परस्ती की नाम है कि फ़रीक़े मुक़ाबिल को हमदर्दी का मशरूब पिला कर मसलहत की सूली पर लटका दिया जाये। मगर नहजुल बलाग़ा की नज़र में हुस्ने अख़लाक़ के यह मअना है: अगर अपने दुश्मन को पाओ तो उस का शुक्राना उस को माँफ़ कर देना क़रार दो। यह एक ऐसा म्अना ख़ेज़ जुमला है कि इंसानी शराफ़त की तारीख़ में उस की मिसाल नही मिलती। वाज़ेह रहे कि अफ़व व दर गु़ज़र का माहौल वहीं होता है जहाँ इंतेक़ाम पर क़ुदरत हो, जहाँ क़ुदरत ही न हो वहाँ इंतेक़ाम से हाथ उठा लेना मजबूरी का नतीजा होता है जिस पर कोई फ़ज़ीलत मुरत्तब नही होती। अलबत्ता क़ुदरत व इक़तेदार के होते हुए अफ़व व दर गुज़र से काम लेना इंसानी शराफ़त वह जौहर है जिस के नतीजे में इंसान अपने मुआशरे और अपनी तहज़ीब में एक मुसतक़िल मक़ाम पैदा कर लेता है।
वाक़ेया यह है कि ख़ुश अख़लाक़ी व ख़ंदा पेशानी से दूसरों को अपने तरफ़ जज़्ब करना और शींरी कलामी से ग़ैरों को अपनाना कोई मुश्किल और दुशवार चीज़ नही क्योकि उस के लिये न दिमाग़ी कद व काविश की हाजत होती है न जिस्मानी मशक़्क़त की ज़रुरत और फिर यह कि दोस्त बनाने के बाद दोस्ती और ख़ुशगवारी को बाक़ी रखना उस से भी ज़्यादा आसान है क्योकि दोस्ती पैदा करने के लिये फिर भी कुछ न कुछ करना पड़ता है मगर उस को बाक़ी रखने के लिये तो कोई मुहिम सर नही करना पड़ती लिहाज़ा जो शख़्स ऐसी चीज़ की भी निगहदाश्त न कर सके और उससे ज़्यादा आजिज़ व दरमान्दा कौन हो सकता है इस लिये इरशाद फ़रमाया: लोगों में सबसे ज़्यादा दरमान्दा वह है जो अपनी उम्र में कुछ भी हासिल न कर सके और उससे भी ज़्यादा दरमान्दा वह है जो कुछ पाकर उसे खो दे। मक़सद यह है कि इंसान को हर एक से ख़ुश ख़ुल्क़ी और ख़ंदा रुई से पेश आना चाहिये ता कि लोग उस से वाबस्ता हो जायें और उस की दोस्ती की तरफ़ हाथ बढ़ायें न कि बद अख़लाक़ी और बद मिज़ाज़ी के नतीजे में उस के दुश्मन हो जायें।
आप फ़रमाते हैं: सब से बड़ा जौहर ज़ाती हुस्ने ख़ुल्क़ है। इस जुमले की मअनवियत ख़ुद बता रही है कि अज़मते इंसानी के सिलसिले में जितने भी औसाफ़ व कमालात वारिद हुए हैं उनमें से सब से अज़ीम मंज़िलत, सब से बड़ा मरतबा उस जौहरे ज़ाती को हासिल है जिसे हुस्ने ख़ुल्क़ से ताबीर किया जाता है।
हुस्ने ख़ुल्क़ इंसानी किरदार का वह नुक़्त इरतेकाज़ है जिस को अपना लेने से मुख़ासेमत और अदावत का अंधा पन दूर हो जाता है और मुहब्बत व उलफ़त की रौशनी से दिल व दिमाग़ रौशन हो जाता है। इस लिये मोमिन के साथ ख़ुश अख़लाक़ी और बशाशत से मुलाक़ात करनी चाहिये ता कि वह इंसानी शराफ़त को फितरी तौर पर तसलीम करते हुए चाहने वालों के हलक़े में शामिल हो जाये।
आप फ़रमाते हैं: जब तुम पर सलाम किया जाये तो उस का जवाब अच्छे तरीक़े से दो और जब तुम पर कोई अहसान करे तो उसे उस से बढ़ कर बदला दो।
आप फ़रमाते हैं: अपने भाई को शर्मिनद ए अहसान बना कर सरज़निश करो और लुत्फ़ व करम के ज़रिये उस के शर को दूर करो। इस फ़िक़रे का नफ़सियाती तजज़िया करें तो मालूम होगा कि अगर बुराई का जवाब बुराई से और गाली का जवाब गाली से दिया जाये तो उससे दुश्मनी और नज़ाअ का दरवाज़ा ख़ुल जाता है और अगर बुराई से पेश आने वाले के साथ हुस्ने सुलूक का रवय्या इख़तियार किया जाये तो वह भी अपने रवय्या और तरज़े फिक्र बदलने पर मजबूर हो जायेगा।
आप फऱमाते हैं: हुस्ने अख़लाक़ निस्फ़े ईमान है यह गुनाहों को पिघला कर रख देता है जिस तरह नमक पानी में घुल जाता है, जन्नत में जाने वालों की अकसरियत मुत्तक़ीन व साहिबाने ख़ुल्क़ की होगी, हुस्ने अख़लाक़ की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से भी होता है कि आपने मुख़तलिफ़ुल अक़ीदा यानी यहूद व नसारा के साथ भी हुस्ने अख़लाक़ के साथ पेश आने की ताकीद की है।
आप फऱमाते हैं: यहूदी के साथ भी हो तो हुस्ने अख़लाक़ ज़रुरी है।
साहिबे हुस्ने अख़लाक़ मिसले मुसतक़िल नमाज़ी व रोज़ेदार के हैं, उस के लिये मुदाहिद फी सबीलिल्लाह का अज्र व सवाब है, रोज़े क़यामत इंसान की नेकी के पलड़े में हुस्ने अख़लाक़ से बेहतर कोई शय न होगी। इस लिये कि वद अख़लाक़ी से ईमान यूँ ही बर्बाद हो जाता है जैसे सिरके से शराब।
लिहाज़ा मजमूई ऐतेबार से यह कहा जाना चाहिये कि अज़मते इंसानी के सिलसिले में नहजुल बलाग़ा ने जो फ़ज़ायल मुअय्यन किये और जिन ख़ुसूसियात का इँसानी ज़िन्दगी के लिये वुजूब साबित किया उन फ़ज़ायसे नफ़सी और खसायसे हसना में से सब से अज़ीम मरतबा हुस्ने अख़लाक़ को क़रार दिया है।
ख़ुदा वंदे आलम नहजुल बलाग़ा की बरकतों के तसद्दुक़ में हमें जौहरे अख़लाक़ से रह फ़राज़ फ़रमाये ता कि हम दुनिया व आख़िरत की तमाम कामयाबियों से ब हुस्न व ख़ूबी हमकिनार हो सकें। इंशा अल्लाह
आख़िरे कलाम में बारगाहे अहदी में मुलतमिसे दुआ हूँ कि परवरदिगारा हम सब को हुस्ने अख़लाक़ के ज़ेवर से आरास्ता फ़रमा और अपनी आख़िरी हुज्जत युसूफ़े ज़हरा इमाम ज़मान (अ) के ज़हूर में ताजील फ़रमा और हमें उन के नासेरीन में शुमार फ़रमा। आमीन व मा तौफ़ीकी इल्ला बिल्लाहि